चिट्ठकारी की दुकान कुछ की बहुत तेजी से चल रही है तो कुछ की सुप्तावस्था में तो कुछ की बंद भी हो गई। हिन्दी चिट्ठाकारी में बड़े बड़े समूहों ने हाथ आजमाने की कोशिश की उसी में एक जोश18 समूह का गरम चाय> जून 2006 से चलते चलते अप्रेल 2009 में बंद हो गया। आज चिट्ठाकारों के द्वारा चिट्ठाकारी बंद करना तो समझ में आता है किन्तु इतने बड़े समूह द्वारा चली चलाई चिट्ठकाकारी बंद करना समझ से परे है। खैर जो कुछ भी है चिट्ठाकारी को शुरू करने के समय उत्साह और बंद करने के कारणों पर विचार करना चाहिये।
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10 टिप्पणियां:
!निश्चय ही यह संकेत ठीक नहीं -मगर महज व्यावसायिक उद्द्येश्यों की चाह में लगने वालों का यह भी हश्र होता है -ब्लागिंग भला क्यों बंद होगी -इसका कोई व्याव्सायिक पहलू है नहीं -जो यहाँ ठहरे हैं या ठहर पायेंगें इनकी सामाजिक प्रतिबद्ध्ता /सरोकार ही प्रबल भाव है !
जेब से कोई कब तक भाड़ झोंकेगा..
माल खत्म चाल खत्म.
चिट्ठाकारी दुकान की चीज ही नहीं। दुकान बनाओगे तो बंद हो ही लेगी।
जोश १८ चल तो रही है भाई!!
चिट्ठा लेखन और दुकानदारी - बात समझ में न आयी। लेखन कर्म तो हर आदमी की प्रतिबद्धता और सामाजिक सरोकार से संबंधित है। लिखनेवाले लिख ही रहे हैं और आगे भी लिखेंगे और यह भी सच है कि कुछ चिट्ठे बन्द भी होते रहेंगे। एकदम स्वाभाविक है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
[email protected]
खैर जो कुछ भी है चिट्ठाकारी को शुरू करने के समय उत्साह और बंद करने के कारणों पर विचार करना चाहिये।
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संकल्प शक्ति का क्षरण मित्र! या फिर ट्यूब का खाली हो जाना!
अगर ब्लागर बंधुओं का साथ हमेशा बना रहे तो ये चिठ्ठाकारी की दुकान बंद करना बहुत ही मुश्किल काम है क्योंकि जो इसे दुकान समझकर चिठ्ठे लिखते हैं वे किसी मोह के लिये लिखते हैं और जो अपने शौक के लिये लिखते हैं वे तो कभी भी अपनी चिठ्ठाकारी बंद कर ही नहीं सकते।
छोड़कर जाने वाले फिर वापस आते हैं, हमारे जैसे! इतना आसान नहीं दुकान चलाना।
शौक या व्यसन में तो व्यक्ति अपनी जेब से खर्चता है।
दरअसल ये कुछ कुछ सार्वजनिक जिम्मेदारी जैसा है..यानि सबकी सहभागिता और सबके काम..किसी एक का कंधा नहीं..तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से सब एक दुसरे का मुंह ताकते हैं..ऐसा कई बार और भी कम्युनिटी ब्लोग्स में देखा जा चूका है ..और इसकी क्या गारंटी है की वो दोबारा शुरू नहीं हो जाएगा..वैसे भी ब्लॉग्गिंग में इन बड़े समूहों की मौजूदगी का कारण कुछ और ही था..ब्लॉग्गिंग तो आप और हम जैसे ..घुसेडू लोगों की वजह से चल रही है ....सो चलती रहेगी..जब तक हम चल रहे हैं.
हम तो "ब्लॉगकुट्टे" हैं (दारुकुट्टे शब्द से मिलता-जुलता) इतनी आसानी से यह नशा छोड़ने वाले नहीं हैं…। जो लोग नहीं लिखते या "तटस्थ"(?) रहते हैं वे क्या जानें कि इसमें कैसा "नशा" है…
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