प्रिय चिट्ठाकर भइयों और भगनियों,
नमस्कार,
आज समय आ गया है मेरा इस परिवार से विदा लेने का, आप लोगों ने एक साल तक मुझे अपना प्यार और आशीष दिया इसके लिये धन्यवाद।
लेखन का कार्य करना तब तक ठीक है जब तक कि अर्न्तात्मा आपको लिखने के लिये प्रेरित करे। मुझे लगता है कि अब मेरे अन्दर की अर्न्तात्मा की मार डाली गई है। जब अर्न्तात्मा की हत्या हो जाये तो निश्चित रूप से लेखन की कसौटी पर खरा नही उतरता है।
मै पिछले कई दिनों से अपने आपको ''विवादों की लोकप्रियता'' के पैमाने का खरा और सही बात न कह पाने के कारण मानसिक रूप से अशान्त महसूस कर रहा हूँ। और इस अशान्ति के कारण आत्मा प्रवंचना के के अवसाद के ग्रस्त महसूस कर रहा हूँ।
मैने इस सम्बन्ध में कई मित्रों से राय लेनी चाही कि शायद अब मेरी विवादों के प्रति दिक्कतों के प्रति यह परेशनियॉं खत्म होगीं किन्तु उन मित्रों से भी सहयोग नही मिला या तो वे ही नही मिलें।
मै यह निर्णय लेने के लिये कई महीनों से जद्दोजहद कर रहा था कि क्या यह करना ठीक होगा? पेरशानियों के आगे चिट्ठाकारिता के जज्बात आगे आ जाते थे। और मुझे अपने फैसले से पीछे हटना पड़ता था। पर आज मै पूरे मूड से हूँ, मै जानता हूँ कि जो मै करने जा रहा हूँ निश्चित रूप से न्यायोचित नही है किन्तु कभी कभी न्याय का भी अतिक्रमण करना पड़ता है।
यह कदम उठाने के लिये मै अपने आप को स्वयं दोषी मानता हूँ। कि मै लगभग सभी के बातों पर विस्वास कल लेता हूँ और लोग मेरा उपयोग आपने आपना काम निकलने मे करते है। और काम हो जाने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल का फेक देते है।
इधर कुछ दिनों पूर्व देखने में आया था कि कुछ चिट्ठाकारों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से महाशक्ति का बहिस्कार किया जा रहा था और इसकी छाप निश्चित रूप से चिट्ठाचर्चा पर प्रत्यक्ष रूप से दिखती है। मै पहले भी कह चुका हूँ कि किसी चिट्ठे की चर्चा करना या न करना चिटृठाकार का मौलिक हक है किन्तु किसी चिट्ठे को लगातर निगलेट करना बहिस्कार नही तो क्या है?
विवादों की लोकप्रियता के दौर मे मेरे हितैसी होने का दावा करके मेरी चैट को खूब सार्वजनिक किया गया और मेरे मेलों को मेरी अनुमति के बिना दूसरे को पढ़ाया गया। दूसरों के लिये तो यह कार्य कार्य चिट्टाकारिता के पैमाने के विपरीत है और स्वयं के लिये अनुरूप हो जाता है।
विवदों के दौर में कई लोगों ने मुझे आड़े हाथ लेने का प्रयास किया किन्तु वे भूल जाते है वे भी पाक साफ नही है। मै स्वयं काजल की कोठरी मे बैठा हूँ कि साफ दिखने का दावा नही करता किन्तु कुछ लोग ऐसे है जो अपनी गिरेबान में झाक कर देखें तो पता चालेगा कि सफेद पोश की आड़ मे कितनी मैल जमी है।
मै जैसा था वैसा ही रहूँगा निश्चित रूप से मै गलत काम को बर्दास्त नही कर सकता। और जब तक यहॉं रहूँगा निश्चित रूप से अन्याय और गलत काम का सर्मथन नही करूँगा। और मेरे इस कदम से निश्चित रूप से कई लोगों को काफी कष्ट पहूँचेगा।
मै दुनिया बदले की सोच रहा था पर मै न तो गांधी हूँ और न ही एडविना का दिवाना नेहरू जिसके पीछे दुनिया चल देगी। दुनियॉं नही बदलेगी मुझे ही बदलना होगा। और आज मै इस हो अपना पहला कदम उठा रहा हूँ। निश्चित रूप से मेरे लिये यह कदम उठाना आसान नही था किन्तु कभी कभी कड़े फैसले लेने ही पड़ते है।
