‘’मैने कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसा होगा मै जीते जी पाकिस्तान देख सकूँगा।‘’ ये शब्द पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना के है, यहाँ जिन्ना या मुस्लिम लीक को पाकिस्तान का निर्माता कहना बेमानी होगा क्योंकि पाकिस्तान का निर्माता और कोई नही नेहरू और कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व था।
तत्कालीन काँग्रेस नेतृत्व थक चुका था यह बात नेहरू द्वारा 1960 में लियोनार्ड मोसले के साथ बात के दौरान हुई थी। नेहरू कहते है – ‘ सच्चाई यह है कि हम थक चुके थे और आयु भी अधिक हो चुकी थी। हम में से कुछ ही लोग फिर कारावास में जाने की बात कर सकते थे और यदि हम अखण्ड भारत पर डटे रहते जैसा कि हम चाहते थे तो स्पष्ट है कि हमें कारागार जाना ही पड़ता। हमने देखा कि बंटवारे की आग भड़क रही है और सुना कि प्रतिदिन मार काट हो रही है। बंटवारे की योजना ने एक मार्ग निकालना जिसे हमने स्वीकार कर लिया।‘ नेहरू के ये वाक्य कांग्रेस की कमजोरी तथा उनकी सत्ता लोलुपता का बयां कर रहे थे, क्योंकि कांग्रेस चाहती थी किसी प्रकार से स्वतंत्रता लेना चाहती थी चाहे वह विभाजन से ही क्यो न हो।
कांग्रेस की कमजोरी के सम्बन्ध में श्री न.वि. गाडगिल कहते है- देश की मुख्य राजनीतिक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, उसके नेता बूढ़े हो चुके थे, थक चुके थे। वे रस्सी को इतना अधिक नहीं खींचना चाहते थे कि वह टूट जाये और किये धरे पर पानी फिर जाए। श्री गाडगिल का उक्त कथन कांग्रेस की आजादी की लड़ाई के काले अध्याय की ओर हमें ले जाती है। कांग्रेस और काग्रेंसी खास कर नेहरू अपनी महत्वाकांक्षाओं की नैया पर इतना बोझ लाद चुके थे कि अपनी नैया को बचाने के लिये पाकिस्तान की मांग स्वीकार कर लिया।
नेहरू की महत्वकांक्षाओ के सामने गांधी जी भी टूट चुके थे, मैंने कई बार गांधी जी को विभाजन के लिए दोषी ठहराया है और आज भी ठहराता हूँ, गांधी जी भारत विभाजन रोक सकते थे, इसके लिये गांधी जी को अपने जीवन का सबसे बड़ा बलिदान करना पड़ता, हो सकता है कि उनके प्राण चले जाते किंतु गांधी के बल पर भारत टूटने से बच सकता था ये प्राण लेने वाला कोई गोडसे कांग्रेस ही होता। गांधी जी को भारत विभाजन के प्रस्ताव पर बहुत दर्द था वे दर्द के साथ कहते है- ‘मै भारत विभाजन का विरोधी हूँ किन्तु हमारे नेताओं ने इसे स्वीकार कर लिया है, और अब हमें भी इसे स्वीकार कर लेना चाहिये। मै इस स्थिति मे नही हूँ कि वर्तमान काग्रेंस के नेतृत्व को बदल सकूँ, यदि मेरे पास समय होता तो क्या मै इसका विरोध नही करता ? मेरे पास नया नेतृत्व देने के लिये विकल्प ही नहीं था कि मै कह सकूँ कि यह लीजिए यह रहा वैकल्पिक नेतृत्व। ऐसे विकल्प के निर्माण का मेरे पास समय नही हर गया, इसलिए मुझे इस नेतृत्व के फैसले को कड़वी औषधि की भाति पीना ही होगा, आज मेरे में ऐसी शक्ति नही, अन्यथा मै अकेला ही विद्रोह कर देता।‘ भले गांधी जी उक्त बात करते समय नेताजी सुभाष का नाम लिये हो किंतु निश्चित रूप से नेहरू के पंगु विकल्प के रूप से गांधी जी नेताजी को जरूर याद किये होगे।निश्चित रूप से गांधी जी को अपने नेतृत्व चयन पर कष्ट हुआ होगा।
