गजेन्द्र मोक्ष



प्राचीन काल में, त्रिकूट पर्वत पर गजेंद्र नाम का एक शक्तिशाली और धर्मात्मा हाथी रहता था। वह हाथियों के झुंड का राजा था और अपनी शक्ति और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था। गजेंद्र भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और प्रतिदिन उनकी पूजा-अर्चना किया करता था।
एक दिन, गजेंद्र अपने साथियों के साथ एक सुंदर सरोवर में पानी पीने गया। सरोवर में कमल के फूल खिले हुए थे और वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया। जब वह पानी पी रहा था, तभी अचानक एक शक्तिशाली मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। यह मगरमच्छ वास्तव में पिछले जन्म का एक गंधर्व था, जिसका नाम हूहू था और उसे एक ऋषि के श्राप के कारण मगरमच्छ योनि प्राप्त हुई थी।
गजेंद्र ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मगरमच्छ से अपना पैर छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। मगरमच्छ बहुत शक्तिशाली था और उसने गजेंद्र को पानी में खींचना शुरू कर दिया। गजेंद्र और मगरमच्छ के बीच यह संघर्ष कई दिनों तक चलता रहा। गजेंद्र के साथी हाथी भी उसे बचाने की कोशिश करते रहे, लेकिन वे मगरमच्छ की शक्ति के सामने बेबस थे।
धीरे-धीरे गजेंद्र की शक्ति क्षीण होने लगी और उसे यह एहसास हो गया कि अब वह अपनी कोशिशों से नहीं बच पाएगा। अंत में, जब उसे कोई और सहारा नहीं दिखा, तो उसने अपने आराध्य देव भगवान विष्णु को पुकारा। उसने अपनी सूंड में एक कमल का फूल उठाया और पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु का स्मरण करने लगा।
गजेंद्र की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु अपने दिव्य लोक वैकुंठ से तुरंत प्रकट हुए। वे अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर उस सरोवर के पास आए। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया और अपने प्रिय भक्त गजेंद्र के प्राणों की रक्षा की।
भगवान विष्णु ने गजेंद्र को मगरमच्छ के श्राप से मुक्ति दिलाई और उसे अपना पार्षद बना लिया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि जब कोई भक्त सच्चे हृदय से भगवान को पुकारता है, तो भगवान उसकी अवश्य सहायता करते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों। गजेंद्र मोक्ष की कथा भक्ति, समर्पण और भगवान की असीम कृपा का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
इस फोटो में भगवान विष्णु को गरुड़ पर सवार होकर आते हुए और गजेंद्र को मगरमच्छ से मुक्त कराते हुए दर्शाया गया है। गजेंद्र अपनी सूंड में कमल का फूल उठाए हुए है, जो उसकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।


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श्री हरिहर मंदिर बनाम जामा मस्जिद विवाद: हाईकोर्ट ने वाद दायर करने और स्थल निरीक्षण की अनुमति को सही ठहराया



प्रमुख बिंदु: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने Committee of Management, Jami Masjid Sambhal की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जोकि एक दीवानी मुकदमे की अनुमति व कमीशन नियुक्ति के खिलाफ दायर की गई थी।

पृष्ठभूमि: हरि शंकर जैन सहित 8 वादकारियों ने दावा किया कि सांभल स्थित जामा मस्जिद दरअसल प्राचीन श्री हरिहर मंदिर है, जिसे 1920 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। उन्होंने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) से जनसामान्य को मंदिर में प्रवेश देने की मांग की थी। जब अनुमति नहीं मिली, तो वादियों ने 21 अक्टूबर 2024 को नोटिस भेजकर 19 नवंबर 2024 को दीवानी मुकदमा दर्ज किया।

प्रमुख मुद्दे:
1. नोटिस अवधि से पहले मुकदमा दायर करना:
कोर्ट ने माना कि यद्यपि सामान्यतः सरकार के विरुद्ध मुकदमे से पहले दो माह का नोटिस देना होता है (धारा 80 CPC), किन्तु जब त्वरित राहत की आवश्यकता हो, तो कोर्ट की अनुमति से तत्काल मुकदमा दायर किया जा सकता है। कोर्ट ने इसे सही ठहराया क्योंकि वादियों को मंदिर के "हिंदू प्रतीकों को हटाए जाने" की आशंका थी।

