मैंने कुछ अक्टूबर माह में ऑरकुट पर एक प्रश्न पूछा था कि क्या गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है? जिस पर इस ब्लागर समुदाय में इसे आरकुटिया महाभियोग की संज्ञा दिया गया। था। इस पर काफी लोगों को प्रतिक्रियाएँ देखने और पढ़ने को मिली आपका प्रतिक्रियाएं फिर काभी पढ़ाऊंगा। क्योंकि प्रतिक्रियाएं इन परिणामों से ज्यादा रोचक है, यह मेरा वादा है। किन्तु इस प्रश्न का जो परिणाम था वह आश्चर्यजनक है। आज जिस गांधी जी की दुहाई देकर राष्ट्र को धोखा दिया जा रहा है उन गांधी जी को 65 प्रतिशत लोग राष्ट्रपिता नहीं मानते है, 34 प्रतिशत लोग उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में देखते और 1 प्रतिशत बंधु कोई राय नहीं रखते है।
आज गांधी जी पर प्रश्न उठाने पर हो हल्ला किया जाता है कि गांधी जी ने ये किया, गांधी जी ने वो किया, गांधी जी भगवान है, गांधी जी से पहले दाग लगाने से पहले सोचना चाहिए। आदि बाते इस बात की ओर इंगित करती है कि आज के समाज का 35 प्रतिशत हिस्सा 65 प्रतिशत हिस्से पर हावी है। जिस प्रकार राम सेतु के मुद्दे पर सरकार द्वारा बहुसंख्यक वर्ग पर कुठाराघात किया गया उसी प्रकार आज के समाज में कुछ प्रभावशाली लोगों का ही राज है। गांधी जी को इस प्रकार पूजा जाता है कि जैसे पहलवान वीर बाबा। गांधी जी को पूजना गलत नहीं किन्तु गांधी वाद के नाम पर अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ठगा नहीं जाना चाहिए।
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में जैसा प्रश्न भगत सिंह के नाम पर पूछा गया वह सर्व विदित है, आज मुट्ठीभर कुछ लोग देश की जन भावना को आतंकित कर रहे है। भगत सिंह को आतंकवादी बताना यही दर्शाता है कि जो भी काम इस देश में हुआ गांधी के कारण ही हुआ। आज रोड़, गली,योजना, परियोजना, स्वास्थ केन्द्र, तो बिजली घर, डाक टिकट, नोट, आदि सब कुछ गांधीमय ही कर दिया गया। तथा सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि को आंतकवादी बताकर देश के नौनिहालों को उनके रास्तों से दूर किया रहा है। आज समय है ऐसी दमनकारी नीतियों का दमन करने का, और ऐसे किसी भी प्रस्ताव का विरोध करने का जिसे देश की जनता मनने को तैयार नही है। गांधी को हम पर थोपने के बजाय उन्हें आत्मसात करवाने की जरूरत है न कि सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा देने की।
यह सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि आज से 60 साल पहले भी लोगों पर गांधी जी को लोगों पर थोपा और आज भी थोपा जा रहा है। गाधी जी को थोपना तो मैं मानता हूँ कुछ हद तक ठीक है किन्तु भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, आजाद, तिलक आदि को जनमानस से दूर करके का क्या औचित्य है, कुछ दिनों पूर्व एक राजनेता ने कहा था कि गाधी भी कुछ सालों बाद भगवान की श्रेणी में आ जायेगें और उन्हे भी पूजा जायेगा। निश्चित रूप से यह सरकार का यह कृत्य भगवान राम को नकार कर, श्रीराम के स्थान पर गांधी जी को भगवान का दर्जा दिलाना ही है। जिस प्रकार देश के इतिहास से एक एक कर शहीदों के नाम गायब हो रहे है वह दिन दूर नहीं कि राष्ट्रीय प्रियंका-राहुल मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना न हो जाये।
इस सर्वेक्षण का मकसद सिर्फ इतना ही था कि लोग गांधी जी सच्चाई को जाने और खुद पर भरोसा कर गांधी-नेहरू परिवार की भाँति अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का न भूलें। पोल में कुल 1300 से ज्यादा लोगों ने मतदान किया था। भारत नाम कि एक कम्यूनिटी में इस प्रश्न को हटा दिया गया किन्तु उसमें भी जब तक प्रश्न था करीब 135 लोगो ने मतदान में हिस्सा लिया था। इस कम्यूनिटी के हटने के बाद कुल 1149 मत पड़े जिसमें प्रश्न के पक्ष में 746 विपक्ष में 392 तथा कोई राय नहीं रखने वाले 11 थे। मै नहीं समझता कि मेरा 252 शब्दों का लेख ब्लागर बंधुओं को प्रभावित करता है कि नहीं किन्तु आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो देश में परिवर्तन चाहते है। यह सर्वेक्षण हमें प्रेरित करता है कि कि हमें इस बात पर विचार करना होगा कि क्या सरकारों के दबाव में हमें अभी भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानना उचित है ?
