छडि़काऐं



(1)
न तुम पास आती हो,
जाने क्‍यूँ घबराती हो।
वफा करते है तुमसे,
नफा पाने के ख‍ातिर। 
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(2)
जानम तेरी प्‍यार में,
हम पागल हो गयें।
घर मे जब मार पड़ी
तो हम घायल हो गये।
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(3)
खूसट सा चेहरा तेरा,
गिल्‍ली सी मुँस्‍कान है।
रंग तेरा देखा कर,
अंधा भी हैरान है।
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(4)
पानी सी जिन्‍दगी,
रवानी सी जिन्‍दगी।
ठोकरों के पल्‍लवन से,
बढ़ती है बंदगी।
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(5)
कह-कसाने वो लगा,
और मेरी जिंदगी।
रास्ते मेरे खोये हुऐ,
मंजिलों को ढ़ँडते।
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(6)
तेरे गीतों में न राग है,
न तेरे बोलों में साज है।
प्रिये अब तुम मत बोलो,
तेरी कर्कस आवाज है।
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रचनाकार------- प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह, तारा चन्‍द्र गुप्‍त, राजकुमार


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3 टिप्‍पणियां:

Sanjay Tiwari ने कहा…

यह अंधे ने चेहरा देखा कैसे?

Udan Tashtari ने कहा…

तेरे गीतों में न राग है,
न तेरे बोलों में साज है।
प्रिये अब तुम मत बोलो,
तेरी कर्कस आवाज है।


--मुस्कराये. :) ये वाली इस संयुक्त प्रयास में किसने लिखी है?

Sagar Chand Nahar ने कहा…

शीर्षक सुधार लें छड़िकाएं नहीं क्षणिकायें सही शब्द होना चाहिये।
वैसे आप अक्सर ण को ड़ लिखते हैं, जैसे टिप्प्णी को टिप्पड़ी!