जबलपुर की यात्रा के दो सस्मरणों (जबलपुर की यात्रा - प्रथम दिन व जबलपुर में दूसरा दिन - महेन्द्र, सलिल व ब्लागर मीट)को तो आपने पढ़ा ही होगा। आज मै भेड़ाघाट जा रहा हूँ , मेरी तनिक भी इच्छा नही है किन्तु सुपारी दी थी तो जाना पड़ेगा ही। जबलपुर की मीट में ही श्री गिरीश बिल्लोरे जी ने मुझे भेड़ाघाट घुमाने की सुपारी ले ली थी और उन्होने इसे अगले दिन पूरा करने के लिये एक अपरण कर्ता को मय कार के साथ भेज दिया। उसने बताया कि आपको खुफिया जगह ले जाया जा रहा है। मैंने पूछा आपके सरगना (गिरीश जी) वहां होंगे कि नहीं ? उत्तर मिला नहीं। फिर क्या था फोन मिलाया और शिकायत दर्ज की, तो अपनी व्यस्तता को बताई जो जायज थी।
मुझे और ताराचंद्र को उस गाड़ी चालक ने पूरी सहुलियत के साथ घुमाया, बहुत कम पैदल चलवाया। बहुत कम समय में बहुत ही यादगार स्मृति मेरे मन में बन गई। कुछ देन में कुछ खरीदारी भी किया किया। चलते वक्त नजदीक के एक होटल में जलपान भी किया। कुछ देर में वाहन चालक ने हमें अपने गंतव्य स्थान हरिभूमि पर पहुंचा दिया। कुछ देर में मित्र तारा अपने ऑफिस का काम देख कर मुझे आराम करने के लिये घर छोड आये। शाम 4-5 बजे तक वो फिर आते है और मुझे अपने साथ हरिभूमि के दफ्तर में अपने कुछ मित्रों से मिलवाया। काफी देर तक मुलाकात बातचीत का दौर चला । मुझे लगा कि मै ऑफिस के काम में बाधा पहुँच रहा हूँ तो सभी से अनुमति घूमने निकल पड़ा।
शाम का समय था कहां कहां घूमा मुझे पता नही था, तीन दिनो बाद पहली बार जबलपुर में साइबर कैफे दिखा। जैसे ही मै बैठा वैसे ही श्री गिरीश जी का फोन आया, कि मै हरिभूमि पर आपका इंतजार कर रहा हूँ। मुश्लिक से 5 मिनट भी न हुये थे, दाम पूछा तो 10 रूपये बताया देकर चलता बना। 5 मिनट में हरिभूमि पहुँच गया, श्री गिरीश जी के साथ चौराहे की चाय की चुस्की हुयी और और खबर सुनाई दी कि कही हेलीकाप्टर गिर पड़ा है। हरिभूमि से ज्यादा तेज गिरीश जी का नेटवर्क था जो इस खबर की पुष्टि की । इसी चर्चा के बीच बहुत तेज आंधी पानी भी आ गया, और हम जल्दी से गाड़ी में बैठकर श्री गिरीश जी के आवास पहुँच गये।
जलपान के साथ विभिन्न मुद्दे पर गरम चर्चा भी हुई, 2006 से लेकर वर्तमान चिट्ठाकारी पर चर्चा भी की गई, और भविष्य की संकल्पनाओं की आधारशिला भी रखा गया। कुछ बातो पर मुझे जबलपुर के उन ब्लागरो से कभी कुछ कहना चाहूँगा, जो मुझे अत्मीय मान देते है, समय अपने पर वह मै करूँगा। करीब रात्रि 10.30 भोजन के बाद हम सभी परिवार जनो से आशीर्वाद ले विदा हुये। श्री गिरीश जी व परिवार से जो प्यार मिल उसके लिये धन्यवाद या आभार व्यक्त करना, उस स्वर्णिम पल का अपमान करना ही होगा, इन तीन दिनो में मुझे अपने परिवार की स्मृति तो थी किन्तु सभी की छवि जबलपुर के ब्लागरों मे दिख रही थी।
