हिन्दी साहित्य के अभिनव जयदेव के नाम से विद्यापति प्रख्यात है। बिहार में मिथिला क्षेत्र के होने के कारण इनकी भाषा मैथिल थी। इनकी भाषा मैथिल होने के बावजूद सर्वाधिक रचनाएँ संस्कृत भाषा मे थी, इसके अतिरिक्त अवहट्ट भाषा मे रचना करते थे। विद्यापति के जन्म के सम्बन्ध मे विद्वानों मे मतभेद है, कुछ तो इन्हे दरभंगा जनपद के विसकी नामक स्थान को मानते है। विद्यापति का वंश ब्राह्मण तथा उपाधि ठाकुर थी। विसकी ग्राम को इनके आश्रयदाता राजा शिव सिंह ने इन्हे दान मे दिया था। इनका पेरा परिवार पैत्रिक रूप से राज परिवार से सम्बद्ध था। इनके पिता गणपति ठाकुर राम गणेश्वर के सभासद थे। इनका विवाह चम्पा देवी से हुआ था। विद्यापति कि मृत्यु सनम 1448 ई0 मे कार्तिक त्रयोदशी को हुई थी।
एक किंवदन्ती के अनुसार बालक विद्यापति बचपन से तीव्र और कवि स्वभाव के थे। एक दिन जब ये आठ वर्ष के थे तब अपने पिता गणपति ठाकुर के साथ शिवसेंह के राजदरबार में पहुँचे। राजा शिवसिंह के कहने पर इन्होने निम्नलिखित दे पंक्तियों का निर्माण किया:
पोखरि रजोखरि अरु सब पोखरा। राजा शिवसिंह अरु सब छोकरा।।
यद्यपि महाकवि की बाल्यावस्था के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। जनश्रुतियों से ऐसा ज्ञात होता है कि महाकवि अपने पिता गणपति ठाकुर के साथ बचपन से ही राज दरबार में जाया करते थे। किन्तु चौदहवीं सदी का शेषार्ध मिथिला के लिए अशांति और कलह का काल था। राजा गणेश्वर की हत्या असलान नामक यवन-सरदार ने कर दी थी। कवि के समवयस्क एवं राजा गणेश्वर के पुत्र कीर्तिसिंह अपने खोये राज्य की प्राप्ति तथा पिता की हत्या का बदला लेने के लिए प्रयत्नशील थे। संभवत: इसी समय महाकवि ने नसरत शाह और ग़ियासुद्दीन आश्रम शाह जैसे महापुरुषों के लिए कुछ पदों की रचना की। राजा शिवसिंह विद्यापति के बालसखा और मित्र थे, अत: उनके शासन-काल के लगभग चार वर्ष का काल महाकवि के जीवन का सबसे सुखद समय था। राजा शिवसिंह ने उन्हें यथेष्ठ सम्मान दिया। बिसपी गाँव उन्हें दान में पारितोषिक के रूप में दिया तथा 'अभिनवजयदेव' की उपाधि से नवाजा। कृतज्ञ महाकवि ने भी अपने गीतों द्वारा अपने अभिन्न मित्र एवं आश्रयदाता राजा शिवसिंह एवं उनकी सुल पत्नी रानी लखिमा देवी (ललिमादेई) को अमर कर दिया।
विद्यापति ने मैथिल, अवहट्ट, प्राकृत ओर देशी भाषओं मे चरित काव्य और गीति पदों की रचना की है। विद्यापति के काव्य में वीर, श्रृंगार, भक्ति के साथ-साथ गीति प्रधानता मिलती है। विद्यापति की यही गीतात्मकता उन्हे अन्य कवियों से भिन्न करती है। जनश्रुति के अनुसार जब चैतन्य महाप्रभू इनके पदों को गाते थे, तो महाप्रभु गाते गाते बेहोश हो जाते थे। भारतीय काव्य एवं सांस्कृतिक परिवेश मे गीतिकाव्य का बड़ा महत्व था। विद्यापति की काव्यात्मक विविधता ही उनकी विशेषता है।
विद्यापति संस्कृत वाणी के सम्बन्ध मे टिप्पणी करते हुये कहते है कि संस्कृत भाषा प्रबुद्ध जनो की भाषा है तथा इस भाषा से आम जनता से कोई सरोकार नही है प्राकृत भाषा मे वह रस नही है जो आम आदमी के समझ मे आये। इसलिये विद्यापति अपभ्रंश(अवहट्टा) मे रचनाये करते थें। अवहट्ट के प्रमाणिक कीर्ति लता और कीर्ति पताका है।
