आज महाशक्ति से पर मेरे दो मित्र लेखन कार्य में जुड़ गये है जो इलाहाबाद से ही है। दोनो महाशक्ति के प्रारम्भिक सदस्यों में से एक है। राजकुमार जी महाशक्ति के 2001 में तथा ताराचन्द्र जी 2003 में सदस्य है ओर प्रारम्भिक समय से ही महाशक्ति के प्रति निष्ठा है। इनका कहना है कि महाशक्ति कोई संस्था या संगठन न होकर एक विचार धारा है, और यह विचार धारा प्रत्येक सदस्य के शिराओं में रक्त के समान बह रहा है। दोनो मेरे स्कूल तथा कालेज के समय के मित्र है। मै जब प्रत्यक्ष रूप से जब से ब्लागिंग कर रहा हूँ तब से सम्पूर्ण महाशक्ति के सदस्य परोक्ष रूप से हर समय मेरी सहायता करते थें। किन्तु आज से ये पर्दे के पीछे के साथ साथ पर्दे पर भी मेरे साथ रहेगें।
राजकुमारजी व ताराचंद जी का स्वागत है। अब बस श़रू हो जाएं
जवाब देंहटाएंये जो आपने पंचलाइन " जो हमसे टकरायेगा,वो चूर-चूर हो जायेगा" हटा दीजिये क्योंकि ये कोई कुश्ती का अखाडा यां युध्द का मैदान नहीं है. बाकी आपकी मर्जी!
जवाब देंहटाएंनये बन्धुओं का स्वागत है।
Aap laut aaye aur saath mein apne mitron ko bhee le aaye, jaankar badi prasannata hui...
जवाब देंहटाएंJaise aapke lekh padhne ko utsuk rahte the, wahi utsukta aapke mitro ke lekhon ko lekar rahegi..
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है बंधुओं का!
जवाब देंहटाएंस्वागत है, स्वागत है...
जवाब देंहटाएंमैं तो इन दोनों से मिल चुका हूँ। चलिए आखिरकार आ गये। स्वागत है आप दोनों का
जवाब देंहटाएंस्वागत!
जवाब देंहटाएंkamlesh ji namaskar.
जवाब देंहटाएंye panch line kisi ke vyaktigat sandarbh me nahi hi.
आप सभी को आभार और धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमित्र तारा चन्द्र जी ने पंचलाइन के सन्दर्भ जो कहा वैसा ही मेरा सोचना है।
वैसे इसे हटाने की बात हे तो हम इस पर विचार करेंगें।
फ़िर लौट आये ? खाली हाथ !
जवाब देंहटाएंनहीं सरदार, दो साथी और भी है..
:)
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जवाब देंहटाएंस्वागत है भाई पूरी युवा टीम का.
जवाब देंहटाएंतो ये थी आपके अलविदा कहने की वजह।
जवाब देंहटाएंताराचंद जी और राजकुमार जी का स्वागत है।
समीर लाल जी व ममता जी,
जवाब देंहटाएंआप दोनों को धन्यवाद।
निश्चित रूप से हम तीनों आपके भरोंसे पर खरे उतरने का प्रयास करेंगें।