मै सभी एग्रीगेटरों से भी निवेदन करता हूँ कि वे इस ब्लाग को अपने एग्रीगेटर से हटा दे। इस पोस्ट को ही मेरा अन्तिम निवेदन समझा जाये। सभी चिठ्ठाकर भइयों से भी निवेदन है कि वे मेरे ईमेल को अपनी लिस्ट से हटा दे, अब मै हिन्दी ब्लागर नही रहा। आगे से महाशक्ति पर कोई लेख नही लिखा जायेगा।
सच मे आज यह सब लिख कर मै सुकून और शान्ति महसूस कर रहा हूँ। लग रहा है कि मैने आज कोई काम स्वविवेक से किया है। कम से कम अब विवादों की लोकप्रियता का अन्त होगा और चिट्ठारिओं पर आरोप तो न लगेगें।यहॉं मेरा दम घुट रहा था अब खुली हवा अच्छी लग नही है।क्योकि ब्लागिंग के अलावा भी बहुत काम है।
सच में दुख तो हो रहा है कि एक प्रिय गीत आपके और मेरे दुख को कम करेगा .............
बहार ख़्हतम हुई, दिल गया ख़ुशी भी गई
वो कया गये के मोहब्बत की ज़िंदगी भी गई
(चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के)-२
किसी तरह आता नहीं चैन दिल को
ना ख़ामोश रह के ना फ़रियाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
अरे ओ मेरे दिल के दुशमन ज़माने
तुझे कया मिला मुझ को बरबाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
ख़ुशी दे के तक़दीर ने दे दिया ग़म
किया क़ैद क्योँ मुझ को आज़ाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के।
नमस्कार,
आज समय आ गया है मेरा इस परिवार से विदा लेने का, आप लोगों ने एक साल तक मुझे अपना प्यार और आशीष दिया इसके लिये धन्यवाद।
लेखन का कार्य करना तब तक ठीक है जब तक कि अर्न्तात्मा आपको लिखने के लिये प्रेरित करे। मुझे लगता है कि अब मेरे अन्दर की अर्न्तात्मा की मार डाली गई है। जब अर्न्तात्मा की हत्या हो जाये तो निश्चित रूप से लेखन की कसौटी पर खरा नही उतरता है।
मै पिछले कई दिनों से अपने आपको ''विवादों की लोकप्रियता'' के पैमाने का खरा और सही बात न कह पाने के कारण मानसिक रूप से अशान्त महसूस कर रहा हूँ। और इस अशान्ति के कारण आत्मा प्रवंचना के के अवसाद के ग्रस्त महसूस कर रहा हूँ।
मैने इस सम्बन्ध में कई मित्रों से राय लेनी चाही कि शायद अब मेरी विवादों के प्रति दिक्कतों के प्रति यह परेशनियॉं खत्म होगीं किन्तु उन मित्रों से भी सहयोग नही मिला या तो वे ही नही मिलें।
मै यह निर्णय लेने के लिये कई महीनों से जद्दोजहद कर रहा था कि क्या यह करना ठीक होगा? पेरशानियों के आगे चिट्ठाकारिता के जज्बात आगे आ जाते थे। और मुझे अपने फैसले से पीछे हटना पड़ता था। पर आज मै पूरे मूड से हूँ, मै जानता हूँ कि जो मै करने जा रहा हूँ निश्चित रूप से न्यायोचित नही है किन्तु कभी कभी न्याय का भी अतिक्रमण करना पड़ता है।
यह कदम उठाने के लिये मै अपने आप को स्वयं दोषी मानता हूँ। कि मै लगभग सभी के बातों पर विस्वास कल लेता हूँ और लोग मेरा उपयोग आपने आपना काम निकलने मे करते है। और काम हो जाने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल का फेक देते है।
इधर कुछ दिनों पूर्व देखने में आया था कि कुछ चिट्ठाकारों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से महाशक्ति का बहिस्कार किया जा रहा था और इसकी छाप निश्चित रूप से चिट्ठाचर्चा पर प्रत्यक्ष रूप से दिखती है। मै पहले भी कह चुका हूँ कि किसी चिट्ठे की चर्चा करना या न करना चिटृठाकार का मौलिक हक है किन्तु किसी चिट्ठे को लगातर निगलेट करना बहिस्कार नही तो क्या है?