आप इन लेखों पर भी अपने नज़र जरूर डालेगें-
महात्मा गाधी पर मेरे विभिन्न लेख
गांधी का अहं
गांधी वाद खडा चौराहे पर !
भारत दुर्दशा के जिम्मेदार
गांधी के आड़ मे भारतीयता पर चोट
क्या गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है?
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में जैसा प्रश्न भगत सिंह के नाम पर पूछा गया वह सर्व विदित है, आज मुट्ठीभर कुछ लोग देश की जन भावना को आतंकित कर रहे है। भगत सिंह को आतंकवादी बताना यही दर्शाता है कि जो भी काम इस देश में हुआ गांधी के कारण ही हुआ। आज रोड़, गली,योजना, परियोजना, स्वास्थ केन्द्र, तो बिजली घर, डाक टिकट, नोट, आदि सब कुछ गांधीमय ही कर दिया गया। तथा सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि को आंतकवादी बताकर देश के नौनिहालों को उनके रास्तों से दूर किया रहा है। आज समय है ऐसी दमनकारी नीतियों का दमन करने का, और ऐसे किसी भी प्रस्ताव का विरोध करने का जिसे देश की जनता मनने को तैयार नही है। गांधी को हम पर थोपने के बजाय उन्हें आत्मसात करवाने की जरूरत है न कि सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा देने की।
यह सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि आज से 60 साल पहले भी लोगों पर गांधी जी को लोगों पर थोपा और आज भी थोपा जा रहा है। गाधी जी को थोपना तो मैं मानता हूँ कुछ हद तक ठीक है किन्तु भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, आजाद, तिलक आदि को जनमानस से दूर करके का क्या औचित्य है, कुछ दिनों पूर्व एक राजनेता ने कहा था कि गाधी भी कुछ सालों बाद भगवान की श्रेणी में आ जायेगें और उन्हे भी पूजा जायेगा। निश्चित रूप से यह सरकार का यह कृत्य भगवान राम को नकार कर, श्रीराम के स्थान पर गांधी जी को भगवान का दर्जा दिलाना ही है। जिस प्रकार देश के इतिहास से एक एक कर शहीदों के नाम गायब हो रहे है वह दिन दूर नहीं कि राष्ट्रीय प्रियंका-राहुल मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना न हो जाये।
इस सर्वेक्षण का मकसद सिर्फ इतना ही था कि लोग गांधी जी सच्चाई को जाने और खुद पर भरोसा कर गांधी-नेहरू परिवार की भाँति अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का न भूलें। पोल में कुल 1300 से ज्यादा लोगों ने मतदान किया था। भारत नाम कि एक कम्यूनिटी में इस प्रश्न को हटा दिया गया किन्तु उसमें भी जब तक प्रश्न था करीब 135 लोगो ने मतदान में हिस्सा लिया था। इस कम्यूनिटी के हटने के बाद कुल 1149 मत पड़े जिसमें प्रश्न के पक्ष में 746 विपक्ष में 392 तथा कोई राय नहीं रखने वाले 11 थे। मै नहीं समझता कि मेरा 252 शब्दों का लेख ब्लागर बंधुओं को प्रभावित करता है कि नहीं किन्तु आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो देश में परिवर्तन चाहते है। यह सर्वेक्षण हमें प्रेरित करता है कि कि हमें इस बात पर विचार करना होगा कि क्या सरकारों के दबाव में हमें अभी भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानना उचित है ?
