हिन्दी चिट्ठाकारी में कवि कुलवंत सिंह कोई आम नाम नही है, कवि कुलवंत मुम्बई स्थित भाभा परमाणु शोध संस्थान में साइन्टिफिक ऑफिसर पद पर कार्यरत है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का कद जितना बड़ा होता है, वह उतना ही विनम्र होता है। जब विनम्रता की बात आई है तो मुझे एक छोटी कहनी याद आ रही है उसका उल्लेख करना चाहूँगा।
एक बार एक राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर निकलते है, किन्तु हाथियों के झुंड के भंयकर हमले में उनकी सैनिक तिरत बितर हो जाते है। वही दूर रात्रि में एक एक दीपक की रोशनी में एक अन्धा साधू अपनी कुटिया के बाहर बैठा था। तभी एक आदमी आया बोला- ऐ सूरदास! हमारी सेना हाथी के हमले से बिछड़ गई है यहॉं आदमी तो नही आया था? साधू बोला कि हे सैनिक अभी कोई नही आया आप जाकर मेरी कुटिया में आराम करें जब कोई आयेगा तो मै अवश्य बता दूँगा, और सैनिक कुटिया में चले जाते है। फिर एक और आदमी आता है और फिर उसने हे साधु जी कह कर वही प्रश्न दोहराया। और साधु ने मंत्री शब्द का सम्बोधन कर उसे अपनी कुटिया में भेज दिया। कुछ देर पश्चात एक और आदमी आता है और वह साधू को हे महात्मन कह कर सम्बोधित किया और साधू ने उन्हे राजन कह कर सम्बोधित किया।
एक बार एक राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर निकलते है, किन्तु हाथियों के झुंड के भंयकर हमले में उनकी सैनिक तिरत बितर हो जाते है। वही दूर रात्रि में एक एक दीपक की रोशनी में एक अन्धा साधू अपनी कुटिया के बाहर बैठा था। तभी एक आदमी आया बोला- ऐ सूरदास! हमारी सेना हाथी के हमले से बिछड़ गई है यहॉं आदमी तो नही आया था? साधू बोला कि हे सैनिक अभी कोई नही आया आप जाकर मेरी कुटिया में आराम करें जब कोई आयेगा तो मै अवश्य बता दूँगा, और सैनिक कुटिया में चले जाते है। फिर एक और आदमी आता है और फिर उसने हे साधु जी कह कर वही प्रश्न दोहराया। और साधु ने मंत्री शब्द का सम्बोधन कर उसे अपनी कुटिया में भेज दिया। कुछ देर पश्चात एक और आदमी आता है और वह साधू को हे महात्मन कह कर सम्बोधित किया और साधू ने उन्हे राजन कह कर सम्बोधित किया।
साधू जी महाराज अन्धे थे किन्तु उन लोगों की वाणी के द्वारा पहचान लिया कि कौन व्यक्ति कैसा है। इसी प्रकार कुछ कवि कुलवंत जी के साथ भी मैने अनुभव किया कि उनकी बात के साथ उनका व्यक्तित्व झलकता है। शनिवार 16 फरवरी को उन्होने मुझे रात्रि 10.45 बजे अपने इलाहाबाद आगमन की सूचना दी, जैसा कि मैने पिछली पोस्ट में बताया था कि कवि कुलवंत का इलाहाबाद में सम्मानित किया है। अगले दिन अर्थात रविवार को पूरे दिन कवि कुलवंत का कार्यक्रम तय था और फोन पर ही उन्होने दोपहर 11 बजे का मिलने का समय दिया। अगले दिन मै करीब 11.15 पर उनके सम्मान समारोह स्थल पर मय साथीगण पहुँच गया,और सायं 4 बजे तक उनके कार्यक्रम मे शामिल