पिछले 10 दिनों में तीन विवादित पोस्टें
आज काफी दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ, आज लिखने का कोई मूड नहीं था किन्तु सच कहूँ तो लिखने के लिये मजबूर होना पड़ा। इस माह मैंने कुल 3 या
4 पोस्टें की थी और उसमें से भी 2/3 से ज्यादा विवादित निकल गई। :) पहली तो महात्मा गांधी पर एक सर्वेक्षण का था। दूसरी एक कविता थी और तीसरी एक चित्र। अर्थात तीनों कैटगरी में मुझे विवादित का ठप्पा लगा दिया गया।
महात्मा गांधी के ऊपर किया पोल पर पोस्ट , मन का टोह लेने भर का प्रयास था। ऐसा नहीं है कि मुझे केवल मेरे ब्लाग पर ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है बल्कि कई स्थानों पर गांधी विषयक चर्चा के लिये भी आमंत्रित किया गया। गांधी विषयक चर्चा फिर कभी करूँगा, क्योंकि यह कोई विषय नही बल्कि एक जन सामान्य का विचार है। इस पोस्ट पर मुझे दो जगह लिंक(ज्ञान जी और टिप्पणीकार भाई के पास ) भी किया गया किन्तु निराशा हुई कि कुछ खास गरमा गर्मी नहीं हुई। किसी ने मेरे बारे में टिप्पणी ही नहीं की, कि इसने यह काम अच्छा नहीं किया है। :)
दूसरी एक कविता थी, उसके बारे में ज्यादा चर्चा करना पसंद नही करूँगा, क्योंकि वह विषय समाप्त हो गया है। पर इसने भी ज्यादा व्यथित किया था।
और और तीसरी घटना आज की ही है, निश्चित रूप मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, जिस ब्लॉग को मै अपना कूड़ा घर समझता था, और समझता था कि कुछ युवा ही देखते होंगे किन्तु पहली बार एहसास हुआ कि ऐसा नहीं है। चूंकि मैं अपने इस( महाशक्ति) ब्लॉग पर किसी भी प्रकार की आपत्ति जनक चित्र या सामग्री प्रकाशित नहीं करना चाहता था, क्योंकि यह मेरा व्यक्तिगत के साथ सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लॉग है, और इसे हर वर्ग के पाठक पढ़ते है, इसी उद्देश्य से मैने टाईम लॉस का निर्माण किया था। वैसे मैने कुछ चित्रों को हटा दिया है। वैसे पहली बार एहसास हुआ कि मजाक/ हास्य भी, गंभीर रूप ले लेता है :)
आज सागर भाई कई दिनों बाद दर्शन हुए, और उन्होंने भी मेरी निंदा की, उनसे पहले मोहिन्दर जी कर चुके थे। अच्छा लगता है कि कोई गलती करने पर एहसास दिलाने वाला होता है कभी कभी तो ऐसा लगता कि जो हम करते है वह हमें सही लगता है किन्तु बाद में किसी के बताने पर लगता है गलत है।
गिर कर उठना ही, व्यक्ति के व्यवहारिक जीवन का नियम है। सही है चर्चाओं का दौर चलता रहेगा, फिर मिलेंगे। :)
आज आपका लेख पढ़कर दुख हुआ है कभी कलमकार को निराश नही होना चाहिए और अपना हौसला नही खोना चाहिए | कलमकार को आलोचना सामलोचना झेलना पड़ता है जोकि यह भी कलम क़ी ज़िंदगी का अंग है | लेखक को सदैव आलोचना क़ी परवाह न करते हुए सतत अपने विचारो क़ी आग को कलम से प्रस्तुत करते रहना चाहिए |
जवाब देंहटाएंभाई हमने तो इस लिये कहा है कि आप हमें बड़ा भाई कहते हो। :)
जवाब देंहटाएंवैसे कहा गया है ना
निंदक नियरे राखिये..
धत्त
जवाब देंहटाएंअब जब आपने ब्लाूग से मसाला हटा ही दिया तो भला हमें क्या पता चले कि मामला क्या है।
वेसे आपका वह ब्लॉग एकाध ही दफा देखा था पर पता होता कि उस देखना युवा होने का पासपोर्ट है तो जरूर देख्ते :))
इतना दिल पर मत लो बंधु
गिर कर उठना ही, व्यक्ति के व्यवहारिक जीवन का नियम है....
जवाब देंहटाएं--सब कुछ तो समझते हो अब हम क्या समझायें. :)
लिखो लिखो-मन लगा कर लिखो. शुभकामनायें.
महेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंमै निराश नही हूँ, यह अच्छा है कि पाठक पढ़कर प्रतिक्रियाऐं देते है। और यह अच्छी बात है।
सागर भाई,
आप तो वो हो ही :)
मसिजीवी जी,
सभी मसाले कही न कही सुरक्षित है,:) मैने कविता को समूहिक स्थान से हटाकर एक अपने अन्य ब्लाग पर डाल दिया था जो किसी एग्रीगेटर पर नही है। आप मेरे उस ब्लाग पर पढ़ सकते है, चूकिं मै नही चहाता था कि मेरे ब्लाग के आलवा कोई अन्य ब्लाग मेरी वजह से पहलवानी का आखाड़ा बने, इसीलिये .... :)
समीर लाल जी,
सही बात फरमाया आपने, अच्छा लगता है आपका कमेन्ट अपनी पोस्टपर :)
"जिस ब्लाग को मै अपना कूड़ा घर समझता था, और समझता था कि कुछ युवा ही देखते होगें किन्तु पहली बार एहसास हुआ कि ऐसा नही है।"
जवाब देंहटाएंक्या बात कर रहे हैं! युवा आजकल कूड़ाघर की शैर करने जाते हैं!
"चूकिं मै अपने इस( महाशक्ति) ब्लाग पर किसी भी प्रकार की आपत्ति जनक चित्र या समाग्री प्रकाशित नही करना चाहता था, क्योकि यह मेरा व्यक्तिगत के साथ सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है, और इसे हर वर्ग के पाठक पढ़ते है, इसी उद्देश्य से मैने टाईम लॉस का निर्माण किया था।"
टाईमलॉस का निर्माण आपत्तिजनक चित्र और सामग्री के लिए किया गया है!...वाह.
ब्लॉग यानी मन का बेलाग लिखना.
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