नेहरू की महत्वकांक्षाओ के सामने गांधी जी भी टूट चुके थे, मैंने कई बार गांधी जी को विभाजन के लिए दोषी ठहराया है और आज भी ठहराता हूँ, गांधी जी भारत विभाजन रोक सकते थे, इसके लिये गांधी जी को अपने जीवन का सबसे बड़ा बलिदान करना पड़ता, हो सकता है कि उनके प्राण चले जाते किंतु गांधी के बल पर भारत टूटने से बच सकता था ये प्राण लेने वाला कोई गोडसे कांग्रेस ही होता। गांधी जी को भारत विभाजन के प्रस्ताव पर बहुत दर्द था वे दर्द के साथ कहते है- ‘मै भारत विभाजन का विरोधी हूँ किन्तु हमारे नेताओं ने इसे स्वीकार कर लिया है, और अब हमें भी इसे स्वीकार कर लेना चाहिये। मै इस स्थिति मे नही हूँ कि वर्तमान काग्रेंस के नेतृत्व को बदल सकूँ, यदि मेरे पास समय होता तो क्या मै इसका विरोध नही करता ? मेरे पास नया नेतृत्व देने के लिये विकल्प ही नहीं था कि मै कह सकूँ कि यह लीजिए यह रहा वैकल्पिक नेतृत्व। ऐसे विकल्प के निर्माण का मेरे पास समय नही हर गया, इसलिए मुझे इस नेतृत्व के फैसले को कड़वी औषधि की भाति पीना ही होगा, आज मेरे में ऐसी शक्ति नही, अन्यथा मै अकेला ही विद्रोह कर देता।‘ भले गांधी जी उक्त बात करते समय नेताजी सुभाष का नाम लिये हो किंतु निश्चित रूप से नेहरू के पंगु विकल्प के रूप से गांधी जी नेताजी को जरूर याद किये होगे।निश्चित रूप से गांधी जी को अपने नेतृत्व चयन पर कष्ट हुआ होगा।
गांधी जी की नेतृत्व चयन की भूल और नेहरू की महत्वकांक्षाओं का परिणाम था कि आज विभाजित भारत हम देख रहे है, आज 18 करोड़ मुसलमान मौज के साथ रह रहे है आज से 60 साल पहले 4-5 करोड़ मुसलमान भी रह सकते थे। कांग्रेस सत्ता भोगी नेतृत्व का ही परिणाम हमारे सामने है। तत्कालीन समय में अंग्रेजों का भारत छोड़ना अपरिहार्य हो गया था किन्तु वास्तव में विभाजन अपरिहार्य नही था।
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21 टिप्पणियां:
इसी ऐतिहासिक सत्तालोलुपता ने देश का जब तब बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी |
आज भी कांग्रेस तो नेहरु का अनुसरण कर ही रही है साथ में भाजपा और अन्य दल भी इस काम में पीछे नहीं रह गए हैं |
भाजपा हो या काग्रेंस दोनो ही राजनैतिक पार्टिया है, मेरी हमेशा यह आशा होगी भाजपा दिग्भ्रम की स्थिति को त्याग कर प्रखर राष्ट्रवाद की लौटे।
वरूण भाई मैने आजादी के समय के इतिहास को रखने की कोशिश की है, जो लोग आजादी को अपनी जागीर मार रहे है कि उनके बिना आजादी नही मिल सकती थी, उन्हे आईनादेखना चाहिये कि भारत की आजादी तो पाई किन्तु 1/3 से बड़ा भू भाग खो कर के, क्यो उन्हे आजादी का उत्सव मानने का अधिकार है ?
