रात्रि ढाई बज रहे थे तब मैंने कहा कि अब इस कार्यक्रम को समाप्त किया जाना चाहिए,कुछ की ना नुकुर के बाद कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई। मुझे घर पहुँचते और सोते सोते 3.30 बज गये थे। करीब 5 बजे थे कि मेरी आंख खुल चुकी थी। मेरी आदत है कि मै एक बार 5 बजे जरूर उठ जाता हूँ। वैसा मेरे साथ उस दिन भी हुआ, कुल मिलाकर मै दो घंटे भी नही सो पाया था। सुबह पापा जी और दोनो भैया को गांव जाना था, किंतु पिछले दिन भइया रायबरेली गये थे तो उन्होंने जाने में असर्मथता व्यक्त कर दिया। पापा जी ने मुझे कहा मै भी असमर्थ ही था किन्तु जाने के लिए हामी भर दिया। गाड़ी और प्रतापगढ़ में मुझे काफी तेज नींद आ रही थी किन्तु मै सो पाने में सक्षम नही था। गॉंव पहुँचते 4 बज गये, और शाम 6 बजे पापा जी ने कहा कि आज रूका जाये कि चला जाये। मैने इलाहाबाद जाने के पक्ष में राय जाहिर की। क्योकि मै इतना थका हुआ था कि कुछ भी काम करने की स्थिति में नही था।
हम लोग करीब 6.30 गांव से इलाहाबाद की ओर चले और 9 बजे घर पहुँच गये, मेरी थकावट और नींद चरम पर था किन्तु गांव से लौटने के बाद 56 प्रकार की चर्चा शुरू हो गई और सोते सोते बज गए 12 और फिर सुबह 5 बजे जग गया। .........
शेष फिर
शेष फिर
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6 टिप्पणियां:
जहां चार यार मिल जाये वहीं रात हो गुलज़ार,जहां चार यार। ये फ़िल्मी गीत बताता है कि दोस्तों के मिलने पर समय गुजरने का पता ही नही चलता जैसे आपको नही चला।अक्सर ऐसा ही होता है।
सही है। घूमघाम लिये।
तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।
बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।
जानकर हर्ष हुआ कि आप भी इस्लाम और गाँधी के बारे में हमारे जैसे ही विचार रखते हैं। एक आलेख में तथ्यों पर चर्चा की है। कृपया टिप्पणी दें।
आपसे जानना चाहेंगे ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने का माध्यम क्या है।
मेला में पिपिहरी ख़रीदे की नहीं?
अभिषेक जी ने जो पूछा है उसका जवाब कब दे रहे हो प्यारे
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