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20 टिप्पणियां:
गांधी जी के योगदान को हम कम कर के आँक नही सकते लेकिन उसके साथ मे और स्वतंत्रता संग्रामियों को नजरांन्दाज करना या उन्हें उपेक्षित करना बहुत ही गलत है ।
मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि महात्मा गांधी को "राष्ट्रपिता" नहीं कहा जाना चाहिए। बाक़ी मेरे ख़्याल से गांधीजी के अमूल्य योगदान को लेकर किसी के मन में कोई व्यर्थ सन्देह नहीं होना चाहिए।
गाँधीजी की देशभक्ति पर प्रश्न उठाया नहीं जा सकता, वहीं वे अपने सिद्धांतो के प्रति इमानदार भी थे.
गाँधीजी को भारत का राष्ट्रपिता मैं नहीं मान सकता. हर पद को बनाना और भरना अनिवार्य नहीं. जैसे हिन्दु धर्म का कोई प्रवरतक नहीं वैसे ही भारत का कोई बाप नहीं.
आप लोगों के दिमाग में घुन लग गए हैं।
गांधीजी का चरित्र-हनन करके अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ऊपर उठाना ये आजकल का फैशन है.शायद आप लोग अपने आपको नेताजी सुभाष (जिन्होंने गांधीजी को राष्ट्रपिता का नाम दिया),रवीन्द्रनाथ टैगोर(जिन्होंने गांधीजी को महात्मा की संज्ञा दी)और भगत सिंह(जिन्होंने महात्मा गाँधी को सदैव पितातुल्य आदर दिया) से ज्यादा बुद्धिमान और ज्ञानवान समझने लगे हैं.आप सभी को सद्बुद्धि मिले.
Gandhi ji ko bharat hi nahi, varan South Africa bhi Rastrapita manta hai.Gandhi ji ko Amerika ke President Barak Obama apna adarsh mante hai. Duniya me rangbhed ke khilaf Gandhi ji ne jung ki. South Afrika me rangbhed Gandhi ji ke karan hi khatam ho saka. South Afrika Gandhi ji ko aik sant manta hai. World ke Historian Gandhi ji ko aik great Leader mante hai. South Afrika ke log Gandhi ji ke liye abhar prakat karte hai ke south afrika me gore-kale ka bhed khata huva. Mahashakti jaise kamjor dimagwalo aur sankirn logo ko ye sab bate sochni chahiye. A.H.Quadri(Lecturer,History]
Gandhi ji ko bharat hi nahi, varan South Africa bhi Rastrapita manta hai.Gandhi ji ko Amerika ke President Barak Obama apna adarsh mante hai. Duniya me rangbhed ke khilaf Gandhi ji ne jung ki. South Afrika me rangbhed Gandhi ji ke karan hi khatam ho saka. South Afrika Gandhi ji ko aik sant manta hai. World ke Historian Gandhi ji ko aik great Leader mante hai. South Afrika ke log Gandhi ji ke liye abhar prakat karte hai ke south afrika me gore-kale ka bhed khata huva. Mahashakti jaise kamjor dimagwalo aur sankirn logo ko ye sab bate sochni chahiye. A.H.Quadri(Lecturer,History]
Hello My Friend Mahashakti,
Tum bahut intelligent lagate ho..tumhare undar ek josh hai...us josh ko yadi tum sahi disha de do ge to pata nahi kitne logo ka bhala ho jayega...maine tumhare kuch blogs padhe..mai ek samanya aadmi hoo...koi mahashakti nahi..tumhare sare blogs mai muze laga ki tum jo ho chuka hai..jisko hum badal nahi sakte..uske piche jyada chintit ho..bajay ki jo ho raha hai...tajmahal kisne banaya..ya vaha mandir tha ki masjid isse kya farak padta hai..bajay ki isse ki vaha bahar log bhikh to nahi maang rahe..kya vaha chote bachhe bhooke sote hai...kya logo ke pass acchi jindagi hai...ye life to bahut choti hai...kuch dino ke sab mehman hai...phir hum kyo in sab bato me apni jindgai kharab kare..aur ye kyu na soche ki ye goverment aaagra me sadke kyo nahi bana rahi...tajmahal to bada sundar hai..par aas paass gandagi kyu hai...yahi humari urza ka sahi upyog kare..to shankar bhagvan bhi khus ho jayegne...ki usske bachho ka koi to khayal kar raha hai..to phir tum hi shankar ho jaoge...
