मैंने भी एक असफल स्याह चिठ्ठा लिखने प्रयास किया था आज से लगभग दो माह पहले दिनांक 17/01/2007 को अपनी कुछ मजबूरियों को लेकर। इसके प्रति प्रेरित होने तथा असफल होने के पीछे कई कारण थे। कारण कि मैं इस ओर प्रेरित हुआ ? उन दिनों मै भिन्न कारणों से हिन्दी टंकण नहीं कर पा रहा था। तब उन्हीं दिनों सागर भाई ने मुझे बाराहा के लिये कई घंटों की ऑनलाइन कोचिंग मुझे दी थी पर मुझे बाराहा पर लिखने में बिल्कुल भी मजा नहीं आता था और न ही आज भी आता है। मुझे एक पत्र लिखना हुआ, IndicIME के बिना मैं बिल्कुल विकलांग सा लगने लगता हूँ। फिर मैंने एक जुगाड़ लगाया कि कलम और कागज का उपयोग किया जाये और मैंने किया भी, पर मेरे पास समस्याओं की कमी नहीं थी और मेरा स्कैनर भी ठीक नहीं था। तो एक और जुगाड़ असफल जुगाड़ लगाया और पत्र का फोटो अपने कैमरे से खींच लिया। उस पर उसका रूप देखने के बाद मुझे लगा कि उक्त दस्तावेज को यहीं दफना देना उचित होगा।
पर जब बात चल ही चुकी है तो मैं भी पीछे क्यों रहूँ असफलता भुनाने से, तो देखिए वह पत्र जो मैंने 17 जनवरी को लिखा था।
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5 टिप्पणियां:
भाई, मुझे तो तुम्हारा पत्र नज़र ही नहीं आ रहा है। शायद ठीक तरह से अपलोड नहीं हुआ है।
पत्र नजर नही आ रहा है ? या उसमे लिखा हुआ।
पत्र तो मुझे दिख रहा है किन्तु जो कुछ लिखा है वह स्पस्ट नही है।
भाई क्या काले कागज़ पर काली स्याही से लिखा है? कुछ भी पढ़ा नहीं जाता।
आपका पत्र पढ़ा ही नहीं जा रहा, खैर डाउनलोड कर लिया है फिर से कोशिश करेंगे।
अभी आपने तो चक्कर में डाल दिया, पहले मसि-चिट्ठाकार होने की बधाई किसे दें। आपको, सागर भाई को या देबु दा को। खैर आप सब को बधाई!
श्रीश जी,
चूकिं यह मेरा उस समय का असफल प्रयास था।
चूकिं मैने स्कैनर से स्कैन नही किया है बल्कि कैमरे से खीचा है। इसलिऐ पठनीय नही है, अगर पठनीय होता तो जनवरी मे ही मैने इस प्रकार का लेखन चालू कर दिया होता। :)
ब्लाग सर्व प्रथम लिखने का श्रेय देवाशीश जी और सागर भाई को जाना चाहिए।
भले ही मैने पहले कभी इस विषय मे सोचा था।
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