विद्यापति की तीनो भाषाओं की प्रमुख संग्रह निम्नलिखित है-
- पुरुष परीक्षा / विद्यापति
- भूपरिक्रमा / विद्यापति
- कीर्तिलता / विद्यापति
- कीर्ति पताका / विद्यापति
- गोरक्ष विजय / विद्यापति
- मणिमंजरा नाटिका / विद्यापति
- गंगावाक्यावली / विद्यापति
- दानवाक्यावली / विद्यापति
- वर्षकृत्य / विद्यापति
- दुर्गाभक्तितरंगिणी / विद्यापति
- शैवसर्वस्वसार / विद्यापति
- गयापत्तालक / विद्यापति
- विभागसार / विद्यापति
- महेशवाणी आ नचारी
- एत जप-तप हम की लागि कयलहु / विद्यापति
- हम नहि आजु रहब अहि आँगन / विद्यापति
- हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी / विद्यापति
- आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे / विद्यापति
- रुसि चलली भवानी तेजि महेस / विद्यापति
- कखन हरब दुःख मोर हे भोलानाथ / विद्यापति
- गौरा तोर अंगना / विद्यापति
- हे हर मन द करहुँ प्रतिपाल / विद्यापति
- भजन
- तीलक लगौने धनुष कान्ह पर टूटा बालक ठाढ़ छै / विद्यापति
- सबरी के बैर सुदामा के तण्डुल / विद्यापति
- सीताराम सँ मिलान कोना हैत / विद्यापति
- सबरी के अंगना में साधु-संत अयलखिन्ह / विद्यापति
- कोने नगरिया एलइ बरियतिया सुनु मोर साजन हे / विद्यापति
- भगबती गीत
- गे अम्मा बुढ़ी मईया / विद्यापति
- दया करु एक बेर हे माता / विद्यापति
- कोने फुल फुलनि माँ के आधी-आधी रतिया / विद्यापति
- जगदम्ब अहीं अबिलम्ब हमर / विद्यापति
- भगबती चरनार बन्दिति की महा महिमा निहारु / विद्यापति
- हे जननी आहाँ जन्म सुफल करु / विद्यापति
- जयति जय माँ अम्बिके जगदम्बिके जय चण्डिके / विद्यापति
- भजै छी तारिणी सब दिन कियै छी दृष्टि के झपने / विद्यापति
- बारह बरष पर काली जेती नैहर / विद्यापति
- जनम भूमि अछि मिथिला सम्हारु हे माँ / विद्यापति
- लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ / विद्यापति
- क्यों देर करती श्रीभवानी मैं तो बुद्धिक हीन हे माँ / विद्यापति
- दिय भक्ति के दान जगदम्बे हम जेबै कतइ हे अम्बे / विद्यापति
- सासु रुसल मैया हम्मर काली एली काली / विद्यापति
- भगवती स्तोत्
- कनक-भूधर-शिखर-बासिनी / विद्यापति
- भगबान गीत
- हरी के मोहनी मुरतीया में मोन लागल हे सखी / विद्यापति
- भजु राधे कृष्णा गोकुल में अबध-बिहारी / विद्यापति
- भगता गीत
- इनती करै छी हे ब्राह्मण मिनती करै छी / विद्यापति (ब्राह्मण)
- इनती करै छी भैरवनाथ / विद्यापति (भैरव)
- बटगमनी
- नव जौबन नव नागरि सजनी गे / विद्यापति
- फरल लवंग दूपत भेल सजनी गे / विद्यापति
- लट छल खुजल बयस सजनी गे / विद्यापति
- तरुणि बयस मोही बीतल सजनी गे / विद्यापति
- ई दिन बड़ दुर्लभ छल सजनी गे / विद्यापति
- बारहमासा
- साओनर साज ने भादवक दही / विद्यापति
- चानन रगड़ि सुहागिनी हे गेले फूलक हार / विद्यापति
- चैत मास गृह अयोध्या त्यागल हानि से भीपति परी / विद्यापति
- अगहन दिन उत्तम सुख-सुन्दर घर-घर सारी / विद्यापति
- चोआ चानन अंग लगाओल कामीनि कायल किंशगार / विद्यापति
- प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ / विद्यापति
