सरकार तो है सबकी माई-बाप पर सगी तो है नही

उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों में जींस को लेकर शासन की राय आ ही गई, शासन की ओर से कहा गया कि युवतियों को कॉलेज में जींस पहनने से कोई रोक नही है। सरकार की ओर से आई यह राय निश्चित रूप से गलत कदम है, क्योंकि शिक्षण संस्थान में मर्यादा की आवश्यकता होती है न कि देह प्रदर्शन की। आज के दौर में शिक्षण संस्थान पढ़ाई के कम प्रेम प्रपंचों के अड्डे भर बन कर रहे गये है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का विज्ञान संकाय अक्सर युवक और युवतियों के जोड़ों का जमघट बना रहता है, कभी प्रॉक्‍टर के छापे की खबर से ये जोड़े भागे डगर नही पाते है, आखिर क्यों ऐसी स्थिति आती है? जब आपको लगता है कि आप गलत नही कर रहे हो तो प्रॉक्‍टर के आने पर भाग कर क्यों गलत बन जाते हो। इसका साफ कारण है कि उन्हें पता होता है कि यह शिक्षा की स्‍थली है न प्रेमाश्रय, उन्हें डर होता है कि पकड़े जाने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी और पढ़ाई का कैरियर खराब हो जायेगा। आखिरकार तय है कि अनुशासन के डंडे से ये जोड़े भाई-बहन भी बनने को तैयार हो जाते है, अर्थात सईया को भैया बनने में देर नही लगती है।
जींस को लेकर कालेज प्रशासन का रवैया बिल्कुल जायज है, क्योंकि जींस में न सिर्फ लडकिया असुरक्षित होती है बल्कि सबसे ज्यादा छींटाकशी इन्ही पर की जाती है। आज दस साल पहले जींस का इतना क्रेज नही था, आज हो गया है, कल को मिनी स्कर्ट और बिकनी का क्रेज होना तय है तो क्या ये भविष्‍य के विद्यालयी परिधान माना जा सकता है। अभी दैनिक भास्कर को पढ़ रहा था, प्रधानाचार्य परिषद के इस फैसले को देशी तालिबानी फैसला कह कर न्यूज़ प्रकाशित की थी, अगर मीडिया को महिलाओं को खुलेपन हिमायती है तो क्यों नहीं मुस्लिमों को बुर्के के विरोध में आती? विरोध नही कर सकते, कारण है कि मुस्लिम मीडिया की आडम्बरी ताकत के महल को एक पल नेस्तनाबूद कर देंगे।
मेरा यह मानना है कि महिलाओं के लिये ही नही पुरुषों के लिये भी विभिन्‍न संस्‍थानों में सामान्‍य वेशभूषा के नियम होने चाहिये। पुरुषों को भी ऐसे वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए वह अश्लील श्रेणी में आते हो। जब आफिस- कार्यालय में आप ड्रेस कोड से बंधे हुए हो तो शिक्षण संस्थान में क्यो नही ? शिक्षण संस्थान को रैंप नही जो अंग प्रदर्शन की जगह बनाई जाए। आज जीन्स के लिये प्रदर्शन हो रहे है, कल को शॉट जींस, ब्रा-बिकनी के लिये होगे।
गौर तलब हो कि हर समर्थन करने वाला, कम से कम अपने घर की महिलाओं को इस ऐसे वस्त्रों में देखना पसंद नही करता है। मगर विरोध प्रदर्शन और मानवाधिकार की दुहाई में सबसे आगे दिखते है, जरूरी है अपनी रोटी जो सेकनी होती है। सरकार तो है सबकी माई-बाप पर सगी तो है नहीं, जो पहनाये पहन लो। :)

4 टिप्‍पणियां:

  1. ओर क्या कहे आप की बातो से सहमत है
    धन्यवाद

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  2. मीडिया पर आपने जो प्रहार किया है केवल उस बात से सहमत हूँ
    लाख चाह कर भी बाकी की बात गले नहीं उतर रही
    वीनस केसरी

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  3. आप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
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    "शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!

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