विवादों की लोकप्रियता के दौर मे मेरे हितैसी होने का दावा करके मेरी चैट को खूब सार्वजनिक किया गया और मेरे मेलों को मेरी अनुमति के बिना दूसरे को पढ़ाया गया। दूसरों के लिये तो यह कार्य कार्य चिट्टाकारिता के पैमाने के विपरीत है और स्वयं के लिये अनुरूप हो जाता है।
विवदों के दौर में कई लोगों ने मुझे आड़े हाथ लेने का प्रयास किया किन्तु वे भूल जाते है वे भी पाक साफ नही है। मै स्वयं काजल की कोठरी मे बैठा हूँ कि साफ दिखने का दावा नही करता किन्तु कुछ लोग ऐसे है जो अपनी गिरेबान में झाक कर देखें तो पता चालेगा कि सफेद पोश की आड़ मे कितनी मैल जमी है।
मै जैसा था वैसा ही रहूँगा निश्चित रूप से मै गलत काम को बर्दास्त नही कर सकता। और जब तक यहॉं रहूँगा निश्चित रूप से अन्याय और गलत काम का सर्मथन नही करूँगा। और मेरे इस कदम से निश्चित रूप से कई लोगों को काफी कष्ट पहूँचेगा।
मै दुनिया बदले की सोच रहा था पर मै न तो गांधी हूँ और न ही एडविना का दिवाना नेहरू जिसके पीछे दुनिया चल देगी। दुनियॉं नही बदलेगी मुझे ही बदलना होगा। और आज मै इस हो अपना पहला कदम उठा रहा हूँ। निश्चित रूप से मेरे लिये यह कदम उठाना आसान नही था किन्तु कभी कभी कड़े फैसले लेने ही पड़ते है।
मै सभी एग्रीगेटरों से भी निवेदन करता हूँ कि वे इस ब्लाग को अपने एग्रीगेटर से हटा दे। इस पोस्ट को ही मेरा अन्तिम निवेदन समझा जाये। सभी चिठ्ठाकर भइयों से भी निवेदन है कि वे मेरे ईमेल को अपनी लिस्ट से हटा दे, अब मै हिन्दी ब्लागर नही रहा। आगे से महाशक्ति पर कोई लेख नही लिखा जायेगा।
सच मे आज यह सब लिख कर मै सुकून और शान्ति महसूस कर रहा हूँ। लग रहा है कि मैने आज कोई काम स्वविवेक से किया है। कम से कम अब विवादों की लोकप्रियता का अन्त होगा और चिट्ठारिओं पर आरोप तो न लगेगें।यहॉं मेरा दम घुट रहा था अब खुली हवा अच्छी लग नही है।क्योकि ब्लागिंग के अलावा भी बहुत काम है।
सच में दुख तो हो रहा है कि एक प्रिय गीत आपके और मेरे दुख को कम करेगा .............
बहार ख़्हतम हुई, दिल गया ख़ुशी भी गई
वो कया गये के मोहब्बत की ज़िंदगी भी गई
(चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के)-२
किसी तरह आता नहीं चैन दिल को
ना ख़ामोश रह के ना फ़रियाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
अरे ओ मेरे दिल के दुशमन ज़माने
तुझे कया मिला मुझ को बरबाद कर के
बहुत रोएंगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
ख़ुशी दे के तक़दीर ने दे दिया ग़म
किया क़ैद क्योँ मुझ को आज़ाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के
चले दिल की दुनिया जो बरबाद कर के
बहुत रोएँगे उनको हम याद कर के।
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28 टिप्पणियां:
आप जैसे चिंतक, चाहे आप की सोच किसी भी तरह की क्यों न हो, यदि मैदान छोडने लगेंगे तो क्या होगा.
ऐसा कौन सा पेड है जिस पर पत्थर न पडे हों. लेकिन क्या वे पलायन कर गये?? कर गये होते तो पृथ्वी का क्या होता.
