अफजल के नाम पर समाज सेविका का असली चेहरा

भारत में डायनों की कमी नही है, जो समय समय पर अपना पिचासिनी रूप दिखाने के तत्‍पर रहती है। यह जानी मानी समाज सेविका मेधा पाटेकर है जो दिल्‍ली में अफजल के समर्थन में घरने पर बैठी है।

ये भारत के लिये पूतना से कम नही है जो कृष्‍ण को मारने के लिये सुन्‍दर स्‍त्री का रूप धरती है किन्‍तु सत्‍य के आये असली चेहरा आ ही जाता है। आज अफजल के मामले में मेधा की असली चेहरा सामने आ ही गया है। जो समाज सेविका के नाम पर आंतकवादियों के साथ दे रही है।  (यह चित्र अक्‍टूबर 2006 का है)


26 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले उन्हें ही फांसी दी जानी चाहिए जो फांसी की सजा के प्रावधान का विरोध कर रहे हैं. वैसे जहाँ तक बात अफ़ज़ल की है, मैं उसके खिलाफ नहीं हूँ. दरअसल तो उसने बहुत अच्छा काम किया था. पूरे देश में एक आदमी भी ऐसा मिलना मुश्किल है (कृपया नेताओं की गिनती आदमियों में न करें) जो उसके ख़िलाफ़ हो. अगर उसकी कोशिश सफल हुई होती तो भारत का भार बहुत कम हो गया होता और हल्का होकर हमारा देश सचमुच तरक्की के रस्ते पर बड़ी तेजी से बढ़ चलता.

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  2. क्या कहें इन्हें, ये और इनके साथी छत्तीसगढ़ आते हैं जेल में नक्सलियों को समर्थन देने के आरोप मे बंद लोगों के समर्थन मे नारे लगाते है धरना देते है और चले जाते हैं बस्तर मे मारे जा रहे आदिवासियों के लिए एक शब्द भी नही निकालते मुंह से,
    कृपया इसे पढ़ें
    मन में उमड़ते कुछ सवालों पर प्रकाशित एक लेख

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  3. भाई जी सही है मै तो कहता हुँ की ऐसे दो चार अफजल गुरु और होने चाहीये| वो तो हमारे बेवकुफ जवानो के कारण असफल हो गये, ईन्हे एक बार और मौका मिलना ही चाहिये ताकी दुबारा प्रयत्न कर सके|

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  4. Afzal ko ek mauka aur milna chahiye.. ;)
    aur sath me Medha Patekar ko bhi ek gun de dena chahiye.. iske liye bhi koi na koi dharne par baith hi jayega.. :D

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  5. मै क्या लिखू इष्ट्देव जी से सहमत हू पूर्ण तया लेकिन मै बडा व्यथित होता हू इस प्रकार के काम देखकर जब हमारे भट्ट साहब इन लोगो के साथ मे खडे होते है,जब हमारे माननीय जज जिन्हे एन जी ओ चलाने के लिये विदेशी मदद मिलती है इन लोगो के साथ खडे दिखाई देते है जिन्हे सिर्फ़ मानवाधिकार आतंक वादियो देश द्रोहियो के ही दिखाई देते है..वाकई मे आज से मै भी इन्ही जैसे लोगो का समर्थम करूगा और चाहूगा कि जब ये अपना अगला कदम (पिछले जैसा ) उठाये तो हमारे देश के इन महानुभावो से भी हमे मुक्र्ती दिलाये..

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  6. इष्टदेव पता नहीं किस दुनिया में रहते हैं. राजनीति को गाली देना बहुत आसान है एक दिन राजनीतिज्ञ का जीवन जीकर दिखाईये होश ठिकाने आ जाएंगे. अगर संसद के हमले का समर्थन आप केवल इसलिए करेंगे कि नेता मारे जाते तो आपकी समझ पर तरस खाने में कोई हर्ज नहीं है.

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  7. जय मेधा! हम सब तो उनके सामने मेघा (मेढ़क) हैं!
    डिस्गस्टिंग!

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  8. सचमुच शर्मनाक है, लेकिन अफजल का समर्थन मजाक में भी मत कीजिये. संसद पर हमला भारत देश पर सांकेतिक हमला था नेताओं पर नहीं. और अगर कुछ सांसद मारे भी जाते तो क्या होता? क्या उनकी जगह लेने वाले उनसे बेहतर होते? जरा आसपास देखिये. नगर निगम से लेकर विधायक तक, स्थिति निकृष्ट से निकृष्टतर होती जा रही है. इन्हीं में से कल संसद में भी पहुंचेंगे.

    अरुण जी क्या वाकई महेश भट्ट की असलियत से नावाकिफ हैं जो आश्चर्य कर रहे हैं?

