नारद युग की बादशाहत को जिस प्रकार ब्लागवाणी ने तोड़ा और चिट्ठाजगत की चुनौतियो को स्वीकार करते हुये अपना वर्चस्व कायम रखा वाकई यह तारीफ काबिल था। ब्लागवाणी के जाने के क्या कारण थे यह आज तक जग-जाहिर न हो सके और ब्लागवाणी की वापसी के सारे प्रयास व्यर्थ होने के साथ ब्लागवाणी युग का अवसान हो गया। ब्लागवाणी अवसान के बाद निश्चित रूप से चिट्ठाजगत के पास हिन्दी चिट्ठाकारी प्रसारकर्ता के रूप मे आधिपत्य धारण करने का अवसर था किन्तु ब्लागवाणी के जाने के बाद चिट्ठाजगत का मौन पतन नव ब्लागरो के लिये दुखद रहा।
ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत के जाने के बाद एग्रीगेटरो की स्थिति मेरे संज्ञान में नहीं है.... वर्तमान में कौन-कौन से हिन्दी एग्रीगेटर काम कर रहे है। क्योंकि ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत का अंत हुये एक साल हो रहे है इस एक साल में मेरे ब्लाग पर किसी भी एग्रीगेटर से कोई पाठक नहीं आये..... यह भी यक्ष प्रश्न है कि कि कोई एग्रीगेटर है भी अथवा नहीं ? अगर है तो उन एग्रीगेटरो में शामिल होने की प्रक्रिया क्या है ?
इतने दिनों बाद एग्रीगेटर की बात क्यों छेड़ी गई यह वाकई शोचनीय प्रश्न है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि एग्रीगेटर से हटने के कारण नये ब्लागो और ब्लागरो से सम्पर्क स्थापित न हो पाना, ब्लाग जगत की नवीन हलचलों से अनिभिज्ञ्यता प्रमुख है।
किसी को वर्तमान समय में सक्रिय एग्रीगेटर के बारे में जानकारी हो तो देने का कष्ट करें।
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6 टिप्पणियां:
एकदम मन की बात कही परमेन्द्र भाई आपने .ब्लागवाणी के बाद होने के बाद लिखना बंद हो गया ..और आपको ये बता दूँ की ब्लागवाणी बंद होने के कारणों का पता करने पर मालुम हुआ की एक ग्रुप ने इसके खिलाफ मोर्चा खोलकर अनाप सनाप आरोप लगाये ..जिससे क्रुद्ध होकर सिरिल जी (ब्लागवाणी) ने ब्लागवाणी को बंद कर दिया ! दिल्ली के एक कार्यक्रम में उस ग्रुप के एक मेंबर से मिलना हुआ तो उसने बड़े गुरुर से कहा की हमने ब्लागवाणी को बंद कराया ..मन तो किया वही पटककर हिसाब बराबर कर दूँ लेकिन क्रायक्रम ऐसा था की कुछ करना ठीक नहीं था ...उस ग्रुप का भी एक अग्रीगेटर शुरू हुआ ..उसका क्या हाल है मै नहीं जानता ..हाँ अपने कनिष्क कश्यप जी ने बहुत मेहनत करके ब्लाग प्रहरी (http://blogprahari.com/
) नामक अग्रीगेटर बनाया है ..आप इसे जरुर देखें !
डॉ रत्नेश त्रिपाठी
इतिहास खुद को दोहराता है, कभी लोगों द्वारा आरोप-प्रत्यारोप के चलते नारद बन्द हुआ था, वही सब ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के साथ हुआ।
अब शायद कुछ और ऍग्रीगेटर हैं, हमारीवाणी, अपनाब्लॉग आदि नाम से पर कोई भी उन ऊँचाइयों को छू नहीं पाया।
कोई तो आगे आये अब।
बात तो पते की कही आपने।
ऊँचाई के मामले में किसी को चार मंजिला इमारत भी ऊँची लगती है और कोई एवरेस्ट को बार बार फतह कर लेता है
शायद आपने यह पोस्ट नहीं देखी
http://blogbukhar.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
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