हम देखते हैं कि 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जहां आंतरिक कलह और परिवारवाद के कारण दिन-प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है, वहीं 1925 में दुनिया को लाल झंडे तले लाने के सपने के साथ शुरू हुआ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन आज दर्जनों गुटों में बंट कर अंतिम सांसें ले रहा है। इनके विपरीत 1925 में ही स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है।
आज यदि गांधी के विचार-स्वदेशी, ग्राम-पुनर्रचना, रामराज्य-को कोई कार्यान्वित कर रहा है तो वह संघ ही है। महात्मा गांधी का संघ के बारे में कहना था- 'आपके शिविर में अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से अभाव और कठोर, सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ' (16.09.1947, भंगी कॉलोनी, दिल्ली)।
आज विभिन्न क्षेत्रों में संघ से प्रेरित 35 अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, वैकल्पिक रोजगार के क्षेत्र में लगभग 30 हजार सेवा कार्य चल रहे हैं। राष्ट्र के सम्मुख जब भी संकट या प्राकृतिक विपदाएं आई हैं, संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे पहले घटना-स्थल पर पहुंच कर अपनी सेवाएं प्रस्तुत की हैं।
संघ में बौद्धिक और प्रत्यक्ष समाज कार्य दोनों समान हैं। संघ का कार्य वातानुकूलित कक्षों में महज सेमिनार आयोजित करने या मुट्ठियां भींचकर अनर्गल मुर्दाबाद-जिंदाबाद के नारों से नहीं चलता है। राष्ट्र की सेवा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देने की प्रेरणा से आज हजारों की संख्या में युवक पंचतारा सुविधाओं की बजाय गांवों में जाकर कार्य कर रहे हैं। संघ के पास बरगलाने के लिए कोई प्रतीक नहीं है और न कोई काल्पनिक राष्ट्र है। संघ के स्वयंसेवक इन पंक्तियों में विश्वास करते हैं-'एक भूमि, एक संस्कृति, एक हृदय, एक राष्ट्र और क्या चाहिए वतन के लिए?'
संघ धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने उद्घोष किया कि 'अस्पृश्यता यदि पाप नहीं है तो कुछ भी पाप नहीं है।' बाबा साहब भीम राव अंबेडकर का कहना था- 'अपने पास के स्वयंसेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नहीं रखकर, परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहां व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों को देखकर मुझे आश्चर्य होता है' (मई, 1939, संघ शिविर, पुणे)।
संघ की दिनों दिन बढ़ती ताकत और सर्वस्वीकार्यता देखकर उसके विरोधी मनगढ़ंत आरोप लगाकर संघ की छवि को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमें स्वामी विवेकानन्द का वचन अच्छी तरह याद है: 'हर एक बड़े काम को चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है: उपेक्षा, उपहास, विरोध और अंत में विजय।' इसी विजय को अपनी नियति मानकर संघ समाज-कार्य में जुटा हुआ है। (संकलन)
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2 टिप्पणियां:
mhngaayi ,bhukhmari,gribi,bhrstachar bhi tezi se bdh rha he kya karn he kher yeh to aek sch he lekin lekh snvedanshil or vichaaniy he mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
एक संवेदनशील व् विचार करने योग्य लेख पेश किया है, धन्यवाद
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