आज हमारे दादा जी आए थे, वे रिश्ते में नहीं थे किन्तु किसी रिश्ते में वे कम भी नहीं थे। करीब 2 हफ्ते पूर्व भी वे हमारे यहाँ आये थे किन्तु एक दुखद समाचार के साथ दादी जी के निधन की सूचना को लेकर। ये वो दादी है जब मै कानपुर में था और मेरी उम्र करीब 2 साल से कम उम्र का था तब से मुझे पाला और उनकी गोद में खेला जब तक कि वह कानपुर में रही। कानपुर में ही वे विधवा हो गई थी इनका एक पुत्र था वह भी स्वर्ग सिधार चुका था। मोहल्ले भर के बच्चे उनके पास पहुंच जाते थे, सुबह भगवान के भोग का खाना मुझे ही नसीब होता था। करीब 5 साल की उम्र तक उनका मेरा साथ रहा। फिर उन्हें अपनी एकाकी जीवन में रंग भरने को इलाहाबाद के दो पुत्र के पिता से विवाह कर लिया, ये वही दादा जी है।
कानपुर के सम्बन्ध इलाहाबाद में भी कायम रहा और इसी सम्बन्ध के कारण दादाजी ने दादी की तेरहवीं की सूचना देने आये थे। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी किन्तु आंखों में पानी भी था। दादा जी की उम्र करीब 65-70 की बीच होगी। ये उम्र होती है जब व्यक्ति को अपने जीवन साथी की सबसे ज्यादा कमी खलती है। दादा से मैने पूछा तबीयत ठीक है, उनका इनता ही करना था तबीयत तो चली गई बेटवा..... उनके ये शब्द बहुत कुछ कह रहे थे।
आज उनका फिर आना हुआ, हमारी अम्मा जी से मिले और अपने दुख सुख की बात की। उनका ये शब्द आज फिर हृदय को कष्ट दे रहे थे। वकीलाईन (हमारी अम्मा जी को) अब हम आपको किस मुँह से बुलाएंगे, जिसके सहारे हम आपको बुला पाते थे वो तो चला गया। पता नहीं अब वो सम्मान हम दे पाएंगे भी कि नहीं,। उनका प्रत्यक्ष अपनी बहू की ओर ध्यान दिलाना था। शायद दादी के जाने के बाद वे उससे संतुष्ट नहीं थे। जो कुछ भी था वो दूसरी पत्नी थी किन्तु जीवन संगिनी थी, ये अपने पुत्र (खून) बधू है किन्तु वह आज सफेद हो रहा है। एक ही संसार में एक सिक्के के दो पहलू होते है, गैर अपने बन जाते है और अपने गैर।
कानपुर के सम्बन्ध इलाहाबाद में भी कायम रहा और इसी सम्बन्ध के कारण दादाजी ने दादी की तेरहवीं की सूचना देने आये थे। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी किन्तु आंखों में पानी भी था। दादा जी की उम्र करीब 65-70 की बीच होगी। ये उम्र होती है जब व्यक्ति को अपने जीवन साथी की सबसे ज्यादा कमी खलती है। दादा से मैने पूछा तबीयत ठीक है, उनका इनता ही करना था तबीयत तो चली गई बेटवा..... उनके ये शब्द बहुत कुछ कह रहे थे।
आज उनका फिर आना हुआ, हमारी अम्मा जी से मिले और अपने दुख सुख की बात की। उनका ये शब्द आज फिर हृदय को कष्ट दे रहे थे। वकीलाईन (हमारी अम्मा जी को) अब हम आपको किस मुँह से बुलाएंगे, जिसके सहारे हम आपको बुला पाते थे वो तो चला गया। पता नहीं अब वो सम्मान हम दे पाएंगे भी कि नहीं,। उनका प्रत्यक्ष अपनी बहू की ओर ध्यान दिलाना था। शायद दादी के जाने के बाद वे उससे संतुष्ट नहीं थे। जो कुछ भी था वो दूसरी पत्नी थी किन्तु जीवन संगिनी थी, ये अपने पुत्र (खून) बधू है किन्तु वह आज सफेद हो रहा है। एक ही संसार में एक सिक्के के दो पहलू होते है, गैर अपने बन जाते है और अपने गैर।
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7 टिप्पणियां:
जिन्दगी शुरू करते समय पति-पत्नी लड़ते भिड़ते हैं। पर उत्तरार्ध में वे लव-बर्ड्स सरीखे हो जाते हैं। एक के जाते दूसरा रह नहीं पाता।
एक जीवनसाथी जब जिंदगी भर साथ रहता है ...तब एक आदत सी हो जाती है ...जब दूर हो जाता है तो जीना मुश्किल हो जाता है
जैसे जैसे उमर बढती है वैसे वैसे अकेलापन बहुत सताता है।
यही जीवन का अंतिम यथार्थ है....काश, शुरुआती दौर में भी इंसान इसे अहसासे.
भाई बहुत सही कहा, इतने दिन साथ रहते रहते दो जिस्म लेकिन एक जान हो जाते है, ओर जब कोई एक चला जाता है तो जेसे सब कुछ छीन सा जाता है,शायद यही प्यार है. ओर बच्चे तो आज के...
यही जिन्दगी की कहानी भी है....
"एक ही संसार मे सिक्के के दो पहलूँ है,गैर अपने बन जाते है और अपने गैर।" कई बार देखा है।
संवेदनशील पोस्ट!
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