आपने अपने पलायन के लिये गलत लोगों से सलाह ली -- ऐसे लोगों से जिनको एक चिट्ठाकर के लुप्त होने पर किसी प्रकार का दुख नहीं होता. लेकिन मुझे दुख है.
मेरा निवेदन है कि आप एक महीने की छुट्टी ले लें,पुनर्चिंतन करें, लेकिन पलायन न करें
विनीत
शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
यह तो एक तरह का भागना हुआ। आपको लगता है कि नेगलेशन है तो आप इस स्थिति को बदलिए, क्योंकि आज आप इसके शिकार हैं, कल कोई और होगा। भावुकता सामूहिकता विरोधी होती है। जैसे एक बार छोड़ने का निरऽनय लिया उसी प्रकार न छोड़ने की दिशा में सोचें।
ये सारे हिन्दी के चिट्ठाकार हिट पाने के लिये ऎसे प्रपंच क्यों रचते हैं??आशा करती हूँ आप ऎसे ना होंगे.जाइये तो फिर ना लौट आने के लिये जाइये.जहां रहें खुश रहें ..हिन्दी में लिखते रहे.हिन्दी चिट्ठाजगत ही आपकी मंजिल नहीं आपकी मंजिल कहीं और है. पर प्लीज ढेर सारी टिप्पणी और हिट लेके वापस आने का नाटक मत कीजियेगा.
वैसे आप नहीं करेंगे ये विश्वास है.
यह क्या कह रहे हो दोस्त। किसी ब्लॉगर मित्र ने गीता का यह वचन अपने स्टेटस-बार में लगा रखा है - "न दैन्यम् न पलायनम्"। चिंतन करें इसपर।
जै रामजी की , प्रमेन्द्र \
जाना न जाना आपके विवेक पर है, मगर एक बार विचारें की दुनिया किस के पीछे चलती है?
लगता है आपको हौसलेवाला टानिक चाहिए.
झेला जाए.
1. हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
2. पिछले 10 दिनों में 2 चिट्ठा चर्चा मैंने की है और मैं इस बात के लिए आपसे क्षमा चाहता हूं कि आपके चिट्ठे का जिक्र नहीं आया. मुझे निकम्मा चर्चाकार समझकर माफ कर दिया जाए.
3. गायत्री मंत्र का जाप किया जाए. नयी ताकत और उर्जा मिलेगी.
4. गीता के इस वचन को कंठस्त किया जाए - कर्मण्ये वाधिकारस्ते माफलेसु कदांचन्
5. कर्मसंन्यास की पोथी पढ़ी जाए जिसमें लिखा है अपने सब कर्म ईश्वर को साक्षी मानकर करिए. सफल वही है जो त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यंमेव समर्पयेत् की भावना से काम करता है.
6. चिट्ठाजगत से जब भी आप निराश हों तो शास्त्री जी को देखिये. लगे रहो मुन्ना भाई का अनुपम संदेश आपको मिलेगा.
7. आखिरी बात यह कि शिशुवत कोमल हो जाईये. अपने में मस्त. वह मस्ती आपके चिट्ठे पर आये. कौन फिकिर करता है कि आप मुझे कितना महत्व देते हैं. मैं तो अपने में खोया हूं,
एक बार फिर ठण्डे मन से सोच लो ; फिर भी जाना चाहते हो तो जरूर जाओ, लेकिन कम से कम दस लोगों को हिन्दी चिट्ठाकारी में जोड़ने के बाद..
