आज मुझे अपने ब्लॉग लेखन से काफी निराशा हुई,इससे ज्यादा किसी के लिये खराब बात क्या होगी जो स्वयं से निराश हो। जैसा कि मैंने पिछले लेख में कुछ लिखा था और मैंने जिस कारण से लिखा, परिणाम ठीक 180 अंश विपरीत मिला। परिणाम कुछ भी निकला, किन्तु तो निकला।
मेरी इस पोस्ट में प्रथम से लेकर अंत तक जितनी भी टिप्पणी रही, मैने हर टिप्पणी के पीछे अपने लेख को दो दो बार पढ़ा और टिप्पणी के भाव को समझने की कोशिस की, किन्तु मै असफल रहा।
मै बात को ज्यादा विस्तार नहीं दूंगा, अब कहे जाने योग्य कुछ नही है। किन्तु इतना जरूर प्रण करता हूँ कि अब मै किसी ब्लागर के बारे में कभी नहीं लिखूँगा। इस कड़ी मे यह मेरी अंतिम पोस्ट है।
पिछले सभी संबंधित पोस्टों में से, मै दिये गये नाम हटा रहा हूँ।मित्रवत व्यवहार तक नामों का उल्लेख संभव रहेगा, किन्तु अब ब्लॉगर के रूप में मेरी पोस्ट में किसी का नाम नहीं आएगा।
मेरी इस पोस्ट में प्रथम से लेकर अंत तक जितनी भी टिप्पणी रही, मैने हर टिप्पणी के पीछे अपने लेख को दो दो बार पढ़ा और टिप्पणी के भाव को समझने की कोशिस की, किन्तु मै असफल रहा।
मै बात को ज्यादा विस्तार नहीं दूंगा, अब कहे जाने योग्य कुछ नही है। किन्तु इतना जरूर प्रण करता हूँ कि अब मै किसी ब्लागर के बारे में कभी नहीं लिखूँगा। इस कड़ी मे यह मेरी अंतिम पोस्ट है।
पिछले सभी संबंधित पोस्टों में से, मै दिये गये नाम हटा रहा हूँ।मित्रवत व्यवहार तक नामों का उल्लेख संभव रहेगा, किन्तु अब ब्लॉगर के रूप में मेरी पोस्ट में किसी का नाम नहीं आएगा।
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5 टिप्पणियां:
प्रमेन्द्र भाई,
आप मूलतः एक कवि का ह्रदय रखते हैं. कवि-ह्रदय को द्रवित होने में समय नहीं लगता. इसलिए आपके इस पोस्ट में लिखी गई बातों को समझा जा सकता है. लेकिन बंधु, एक बात मेरी भी मानिए और इस तरह की प्रतिज्ञा तोड़ दीजिये. एक-दूसरे के बगैर चिट्ठाजगत कैसे आगे बढ़ेगा? और आपकी गिनती तो प्रतिष्ठित चिट्ठाकारों में होती है. वरिष्ठ लोगों पर नए लोगों को रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी है.
प्रमेन्द्र जी,
मैं भी शिव कुमार जी की बात से सहमत हूँ. आप अपने इस निर्णय पर पुनः सोचें. ये हम सब के लिए अच्छा रहेगा. खासकर मुझ जैसे नए चिट्ठाकार के लिए जिसे वरिष्ठ लोगों के सहयोग की नितांत आवश्यकता रहती है.
देखो बन्धु क्षोभ होना और उसे झाड़ कर अलग हटाना दोनो अनुभव करने चाहियें। मेरे ख्याल से मिश्र जी और बालकिशन जी सही कह रहे हैं।
श्री शिवकुमार मिश्र जी, श्री बाल किशन जी व श्री ज्ञान दत्त जी-
मैने यह अनायास नही किया, आज प्रात: पिछली एक पोस्ट हुई एक टिप्पणी को पढ़कर ठगा रहा गया। यह मेरी पहली पोस्ट नही है कि भद्र जनों की टिप्पणी ने आहत न किया हो। जहॉं तक वरिष्ठता का प्रश्न है तो ब्लाग पर लेखन से ज्यादा लेखन पर जोर देने वाले को वरिष्ठ कहा जाना चाहिऐ। मैने अभी तक जितना भी लिखा है, वह मात्र कचड़ा के अतिरिक्त कुछ भी नही है। और कोई कचड़ा संग्रह करके वरिष्ठ नही बनता है, वरिष्ठता अनुभव से आती है। जो वरिष्ठता की बात है तो मेरे बाल पकने के प्रवृत्ति के दौर में अपने आप मिल जायेगी। जब मैने अपनी पिछली दो पोस्ट को लिखा था तो 20 वर्ष का था और आज 21 का हो गया हूँ।और मेरे लिये मेरे से उम्र में बडें ही वरिष्ठ है।
चूकिं मेरा उद्देश्य ब्लगारों के मध्य सम्वाद कायम करने का था किन्तु जहॉं पर "क्षमा" "माफी" का प्रयोग हो जाता है वही संवाद खन्म हो जाता है। जिन लेखक का मैने उल्लेख किया था वह अपने बात कायम थे ठीक था नही थे तो कह देते मै आपसे सहमत हूँ, उसमें माफी मागने जैसी कोई नही थी। जो मुझे खराब यह लगा कि मैने लिखा और मेरे उम्र के दोगूने उम्र का व्यक्ति मुझसे या मेरे लेख पर क्षमा मॉंगे यह मुझे तो नैतिक रूप से शोभा नही ही देता है।
ब्लागरों पर लिखना मेरा पंसदीदा विषय रहा है किन्तु इसका त्याग ही ठीक होगा। यहॉं तक एक भाई ने कह दिया है कि दूसरे पंगेबाज क्यो बन रहे हो? विषय बहुत है बस आप सबका स्नेह मिलता रहे। जब भी मेरी किसी को भी मदत चाहिए किसी भी प्रकार की मै हमेशा हाजिर हूँ।
प्रमेन्द्र जी,
आपकी जर्रानवाजी के लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुजार हूँ. दूसरी बात कि आपकी तत्क्षण प्रेषित टिप्पणी और मेरे ब्लॉग का आपके ब्लॉग पर प्रसम्पर्क देना मेरे जैसे नवब्लॉगर के लिए पुरस्कार स्वरूप है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
अचानक याद आया कि आपके ब्लॉग पर पहले भी आ चुका हूँ, जब आपकी एक रचना "सेक्सी" हिन्दयुग्म से स्थानच्युत हुई थी ।
अस्तु, आशा है हमारा यह "नूतन सम्पर्क" चिरसम्पर्क में बदल जाएगा.
सधन्यवाद......
मणि
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