- बिरह गीत
- सखी हम जीबन कोना कटबई / विद्यापति
- बिसरही गीत
- कोन मास नागपञ्चमी भेल / विद्यापति
- पीयर अंचला बिसहरि के लाम्बी-लाम्बी केस / विद्यापति
- भूइयां के गीत
- कोने लोक आहे भूईयां लकड़ी चुनै छी आहे राम / विद्यापति
- हई कुसुम बेली चढ़ई ताके मईया गे सुरेसरी / विद्यापति
- विबाहक गीत
- मचिये बैसल तोहें राजा हेमन्त ॠषि / विद्यापति
- अयलऊँ हे बड़का बाबा / विद्यापति
- प्रतिनिधि रचनाएँ
- विद्यापति के दोहे / विद्यापति
- षटपदी / विद्यापति
- आदरें अधिक काज नहि बंध / विद्यापति
- सैसव जौवन दुहु मिल गेल / विद्यापति
- ससन-परस रबसु अस्बर रे देखल धनि देह / विद्यापति
- जाइत पेखलि नहायलि गोरी / विद्यापति
- जाइत देखलि पथ नागरि सजनि गे / विद्यापति
- जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि / विद्यापति
- मानिनि आब उचित नहि मान / विद्यापति
- पहिल बदरि कुच पुन नवरंग / विद्यापति
- रति-सुबिसारद तुहु राख मान / विद्यापति
- दुहुक संजुत चिकुर फूजल / विद्यापति
- प्रथमहि सुंदरि कुटिल कटाख / विद्यापति
- कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल / विद्यापति
- कान्ह हेरल छल मन बड़ साध / विद्यापति
- कंटक माझ कुसुम परगास / विद्यापति
- कुंज भवन सएँ निकसलि / विद्यापति
- आहे सधि आहे सखि / विद्यापति
- सामरि हे झामरि तोर दहे / विद्यापति
- कि कहब हे सखि रातुक / विद्यापति
- आजु दोखिअ सखि बड़ / विद्यापति
- कामिनि करम सनाने / विद्यापति
- नन्दनक नन्दन कदम्बक / विद्यापति
- अम्बर बदन झपाबह गोरि / विद्यापति
- चन्दा जनि उग आजुक / विद्यापति
- ए धनि माननि करह संजात / विद्यापति
- माधव ई नहि उचित विचार / विद्यापति
- सजनी कान्ह कें कहब बुझाइ / विद्यापति
- अभिनव पल्लव बइसंक देल / विद्यापति
- अभिनव कोमल सुन्दर पात / विद्यापति
- सरसिज बिनु सर सर / विद्यापति
- लोचन धाय फोघायल / विद्यापति
- आसक लता लगाओल सजनी / विद्यापति
- जौवन रतन अछल दिन चारि / विद्यापति
- के पतिआ लय जायत रे / विद्यापति
- चानन भेल विषम सर रे / विद्यापति
- भूइयां के गीत / विद्यापति
- विबाहक गीत / विद्यापति
- बिरह गीत / विद्यापति
- बिसरही गीत / विद्यापति
- भजन / विद्यापति
- भगता गीत / विद्यापति
- भगबती गीत / विद्यापति
- भगबान गीत / विद्यापति
- बटगमनी / विद्यापति
- बारहमासा / विद्यापति
- जनम होअए जनु / विद्यापति
- गीत / विद्यापति
- जय- जय भैरवि असुर भयाउनि / विद्यापति
- गंगा-स्तुति / विद्यापति
- बसंत-शोभा / विद्यापति
- सखि,कि पुछसि अनुभव मोय / विद्यापति
- सखि हे हमर दुखक नहिं ओर / विद्यापति
- सुनु रसिया अब न बजाऊ / विद्यापति
- माधव कत तोर / विद्यापति
- माधव हम परिणाम निराशा / विद्यापति
- उचित बसए मोर / विद्यापति
- गौरी के वर देखि बड़ दुःख / विद्यापति
- जगत विदित बैद्यनाथ / विद्यापति
- जोगिया मोर जगत सुखदायक / विद्यापति
- बड़ अजगुत देखल तोर / विद्यापति
- हम जुवती पति गेलाह / विद्यापति
- नव यौवन अभिरामा / विद्यापति
- सासु जरातुरि भेली / विद्यापति
- आजु नाथ एक व्रत / विद्यापति
- हम एकसरि, पिअतम नहि गाम / विद्यापति
- बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि / विद्यापति
- परतह परदेस, परहिक आस / विद्यापति
- आदरे अधिक काज नहि बन्ध / विद्यापति
- वसन्त-चुमाओन / विद्यापति
- रूप-गौरव / विद्यापति
- अभिसार / विद्यापति
- शान्ति पद / विद्यापति
- बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे / विद्यापति
- दुल्लहि तोर कतय छथि माय / विद्यापति
- सैसव जौवन दुहु मिलि गेल / विद्यापति
- सैसव जौवन दरसन भेल / विद्यापति
- जय जय भैरवि असुरभयाउनि / विद्यापति
- उचित बसए मोर मनमथ चोर / विद्यापति
- जखन लेल हरि कंचुअ अछोडि / विद्यापति
- कि कहब हे सखि आजुक रंग / विद्यापति
- सैसव जीवन दुहु सिलि गेल / विद्यापति
- कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी / विद्यापति
- आहे सधि आहे सखि लय जनि जाह / विद्यापति
- कि कहब हे सखि रातुक बात / विद्यापति
- आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन / विद्यापति
- नन्दनक नन्दन कदम्बक तरु तर / विद्यापति
- चन्दा जनि उग आजुक राति / विद्यापति
- सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज / विद्यापति
- लोचन धाय फोघायल हरि नहिं आयल रे / विद्यापति
- हम जुवती, पति गेलाह बिदेस / विद्यापति
- कखन हरब दुख मोर / विद्यापति
- जनम होअए जनु, जआं पुनि होइ / विद्यापति
- नव बृन्दावन नव नव तरूगन / विद्यापति
- भल हर भल हरि भल तुअ कला खन / विद्यापति
- मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया / विद्यापति
- सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए / विद्यापति
- सुनु रसिया / विद्यापति
- चाँद-सार लए मुख घटना करू / विद्यापति
''देसिल बयना सब जन मिट्ठा '' उक्त पंक्ति के अनुसार विद्यापति के अनुसार उन्हें अपनी भाषा मे भावों को व्यक्त करना अनिवार्य था, उसकी पूर्ति के उन्होने पदावली मे की। पदावली की भाषा मैथिल है जिस पर ब्रज का प्रभाव दिखता है। मिथिला की प्राचीन भाषा ही उसकी 'देसिल बयना' है। विद्यापति ने उसे स्वयं भी मैथिल भाषा नही कहा है। विद्यापति की यह पदावली कालान्तर मे पूर्वोत्तर भारत बंगाल में प्रचलित हो चुकी थी। विद्यापति का प्रभाव उनके उत्तराधिकारी सूर पर भी पड़ता है।
विद्यापति द्वारा रचित ''राधा-कृष्ण'' से संबंधित मैथिलि भाषा मे निबद्ध पदों का संकलित रूप विद्यापति पदावली के नाम से विख्यात है विद्यापति के पदों का संकलन जार्ज गिर्यसन, नरेंद्र नाथ गुप्ता, रामवृक्ष बेनीपुरी, शिव नंदन ठाकुर आदि विद्वानों ने किया हैं। विद्यापति के पदों में कभी तो धोर भक्तिवादिता तो कभी घोर श्रृंगारिकता दिखती है, इन्ही विभिन्नताओं के कारण विद्यापति के विषय मे यह भी विवाद है कि उन्हें किस श्रेणी के कवि मे रखा जाये। कुछ कवि तो उन्हें भक्त कवि के रूप में रखने को तैयार नहीं थे। विद्यापति द्वारा कृष्ण-राधा सम्बन्धी श्रृंगारी पद उन्हें भक्ति श्रेणी में रखने पर विवाद था। विद्वानों का कहना था कि विद्यापति भी रीतिकालीन कवियों की भांति राजाश्रय में पले बढ़े हुए है इसलिए उनकी रचनाओं में श्रृंगार प्रधान बातें दिखती है। इसलिये इन्हें श्रृंगार का कवि कहने पर बल दिया गया है।
