मैने आदरर्णीय XYZ को लेकर एक पोस्ट लिखी थी, इस लेख को लेकर मेरा उद्देश्य किसी को दोष देना या चोट पहुँचाना नही था। किन्तु मेरे द्वारा XYZ जी को टिप्पणी के माध्यम से इस लेख के बारें मे सूचित करने पर जो टिप्पड़ी आई, वह मुझे खल गई ओर दर्शा गई कि मै अपराधी हूँ, उनकि द्वारा टिप्पणी जो क्षमा नामक शब्द प्रयुक्त हुआ है वह हम छोटों को फिर कभी अपनी बात बड़ों के सामने रखने में हिचक पैदा करता है। हम लेखन से इसलिए जुडें है कि हम आपस में संवाद खड़ा कर परिष्कृत बाते सामने लाये किन्तु बड़ों द्वारा छोटों के समक्ष क्षमा आदि शब्द हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते है कि अब दोबारा मत लिखना।
मेरा यह यह मानना है कि हमें एक लेखक की भातिं आपस में संवाद खड़ा करना चाहिए, किन्तु वरिष्ठों द्वारा इस प्रकार के वचन हमें लज्जित कर देतें है। मेरा सभी वरिष्ठों से निवेदन है कि लेखनी की इस तरह अनादर नही करना चाहिए। और कम से कम छोटों से इस प्रकार के कटु वचनों को बोल कर संवाद के माध्यम को बंद होने से बचाइऐं।
मेरा यह यह मानना है कि हमें एक लेखक की भातिं आपस में संवाद खड़ा करना चाहिए, किन्तु वरिष्ठों द्वारा इस प्रकार के वचन हमें लज्जित कर देतें है। मेरा सभी वरिष्ठों से निवेदन है कि लेखनी की इस तरह अनादर नही करना चाहिए। और कम से कम छोटों से इस प्रकार के कटु वचनों को बोल कर संवाद के माध्यम को बंद होने से बचाइऐं।
मेरा (सविनय) अनुरोध है कि
जवाब देंहटाएं१. लेखकों को वरिष्ठ और कनिष्ठ के खाँचों में न डालें। लेखक की (प्रकाशित) आयु का लेखन से बहुत कम लेना देना होता है।
२. यदि किसी अन्य द्वारा छेड़े गए विषय पर चर्चा करनी हो तो विषय को संबोधित करते हुए चर्चा करें, लेखक को संबोधित करते हुए नहीं।
आलोकजी ने सही कहा है.
जवाब देंहटाएंऔर बन्धू आप भी अब आगे बढ़िये. अन्य विषयों पर लेखिये. लोग तो कहेंगे, लोगो का काम है....कहना.
ठिठक गए??
जवाब देंहटाएंयदि हां तो फ़िर ठिठके ही रह जाओगे!!
शुभकामनाएं
प्रमेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंसुनील जी द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द 'क्षमा' शायद औपचारिकता दर्शाता है. इसे लज्जा भाव से देखना उचित नहीं. लेखन में वरिष्ठता की जहाँ तक बात है, तो शायद आप सुनील जी के समकक्ष हों, या उनसे पुराने हों. इसलिए ऐसी बातों को मन में न लाते हुए अपने सिद्धांतों को लेकर लेखन का कार्य करते रहें.
आपकी लेखन शैली वैसे ही बहुत बढ़िया है. लेखन के लिए आपके विषय असीम हैं. एक छात्र के रूप में बातों को देखना शायद आपके लेखन को और परिष्कृत करता है. आशा है, आप अपने लेखों से हम सब को आगे भी अभीभूत करते रहेंगे.
आप ने बिल्कुल सही कहा है प्रेमेन्द्र भाई. और मैं मिश्राजी की बात से भी सहमत हूँ. आप तो बस इन सब बातों की फिक्र छोड़ कर अपनी लेखनी का कमाल दिखाते रहें और ब्लॉग-जगत मे धमाल मचाते रहे. और कभी कभी हमारी पोस्ट पर भी टिपियाते रहे.
जवाब देंहटाएंलेखन से उम्र का क्या लेना देना?
जवाब देंहटाएंहो सकता है आपकी कोई पोस्ट सुनीलजी से बढ़िया हो जाये या सुनीलजी की किसी और वरिष्ठ से।
इसलिये आप आलोकजी की बात का अनुसरण करते हुए बस लिखते जायें...
हर बात को दिल से लगाना तो जरुरी नहीं ना। हो सकता है "क्षमा" शब्द में कोई और मन्तव्य ना रहा हो।
जवाब देंहटाएंकर्म करिये बस.............
प्रेमेंद्र, कई दिनों के बाद तुम्हारे चिट्ठे पर आने का मौका मिला पर पढ़ कर हैरान सा हो गया, समझ में नहीं आया कि क्या कहा जाये. कुछ भी कहूँ तुम्हें नाराज कर देता हूँ हालाँकि लिखने का उद्देश्य उल्टा ही हो. पिछले चिट्ठे पर माँगी क्षमा केवल तुमसे नहीं थी, उन सब लोगों से भी थी जिन्होंने तुम्हारे चिट्ठी पर टिप्पणी लिख कर तुम्हारी बात से सहमति जतायी थी. दोबारा तुम्हारे चिट्ठे पर नहीं आऊँगा, तुम्हे मेरी शुभकामनाएँ.
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