पहली बात- विवादित लेख,
मुझे अति प्रश्न्नता हो रहा है कि लोगों ने भड़काऊ लेखों पर टिप्पणी करना छोड़ दिया है। मेरे पिछले लेख मे एक भी टिप्प्णी नहीं आई, मात्र भूले बिसरे केन्द्र से अरुण जी ही आये। ऐसा नहीं है कि उसे किसी ने पढ़ा ही नहीं था। पढ़ने वालो की संख्या भी कम नहीं थी। नारद के आंकड़ों के अनुसार कुल 60 के करीब हिट्स प्राप्त हुई थी। ऐसा नहीं था कि मेरा लेख केवल भड़काऊ था, बल्कि वह सत्य के निकट भी था। मैंने किसी भी प्रकार की अनर्गल बातों से परहेज किया था। मै अनर्गल बातों पर विश्वास नही करता हूँ, और सत्य बातों को ही रखने का पक्षधर हूँ। पिछले लेख पर टिप्पणी न होने का कारण यह भी हो सकता है जो आप खुद जानते है। शायद मोहल्ला तथा मोहल्ला प्रेमियों को मेरी चुनौती स्वीकार नहीं है और इनकी पत्रकारिता मात्र छलावा है यह अपने वैमनस्य रूप को टीवी पर दिखा नही पाते है तो इसलिये उन्होंने ब्लागिग का सहारा लेना पड़ रहा है। अगर इनको लगता है कि ये सत्य कह रहे है तो जितनी पकड़ के साथ ये लोग ब्लाग मे तहलका मचाये हुऐ है उतनी ही तेजी से टीवी मे भी हाथ आजमाऐ।
दूसरी बात- नारद
कल मैंने अपने ब्लॉग पर एक चित्र डाला था करीब रात 8 बजे के आस पास जब मै रात्रि 10 बजे देखता हूँ कि मेरा ब्लॉग कहीं पर दिख ही नहीं रहा था। पिछले कई घंटों से पहले और दूसरे नंबर की पोस्ट अपने स्थान पर यथावत थे। फिर मैंने नीचे देखना शुरू किया तो पता चला कि वह काफी नीचे चली गई है। अर्थात दोपहर 12 बजे के भी बहुत आगें और मात्र 12 घंटे भी मेरी वह पोस्ट पहले पृष्ठ पर नहीं रही जबकि आज भी मेरे पहले से पोस्ट की गई पोस्ट आज भी यथावत है। शायद मोहल्ले वालों की जगह मेरी रेटिंग कम हो गई हो। :)
तीसरी बात- पंगेबाज- मोहल्ला
पंगेबाज बनाम मोहल्ला - मोहल्ला प्रकरण की उपज है पंगेबाजी और इस पंगेबाजी के दोषी है हम सब चिट्ठाकारों द्वारा मोहल्ला को दी जाने वाली छूट के परिणाम स्वरूप उदय हुआ था पंगेबाजी का । न तो अरुण जी उस समय सक्रिय चिट्ठाकारिता कर रहे थे। जो कुछ भी मोहल्ले की अनर्गल बातें छापना शुरू किया था निश्चित रूप से मोहल्ला के गलत बयानों से जन समूहिक की भावनाओं का उत्तेजित हो जाना स्वाभाविक ही था। निश्चित है कि जब किसी के स्वाभिमान को ललकारा जायेगा तो निश्चित है कि रक्त शिराओं में विद्युत प्रवाहित हो ही जाती है। अनेकों लोगों को गुजरात दंगा तो दिखता है किंतु गोधरा प्रकरण क्यों नहीं दिखता है। यदि गोधरा में ट्रेन की बोगियों न जलाई गई होती तो गुजरात के आगे की भयावह स्थिति देखने को न मिलती।
एक बंधु ने आज अपने लेख में जिक्र किया था कि जब एक हिन्दू मरता है तो पाच मुसलमान मारे जाते है। तो प्रश्न यह उठता है कि वह एक हिन्दू आखिर क्यों मारा जाता है? क्या इसका जवाब किसी के पास है? गुजरात दंगे वाले क्यों गोरखपुर और मऊ के दंगे को भूल जाते है जिसमे अनेकों हिंदुओं की जान गई किंतु किस धर्मनिर्पेक्ष रहनुमाओं को नहीं लगा कि वह भी मरने वाले आदमी ही थे। बस कुछ कमी थी तो वे मुसलमान न थे नहीं तो यह एक राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना और धर्मनिरपेक्षता के मौलवी हिन्दू विरोधी तकिया कलाम पढ़ना शुरू कर देते।
भारत एक स्वतंत्र विचारों वाला देश है जहां पर हर प्रकार के लोग रहते है। सभी को अपने रीति रिवाजों से जीने का हक है। आज मुस्लिम आजादी के समय से 6 से 20 प्रतिशत पर जा पहुंची है जबकि बांग्लादेश और पाकिस्तान मे हिन्दू 10 से 2 प्रतिशत पर आ पहुंचा है तो आप सोच ही सकते है कि मुस्लिमों का कितना खतरा है भारत में? पाकिस्तान में मुख्य न्यायमूर्ति भगवान दास को अपने धर्म की शपथ नही दी सकती है वह भी सिर्फ अल्लाह की शपथ ले सकते है।
एक दूसरे को गाली देने से कोई फायदा नहीं है। दूसरों की कमियों को बताने से पहले अगर अच्छाइयों को देखें तो जिस बात को लेकर यहां झगड़ा हो रहा है वह नहीं होने वाला था।
