काफी दिनों से मेरे मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि मै ब्लागवाणी की कुछ कमियों को उजागर करूँ। उन कमियों में मुझे लगता है कि पसंद ब्लागवाणी की सबसे बड़ी कमी है क्योकि यह पंसद लेख को पढ़ने से पहले आ जाती है। अर्थात जब कोई लेखे अभी तक पढ़ा नही गया है तो वह पंसद कैसे हो जाता है ? क्योकि कोई चिट्ठाजगत या नारद से पढ़ कर तो ब्लागवाणी पर पंसद करने आयेगा नही। :)
एक कल्पना मन में उपजी की पंसद की जगह अगर नापसंद का उल्लेख होता तो ब्लागवाणी पर लेखे की इस सूची का क्या रूप रेखा होती यह सोच कर मुझे हँसी आ रही है। क्योकि बहुत से लेख या लेखक ऐसे होते है जिन्हे कुछ लोग पंसद करने ही नही है, और इस प्रक्रिया में हम कह सकते है कि लेख नापंसद किया गया। मेरे मानना है कि लेख के लिये साकारात्मक वोट की व्यवस्था है तो नकारात्मक राय की भी व्यपस्था होनी चाहिऐ ताकि लेख को नापसंद के नजरिये से भी देखा जा सकें।
यह प्रयोग भी अजमाया जरूर जाना चाहिऐ क्योकि नापंसदगी का नजरिया निश्चित रूप से नया क्रान्तिकारी कदम होगा, जो मुझ जैसे कई लेखको को वाट लगाता रहेगा :)
कोई और करे या ना करे अपने स्तर पर आप आज से चुनना शुरु करिये। शायद प्रथम हम ही हों।
जवाब देंहटाएंप्रमेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपका सवाल बिल्कुल ठीक है. ऐसा देखा गया है कि लेख पढ़ा गया तीन बार, लेकिन आठ लोगों ने उसी लेख को पसंद किया है. आपने बड़ा मौलिक सवाल उठाया है.
अरे, बापरे! दो लोग पढ़ेंगे और पंगा होने पर हमें बीस नापसन्द करेंगे।
जवाब देंहटाएंभाई आपने बड़ा ही वाजिब सवाल उठाया है।
जवाब देंहटाएं