गांधी जी के कट्टर भक्त , भारत सरकार और कुछ हमारे अपने भारतवासी जो भारत की संस्कृति और इतिहास से अनभिज्ञ हैँ गांधी जो को राष्ट्रपिता कहते हैं । भारत एक सनातन राष्ट्र हैं तथा यहाँ की संस्कृति अरबों वर्ष पुरानी हैं , इससे पुराना राष्ट्र विश्व में कोई दूसरा नहीं हैं तो इसका पिता अट्ठारहवीं - उन्नीसवीं ईसाई सदी में कैसे पैदा हो सकता हैं ? वस्तुतः राष्ट्रपिता की अवधारणा पाश्चात्य मैकालेवाद की देन हैं , भारत की संस्कृति तो माता भूमि पुत्रोहम पृथ्वियां पर विश्वास करती हैं और अपने आप को इसका पुत्र मानती हैं तो फिर गांधी या कोई भी इस राष्ट्र का पिता कैसे हो सकता हैँ । ज्यादा जानकारी के लिए www.satyasamvad.blogspot.com पर लिखा गया लेख " क्या गांधी जी राष्ट्रपिता हैँ ! " पढा जा सकता हैं ।
कुछ मित्र बोलते हैं कि गांधी को केवल भारत ही नहीं अफ्रिका जैसे देश भी महानायक मानते हैं अतः हमें भी गांधी जी का अन्ध सम्मान करना चाहिये । मैं अपने उन प्रिय मित्रों से कहना चाहूँगा कि विश्वस्तर पर सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में ओसामा बिन लादेन की भी गिनती होती हैं तो क्या हम लादेन को महानायक कहेंगे ! जब लादेन को महानायक नहीं कहा जा सकता तो आधुनिक भारतीय राजनीति में विभाजनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के जनक और विश्व की सबसे बडी त्रासदी दो धर्म - दो देश के आधार पर भारत विभाजन ( जिसमें 25 लाख हिन्दू , सिक्ख और मुस्लिमों की हत्याऐ हुई ) कराने वाले व्यक्ति को महानायक बनाने का कुचक्र क्यों रचा जा रहा हैं !!!
आप के मन में यह सवाल उठना गलत नहीं है लेकिन यह किसी काम का नहीं है। जिन लोगों ने गांधी के नाम पर अपनी रोटी सेंकी है उनका संबंध गाँधी से कुछ नहीं है। बस नाम से कोई गाँधी नहीं हो जाता।
वैसे राष्ट्रपिता तो आपमें या मुझमें से किसी ने कहा नहीं था। यह काम नेताजी का है और उन्हीं से पूछते कि क्यों कहते हैं ऐसा?
लेकिन आप गांधी जी पर जो आरोप लगा रहे हैं उनमें उनका हाथ तो है ही नहीं। उनके मरने के बाद किसी ने उनके रास्ते पर चलने की कोशिश की ही नहीं। बस ढोल पीटते रहे। इसमें बेचारे गाँधी का क्या दोष? उन्होंने थोड़े ही कहा था इतिहासकारों से कि मेरा नाम लिखकर और शहीदों का नाम मिटा दो। ये तो कमीनापन है उन चोरों का जिन्होंने यह सब किया। मेरे लिए शहीद और गाँधी दोनों महत्वपूर्ण और सम्माननीय हैं।
पता नहीं किस गाँधीवादी की बात लोग कर रहे हैं? कौन सा गाँधीवादी देखा आपने या लोगों ने? गाँधी पर बहस करनी हो तो चैट पर आइये।
लेकिन आप लोगों में बेवजह यह सब बात उठा रहे हैं।
''गांधी जी के कट्टर भक्त , भारत सरकार और कुछ हमारे अपने भारतवासी जो भारत की संस्कृति और इतिहास से अनभिज्ञ हैँ गांधी जो को राष्ट्रपिता कहते हैं । भारत एक सनातन राष्ट्र हैं तथा यहाँ की संस्कृति अरबों वर्ष पुरानी हैं , इससे पुराना राष्ट्र विश्व में कोई दूसरा नहीं हैं तो इसका पिता अट्ठारहवीं - उन्नीसवीं ईसाई सदी में कैसे पैदा हो सकता हैं ? वस्तुतः राष्ट्रपिता की अवधारणा पाश्चात्य मैकालेवाद की देन हैं , भारत की संस्कृति तो माता भूमि पुत्रोहम पृथ्वियां पर विश्वास करती हैं और अपने आप को इसका पुत्र मानती हैं तो फिर गांधी या कोई भी इस राष्ट्र का पिता कैसे हो सकता हैँ । ज्यादा जानकारी के लिए www.satyasamvad.blogspot.com पर लिखा गया लेख " क्या गांधी जी राष्ट्रपिता हैँ ! " पढा जा सकता हैं ।
31 March, 2011 15:52''
इतनी घटिया टिप्पणी करने की हिम्मत कैसे की विश्वजीत ने!