" भाजपा दिग्भ्रम की स्थिति को त्याग कर प्रखर राष्ट्रवाद की लौटे " |
यही आशा प्रत्येक राष्ट्रवादी नागरिक को भी है परमेन्द्र भाई लेकिन अभी तो इसकी सम्भावना नहीं दिखती |
भारत माता के टुकड़े होने के लिए नेहरू भी जिन्ना जितने ही जिम्मेदार हैं। इस महापाप के कारण उनकी आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलेगी।
कमजोर इच्छा शक्ति से ही देश विभाजित हुआ । परन्तु वर्तमान में देखा जाय तो बीजेपी जैसी पार्टी भी दम तोड़ती दिख रही हैं । ऐसे में आगे का क्या होगा ?
इसमें कोई दो राय नहीं है भाई... केवल और केवल एक अड़ियल और जिद्दी बच्चे की जिद पूरी करने के लिए भारत का विभाजन हुआ.. जिसकी अति महत्त्वकान्षा के कारन पहले ही गोखले, तिलक और सुभाष जैसे सफल नेतृत्व देने वाले कांग्रेस से किनारा खर चुके थे.. और अपने हाथों से गद्दी न छीन जाये इसलिए इसी हठी और ढीठ बच्चे की तरह मचल जाने को बहलाने के लिए विभाजन को स्वीकार कर हमारा और हमारे देश भविष्य बनाया गया... जिसमें हमें हमारे दौनो तरफ दो दुश्मन पैदा हो गए....
nehroo ki sattaalolupta ke karan desh ka vibhaajan hua.
इसमें तो दो राय हो ही नहीं सकती - गाँधी जी और नेहरु विभाजन के लिए पुर्नारुपन जिम्मेदार थे | नेहरु की महत्वाकांक्षा और गाँधी जी की मज़बूरी |
गाँधी जी हमेसा नेहरु जी का पक्ष लेते रहे, वो गाँधी जी ही थे जिन्होंने नेताजी शुभाष को कांग्रेस अधक्ष बनाने नहीं दिया | पता नहीं नेहरु को लेकर गाँधी जी क्यों मजबूर हो जाया करते थे |
कांग्रेस तो आज भी सत्तालोलुप ही है और रहेगा भी ...
प्रमेन्द्र भाई,
कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके और मेरे विचार नहीं मिलते :)
लेकिन इस बार मैं आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। हमारे यहाँ "जिन्ना" को लतियाने की प्रथा जो शुरू से चली आ रही है, उसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें उस दौरान के इतिहास की जानकारी भी नहीं। कहते हैं ना कि हमें पहले अपने "गिरेबान" में झांक कर देखना चाहिए....जब अपने नेता(नेहरू जैसे) हीं ऐसे हों तो औरों को दोष क्या देना।
-विश्व दीपक
Good analysis. Keep it up.
kamal ka likha hai aapne..Hamesha ki tarah !!
aap likhte rahiye hum padhne ko aur saath dene ko hamesha taiyaar hain.
"देश की मुख्य राजनैतिक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, उसके नेता बूढे हो चुके थे, थक चुके थे। वे रस्सी को इतना अधिक नही खीचना चाहते थे कि वह टूट जाये और किये घरे पर पानी फिर जाये। "
maha shakti ji ab to us din ka intzaar hai jaisa din germany ke itihaas main aaiya tha !!
hamare poorvazon dwara ki gayi galiti ki saza hum bhugat rahe hain...
..Afsoos !!
SATTA BHI KESI CHEEZ HAI JO EK DESH KO TORE DETI HAI
ABB YE BTAIYE YE LOG COMUNIST NHI THE KYA
ISLIYE IS DESH KO HINDU RASHTR BANANA JAROORI HAI
MUSLIM NE DESH TORA HAI
ABB TO KOI KARA FASLA LO
JISASSE DHARMANTARAN PAR ROK LAGE OR DESH KABHI BHI NHI BATE
पता नहीं यह पोस्ट पढने से कैसे छूट गयी थी .सम्पूर्ण सत्य .
दरअसल नेहरू-गांधी परिवारवाद ही ,और उसकी सत्ता लोलुपता ही देश का सम्पूर्ण दुर्भाग्य ही नहीं ,पूर्ण श्राप है .
