नरेन्द्र मोदी एक नाम होकर एक मंत्र हो गया है। न सिर्फ समर्थक अपितु असमर्थक भी अपने आपको मोदी महिमा के गुण गान से नही रोक पा रहे है। क्या बात हो गई कि एक व्यक्ति को कहा जा रहा है कि वह व्यवस्था पर भारी पड़ रहा है? अगर एक व्यक्ति पूरी व्यवस्था पर भारी पढ़ रहा है तो उसमें कुछ न कुछ तो बात जरूर होगी।
मै बात करूँ तो मै मोदी को तब से जानता हूँ जब वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हुआ करते थे, और मै मोदी को कभी पसंद नहीं करता था। जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की ताजपोशी हुई तो मुझे कतई यह नेता अच्छा नहीं लगता था। कारण था कि मुझे मोदी की सूरत पसंद नही थी किन्तु बाद सीरत का कायल हो गया। आज यह नेता मुझे ही नहीं पूरे देश के युवाओं की आंखों का तारा बन गया है। जो भी है वह मोदी के गुणगान कर रहा है। और होना भी चाहिए।
गोधरा के बाद जो कुछ गुजरात में हुआ वह वक्त की जरूरत थी। क्योंकि गोधरा में जिस प्रकार 59 कारसेवक जिन्दा जलाये गये वो दृश्य दिल दहला देने वाला था। क्या हिंदू के वोट के तराजू में हिन्दू के प्राणों का मोल नहीं होता है? इन राजनीतिज्ञों की चालों से तो यही लगता है। गुजरात दंगों के समय जो हाय तौबा मची उससे तो यही प्रतीत होता है कि राजनीति में वोट की ही कीमत है, तभी जाहिरा और शराहब्बुदीन का दर्द दिखता है किन्तु वही जलती हुई ट्रेन और सिख का खुलेआम कत्लेआम नहीं दिखता है। क्या वह दृश्य सोचा जा सकता है कि एक हज यात्रा की बस को जला दिया जाता? यह तो केवल एक प्रश्न है जबकि दृश्य आपके सामने ही प्रकट कर देते है। आगरा में बस की टक्कर से जिस प्रकार एक मुस्लिम छात्र की मौत हुई, उसके जवाब में आगरा में कई इलाकों की हिन्दू दुकानों को निशाना बना कर लूट लिया गया, तथा इलाहाबाद में कुरान के पन्ने फाड़े जाने के षड्यंत्र का खुद ही पर्दाफाश हो गया किन्तु इसके परिणाम स्वरूप अगर नुकसान हुआ तो सिर्फ हिन्दुओं का कारण है कि सेक्युलर पार्टियों की नज़र मे हिन्दू केवल जाति में बटी हुई नाजायज औलाद है जब मन चाहा बांट कर वोट ले लिया। मऊ की घटना सभी को याद है कि मुलायम की शह पर मारे गये तो सिर्फ हिन्दू। अगर बेस्ट बेकरी की बात करें तो उसमें मरने वाले हिन्दू ही थे। जाहिरा की आना कानी काफी सच कहती है कि सच क्या था?
आज उक्त बात यह बताती है कि गुजरात के हिंदुओं ने बता दिया हिंदुओं की ओर उठने वाली आंखें नोच ली जायेगी तो गलत क्या है? इतिहास गवाह है कि भाजपा के शासन के पहले जब कांग्रेस का शासन था तो लगातार 10 वर्षों तक गुजरात साम्प्रदायिक दंगे हुए किंतु गुजरात दंगों के बाद पिछले साल 5 सालों में कोई दंगा नहीं हुआ इस मामले में एक वरिष्ठ पत्रकार कहते है कि गुजरात दंगों के बाद मुसलमान सहम गया है। अर्थात अगर दंगों की वजह से दंगे बंद है तो क्यो न एक बार समर छिड़ जाने दो, कि दंगे हमेशा के लिये बन्द हो जाये? अगर गुजरात में आज समरसता है तो इसका कारण केवल और केवल मोदी है जो गुजरात में समाज के संतुलन को बरकरार कर दिया है। नही तो समाज के मुट्ठी भर लोग 85 प्रतिशत वाले भाग पर भारी पड़ते थे। और समय समय पर वैमन्यस्य फैलाते थे।
यही कारण है कि आज यत्र सर्वत्र मोदी मंत्रोउच्चरण हो रहा है। और मोदी भाजपा पर भारी हो गये है। और यदि मोदी भाजपा पर भारी है तो कौन पिता का ख्वाब नहीं होता है कि उसके बेटे उससे बड़ा नाम हो? अब वह दिन दूर नहीं जब मोदी के नेतृत्व में दिल्ली के शासन में भगवा लहराएगा। अब आज मोदी की प्रशंसा क्यो होनी चाहिए यह आप खुद तय कर सकते है ?
Share:
1 टिप्पणी:
मोदी गुजरात नहीं बल्की पूरे हिंदुस्तान के राष्ट्रवादियों के अगुआ बन चुके हैं,संभवतया सरदार पटेल ओर शास्त्री के बाद प्रथम बार हिंदुस्तान में कोई राष्ट्रवादी नेता उभरा है,जो ठोक कर सिर्फ जय जय भारत बोलता है ,
एक टिप्पणी भेजें