सैन फ्रांसिस्को के उपनगर शास्तस्प्रिंग में एक बार शास्ता पर्वत की चोटी पर पहुँचने की प्रतियोगिता हुई जिसमें बहुत से अमेरिकन युवक भाग लेने के लिये आये। इस प्रतियोगिता में एक भारतीय संयासी ने भी भाग लिया। इस दुबले पहले भारतीय संयासी को देखकर अमेरिकन युवक मुस्कराने लगे। प्रतियोगिता आरम्भ हुई सभी दर्शक तथा प्रतियोगी आश्चर्य से देखते रहे, सन्यासी सबसे बहने शास्ता पर्वत पर पहुँचकर खड़ा मुस्कारा रहा था।
उस प्रतियोगिता के विजेता का पुरस्कार उस सन्यासी को दिये जाने की घोषणा की गयी, लेकिन आश्चर्य! सन्यासी ने यह कहकर उस उपहार को अस्वीकार कर दिया कि मै शास्ता पर्वत की चोटी पर प्रकृति प्रेम के कारण उस चोटी की शोभा देखने गया था, उपहार हेतु नही। वह सन्यासी कोई और नही निर्भीक स्वामी रामतीर्थ थे।
उस प्रतियोगिता के विजेता का पुरस्कार उस सन्यासी को दिये जाने की घोषणा की गयी, लेकिन आश्चर्य! सन्यासी ने यह कहकर उस उपहार को अस्वीकार कर दिया कि मै शास्ता पर्वत की चोटी पर प्रकृति प्रेम के कारण उस चोटी की शोभा देखने गया था, उपहार हेतु नही। वह सन्यासी कोई और नही निर्भीक स्वामी रामतीर्थ थे।
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4 टिप्पणियां:
ये जानकारी नयी है.
मगर एक प्रतियोगी का अधिकार मारा गया. घूमना ही था चोटी का सौदर्य निहारने के लिये तो अलग से चले जाते. प्रतियोगिता में क्यूँ शामिल हुए. यह समझ नहीं आया.
मुझे नहीं पता था कि स्वामी रामतीर्थ सेन फ़्रांसिस्को गये थे ।
आपके चिट्ठे का नया रूप मोहक है । आगे भी लिखते रहें ।
रोचक पहले कभी पढ़ा नही ..:)समीर जी का सवाल सही है
बहुत ही रोचक जानकारी ओर काफ़ी प्रेरक प्रसंग.
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