भाई चिट्ठाकार बहिष्कार कर रहे है ऐसा आपको लगता है हो सकता है सही लगता हो पर एक बात बताईये, लेखन अंत:प्रेरित है किसी के कहने से, अगर आप किसी के कहने से लिखते आए है तब तो इसे बंद कर देना ही अच्छा, लेकिन अगर अंत:प्रेरित है तो फ़िर मै सोचता हूं कि किसी के कहने ना कहने, बहिष्कार, समर्थन से कोई फ़र्क नही पड़ने वाला।
और रहा सवाल आपके ई-मेल , चैट को सार्वजनिक करने की बात तो भाई जब हम नेट पर किसी समूह से जुड़ते हैं तो यह रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा, मै पिछले 5 पांच साल से इंटरनेट का प्रयोग कर रहा हूं और मैने पाया है कि यहां यह आम बात है। तो इस बात को हम थोड़ा सावधानी से बात कर के सुधार सकते हैं।
बस यही निवेदन करूंगा कि पुनर्विचार करें।
शुभकामनाएं
ये सब फिर से नया नाटक लगता है नारद को ई मेल करो यहा लिखने से हीट्स हि मिलेगे
रन्जु जी से मै बिलकुल सहमत हू
महाशक्ति जी,आप जैसे चिटठाकार ही जब इस तरह का कदम उठाने लगेगें तो हम जैसे छोटे चिटठाकार भी हताश हो सकते हैं।आप को कही जानें की जरूरत नही है।आप अपना लेखन कार्य करते रहे।मै शास्त्री जी की बात से भी पूरी तरह सहमत हूँ ।और उन्होने ठीक कहा है-ऐसा कौन-सा पेड़ है जिस पर पत्थर ना पड़े हो।-इस मे एक बात और जोड़ना चाहूँगा। फल वाले पेड़ पर ही हमेशा पत्थर फैके जाते हैं।इस लिए आप निराशा से उबरिए और लिखना आरम्भ करें। हमारी शुभ कामनाएं आप के साथ हैं।
अभी तो आपका अच्छी तरह जाना भी नही है आैर आप अभी से चल िदए कुछ आपको समझ तो लेने दीिजए मेरे भाई
आप जैसे महान ब्लॉगर के चले जाने से नारद का आँगन सूना हो जाएगा। लोग विरह की आग में जलेंगे, हाय महाशक्ति की करूण पुकार करेंगे। बहुत रोएँगे, रात-रात भर सिसकियाँ लेंगे, आपके पैर पकड़ेंगे, कहेंगे कि आप नहीं लिखेंगे तो लोग क्या पढ़ेंगे। उन्हें कैसे पता चलेगा कि सं-घ में क्या हो रहा है, उन्हें कैसे पता चलेगा कि राष्ट्र को एकसूत्र में जोड़ने के आपके महान प्रयासों का क्या हाल है। प्लीज़ मत जाइए, प्लीज़ रूक जाइए। आपको कोई मना नहीं रहा है, जाने दीजिए, अपने आप मान जाइए, पिछली बार की तरह, अपनी अंतरआत्मा को संजीवनी खिलाइए और जुट जाइए। अगर जाना चाहते हैं, कुछ दिन आराम करके लौट आइएगा, कोई कुछ नहीं कहेगा।
भाई यह क्यों नहीं सोचते कि १०० में से १० लोग तुम्हारे खिलाफ हैं तो ९० तुम्हारे साथ हैं।
खैर आपकी पढ़ाई और भविष्य के मद्देनजर मैं सलाह दूँगा कि कुछ समय के लिए ब्लॉगिंग छोड़ ही दें। जब जीवन में सैट हो जाएँ फिर दोबारा शुरु करें।
वैसे चैट वगैरा पर तो मिलते ही रहोगे न? उसके लिए हिन्दी ब्लॉगर होना तो जरुरी नहीं।
मेरे विचार से यह गलत निर्णय है। हिन्दी को बहुत दूर तक ले जाना है। यहां हर की जरूरत है।
विवादों में क्यों बहस करना - यह बेकार है।
जहां तक चिट्ठा चर्चा की बात है यह नये चिट्टाकारों के लिये है अब आप पुराने चिट्टाकार हो गये हैं। मेरी भी बहुत कम चिट्टियों का जिक्र चिट्टा चर्चा में होता है पर इसका यह मतलब तो नहीं की हिन्दी चिट्ठाकारी छोड़ दी जाय।
अपने निर्णय पर पुनः विचार करें।
