Maithily said... मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि आप ब्लागवाणी को परिवार के साथ देख पाएंगे. जो आप नहीं देखना चाहते उसे आपको जबरदस्ती नहीं दिखाया जाएगा।
मैथली जी की उपरोक्त बात से स्पष्ट है कि पर्दे की आड़ में ब्लॉगवाणी एक पारिवारिक पार्क बना रहेगा, साथ ही साथ पर्दा हटने पर सब कुछ खुला मिलेगा। यह जरूरी भी है जो कुछ भी बातें आज ब्लागजगत में आ रही है हम इसे मन की भड़ास कह सकते है किन्तु किसी के मन की भड़ास हर किसी को अच्छी नही लगती है, और जब भड़ास निकलती है तो वह लिहाज भूल जाती है, जैसे कि मोहल्ले के चौराहे पर चोखेरबालियों को देखकर आवारें सीटीयां मारते है। इन मोहल्ले के आवारों की सीटियों पर भी हस्तक्षेप करना होगा। क्योंकि दिल के दौरे की तरह समय समय पर इन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दौरे पड़ते रहते है। मनचाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए जैसी की अरुण जी ने अपने पोस्ट पर की थी।
मैंने जानना चाहा कि आखिर क्या बात है कि विवादों में ब्लॉगवाणी को घसीटे जाने का कारण क्या है मैंने किसी और के ब्लॉग का परीक्षण करने के अपेक्षा अपने ब्लॉग को ही टटोलने की कोशिश कि तो निम्न नजीते पर पहुँचा, कि ब्लावाणी के मायने क्या है? और क्यों ब्लॉगवाणी को कटघरे में खड़ा किया जाता है। यह नतीजे आपके सामने है।
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5 टिप्पणियां:
प्रेमेन्द्र जी, क्या ये पोस्ट गैर जरूरी नहीं है?
मैं तो नहीं मानता कि ब्लागवाणी आंख की किरकिरी बना रहता है बल्कि सभी का सहयोग इसे मिल रहा है.
आपके ब्लाग पर ब्लागवाणी से अधिक ट्रेफिक आता है ये आंकड़े आपके ब्लाग के आंकड़े हो सकते है. सभी पर तो लागू नहीं होंगे.
मेरे परिवार का एक ब्लाग है जो ब्लागवाणी में भी शामिल है पर इस पर ब्लागवाणी कुल ट्रैफिक का पांच प्रतिशत भी नहीं भेजती.
होली का त्यौहार शुरू ही हुआ समझिये. हम सभी इसकी मिठास आपस में शेयर करें.
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो
हमीं हम हैं तो क्या हम हैं
प्रमेन्द्र भाई,
हौसला-अफज़ाई के लिये धन्यवाद. आप जैसे मित्रों से ही ये प्रेरणा मिलती है कि ब्लागवाणी को बेहतर बनायें.
सही लिखा।
मैथिली जी , आपकी विनम्रता को नमन करता हूं।
बिल्कुल ठीक. ब्लागवाणी सभी ब्लागरों को सबसे ज्यादा पाठक भेज रहा है.
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