महर्षि अरविन्द ने कहा था-
इसमें सदेह नही कि प्रत्येक विघटनकारी आक्रमण का प्रतिकार हमें पूरे बल के साथ करना होगा, परन्तु इससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी अतीत की उपलब्धि, वर्तमान स्थित और भावी संभावनाओं के संबंध में, अर्थात हम क्या थे, क्या है, औ क्या बन सकते है ? इस सबके सम्बन्ध में हम अपनी सच्ची और स्वतंत्र सम्मति निश्चित करें। हमारे अतीत में जो कुछ महान, मलौक, उन्नतिकारक, बलदायक, प्रकाशदायक, जयशील एवं अमोघ था उस सबका हमें स्पष्ट रूप से निर्धारण करना होगा। औरा उसमें से जो कुछ हमारी संस्कृतिक सत्ता की स्थायी मूल भावना एवं उसके अटल विधानके निकट था उसमें से भी लो कुछ हमारी सांस्कृति सत्ता की स्थाई मूल भावना एवं उसके अटल विधान के निकट था उसे साफ-साफ जानकर उसे अपनी संस्कृति के सामयिक बाह्य रूपों का निर्माण करनके वाली अस्थायी वस्तुओं से पृथक कर लेना होगा। (श्री अरविंद साहित्य समग्र, खण्ड-1, भारतीय संस्कृति के आधार, पृष्ट 43 से उद्धृत)
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1 टिप्पणी:
जारी रहें, अच्छा ज्ञान प्राप्त हो रहा है.
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