रहा। इस दौर छोटी मोटी बाते हो जाती थी, किन्तु जो चिट्ठाकार मिलन वार्ता होना चाहिए था वह सम्भव नही हो पा रहा था। क्योकि वहॉं पहले से कार्यक्रम का सम्पदन हो रहा था और भारत के अनेको प्रान्त से कवि और साहित्यकार पधारे हुऐ थे। लगभग 3.30 बजे कवि कुलवंत को करीब 300-350 व्यक्तियों की करतल ध्वनि के बीच सम्मान से अलंकृत किया गया। एक चिट्ठाकार को सम्मानित होता देख मेरे मन को अत्यंत प्रसन्नता हो रही थी। सम्मानित होने के पाश्चात वे हमारे ( मेरे और ताराचंद्र) के पास आये और हम दोनो ने उन्हे बधाई दिया। कार्यक्रम करीब रात्रि 8 बजे तक का था हम बहुत चाहते थे कि कवि सम्मेलन में उनको सुनना किन्तु हमारे घर से बार बार मोबाइल पर बुलावा आ रहा था। और हम दोनो मित्रों ने अन्तिम भेंट समझकल उन्हे चरण स्पर्शकर पुन: इलाहाबाद भ्रमण का निमंत्रण दिया। और क्योकि इस बार उनके व्यस्त कार्यक्रम में यह नही हो सका। कवि कुलवंत की बहुत इच्छा थी परन्तु उनका कार्यक्रम बहुत व्यस्त था। हमारे मित्र तारा चंद्र ने कहा कि कवि कुलवंत को कल सुबह संगम स्नान करवा दिया जाये किन्तु तब तक हम लोग कार्यक्रम स्थल से काफी दूर हो चले थे। इसके बाद मै और ताराचंद्र काफी देर तक उनके बारे में बात करते रहे।
अगले दिन फिर कवि कुलवंत जी का फोन आया और वे कहने लगे कि स्टेशन से बोल रहा हूँ, सोचा चलते चलते नमस्कार करता चलूँ। मैने तुरंत पूछा कि आपकी ट्रेन कितने बजे कि है? उन्होने बताया कि करीब 30 मिनट में आ जायेगी और इसके आगे मुझे पता था कि स्टेशन पर 30 मिनट रूकेगी भी। मैने कहा कि आप 5 मिनट रूकिये मै आपसे मिलने आ रहा हूँ, उन्होने मना किया कि तुम्हे कुछ काम होगा, मैने कहा कि हॉं अध्ययन कर रहा था किन्तु कवि कुलवंत से मिलने का अवसर फिर जल्द नसीब होगा। यह सुनकर वे प्रसन्नता से बोले आ जाओं। मै तुरंत जैसे को तैसा भेष में मिलने पहुँच गया क्योकि समय का ध्यान रखना था, अगर टिप टॉंप होने लगता तो समय जाया जाता :) 10 मिनट के अन्दर ही मै स्टेशन पहुँच गया और हजारों की भीड़ में उनकी पगड़ी ने मुझे उन्हे पहचानने में पूरी मदद कर दी। फिर हम दोनो काफी देर तक आपसी चर्चा करते रहे। यह चर्चा इस लिये भी महत्वपूर्ण थी क्योकि कल हम लोग करीब 6 घंटे साथ होने के बाद भी कुछ बात न कर सकें थे। इसके बाद महाशक्ति, महाशक्ति समूह, मेरे पाठक संख्या, हिन्द युग्म, ब्लावाणी, श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी, श्री समीर लाल, एडसेंस, श्री अनूप शुक्ल जी, श्री अमित अग्रवाल, श्री रविरतलामी सहित कई विषयों पर चर्चा हुई।