विडम्बना है कि आज भारत अपनी आजादी की लड़ाई की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश भर में कार्यक्रम किये जा रहें है किन्तु एक जगह ऐसी भी है जहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। यह घटना कभी देश की राजधानी और स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र रहे कोलकाता की है। जहां पर सरकारी नुमाइंदों के द्वारा अमर शहीद मंगल पाण्डेय की स्मारक मीनार को तोड़ दिया गया। क्या हमारी सरकार और प्रशासन इसी तरह शहीदों को नमन करना चाहती है?
कांग्रेस की "सत्ता सौत" वाम दल द्वारा इस प्रकार की निंदनीय घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है, एक तरफ तो सरकारों द्वारा मात्र कार्यक्रम आयोजित करके सम्मान देने की खानापूर्ति की जा रही है दूसरी तरफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। किसी ने पार्टी ने स्थानीय स्तर पर विरोध को छोड़ कर इस कुकृत्य का विरोध नहीं किया। इन हरामखोर पार्टियों को गुजरात की हर घटना पर निगाह रहती है किन्तु अपने घर में क्या हो रहा है उसकी खबर तक नहीं है।
मैं इस दुखद घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुये इस घृणित घटना की निंदा करता हूँ। और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से क्षमा याचना करता हूँ। इस कुकृत्य पर इतना ही बात निकलती है "कि जो सरकार नहीं कर सकती जनता का सम्मान, उस पर थूको सौं-सौ बार।"
विशेष आग्रह - थूकने से पहले कृपया पान खा ले ताकि जब आप थूकें उसका रंग भी दिखें।
वामपंथी सरकार ने किया स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अनोखा सम्मान तोड़ दिया मंगल पांडेय की स्मृति मीनार
कितनी अजीब बात है कि देश की आत्मा को झकझोर देने वाली घटना का जिक्र एक दो अखबारों को छोड़कर किसी भी स्तर की मीडिया ने देना उचित न समझा? आज की मीडिया वास्तव में अपने महिमा मंडन से ही फुरसत नहीं मिल रही है। एक न्यूज को 4-4 घंटे तक पकड़ कर घुसे रहते है, लगता है बहुत बड़ी घटना हो। मंगल पाण्डेय की घटना मीडिया को इस लिये नहीं दिखी की यह कोई राजनीतिक घटना नहीं थी, जिससे राजनीतिक खेल खेला जा सकता। मंगल पाण्डेय कोई अम्बेडकर या गांधी नहीं थे जिनके पास वोट बैंक है। अगर मंगल पाण्डेय के पास वोट बैंक होता तो यह निंदनीय कदम किसी के द्वारा न किया जाता। कांग्रेस की "सत्ता सौत" वाम दल द्वारा इस प्रकार की निंदनीय घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है, एक तरफ तो सरकारों द्वारा मात्र कार्यक्रम आयोजित करके सम्मान देने की खानापूर्ति की जा रही है दूसरी तरफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। किसी ने पार्टी ने स्थानीय स्तर पर विरोध को छोड़ कर इस कुकृत्य का विरोध नहीं किया। इन हरामखोर पार्टियों को गुजरात की हर घटना पर निगाह रहती है किन्तु अपने घर में क्या हो रहा है उसकी खबर तक नहीं है।
मैं इस दुखद घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुये इस घृणित घटना की निंदा करता हूँ। और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से क्षमा याचना करता हूँ। इस कुकृत्य पर इतना ही बात निकलती है "कि जो सरकार नहीं कर सकती जनता का सम्मान, उस पर थूको सौं-सौ बार।"
विशेष आग्रह - थूकने से पहले कृपया पान खा ले ताकि जब आप थूकें उसका रंग भी दिखें।
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9 टिप्पणियां:
एक दूसरे को गाली देने से कोई फायदा नही है। दूसरों की कमियों को बताने से पहले अगर अच्छाईयों को देखें तो जिस बात को लेकर यहाँ झगडा हो रहा है वह नही होने वाला था।
बहुत सही कहा है आपने। और यह भी कहा जाता है जबहिं चेते तभी सवेरा।
ये शायद विवाद का समापन है... लेकिन ये रेटीग क्या होती है..क्यों होती है... कौन करता है.. क्यु करता है.. कोई समझाये भई..