विद्यापति के सम्बन्ध में एक बात प्रमुख है कि उनके पद्यों में राधा को प्रमुख स्थान दिया गया है। उसमे भी नख-शिख वर्णन प्रमुख है। विद्यापति के काव्य की तुलना सूर के काव्य करे तो यह प्रतीत होता है कि सूर ने राधा-कृष्ण का वर्णन शैशव काल में है तो विद्यापति ने श्रीकृष्ण एवं राधा के वर्णन तरुणावस्था का है जिससे लगता है कि विद्यापति का उद्देश्य भक्त का न होकर के श्रृंगार का ही हैं।
भक्त की दृष्टि से अगर विद्यापति के काव्य को देखा जाये तो यह देखने को मिलता था कि तत्कालीन परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण उनका भाव श्रृंगारिक हो गया हैं। विद्यापति के पदों को अक्सर भजन गीतों के रूप मे गाया जाता रहा है। विद्यापति ने राधा-कृष्ण का ही नहीं शिव, विष्णु राम आदि देवताओं को विषय मानकर रचनाऐ की है। विद्यापति द्वारा रचित महेश भक्ति आज भी उड़ीसा के शिव मंदिरों में गाई जाती है। दैव प्राचीन ग्रन्थावली के अनुसार भक्त अपने आराध्य को किसी भी रूप में पूजा कर सकता है, इस आधार पर विद्यापति भक्त कवि भी सिद्ध होते है।
विद्यावति के पद्य :---
विद्यावति के पद्य :---
1
देख-देख राधा रूप अपार,
अपरूष के बिहि आनि मिराओल,
खिति तल लावण्य सार,
अगहि अंग अनंग मुरझायत
हेरय पड़य अधीर।
2
भल हरि भल हर भल तुअ कला,
खन पित बासन खनहि बद्यछला।
खन पंचानन खन भुज चारि
खन संकर खन देव मुरारि
खन गोकुल भय चराइअ गाय
खन भिखि मागिये डमरू बजाये।
3
कामिनि करम सनाने
हेरितहि हृदय हनम पंचनाने।
चिकुर गरम जलधारा
मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा।
कुच-जुग चारु चकेबा
निअ कुल मिलत आनि कोने देवा।
ते संकाएँ भुज-पासे
बांधि धयल उडि जायत अकासे।
तितल वसन तनु लागू
मुनिहुक विद्यापति गाबे
गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।
विद्यापति गीत - गौर तोर अंगना - कुंज बिहारी मिश्र
विद्यापति गीत - गौर तोर अंगना - कुंज बिहारी मिश्र
- आजु नाथ एक बरत महासुख - कुंज बिहारी मिश्र
- हम नहि आजु रहब एही आँगन - कुंज बिहारी मिश्र
- अब्धि मास छल भादव सजनी गे - कुंज बिहारी मिश्र
- अरे बाप रे बाप शिव के सगरो - कुंज बिहारी मिश्र
- चानन भेल बिषम सर रे - कुंज बिहारी मिश्र
- बड़ अजगुत देखल गौर तोर अंगना - कुंज बिहारी मिश्र
- सबहक सुधि आहाँ लए छी - कुंज बिहारी मिश्र
- शंकर गहल चरण हम तोर - कुंज बिहारी मिश्र
- सुरभि निकुंज बेदी भलि भेली - कुंज बिहारी मिश्र
- उगना रे मोरा कतए गेल - कुंज बिहारी मिश्र
Share:
8 टिप्पणियां:
रससिक्त कर देने वाले अमर कवि विद्यापति पर उपयोगी जानकारी देने के लिये आप साधुवाद के पात्र हैं . जो बात 'देसिल बयना' में है वह और कहां .
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है , काश यह आज से 30 साल पहले आता तो हाई स्कूल मे हिन्दी मे कम आंक न आते। :)
शाबास प्रमेन्द्र जी
बहुत ही शानदार लेख और इतनी उपयोगी जानकारी देने के लिये साधूवाद स्वीकार करें, इस लेख को विकीपीडिया पर भी लगा देवें।
सुंदर जानकारी के लिए साधुवाद!! बहुत अच्छा।
आप सभी को धन्यवाद
धन्यवाद
बहुत सुन्दर...धन्य मिथिला
Gorgeous..
एक टिप्पणी भेजें