आते आते 13 फरवरी भी निकट आ गई, इसमें 13-14 का कोई सम्बन्ध नही है। 13 फरवरी को महाशक्ति समूह के वरिष्ठ लेखक एवं कवि श्री आशुतोष मिश्र ‘मासूम’ अपने गृहनगर जमशेदपुर से दिल्ली पुरूषोत्तम एक्सप्रेस से जाने वाले थे इसकी सूचना तीन दिनों पूर्व उन्होने मुझे काल करने तीन चार दिनों पहले दी थी।
कल सुबह ही मैने उनके मोबाइल पर काल किया किन्तु कोई उत्तर नही मिला फिर मैने उनके निवास पर कॉल किया तो उनके पिताजी ने फोन उठाया और काफी अच्छी तरह से बात की और मुझे पूरी वस्तु स्थिति से अवगत कराया कि बंगलौर का सिम होने के कारण रोमिग में होने के कारण बात नही हो पा रही थी। फिर मै भी कुछ देर शान्त होकर बैठ गया कि जब बर्थ नम्बर नही पता है तो मिलना कैसे होगा। और कुछ कुछ समय पर काल करता रहा।
कल सुबह ही मैने उनके मोबाइल पर काल किया किन्तु कोई उत्तर नही मिला फिर मैने उनके निवास पर कॉल किया तो उनके पिताजी ने फोन उठाया और काफी अच्छी तरह से बात की और मुझे पूरी वस्तु स्थिति से अवगत कराया कि बंगलौर का सिम होने के कारण रोमिग में होने के कारण बात नही हो पा रही थी। फिर मै भी कुछ देर शान्त होकर बैठ गया कि जब बर्थ नम्बर नही पता है तो मिलना कैसे होगा। और कुछ कुछ समय पर काल करता रहा।
फिर शाम को अपने दिमाग की चिकरघिन्नी दौड़ई और पहुँच गया आरकुट की शरण में, क्योकि जब फोन पर आशुतोष जी से बात हुई थी तो उन्होने बताया था कि उनके बंगलौर के एमबीए के कुछ मित्र इलाहाबाद में रहते है वह उनके मिलने वाले है, आरकुट की शरण में पहुँच कर उनके मित्र अविराम जी को काल किया और पूरी वस्तु स्थिति से अवगत कराया और उन्होने मुझे ट्रेन के बारे में पूरी जानकारी दी। जानकारी पाकर मैने भारतीय रेलवे की साईट पर ट्रेन की समय देखा तो वह 6.50 पर राईट टाईम थी कि वह जंक्शन पर 7.10 पर आ जायेगी। मेरे पास अब मात्र 20 मिनट था स्टेशन पहुचने के लिये, तुरंत ही राजकुमार को फोन किया तैयार हो जाओं कहीं चलना है। राजकुमार का निवास मेरे घर से करीब 4 किमी की दूरी पर है किसी ने किसी तरह मै 10 मिनट में स्टेशन और जानसेनगंज की भीड़ को पार करते हुऐ 10 मिनट में राजकुमार के यहॉं पहुँच गया और जिन्दगी में पहली बार पाया कि राजकुमार आज समय से तैयार है, मन को प्रसन्नता हुई। फिर तुरंत पतली गली से जंक्शन की ओर निकल लिया जहॉं से जंक्शन 1 एक किमी पड़ता समय 7.12 के आस-पास हो रहे थे और ट्रेन छूटने में 8 मिनट शेष थे हम लोग किसी ने किसी प्रकार 4 मिनट में जक्शन के काफी निकट पहुँच गये पहले प्लेटफार्म नम्बर 5 दिख रहा था जहॉं पर दिख रहा था कि एक ट्रेन खड़ी है हम लोगों ने यहॉं से भी शॉटकट मारने की कोशिश की ताकि समय बचाया जा सकें और पटरी के बीचेा बीच एक निक पड़े, ताकि बाकि 3 मिनट में मिलना होगा तो मिल ही लेगें। जब पटरी से पार करने लगे तो पूर्व दिशा से एक ट्रेन आती हुई दिखी और हम उसे पार कर गये किन्तु पश्चिम की ओर मैने कोई ध्यान नही दिया, जबकि उधर से भी ट्रेन आ रही थी इसका आभास मुझे तब हुआ कि जब हम दोनो के पटरी से प्लेटफार्म पर चड़ने के 5 सेकेड के अन्दर ही पश्चिम की दिशा से आने वाली ट्रेन पटरी से गुजर गई। और उसके गुजरने के बाद पूर्व वाली ट्रेन गुजरी जिसको हम लोग देख रहे थे। उस ट्रेन के गुजरने के बाद मै तो हक्काबका रह गया क्योकि हमारे द्वारा 5 सेकेड की देरी हमारे लिये यह अन्तिम ब्लागर मीट हो सकती थी। सबसे बड़ी गलती हमारी ही थी किन्तु एक उस ट्रेन ने स्टेशन पर पहुँचने पर एक बार भी हार्न नही दिया जबकि पूरब वाली लगा तार दे रही थी। मै इस घटना को लेकर काफी देर तक सोचते रहे और पुरूषोत्तम के बारे में भूल ही गये। फिर अचानक हमें याद आया कि हम किसी अन्य उद्देश्य और देखा तो प्लेटफार्म नम्बर 5 या 6 पर जो ट्रेन है वह पुरूषोत्तम न होकर गोरखपुर बम्बई एक्सप्रेस है, हमें लगा कि ट्रेन छूट गई है। फिर स्टेशन पर एक विभागीय अधिकारी टहल रहे थे उनसे पूछा कि पुरूषोत्तम छूट गई क्या तो उन्होने के कहा कि वह प्लेटफार्म नम्बर 1 पर खड़ी है। हम चल दिये नम्बर एक की ओर, और जब समय सारणी देखा तो पता चला कि ट्रेन 30 मिनट लेट है।
आगे का हिस्सा अगले चरण में लिखूँगा कि बचे आधे घन्टे में हम दोनो ने क्या किया ? तथा 15 मिनट की संक्षिप्त ब्लागर मीट में क्या हुआ? आज जीवन में मुझे एक शिक्षा जरूर मिली कि जल्दबाजी ठीक नही होती, भगवान की कृपा है कि आज मै यह लेख लिख पा रहा हूँ। क्योकि दुर्घटना कभी बोल कर नही आती है।
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6 टिप्पणियां:
ईश्वर का लाख लाख शुक्र है. आगे से सतर्कता बरतें.
इसीलिये जगह जगह लिखा होता है दुर्घटना से देर भली..कम से कम अब इस घटना से सबक लेकर आईंदा एसी हरकतो से बचना और औरो को भी सलाह देना..भगवन का लाख लाख धन्यवाद की ट्रेन देर से आई और आप पाच सेकेंड पहले..पर अब किसी को दुबारा मौका मत देना..
वारन हेस्टिंग्स दो बार मरने से बचा, तो उसे लगा कि उसका कोई काम अभी बाकी है. यकीनन, आपको भी कुछ बड़ा काम निपटाना है अभी
बच गये मित्र! मेरी सवेरे की ट्रेन रनिंग पोजीशन में रोज एक दो वाकये होते हैं विकेट उखड़ने के।
बच गए शुक्रिया उपरवाले का!!
आईंदा ध्यान रखा करो भाई!
बच गये भगवान का शुक्र मनाईये वरना आपने तो कोई कसर नहीं छोडी थी। "कृप्या पटरी पर ना टहलें" कभी पढा या नहीं...........
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