यह टिप्पणी नेताजी को मैकालेवादी बताती है। यह बताती है कि टिप्पणीकार निष्पक्ष नहीं किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है।
इतना तो लगने लगा है कि आपको गाँधी जी से नफ़रत सी है और भाजपा या संघी सोच भी है। बुरा मत मानिएगा। मैं कांग्रेस और भाजपा दोनों को महाघटिया मानता हूँ। आप भी गाँधीविरोधी फैशन के शिकार से दिख रहे हैं।
श्री चंदन कुमार मिश्र जी गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि सर्वप्रथम कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दी थी , नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने तो केवल उसकी पुनर्नावृत्ति की थी ।
मैं गांधी जी के ग्राम स्वराज का तो समर्थक हूँ , लेकिन गांधी जी द्वारा आधुनिक भारतीय राजनीति में पैदा की गई विभाजनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की नीतियों का विरोधी हूँ ।
कोई भी सच्चा देशभक्त गांधी तो क्या किसी को भी इस देश का राष्ट्रपिता नहीं मान सकता , क्योंकि भारत एक सनातन राष्ट्र है और सनातन राष्ट्र का कोई पिता नहीं हो सकता ।
मैं संघ , भाजपा अथवा कांग्रेस के मन्तव्य का शिकार नहीं हूँ , यह मेरा निश्पक्ष विचार हो गांधी जी के जीवन - चरित्र व दर्शन के गहन अध्ययन के बाद निकला है ।
विश्वजीत सिंह,
तुम चाहे कितने भी खम्बे नोच लो सारा राष्ट्र गांधी को राष्ट्रपिता मानता था,है और रहेगा. अब तो आलम ये है बच्चू कि तुम्हारे वैचारिक बाप 'गोडसे' की औलादें भी गाँधी को राष्ट्रपिता मानती हैं.विश्वास न हो तो संघ,वीएचपी और बीजेपी के शीर्ष नेताओं के हाल में दिए गए बयान सुन लो. ;-)
गांधी को राष्ट्रपिता कहा जाये अथवा नही यह आज एक महत्वपूर्ण प्रश्न है... गांधी को राष्ट्रपिता उन लोगो ने धोषित किया जो गांधी की चाटुकारिता मे लगे थे और गांधी की कारण उनकी रोजी रोटी चल रही थी। नेहरू को मनमर्जी करनी हुई तो गांधी लाठी का सहारा लिया...कांग्रेस मे लोकतंत्र की रेड़ गांधी ने उस समय ही मार दी जब गांधी ने कहा कि पट्टभिसीता रमैया की हार को अपनी हार घोषित किया था और और गांधी की औकात को तत्कालीन काग्रेसी सदस्यो ने नेताजी को जीता कर बता दी थी। कहा जाता है कि एक म्यान मे दो तलवार नही रह सकती है जबकि एक तरवार बिना काम की सिर्फ बातूनी हो,इसलिये नेताजी ने कांग्रेस को गांधी को सौपकर नया रास्ता चुनना उचित समाझा। उस गांधी को राष्ट्रपिता की बात किया जाना हस्यास्पद होगा जिस गाधी का लड़का हरीलाल गांधी अपना पिता न मानते हो।
गांधी क्या है और क्या थे वह किसी से छिपा नही है..गांधी रहस्य के नये नये पन्ने नित खुल है...जिससे गांधी का नेहरू प्रेम भी उजागर हो रहा है।
महाशक्ति जी गांधी की ये वैचारिक सन्ताने भारत की सांस्कृतिक अवधारणा को जाने बिना या जानने के बाद भी गांधी को राष्ट्रपिता कहती ही रहेगी और भारत माता का अपमान करती रहेगी ।
