दे दी हमें बरबादी चली कैसी चतुर चाल?
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
उन्नीस सौ इक्किस में असहयोग का फरमान,
गान्धी ने किया जारी तो हिन्दू औ मुसलमान.
घर से निकल पड़े थे हथेली पे लिये जान,
बाइस में चौरीचौरा में भड़के कई किसान.
थाने को दिया फूँक तो गान्धी हुए बेहाल,
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
गान्धी ने किया रद्द असहयोग का ऐलान,
यह देख भड़क उट्ठे कई लाख नौजवान,
बिस्मिल ने लिखा इसपे-ये कैसा है महात्मा!
अंग्रेजों से डरती है सदा जिसकी आत्मा.
निकला जो इश्तहार वो सचमुच था बेमिसाल,
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
पैसे की जरूरत थी बड़े काम के लिये,
लोगों की जरूरत थी इन्तजाम के लिये,
बिस्मिल ने नौजवान इकट्ठे कई किये,
छप्पन जिलों में संगठक तैनात कर दिये.
फिर लूट लिया एक दिन सरकार का ही माल,
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
चालीस गिरफ्तार हुए जेल में गये,
कुछ भेदिये भी बन के इसी खेल में गये,
पेशी हुई तो जज से कहा मेल में गये,
हम भी हुजूर चढ़ के उसी रेल में गये.
उनमें बनारसी भी था गान्धी का यक दलाल,
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
उसने किया अप्रूव ये सरकारी खजाना,
बिस्मिल ने ही लूटा है वो डाकू है पुराना,
गर छोड़ दिया उसको तो रोयेगा ज़माना,
फाँसी लगा के ख़त्म करो उसका फ़साना.
वरना वो मचायेगा दुबारा वही बबाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
बिस्मिल के साथ तीन और दार पर चढ़े,
जज्वा ये उनका देख नौजवान सब बढे,
सांडर्सका वध करके भगतसिंह निकल पड़े,
बम फोड़ने असेम्बली की ओर चल पड़े.
बम फोड़ के पर्चों को हवा में दिया उछाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
इस सबकी सजा मौत भगत सिंह को मिली,
जनता ने बहुत चाहा पे फाँसी नहीं टली,
इरविन से हुआ पैक्ट तो चर्चा वहाँ चली,
गान्धी ने कहा दे दो अभी देर ना भली.
वरना ये कराँची में उठायेंगे फिर सवाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
जब हरिपुरा चुनाव में गान्धी को मिली मात,
दोबारा से त्रिपुरी में हुई फिर ये करामात,
इस पर सवाल कार्यसमिति में ये उठाया,
गान्धी ने कहा फिर से इसे किसने जिताया?
या तो इसे निकालो या फिर दो मुझे निकाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
इस पर सुभाष कांग्रेस से निकल गये,
जिन्दा मशाल बन के अपने आप जल गये,
बदकिस्मती से जंग में जापान गया हार,
मारे गये सुभाष ये करवा के दुष्प्रचार,
नेहरू के लिये कर दिया अम्नो-अमन बहाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
आखिर में जब अंग्रेज गये घर से निकाले,
था ये सवाल कौन सियासत को सम्हाले,
जिन्ना की जिद थी मुल्क करो उनके हवाले,
उस ओर जवाहर के थे अन्दाज निराले.
बँटवारा करके मुल्क में नफरत का बुना जाल.
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल.
यह रचना KRANT M.L.Verma जी की है .... इसका श्रेय उनको ही दीजिए... मैने इस रचना को प्रवाह दिया है...
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5 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया रचना है.
कड़वी सच्चाई बयाँ करती रचना।
जय श्रीराम/ सच ब्यान किया है।
Are ye congressi to purane chor hain sale.......Mother fucker...
Very Good Composition
"JAI HIND"
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