रात्रि के समय में जबलपुर की तुलना किसी दुल्हन से करना गलत न होगा। मै जबलपुर की छटा पर से निगाह हटा नहीं पा रहा था, मै उसे देख ही रहा था चौराहे पर एक तीव्र गति से आती हुई फोरविलर के कारण कि गाड़ी असंतुलित हो गई और हम गिर पड़े। जबलपुर के लोगो का प्यार और भगवान हमारे साथ थे इस कारण ज्यादा कुछ नहीं हुआ, हमारे मित्र ताराचंद्र आगाह थे इसलिये बिल्कुल सुरक्षित थे, थोड़ा गाड़ी डैमेज हो गई थी, मै शहर के नजरे लेने में व्यस्त और इसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा, इस कारण मुझे सड़क पर ही घुटना टेकना पड़ा और नतीजा यह हुआ कि पैट भी फट गई और घुटना भी छिल गया (दर्जी की दया से पैंट रफू और डॉक्टर की दया चोट दोनो जल्दी ही विदा हो गये, पर पैंट मे भी दाग है और पैर में भी जो जबलपुर की याद दिलाता रहेगा ) । ताराचंद्र ने पूछा चोट तो नहीं लगी, मैंने कहा नहीं, थोड़ा गाड़ी धीरे चलाया करो, दुर्घटना सिर्फ हमारी गलती से ही नही होती है। हम चल दिये मुझे घर पहुँच तारा चन्द्र जी अपने ऑफिस चले गये।
सुबह जब तारा चन्द्र उठे मेरी पैंट और चोट देखी जो उन्हे फील हुया, कुछ गलती जरूर हुई थी। यही फील करवाना मेरा मकसद भी था, क्योकि मेरा मानना है कि दुर्घटना अपनी गलती से नही होती है पर अपनी सावधानी से टाली जा सकती है। आगे की चर्चा अगले पोस्ट में ये यादगार अन्तिम दिन था क्योकि मुझे इस दिन एक नया परिवार मिला।
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11 टिप्पणियां:
हम यह कारनामा दिल्ली के कनाट प्लेस में कर चुके हैं।
जरा संभल के ;)
अच्छा लगा जानकर कि जबलपुर पसंद आया. आपने मुझे तो बताया ही नहीं था कि आप दुर्घटनाग्रस्त हुए-खैर, ईश्वर की बड़ी कृपा, ज्यादा चोट नहीं आई. निश्चित ही वाहन चालन में सतर्कता अति आवश्यक है.
आगे इन्तजार रहेगा सुनने का.
दुर्घटना के बारे में आज पता चला . आपने जबलपुर में रहते हुए ये बात तो मुझे बताई नहीं थी . भाई आपके ट्रेन में बैठने तक मेरी आपसे मोबाइल पर चर्चा भी हुई थी . ईश्वरीय कृपा से आपको चोट नहीं लगी. भेडाघाट की फोटो देखकर आत्मा प्रसन्न हो गई . बढ़िया संस्मरण के लिए धन्यवाद.
नर्मदे हर
हर-हर नर्मदे! नर्मदा मैया ने ही आपको बचा लिया वरना जबलपुर में तो ट्रैफिक का कोई नियम कानून ही नहीं है. परसों मेरे ससुर जी को अधारताल चौराहा पार करते हुए किसी दुपहिया वाले ने टक्कर मार दी और भाग निकला. नर्मदा मैया का ही आशीर्वाद था कि ज्यादा चोट उन्हें नहीं आयी और वह अगले दिन ड्यूटी पर चले गए.
जान बची तो लाखों पाए....
जो बीत गयी सो बात गयी, और क्या कहूँ?
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
दुर्घटना के बारे में आज पता चला बाहर चला गया था आप्से चर्चा नही हो सकी
संस्मरण अच्छा लगा। जिंदगी का यही तो मजा है। मुझे अपने बारे में एक अफसोस हमेशा रहेगा कि मध्यप्रदेश में कई वर्ष रहने के बाद भी मैं जबलपुर नहीं जा सका।
प्रमेन्द्र जी
सच एक्सीडेंट के बारे में
आपने ज़रा भी जिक्र नहीं किया
उस दिन मुझे अपराध बोध हो
रहा है .
शायद देर तक भोजन
के लिए न बैठाता
गुप्ता जी की प्रतीक्षा
न करते हम
आप सभी के स्नेह के लिेये हार्दिक धन्यवाद,
मुकुल जी, अपराध बोध की कोई बात नही थी, यह तो आपका स्नेह बोल रहा है। ऐसे मे मै भी कह सकता हूँ कि न मै जबलपुर जाता, न आपसे मुलाकात होती और न ही दुघर्टना होती। ईश्वर ने कुछ सीखने भेजा था, हम सफल हुये नही तो पता नही क्या क्या हो जाता है जिन्दगी में।
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