वीर गोडसे को पानी पी - पी कर गाली देने वाले मित्रों ने क्या कभी सोचा है कि गोडसे जो की बचपन से ही जाति - पाति , छुत - अछूत आदि कुरूतियों का विरोधी एक सच्चा समाज सुधारक था , हिन्दू राष्ट्र समाचार पत्र का यशस्वी संपादक था , अत्याचारी निजाम हैदराबाद के विरूद्ध आर्य समाज के आन्दोलन में हैदराबाद सत्याग्रह की टोली का नेतृत्वकर्त्ता था , हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का समर्थक था , नेहरू की मैकालेवादी मानसिकता का विरोधी होने पर भी नेहरू की भारत के उद्योगीकरण करने की नीतियों का समर्थन कर्त्ता था और गांधी का सम्मान करने वालों में भी अग्रिम पंक्ति में था । तो क्या कारण रहे की गोडसे जैसे अहिंसक व्यक्ति को कलम छोडकर रिवाल्वर थामनी पडी और गांधी वध का अपयश अपने ऊपर लेना पडा ?
मित्रों हमे अपने विचार किसी संगठन , दल अथवा पार्टी की विचार धारा पर नहीं बल्कि सच्चाई को जानकर तथ्यों के आधार पर रखने चाहिए । आगे आपकी इच्छा ......
महाशक्ति और विश्वजीत जी,
मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं कि मेरे लिखे पर किसी ने जवाब भी दिया है। यह संयोग है कि मैं खुद यहाँ आ गया।
http://www.hindi.mkgandhi.org/g_hatya.htm पर प्रकाशित तथ्यों का खंडन करें।
http://www.hindi.mkgandhi.org/faqs/faq.htm पर प्रकाशित बातों का भी खंडन करें।
इतना तय है कि गोडसे एक पागल और सनकी था। उसका बयान मैंने पढ़ा है। गाँधी-वध क्यों देखा है। वह किताब बताती है कि गोडसे धार्मिक उन्मादी के सिवाय और कुछ नहीं है भले ही वह देशभक्त हो लेकिन उसकी सनकी को अच्छा नहीं कहा जा सकता।
विश्वजीत जी,
आप पहले उपरोक्त दोनों लिंकों का खंडन करें वह भी तर्कों और तथ्यों के साथ। तब बात आगे बढ़ेगी।
महाशक्ति जी,
यह बिलकुल अनावश्यक प्रश्न है कि कौन राष्ट्रपिता है और कौन नहीं। गाँधी ने कभी अपने नाम में खुद से महात्मा नहीं लगाया था। बस एक बार बैंक से संबन्धित काम में जहाँ अपरिहार्य स्थिति थी वहीं दस्तखत में महात्मा लिखा वरना वे मोहनदास करमचन्द गाँधी ही लिखते थे।
मैं जानना चाहता हूँ कि विश्वजीत जी ने गाँधी पर गहन अध्ययन और चिन्तन कैसे किया और क्या-क्या अध्ययन किया। गाँधी को पूरी तरह पढ़ने के लिए ही कम से कम 3500 से 4000 घंटे चाहिए क्योंकि गाँधी के सम्पूर्ण वांगमय में लगभग 55000 पृष्ठ हैं और फिर उनके उपर जब आप आरोप लगाते हैं और गोडसे को वीर कहते हैं तो गाँधी के उपर कम से कम बीस-तीस किताबें और पढ़नी पड़ेंगी यानि कुल मिलाकर कम से कम 60-70 हजार पृष्ठों आपने पढ़ लिया? ये तो अध्ययन हुआ और फिर चिन्तन का मतलब तो हवाई जहाज चलाना नहीं होता। उसके लिए इससे भी ज्यादा समय लगाना होगा। इसके अलावा भगतसिंह हैं, चंद्रशेखर आजाद हैं , नेताजी हैं और सब ले-देकर आपको कम से कम 10-15000 घंटे तो खर्च करने ही पड़ेंगे। यानि अगर आप रोज पाँच घंटे भी पढ़ते हैं तब 6-7 साल तो सिर्फ़ इन्हीं लोगों को पढ़ने में निकल जाएंगे।
आपके अनुसार गाँधी जी को राष्ट्रपिता टैगोर ने कहा फिर नेताजी ने दुहराया। साल मालूम होगा कस्तूरबा के मरने पर 1944 में नेताजी ने राष्ट्रपिता क्यों कहा? यह साल तो कांग्रेस से मतभेद और आजाद हिन्द फौज के गठन के बाद का है।
क्या आप बता सकते हैं कि नेताजी को अब क्या फायदा होनेवाला गाँधी जी से? या यह बताइए कि बापू नाम की किताब लिखनेवाले दिनकर तो वीए रस के कवि थे, फिर क्यों लिखी बापू?