भाई प्रतीक नें जो न दैन्यम् न पलायनम् के संबंध में लिखा है वे भाई हैं संजय तिवारी जी उन्होंनें जो टिप्स दियें है उसे माने पलायन की बातें छोडे । रही बात हिट की तो अब हिट को कौन पूछता है तीन तीन चार चार एग्रीगेटर हो गये है हिट तो बट जाते हैं इसकारण मेरा मानना है कि अब कोई भी हिट के लिए ऐसा कुछ नहीं करेगा हम नहीं मानते । पर फिर कहेंगे न दैन्यम् न पलायनम्
अरे अब तुम भी ! यह क्या बात हुयी , वैसे मै श्रीश की बात से मै भी सहमत हूँ कि पढाई और कैरियर को सबसे पहले देखो और फ़िर उसके बाद ब्लागिग .... और दूसरी बात चिट्ठाकारी स्वंय के लिये कर रहे हो या दुनिया के लिये , अरे दूसरे हमको नजरंदाज करें तो करें हम तो लिखेगें जबरिया , हमको रोक सके तो कोई रोके . ( अनूप जी के शब्दों मे )
अरे भाई ऐसी क्या नाराजगी !हम उन्मुक्त जी की बात को ही दोहराते है।
parmindar vaapas aayege par mahaashakti nahi. mere se baat ho gaI hai badi mushkil se mile par mil gaye fon par. mahine bhar baad vo laut aayege,ham ummid karate hai ek naye rup me nai sajdhaj ke saath..:)
आज पहली बार इलाहाबाद में रह कर इन्टरनेट से दूर रह कर अच्छा लगा, एक साल बाद महसूर किया कि इसके आगे भी दुनियॉं है। आज आज अपने आप में एक ऐतिहासिक दिन था। जो समय मेरा नेट पर बितता था वह आज मित्रों के साथ बीत, मित्र भी आश्चर्य में थे कि आज सूरज नई दिशा से कैसे उग आया? सभी से मिलकर सूकून मिल रहा था, आज हम लोगों कम्पनीबाग में बैठ कर लम्बी चर्चाऐं की, वो पुराने दिन याद आ गये।
जब घर पर आया तो माता जी ने बताया कि किसी का फोन आया था। पर नाम पता न होने करण कारण मैने काल बैक नही किया। शायं काल 6-7 घन्टे तक नेट से दूर रह कर जब मेल चेक किया तो अच्छा लगा, कि जब मै टिप्पणी के लिये आतुर रहता था तब नही मिलती थी और आज ढेर लगी हुई है। किसी की अन्तिम पोस्ट पर रिकार्ड तोड़ टिप्पणी मिले तो क्या बात है ? इससे शानदार विदाई और क्या होगी ? सचिन तेन्दूलकर भी अपनी कैरियर की अन्तिम पारी को रिकार्ड मय बनने के प्रयास में रहेगें। निश्चित रूप से आप बधाई के पात्र है जो अन्तिम पोस्ट पर यह स्नेह दिया है। अभी भी मै आपने सर्वधिक टिप्पणी से 2 कदम दूर हूँ और मुझे पता है कि वह मुझे मिलेगी अभी समीर लाल जी और सागर भाई जी की टिप्प्णी नही आई है :)
बहुत बन्धु और भगनियों ने वापस आने की बात कही है, मै कहीं नही जा रहा हूँ, आप सदा मुझे अपने पास पओंगें। नेट पर लिखना एक दूसरा तथ्य है किन्तु अभी मेरे लिये यहॉं समय देने से अच्छा है कि वास्तविक दुनियॉं देखी जाये। हॉं लिखना न लिखना में विवेक पर निर्भर करता है। अगर ईश्वर समय देगा तो जरूर मै लिखूँगा।
कुछ बन्धुओं का कहना है कि यह मात्र एक स्टंट है तो मै आपकी बात से सहमत हूँ। आप भी एसे प्रयोग कीजिऐ और प्रतिदिन खूब हिट्स और टिप्पणीयॉं बटोरियें, मेरी शुभकामनाऐ आपके साथ है1 :)
यह लेख डालने से पूर्व मेरी तनिक इच्छा नही थी कि मै किसी टिप्पणी का जवाब दूंगा किन्तु अन्तिम पोस्ट पर करना करता तो यह ठीक न होता। इन विवादों के दौर मे मै आपने आपको थका और बीमार महसूस करने लगा था। मै कभी भी कोई गम्भीर बात को मजाक में नही लेता हूँ। यह मेरी स्वाभव है।