सर्वप्रथम उन्होने महाशक्ति के बारे मे जाना कि मै उस पर क्या करता हूँ? मैने उन्हे बताया कि यह मेरा वह ब्लागर है जिसे कुछ लोगों द्वारा सामप्रदायिक ब्लाग की संज्ञा दी जाती है। (यह सुनकर वे हस पड़े और मै भी मुस्कारा दिया।) महाशक्ति समूह के बारे में, मैने बताया कि इस ब्लाग का उद्देश्य अनियमित तथा नये ब्लागरों को मंच देना है क्योकि नये और अनियमित ब्लागर जब छिटके रहेगें तो उन्हे वह प्रोत्साह नही मिल पाता है जो मिलना चाहिए, इसी लिये यह मंच बनाया गया है। यही कारण है महाशक्ति समूह में जिसे जब समय मिलता है तब लिखता है, कोई बंधेज नही है कि वो अप्रकाशित रचना ही डाले। अनियमित का नाम सुन कर वे प्रशन्नता से बोले कि अनियमित तो मै भी हूँ क्या मुझे महाशक्ति समूह में जगह मिलेगी, यह शब्द सुनकर मेरी प्रसन्नता की सीमा नही दिख रही थी, मैने कहा कि यह तो मेरे और समूह के लिये गौरव की बात होगी। उन्होने मेरे पाठको की संख्या जाननी चाहिए, मैने स्पष्टता से कहा कि मै महीने में चाहूँ लिखू या न लिखू सभी ब्लागों पर 750 से 2500 तक की औसत से महीने मे सभी ब्लागों सभी ब्लाग पर 4000 से 8000 तक पाठक आ जाते है। हिन्द युग्म पर भी चर्चा की और कभी देर तक एक दूसरे के विचारों को सुनते रहे। ब्लागवाणी के बारे में भी चर्चा हुई। अनूप शुक्ला जी के बारे में बात किया गया कि फुरसतिया वही है। ज्ञानदत्त जी के ब्लाग ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानासिक हलचल पर भी चर्चा हुई उनका पूछना था कि उनहोने इतना बड़ा नाम क्यो रखा? इसका उत्तर तो मेरे पास न था किन्तु मन में जरूर सोचा कि कभी पांडेय जी से जरूर पूछूँगा :) मैने उन्हे यह भी बताया कि समीर लाल जी भी आ रहे है, इसी स्थान पर उनसे भी मिलना होगा। उन्होने महाशक्ति समूह को और बढ़ाने की बात कही किन्तु मैने अपनी समस्या का हवाला दिया जिसमें धन भी था, इसी पर एडसेस पर बात शुरू होती है, मैने उनसे कहा कि अभी मेरे पास समय का अभाव है धन का भी, मेरी पहली प्रथमिकता होगी कि मै अपनी पढ़ाई पूरी कर वकालत पेशे से जीविकोत्पार्जन में आऊ क्योकि आज हिन्दी में इतना पैसा नही है कि हम इस पर काम कर सकें। उन्होने पूछा कि क्या ब्लाग से पैसा कमाया जा सकता है मैने कहा कि एडसेंस से ऐसा होता है और अग्रेजी में अमिल अग्रवाल एक बड़ा नाम है जैसा कि हिन्दी के कई बलागरों से सुना है किन्तु हिन्दी में रवि रतलामी का नाम आता है जिन्होने अभी तक यह बताया है कि उनका ब्राडबैंड का खर्चा निकल आता है। जहाँ तक मेरा एडसेस से मेरा तालुक है तो मुझे अपने दो साल कि ब्लागिंग में कोई उपलब्धि नही मिली है, हॉं यह जरूर कह सकता हूँ कि अगर आपके 25000 तक पाठक प्रति माह के हो तो आप कुछ उम्मीद कर सकतें है। यही कारण है कि मैने अपने महाशक्ति ब्लाग से विज्ञापन हटा भी दिया क्योकि मेरा नया टेम्पलेट की शोभा विज्ञापनो से खराब हो रही थी कहो तो अब विज्ञापनो के लिये जगह नही है।