सुभाष चन्द्र बोस ने खुद को आजाद भारत का राष्ट्रपति घोषित कर रखा था तो वे सत्ता के लालची हो गए? आप सब कुछ नहीं सिर्फ़ गाँधी विरोधी आन्दोलन चलाने की कोशिश कर रहे हैं? पिछली बार मैंने गाँधी जी पर और सुभाष चन्द्र बोस पर जो सवाल उठाए थे, उनका जवाब अभी तक किसी ने नहीं दिया।
वीर गोडसे पर सवाल खड़ा कर लिया आप सबने लेकिन मेरे सवाल जो गाँधी-सुभाष-भगत पर हैं उनके जवाब दीजिए तब आगे बात होगी। भगतसिंह के बारे में मैं कह चुका हूँ वे नेहरु के प्रशंसक हैं और सुभाष के उतने प्रशंसक नहीं हैं। सबूत चाहिए तो मिल जाएगा। सम्पूर्ण दस्तावेज हैं भगतसिंह के, उसमें से दिन भी बता दूंगा।
और भगतसिंह ने जो बम फेंका था वह भी कोई मौलिक सोच नहीं थी। आप खुद पढ़ और जान लें कि फ्रांस में यह घटना हो चुकी थी। उसी से प्रेरणा लेकर भगतसिंह ने भी बम फेका था।
आप सब एक फालतू सवाल के पीछे पड़े हुए हैं और उसे महत्वपूर्ण बता रहे हैं। उतना शोर मचाइए कि भारत का अंतरराष्ट्रीय नाम भारत हो, अंग्रेजी जड़-मूल से खत्म हो लेकिन आप सब गाँधी-गाँधी कर रहे हैं। वे तो बेचारे मर गए और और आप सब परेशान हैं उनको लेकर। देश के अन्य सवालों को हल करने की बजाय अपना समय मत खराब करिए राष्ट्रपिता में।
मेरे सभी सवालों के जवाब के लिए गाँधी पर जितने आलेख हैं उन्हें देख लें और जवाब दें तब आगे नहीं तो सब बकवास है……
गांधी को राष्ट्र पिता की उपाधि सुभाषचंद्र ने दी जिसे जनमानस ने स्वीकृति दी , जो बात लोकमन से नि: सृत है उस पर आपत्ति क्यों ?
क्या इसलिए कि राष्ट्रपिता की उपाधि की संगतता आपकी राष्ट्र की अवधारणा के साथ समायोजित नहीं हो पाती ।
सुभाष ने गांधी को राष्ट्रपिता इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने भारतीय राष्ट्र को पुर्नव्याख्यायित किया । भारतीय जनता को (पुर्न) संगठित करने में उनकी भूमिका अप्रितम थी ।
क्या आपको इससें इन्कार है ?
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ハゲ治療をしたいと内心では思いつつも、遅々として行動が伴わないという人が稀ではないようです。だけど放置しておけば、そのしっぺ返しでハゲは悪化してしまうことだけははっきりしています。
日に抜ける髪の毛は、数ほん~200ほん前後と指摘されていますので、抜け毛の数そのものに頭を痛めることはあまり意味がありませんが、短期の間に抜ける数が一気に増加したという場合は要注意サインです。
जब तुम अपना नाम वनमानुष रख चुके हो तो क्या जबाब दें
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