शीर्षक आपके लिए छोड़ रहा हूँ
काफी कुछ सोच रहा हूँ कि क्या लिखूँ पर मन विचार तो बहुत आ रहे है, पर मै उन्हे कलम अपनी कलम रूपी चाकू और कागज रूपी पत्थर पर धार नहीं दे पा रहा हूँ। बहुत सी समस्या है, कभी इधर तो कभी उधर मन करता है सोचता हूँ कि मन को स्थिर करूँ पर यह बहुत चंचल मे एकाग्र नहीं हो पाता है।
जब कभी शीशे में अपने चेहरे को देखता हूँ तो लगता है कि क्या मै वही हूँ। पर अब मै वो नही हूँ। आज और तब में बहुत अंतर आ गया है। जब मै अपने बारे मे सोचता हूँ तो काफी निराशा होती है। लगता है कि काफी कुछ बदल गया है। पर मै गलत सोचता हूँ कुछ नही बदला मै ही बदल गया हूँ।
यह प्रश्न जब मै अपने आप से पूछता हूं कि क्या मै सही जा रहा हूँ तो अंतःकरण की आवाज़ कहती है नहीं तुम गलत दिशा में जा रहे हो। अब तुम वो नही हो जो पहले थे, पहले और अब मै तुममे काफी अंतर है। पहले के मुझमे एक विश्वास ढलकता था कि तुम यह कर सकते हो, पर अब ऐसा नहीं है कि मै ऐसा नही कर सकता हूँ पर करने के प्रति रुचि नहीं दिखता हूँ। जब मै पहले अपने आप को देखता हूँ तो एक विश्वास दिखता था प्रमेन्द्र मे पर अब नही लगता है। जब मै अपने आप को आकलन करता हूँ तो लगता है कि मै गलत दिशा मे जा रहा हूँ। जब से मै चिट्ठाकारी से जुड़ा हूँ तो लगता है कि मेरे जीवन के पिछले 8 माह के ग्राफ में सबसे ज्यादा अपने जीवन मे नही देखा। क्या मै वही हूँ जो 1997 में भारत के स्वर्ण जयंती पर होने वाली रेस में प्रथम दस मे आया था। क्या मै वही हूँ जो इलाहाबाद की 11 किमी दौड़ प्रतियोगिता में बिना किसी अभ्यास के प्रथम 50 में स्थान बनाया था क्या मै वही हूँ जो 12 कक्षा मे अपनी कक्षा में 800 मीटर दौ मे द्वितीय, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता मे दो बार इलाहाबाद जिले मे प्रथम और सातवें स्थान पाया था, क्या मै वही हूँ जिसने पूर्व के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 15000 छात्र छात्राओं के मध्य 111वॉं स्थान पाया हुआ था, क्या मै वही हूँ जो एक मात्र ऐसा विद्यार्थी जिसने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की ओर से आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम वर्ष तथा द्वितीय वर्ष दोनों में वषों में विजेताओं में अपना स्थान बरकरार रखने में सफल था।
किन्तु अब देखता हूँ तो लगता है कि हाँ मुझमे ही कमी है कि मै अपने लक्ष्य से भटक रहा हूँ। कोई चीज़ एक सीमा तक ठीक लगती है, अति हमेशा हानिकारक होती है। आज तक मेरे घर में मैंने कुछ भी किया कभी किसी मेरे कुछ भी करने पर घर मे किसी ने किसी प्रकार की टोका टोकी नही किया। किन्तु जब मै अब कंप्यूटर पर बैठता हूँ तो लगभग सभी लोग इस पर नाराजगी व्यक्त करते है, हॉं और वे सही करते मै मानता हूँ।
अभी इतना ही अभी बहुत कुछ बाकी है ........................
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8 टिप्पणियां:
क्या कहूं आपने इतनी ईमान्दारी से अप्नी बात कही है.. इससे बढ्कर और क्या कहा ज सकता है.. मुझे पूर्ण विश्वास है की हर पाठ्क इसमें अपनी झलक देखेगा.. जैसे मैं देख रही हूं.. और जब आपने खुद कॊ अपनी आत्मा में झांक कर देख ही लिया है तो सही राह मिलने में देर नहीं लगेगी.. मेरी शुभ्कामनायें..
प्रमेन्द्र भाई मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपने ये लेख क्यों लिखा। अगर आपके मन में कोई ग्लानि है तो उसे सार्वजनिक करने की क्या आवश्यकता है। यह सब तो आपको अपनी निजी डायरी में लिखना चाहिये था, यहाँ पोस्ट करने का क्या औचित्य है।
और अजीब बात है कि इस बहाने आप अपनी पुरानी उपलब्धियाँ गिना रहे हैं, इसमे भला किसी की क्या रुचि हो सकती है?
