महमूद ने सन १०२६ में मूर्ति को नष्ट किया। उसने मूर्ति के ऊपरी भाग को तोड़ने का आदेश दिया और बचे हुए को, जिस में सोना, आभूषण और सुन्दर वस्त्र चढ़े हुए थे। इस का कुछ भाग, चक्रद्वामी की मूर्ति जोकि कांसे से बनी थी और थानेसर (स्थानेश्वर) से लायी गयी थी, नगर के घोड़ों के मैदान में फेंक दी गयी। सोमनाथ से लायी मूर्ति का एक टुकड़ा गज़नी की मस्जिद दे द्वार पर पड़ा है, जिस पर अपने पांवों की मिट्टी और पानी साफ़ करते हैं।अल बेरुनी - २, पृष्ठ १०३, खंड - १, पृष्ठ ११७
जनवरी १६७० में, संप्रदाय के शंशाह ने मथुरा के मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। भारी श्रम का के, उस के अधिकारियों ने कुछ ही समय में कुफ्र के उस घर का नाश कर दिया। उसके स्थान पर एक विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया। छोटी और बड़ी मूर्तियां, जिन में मूल्यवान आभूषण जड़े थे और जो इस मंदिर में स्थापित थीं, आगरा ले आयी गयीं और बेगम साहिब की मस्जिद (जहानारा मस्जिद) की सीढ़ियों के नीचे दबा डि गयीं ताकि इमानवालों के पैरों तले रौंदी जाती रहें। मथुरा का नाम इस्लामाबाद रख दिया गया।
सिकंदर लोदी के समकालीन और उस के बाद के इतिहासकार बताते हैं कि सिकंदर लोदी ने हिन्दू मंदिरों की मूर्तियां तोड़ कर उनके टुकड़े मुसलमान कसाइयों को माँस तोलने के लिए दिए थे। जब वो एक राजकुमार था, तब उसने थानेसर (कुरुक्षेत्र) में हिंदुओं के स्नान पर्व पर निषेध की इच्छा जताई थी और सूर्य ग्रहण पर एकत्रित हिन्दुओं का वध करने की आज्ञा दी थी लेकिन उसे स्थगित कर दिया था। मथुरा और अन्य कई स्थानों पर हिन्दू मंदिरों को मस्जिदों और मुसलमान सरायों में परिवर्तित कर दिया था। कुछ मंदिरों को मदरसे और बाज़ार बना दिया था।
तारीख - ऐ - दौड़ी पृष्ठ ३९, ९६-९९। मख्जान - ऐ - अफगाना पृष्ठ ६५-६६, १६६। तबकात - इ - अकबरी पृष्ठ ३२३, ३३१, ३३५-३६। तारीख - ऐ - फ़रिश्ता - १, पृष्ठ १८२, १८५-८६। तारीख-इ-सलातीन-इ-अफगाना पृष्ठ ४७, ६२-६३
इन्हें ईमानदार मुसलमानों में से अल्लाह ने खासतौर से चुना है, इन्होने अपनी सल्तनत में जहां भी मंदिर और मूर्तियां देखीं, उन्हें तोड़ दिया।Elliot and Dowson, Vol। 3, pp - 318
जहां भी काफिर और मूर्ति पूजक (मुशरिक) मूर्ति पूजा करते थे, वहाँ अल्लाह के रहम से अब मुसलमान सच्चे अल्लाह की नमाज़ करते हैं। मैंने काफिरों की मूर्तियों और मंदिरों को नष्ट कर के उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी हैं।तारीख ऐ फ़िरोज़ शाही (ELLIOT & DOWSON VOL।3, PP 380)
पूर्वी द्वार के पास दो विशाल मूर्तियां पड़ी हैं जो ताम्बे से निर्मित हैं और पत्थरों के द्वारा परस्पर जुड़ी हैं। हर कोई आने जाने वाला इन पर पाँव रख कर जाता है। इस मस्जिद के स्थान पर एक बुतखाना (मंदिर), अर्थात मूर्ति घर था। दिल्ली की फतह के बाद इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया।Ibn Battutah, p। 27; Rizvi Tughlaq Kalin Bharat, vol। I, p। १७५
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