रेटिंग संबंधी किसी शंका को दूर करने के लिए नारद रेटिंग पर जाकर चेक कर लीजिए। हमने मोहल्ला प्रकरण में देखा है कि रेटिंग को घटाकर 1 से 2 कर देने पर भी ऐसा कुछ खास असर नहीं पड़ता। इसलिए इससे टेंशन लेने की जरूरत नहीं। और वह उपाय भी विरले ही अपनाया जाता है।
नारद के मुखपृष्ठ पर किसी ताजा पोस्ट के काफी नीचे दिखने की एक वजह यह भी हो सकती है कि आपने ड्राफ्ट पहले लिखकर सेव किया हो और काफी देर बाद उसे पोस्ट किया हो। पहले से सेव किए हुए पोस्ट को प्रकाशित करने से पहले आप उसके टाइमस्टांप को अपडेट कर लें, तो शायद यह दिक्कत नहीं आएगी। समस्या को अलग से पोस्ट में शिकायत के रूप में उठाने से पहले 'सुनो नारद' से अवश्य संपर्क कर लें। हम नारद की कार्यप्रणाली में बेहतरी लाना चाहते हैं, न कि उसकी इमेज खराब करना।
आरदणीय सृजन जी,
मेरा कोई ऐसा उद्देश्य नही था इस लियें मैने स्माइली का प्रयोग किया था मै इस मामले मे गम्भीर नही था मात्र मैने अपने मूड मे आकर ऐसा कर दिया था। चूकिं समस्या तो थी ही। तो लगा कि नारद का नाम लेने से लेख की पाठक की संख्या बढ़ जायेगी। और मैने यह उल्लेख करते हुये मजाक पूर्वक :) लगा दिया था। मेरा उद्देश्य गलत नही था। वैसे भी मै स्माईली के लेख में उपयोग के मामले मे काफी शक्त हूँ। :)
जैसा आप कह रहे है हो सकता है कि ऐसा ही हुआ हो या किसी और तकनीकि कारण से हुआ हो, मै इस बात के लिये किसी को दोषी नही ठहराता हूँ। कृपया इसे अन्य अर्थ मे न ले। यह मात्र विनोद था।
सभी बन्धु और भगनि नारद की बात इग्नोर कर रत्ना बहन की तरह टिप्पणी करें।
महाशक्ति भैया, आज फ़ुरसतिया जी का ब्लाग जरूर देखें. दोस्त नदी को साफ़ ही रखो ताकि लोग इसमें उतर सकें. कोई क्या कहता है, क्या फोटो दिखाता है, भूल जायें.
Bhai main beech mein aakar bol raha hoon,
Mamla jo hai ki hindu mare kyon-ek ya muslim-5. Matlab sirf itne se hai ki ye guna-bhag humen karne ko chod rakha hai RAAJNETAON NE. Asli to yeh hai ki aapki bidi ek muslim ke haath se banti hai aur kapde bhi. aap bhi nahin chahte ki taaj ko hata do, hai na bus. mool yahi rahega ki samnewale ki gaddi mein kis jaati-dharm ka keel laga hai aur kiske lahoo se saaf hua hai- hai na
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