हॉं मै नारद से प्रेम करता हूँ, क्योकि प्रेम उसी के प्रति होता है जिसके प्रति लगाव और रोष होता है। मै अगर किसी से नाराज होता हूँ तो उसी से जो मेरी शिकायत सुनेगा। उससे क्या नाराज होना जो आपकी बात को महत्व ही न दें। कुछ लोगों ने तो मुझे नारद टीम मेम्बर ही बना दिया, वे जा कर चिठ्ठाकारिता का इतिहास खगाले कि नारद टीम में मेरा विवाद कब और कितना बड़ा था? किन्तु व्यक्ति का व्यवहार उसे लोकप्रिय बना देता है। आज भी मै आश्चर्य चकित हूँ कि मेरे विवाद के समय नारद लाबी एक साथ थी और मै अकेला आज वह मेरे तरफ कैसे आ गई। अगर किसी को पता होगा तो मुझे बताऐगा।
अभी तो मेरे मृत्यु आने मे कम से कम 40 साल लगेगें अगर पहले भी आ गई हो तो मै नही कह सकता। और यह ब्लागिंग उस दौर का काम है जब आप सभी काम से फुर्सत मे हो।
श्रीश भाई आपसे बात क्यो नही हो ? हम कोई जंगल में थोड़े ही जा रहे है। मै जल्द नया ईमेल बना कर खास मित्रो को जोडूँगा। आप इन्तजार कीजिऐगा :)
अरूण जी आपको भी बहुत स्नेह करते है इस लिये आपको बिना बताऐ यह कदम उठाना पढ़ा, आपको बता कर करना तो निश्चित रूप से मै यह फैसला नही ले पाता। मेरे आने या ना आने से कोई फर्क नही पड़ता, आप अपना लेखन स्तर सुधारिये और विवादो पर लिखने के बजाय। सकारात्मक क्षेत्र को चुनिऐ। आपसे बात करते समय मै नही कर नही सकता था। किन्तु अगर मेरा पुन: लिखना होता तो मे यहॉं से जाना ही क्यो ? मै छद्म नाम से लिखने का विरोधी हूँ, और मे छद्म नाम से नही लिखूँगा, अगर लिखूँगा तो सबको पता होगा कि प्रमेन्द्र ही लिख रहा है।
अफलातून जी आप को भी हमार अन्तिम जय सिया राम
कबूतर जा जा
किसी हमसे टकराएगा
हम चूर-चूर हो जाएगा
जा बच्चा तू कंपनी बाग में अपने हमउम्रों के साथ बैठने लायक ही है, बाल्यकाल में ब्लाग क्या लिखना, खेलकूदय़
प्रिय प्रमेन्द्र जी
मूजे इस बार लगता है कि आपने काफी सोच समझ कर निर्णय लिया है। सही या गलत तो मूजे पता नहीं पर इतना जरूर कहूंगा कि अगर आपके चिठ्ठाकारी करने से आपकी पढ़ाई में हर्जा होता है तो छोड़ दो चिठ्ठाकारी।
पहले पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान दो, चिठ्ठाकारी बाद में भी की जा सकती है।
एक बात और छोटी छोटी बातों को मन पर मत लिया करो, अभी आपके सामने बड़ी लम्बी दुमियाँ पड़ी है, अभी बहुत कुछ सीखना है।
लगता है आपका मन नहि कर रहा है जाने का फिर भी जबरन जाने का कह रहे हो और हिट्स लिये जा रहे हो :)
अच्छा तारिका निकाला है आपने :)) अरे भैया जाते क्यु नही :(
जो भी कार्य करो पूर्ण मनन के साथ करो. कल को पछतावा न हो. अपनी अच्छाई बुराई तो तुम समझते हो. सोच समझ कर जो उचित लगता है, वही करो. ईमेल संपर्क तो बिना ब्लॉग पर लिखे भी बना रह सकता है. एक उचित निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये शुभकामनायें. विचारो.
भैया, भागो नहीं बदलो। सबसे अच्छा तो यह् रहेगा कि जो पढ़ाई करो उसी को ब्लाग् पर् डाल् दो। रिवीजन् हो जायेगा।
प्रमेन्द्र जी, आपके निर्णय का मैं स्वागत करता हूँ। मैं स्वयं भी चिट्ठाकारी से दूर हुआ हूँ गो कि कारण बिल्कुल अलग हैं। यही कहूंगा कि अपना लेखन ज़ारी रखें, नेट पर नही कागजों पर और पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित भी करवाते रहें।
पर मुझे डर है कि चिट्ठाकारी से दूर रह कर आप रह पायेंगे कि नहीं. एक शे’र याद आ रहा है-
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे
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