2. सर्वेक्षण आयोग (कमीशन) की नियुक्ति:
कोर्ट ने माना कि मामले की प्रकृति को देखते हुए स्थान विशेष की वास्तविक स्थिति को जानने हेतु स्थानीय निरीक्षण आवश्यक था। अतः 19 नवंबर को ही अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त कर निरीक्षण कराने का आदेश दिया गया।

3. वादी समिति की आपत्तियाँ:
Committee of Management, Jami Masjid ने तर्क दिया कि यह मामला 1991 के उपासना स्थल अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है, और मस्जिद की धार्मिक पहचान बदली नहीं जा सकती। परंतु कोर्ट ने यह कहा कि वाद केवल "प्रवेश अधिकार" की मांग पर आधारित है, धार्मिक पहचान पर नहीं।

4. सरकारी पक्ष की स्थिति:
राज्य सरकार, ASI और अन्य सरकारी प्रतिवादीगण ने मुकदमे की वैधता पर कोई आपत्ति नहीं की और नोटिस अवधि से छूट को स्वीकार किया।

न्यायालय का निष्कर्ष:
उच्च न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा मुकदमा दाखिल करने की अनुमति व कमीशन की नियुक्ति उचित प्रक्रिया में की गई थी और इसमें कोई विधिक त्रुटि नहीं थी। निजी विपक्षी (मस्जिद समिति) को धारा 80 की नोटिस संबंधी आपत्ति करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वह सरकारी पक्ष नहीं है।

केस शीर्षक: Committee of Management, Jami Masjid Sambhal Ahmed Marg Kot Sambhal vs. Hari Shankar Jain and 12 Others
केस नंबर: CIVIL REVISION No. 4 of 2025
निर्णय दिनांक: 19 मई 2025


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इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: एनपीए घोषित खाते के खिलाफ दीवानी वाद नहीं, जाना होगा ऋण वसूली न्यायाधिकरण



इलाहाबाद हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि किसी बैंक खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घोषित किया जाता है और उस पर सुरक्षा हित अधिनियम (SARFAESI Act, 2002) के तहत कार्यवाही शुरू हो चुकी हो, तो ऐसे मामलों में दीवानी अदालत में वाद दायर करना कानूनन वर्जित है। इसके लिए केवल ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal - DRT) ही सक्षम मंच है।
यह आदेश ओमनारायणश्री एग्रीफार्मर प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक द्वारा उसके खाते को NPA घोषित किए जाने और बाद में की गई नीलामी संबंधी कार्यवाहियों को चुनौती दी थी। कंपनी ने वाणिज्यिक न्यायालय में वाद दाखिल किया था और अंतरिम स्थगन (स्टे) की मांग की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।

क्या था मामला?
ओमनारायणश्री एग्रीफार्मर कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक से व्यवसाय के लिए नकद ऋण सीमा और टर्म लोन सुविधा प्राप्त की थी। ऋण अदायगी में चूक के चलते बैंक ने जुलाई 2024 में खाते को NPA घोषित कर दिया और 6 अगस्त 2024 को SARFAESI अधिनियम की धारा 13(2) के तहत नोटिस जारी किया। इसके बाद बैंक ने संपत्ति कब्जे की कार्रवाई और नीलामी की प्रक्रिया शुरू की।
कंपनी ने इसे चुनौती देते हुए वाणिज्यिक न्यायालय में वाद दायर किया और यह दलील दी कि NPA घोषित किए जाने की वैधता पर सवाल उठाया गया है, जो कि SARFAESI अधिनियम की धारा 13(4) के अंतर्गत नहीं आता, इसलिए DRT का क्षेत्राधिकार लागू नहीं होता।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि SARFAESI अधिनियम की धारा 34 के अनुसार, जब बैंक SARFAESI कानून के तहत किसी भी प्रकार की कार्रवाई करता है — चाहे वह नोटिस हो, संपत्ति कब्जा हो या नीलामी — तो ऐसे मामलों में दीवानी अदालत को अधिकार नहीं है।
अदालत ने मार्डिया केमिकल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2004) जैसे प्रमुख निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई मामला SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत आता है, तो उसकी सुनवाई केवल DRT या DRAT ही कर सकते हैं।


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