इतनी चर्चा हो ही रही थी कि अचानक उन्होने कहा कि मै ट्रेन की स्थिति देख लूँ, यह कह कर वे देखने चले गये, लौट कर आये तो घबरा कर बोले की ट्रेन तो प्लेटफार्म नम्बर 6 पर आयेगी और छूटने में पॉच मिनट बाकी है, हम दौड़ते हुऐ प्लेट नम्बर पॉच पहुँच गये, वहॉं पहुँच कर पता चला कि ट्रेन अभी 30 मिनट और लेट है। अन्तोगत्वा मै और कवि कुलवंत जी करीब अगले 1 घन्टे तक विभिन्न मुद्दो पर चर्चा करते रहे और एक दूसरे को बेहतर जानते रहे।
अन्तोगत्वा रेल ने हमारी चिट्ठाकार मिलन वार्ता की समाप्ति की सीटी बजा दी। रेल की सीटी तथा कवि कुलवंत के चरणस्पर्श के साथ ही जल्द ही पुन: मिलने के वायदे के साथ यह भेंट वार्ता समाप्त हो गई।
महाशक्ति की 200वीं पोस्ट
आज यह बातते हुऐ खुशी हो रही है कि इस पोस्ट के साथ ही महाशक्ति ब्लाग पर आज 200 पोस्ट पूरे हो गये। यह 200 पोस्ट मेरी व्यक्तिगत उपलब्धी नही है इसे पूरे होने में श्री मानवेन्द्र जी के 3 तारा चन्द्र के 8, राजकुमार के 1 तथा मेरे 188 लेखो का योगदान है। मेरे व्यक्तिगत ब्लाग पर अन्य लेखको के लिखने का भी रोचक इतिहास है, - महशक्ति समूह के गठन से पहले वे महाशक्ति पर ताराचन्द्र और राजकुमार महाशक्ति पर लिखते थे किन्तु महाशक्ति समूह के गठन के बाद से वही के हो गये। और फिर कुछ दिनों पूर्व एक दौर ऐसा भी आया कि मै खुद करीब दो हफ्ते तक महाशक्ति ब्लाग मेरे नियत्रंण नही रहा और इसका पूरा जिम्मा मेरे भइया मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने ले लिया और उन्होने अपने स्वाभाव के विपरीत किसी ब्लाग के लिये पहली बार लेखा लिखा। मेरे ब्लाग के इस दोहरे शतक पर अपने सहयोगियों को बधाई तथा 200 लेखों के पाठको से मिले स्नेह को प्रणाम करता हूँ।
अरे आपने तो इतनी विस्तृत विवरण के साथ रोचक वार्तालाप प्रस्तुत कर दी..लेकिन इतना बड़ा प्रसंग कौन पढ़ता है बंधु..
जवाब देंहटाएंकवि कुलवंत जी को सम्मान मिलने की खुशी में बधाई। प्रमेंद्र जी आप तो बहुत भाग्यशाली निकले, कुलवंत जी मेरे पड़ोस में हैं मै रोज बी ए आर सी के सामने से निकल जाती हूं पर कभी मिलना नहीं हुआ। चलो आशा करती हूं कि अब जल्दी ही उनसे मिल पाऊंगी। आप के समूह की 200 पोस्ट पर भी आप को बधाई, लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंबधाई हो मित्र.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइतनी पठनीय पोस्ट के साथ डबल सेंच्यूरी मारी - बहुत बधाई प्रमेन्द्र!
जवाब देंहटाएंअन्तोगत्वा आपको २०० वीं पोस्ट की बधाई. :)
जवाब देंहटाएंकवि कुलवंत का सम्मान ब्लॉगजगत का सम्मान है. मैम उनसे बम्बई में मिला था. बहुत उत्साह और साथ ही विनम्रता है उनमें जो मुझ जैसे व्यक्ति के स्वागत को तत्पर थे और किया भी. उनका तो हमेशा आभारी रहूँगा.
जल्द मुलकात होगी २६ को.
प्रमेंद्र, कवि कुलवंत से मुलाकात के साथ 200वीं पोस्ट के लिए बधाई। मुझे तो 200वीं पोस्ट लिखने के लिए अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंकवि कुलवंत सिंह एक अच्छे कवि हैं।
जवाब देंहटाएं200 पोस्ट पर भी बधाई
जवाब देंहटाएं