नीति एवं अमृत वचन



  • हम हमेशा अपनी कमजोरी को अपनी शक्ति बताने की कोशिश करते हैं, अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं, अपनी कायरता को धैर्य।- विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, भाग 10, पृ. 220)
  • चारों वेद पढ़ा होने पर भी जो दुराचारी है, वह अधमता में शूद्र से भी बढ़कर है। जो अग्निहोत्र में तत्पर और जितेन्द्रिय है, उसे "ब्राह्मण" कहा जाता है।- वेदव्यास (महाभारत, वनपर्व, 313/111)
  • गुणशीलता, तात्कालिक परिस्थिति तथा भविष्य का विचार करके शीघ्रता तथा दीर्घसूत्रता दोनों को छोड़कर, देश-काल के अनुकूल अपना कार्य करना चाहिए।- भास (अविमारक, 1/9 के पश्चात)
  • राम शब्द के उच्चार से लाखों-करोड़ों हिन्दुओं पर फौरन असर होगा। और "गॉड" शब्द का अर्थ समझने पर भी उसका उन पर कोई असर न होगा। चिरकाल के प्रयोग से और उनके उपयोग के साथ संयोजित पवित्रता से शबदों को शक्ति प्रापत होती है। -महात्मा गांधी (हिन्दी नवजीवन, 19-6-1936)काले खलु समारब्धा फलं बध्नन्ति नीतय: अर्थात ठीक समय पर प्रारम्भ की गई नीतियां अवश्य ही फल प्रदान करती हैं। -कालिदास (रघुवंश, 12/69)
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