नेहरु बुड्ढा हो गया था लेकिन कभी बुजुर्ग नहीं बना |
काश उसने एक बुजुर्ग की भूमिका निभाई होती तो देश की आज जैसे खस्ता हालत न होती |
congress kal bhi satta mai rahana chati thi aur aaj bhi rahana chahati. satta ka liya wo kuch bhi kar sakati hai. country ka division to satta pana ka ek rasta bhar tha. aaj desh ko aapas mai tod rahi hai cast, reservation ka naam par
kab khatam hogi ye congress
अखण्ड भारत के विभाजन के सबसे बडे जिम्मेदार नेहरू और गांधी थे जिन्होंने हमेशा उदार राष्ट्रवादी मुस्लिम नेतृत्व की उपेक्षा करके अरब साम्राज्यवादी जेहादी मानसिकता वाले कट्टर मुस्लिमों का अनुचित पक्ष लिया । गांधी जी ने खिलापत आन्दोलन ( जिसका भारत अथवा भारत के मुसलमानों से कोई सम्बन्ध नहीं था । ) का समर्थन करके पाकिस्तान का आधार तो जिन्ना से भी पहले रख दिया था ।
एक बात बताएंगे कि गाँधी से ज्यादा उम्र का नेता और कौन है जो इतना समय खर्चता रहा। अगर गाँधी जी कमजोर हो चुके थे,तो इसमें गलत भी ज्यादा नहीं है।
आप एक गलत बात और कर रहे हैं कि 18 करोड़ मुसलमान रहते हैं तब और 4-5 करोड़ रह लेते, अब ये 17-18 करोड़ हैं। यानि कुल मिलाकर 35-40 करोड़ से अधिक हो जाते अगर बांग्लादेश को मिला दें।
गाँधी जी वाले सभी अलेखों को देखकर टिप्पणियाँ कर रहा हूँ।
गोड्से कंग्रेसी था ?? फिर लोग उसे संघी क्यो कहते है...... भारत विभाजन उतना बुरा नही था जितना बुरा भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाना हुआ जबकि पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामिक देश घोषित कर चुका था... जब अज़ादी के वक्त इतना रक्तपात हुआ हि था तो थोडा और होता लेकिन भेज देना था सभी मुस्लिमो को पकिस्तान और बुला लेना था सभी हिंदुओ और सिखो को भारत.... उस वक्त की अदूर्दर्शिता भारी पड रही है आज भी इस देश पर.......
गोडसे कांग्रेसी था ??? फिर लोग क्यो कहते है कि वो संघी था ?.... देश का विभाजन उतना बुरा नही था जितना बुरा था भारत को एक धर्म निरपेक्ष रष्ट्र घोषित करन, जब कि पकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर चुका थ.... विभाजन के वक्त बहुत रक्तपात हो चुका था थोडा और सही....लेकिन देश को हिंदु राष्ट्र घोषित कर दिया गया होता तो आज वर्तमान परिदृश्य मे काफी बदलाव देखने को मिलता....भेज देना था सभी मुसलमानो को पकिस्तान और बुला लेना था सभी हिंन्दुओ और सिक्खो को भारत.......
गोडसे कांग्रेसी था ??? फिर लोग क्यो कहते है कि वो संघी था ?.... देश का विभाजन उतना बुरा नही था जितना बुरा था भारत को एक धर्म निरपेक्ष रष्ट्र घोषित करन, जब कि पकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर चुका थ.... विभाजन के वक्त बहुत रक्तपात हो चुका था थोडा और सही....लेकिन देश को हिंदु राष्ट्र घोषित कर दिया गया होता तो आज वर्तमान परिदृश्य मे काफी बदलाव देखने को मिलता....भेज देना था सभी मुसलमानो को पकिस्तान और बुला लेना था सभी हिंन्दुओ और सिक्खो को भारत....... उस वक्त कि अदूर्दर्शिता आज कि समस्या है..
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