हाईकू प्रयास

मैने पहली बार हाईकू करने का प्रयास किया है पता नही कितना सफ़ल हूँ, यह तो आपकी प्रतिक्रियाओ से ही पता चलेगा। :)

गंगा की धार
करती है प्रहार
कि मै गंगा हूं ।


गंगा का पानी,
है कहनी कहानी
मै पावन हू।


शब्‍दो की भाषा
लाती है नई आशा

कि उठ जाओ।


माता का प्यार
दिलाता है दुलार
कि मै पुत्र हूँ


पिता का डांट
देता है एहसास
कि वे पिता है।


दीदी की राखी
एहसास दिलाती
कि मै भाई हूँ।


भाई का साथ
दिलाता है विश्वास
कि मै साथ हूँ


मेरा अनुज
दिलाता एह्सास
कि मै बड़ा हूँ।


पत्नी का प्यार
कहता है कि अब
तुम मेरे हो।

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रमेन्द्रजी,

    काफी अच्छी हाईकू लिखीं हैं,

    निश्चय ही सराहनीय प्रयास है, आगे भी जारी रखें,

    शुभेच्छु,
    नीरज

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  2. सुन्दर प्रयास। पहले तीन हायकू में लाइन ब्रेक दीजिए, हायकू की बजाय कविता लग रहे हैं।

    शादी कर ली, बताया नहीं। :)

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  3. वाह प्रमेन्द्र जी
    बहुत सुन्दर हायकू लिखे हैं आपने।

    श्रीश जी पूछ रहे हैं कुछ?

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  4. आपके ब्लॉगिंग अनुभवों को पढा हाइकु प्रयस पर भी नजर गई परिवारिक संबंधों की सरलतम
    अभिव्यक्ति की है आपने....

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  5. vry nice i appericiate it....plzzz keep it on.....best of luck.......vande mataram......

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