@ मान्या जी
जी धन्यवाद,
सोमेश जी,
मैने यह आज से 5 दिन पूर्व लिखा था, मगर पोस्ट आज ही किया है। किसी बात को समझने के काई रास्ते होते है कि आप किसी बात को किस नजरिये से समझते है। जब भी आप या मै सोचता हूँ कि मै यह काम करूँगा किन्तु कितनी ईमानदारी से करते है। यह देखने वाला कोई नही होता है।
आदमी लिखता क्यों है कि दूसरे उसके विचारों को पढ़े और खुद के लिये लिख(निजी डायरी) मूर्ख्ता है।
जब हम अपनी अच्छई का वर्णन करने मे शर्म नही महसूस करते है तो बुराई को बताने मे शर्म क्यों महसूस करें। इस कारण मैने यहॉं पोस्ट किया है। सम्भावता यह कड़ी आगे भी जारी रहेगी।
नही मै यहॉं अपनी उपलब्धियॉं नही गिना रहा हूँ, न इन तुच्छ सफलताओं से मुझे कोई पुरस्कार मिलेगा। किन्तु कोई पुरस्कार कितना भी तुच्छ क्यों न हो वह आपकी सफलता तो होती है। ध्यान देने योग्य वात यह है कि मैने इन बातों का प्रयोग अपने ब्लाग लेखन के पहले जून 2006 पहले तथा बाद के सन्दर्भ मे है।
कि मैने क्या खोया और क्या पाया,
अभी आपके टिप्पणी के प्रति इतना ही आगे और अगले लेख मे
टिप्पणी के लिये धन्यवाद
प्रमेन्द्र, आशा है अब तबियत काफी ठीक लग रही होगी. :)
घर वाले तुम्हारे भविष्य के लिये सोचते हैं। अभी हमारे घरों में नेट वगैरह खुराफ़ात की जड़ माने जाते हैं। खासकर पढ़ने वाले लड़के के लिये। इसलिये अपने कैरियर के हिसाब से पढ़ाई करना सबसे जरूरी बात लगती है। अपने ऊपर भरोसा रखकर मन लगाकर मेहनत करो। नेट पर लिखा-पढ़ी समय मिलने पर मन ताजा करने के लिये कर लिया करो। मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं।
प्रमेन्द्र,
आप जरूर वह सब हैं जो आपने याद किया है और उससे ज्यादा भी हैं-जो उर्जा,संभावना आप अपने भीतर रखे हुए हैं।
नेट पर समय कम करने का एक सहज उपाय है Google-Reader | आजमाइएगा।शुभकामना ।
@ समीर जी मै तो अच्छा महसूस कर रहा हूँ। आप भी अपना ध्यान चुनाव मे लागईये, ऐसा न हो की आप फील गुड के चक्कर मे बहुत कुछ फील करने को मिल जाये,टिप्पणी के लिये धन्यवाद
@ अनूप जी आप सही है,शायद मैने सही ही किया प्रकाशित करने के लिये
@ अफलातून जी, धन्यवाद जानकारी देने के लियें।
बहुत ही खूब कई बार ऐसा नहीं बल्कि हजार बार ऐसा होता है, की आदमी अपनी राह में चलते चलते अचानक राह की सही गमन करना ही भूल जाता है ....हमारा अंतर्मन ही एक तरह से बहुत ही अजीज होता है जिसका कोई न कोई कोना सोया ही रहता है.... और जिस दिन वोह सोया हुआ कोना जाग जाता है.... तो फिर एक दम से इंसान के मन में विचार प्रकट हो उठते है, की में कहाँ हूँ ? और कहां जा रहा हूँ, क्या मेरा कोई राह है ,या फिर सिर्फ भ्रमण ही करता रहुगा, यही बाते है जीवन की जो हमारे अंतर्मन में छुपी होती है इसकी कोई उम्र नहीं होती है आदमी अपने जीवन में हर तरह से सफलता को प्राप्त करके भी भूल जाता है की मुझको कहाँ जाना है यही तो अंतर्मन है और उसकी जिज्ञासा ...वैसे आपकी हर बात में दम है, और रही बात आपकी विधार्थी जीवन की सफलता की वह तो अपने आप में एक बहुत ही सुखद एहसास है जिसका अनुभव तो आपको बहुत ही संगीन मिजाज का बना देता है... पर जो भी है, सफलता का राज उसका अपना अंतर्मन ही होता है वही रास्ता दिखाता है इंसान को अपने जीवन के प्रति सजग रहने का और मैं ये भी कहना चाहता ही आपकी सफलता सिर्फ आपकी ही नहीं हमारी भी सफलता है जो हमको आप तक ले आया .....है न ये अंतर्मन का कमाल और यही जीवन का राज जो आपने समझा और आगे बढने के लिए फिर एक नयी राह तैयार है.... हो जाए ..... रही बात इसके शीषर्क की तो मेरे हिसाब से इसके शीषर्क होना चाहिए
"राह दिखाता मेरा अंतर्मन "
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