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  9. istdevji, agar Neta aadmi nahi hai to desh chalana aadmi ke vash ka hai bhi nahi.Ye neta ka hi kaleza hai jo lakh gaaliyan khakar bhi is ghamasan me dhasnay ko taiyyar hai.Aap kahengay ki desh to Bhagwan bharose chal raha hai.Lekin Woh bhi neta ke sahare hi desh chalaa raha hai.
    Andhakar ko kyo dhikkare, nanha sa ek deep jalaye

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  10. कोई आश्चर्य नहीं हुआ...
    यही हमारे देश के कथित बुद्धिजीवियों का गन्दा चेहरा है..
    ये लोग हमेशा समाज विरोधी तत्वों के समर्थन में ही आगे आते हैं..
    कभी बॉर्डर पर रहने वाले सैनिकों के मानवाधिकार के लिए तो ये नहीं आते...
    यही इनका असली चेहरा है..
    जो बहुत ही घिनौना है..

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  11. मेधा पाटकर। मेरे मन में बड़ा सम्मान था इस महिला के लिए। शर्मनाक है। अब तो मेधा की किसी भी बात पर भरोसा देशद्रोह जैसा होगा।

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  12. संजय और एसएसटी भाई!
    यह समझ में नहीं आया की आप लोग किसके पक्ष में खडे हैं.. नेता लोगों के या मेधा ही के? बाई डी वे, जहाँ तक नेता बन के जीने का सवाल है उस पर मेरा सिर्फ़ इतना ही कहना है की नेता की जो मौजूदा छवि और स्थिति और चरित्र है उस हिसाब से अगर मैं नाली का कीडा बनाना पसंद करूंगा. नेता बनाना नहीं. और अगर नेता बना ही टू ऐसा बनूँगा जो इन स्थितियों को उलट देगा. यह कहना समस्या का बेहद सरलीकरण है नेता की यह मजबूरी. आख़िर शास्त्री जी और पटेल भी नेता थे. वह ऐसे कैसे हो सके? आज की जो स्थिति है वह बनाई हुई किसकी है? क्या उसके लिए ये नेता ही जिम्मेदार नहीं हैं.

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  13. sawal paksh ya vipaksh ka nahi hai.yeh totality mein nahin hota hai.kewal Medha ko benakab karna paryapt nahin hai.cynical hone se kaam nahi banega. behtar sakaratmak vikalp dena bhi jaoori hai. aaj ki sthiti kewal netaon ki banayi nahi hai. isme hum sub ka haath hai.achchhe log kewal blog likhengay to andolan ka khel Medha and company hi khelegee.

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  14. कया यह सब अपनी कुर्सी के लिये हे, या फ़िर नाम ओर दाम कमाने के लिये, कया ऎसे ही होते हे गरीबो के सहायक ? दिमाग घुम गया यह सब सोच कर

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  15. पैसा बोलता है बंधुओ, पैसा!!
    पैसा मिले तोह कोनसा देश और कोनसी देशभक्ति? सब गया भाड़ में| कुछ महिलाए पैसे के लिए अपना शरीर बेचती है और कुछ महिलाए अपना दिमाग और समाज में मिलनी वाली प्रतिष्ठा बेचती है| मेधा पाटकर भी एक दिमाग और प्रतिष्ठा पैसो के लिए बेचने वाली वैश्या है |

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  16. Oye Bakbak band karo, battamizon. Neta achchha ho yaa bura desh tao chala rahe hain, Tarakki kya aapse chhupee hai. Medha ne apnee rajneetik roti seki hai iske liye usko galiyan dene ka koi hak nahin aapko. apan sabne kya kiya desh ke liye, yaa karene wale hain, zara ye bhi pata chale?

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  17. अगर उसकी कोशिश सफल हुई होती तो भारत का भार बहुत कम हो गया होता और हल्का होकर हमारा देश सचमुच तरक्की के रस्ते पर बड़ी तेजी से बढ़ चलता.
    मै भी इष्ट देव सांकृत्यायन जी के साथ हूँ , कम से कम एक आध नेता ही ठिकाने लग गये होते तो दर्द का एहसास शायद इन कमबख्तों को होता ।

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  18. pls kuch jane bagai kisi ke bare main kehna bura hai wo kum sum dharna de rahin tum kya kar rahe ho kya pata unhe kuch acha dikha ho usme

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  19. bhaiyon sabse bade samsya to hum swayam hi hain,
    agar kuch galat ho raha hai to kyon medha patkar aur dusre deshdrohiyon ki charcha kare.
    deshdrohi ki ek hi saza hai vo saza chahe goverment de ya ki hum.
    to aao hum sabhi karya kare milkar ya alag alag.
    par ab hame kewal results lene hain,bahut hua charcha aur discussion karna

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  20. एक गड्ढा खोदो और दोनों को वही दफ़न कर दो...और गड्ढे को बी मिट्टी से भरकर एक बबूल का पेड़ उगाओ और उस पर लिखो उन इंसानों की याद में जी इन कांटो के सामान थे और जो किसी काम के नहीं थे

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  21. मेधा को गाली बकने से पहले अपनी औकात देख लेते तो अच्छा होता.
    दूसरा ये कि अफजल को फांसी देने के लिये हम सब लोग मेधा की तरह ही प्रदर्शन क्यों नहीं करते. इस काम के लिये, अपना काम छोड़ कर एक दिन के लिये जो-जो दिल्ली आना चाहे, मैं उनका स्वागत करता हूं.

    संजय कुमार तिवारी
    [email protected]

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