श्री सूक्तं. Shri Shuktam

श्री सूक्तं... (श्लोक संख्या 1-10 [30] )

श्री सूक्त ऋगवेद की एक भक्तिमयी ऋचा है... देवी श्री (लक्ष्मी) के लिए... जो संपत्ति, धन- धान्य की देवी हैं... श्री सूक्तं का बहुत महत्त्व है क्यूंकि देवी महालक्ष्मी जी की उपस्थिति है भागवान विष्णु के साथ... उनके ह्रदय में... और ह्रदय से ही भक्ति की जाती है... सो इस प्रेम / भक्ति /लक्ष्मी से ही भगवान नारायण की प्राप्ति हो सकती है...

|| हरिः ॐ ||

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥

[हे अग्नि (जातवेदो)... आप कृपया देवी लक्ष्मी का आवाहन कीजिये , जो स्वर्ण के समान चमकती हैं , जो सोने और चाँदी के आभूषण धारण करती हैं , सम्पदा की मूरत हैं ]

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥

[ हे अग्नि... आप कृपया मेरे लिए देवी लक्ष्मी का आवाहन कीजिये जिनके आशीर्वाद से मैं सम्पदा , पशुधन अदि को प्राप्त कर सकूँ ]

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषताम् ॥३॥

[ मैं देवी श्री (लक्ष्मी) का आवाहन करता हूँ , जिनके सम्मुख घोड़ों की कतार है और रथों की कतारें हैं ,जिनका अभिनन्दन हाथियों द्वारा किया जा रहा है , जो दिव्य तेज्मयी हैं , देवी लक्ष्मी मुझपर कृपा करें ]

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥

[ देवी लक्ष्मी मुझपर कृपा करें , जो स्वयं परमनान्द्स्वरूपा हैं , जिनके चेहरे पर एक मुस्कान सदा बनी रहती है ,प्रकाशमयी हैं , जो इच्छा पूरा करने वाली हैं , देवी लक्ष्मी अपने भक्तों की अभिलाषाओं को पूरा करती हैं ,जो कमल के पुष्प पर बैठी हैं और स्वयं भी कमल के पुष्प के सामान सुन्दर हैं ]

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणो ॥५॥

[मैं देवी लक्ष्मी पर आश्रित हूँ , इस संसार में निर्वहन करने के लिए... देवी लक्ष्मी , जो चन्द्र के समान सुन्दर हैं , तेजोमय हैं , जो देवताओं द्वारा भी पूजित हैं , जो कृपा करने वाली हैं , जो कमला हैं मेरा दुर्भाग्य समाप्त हो ]

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥

[हे सूर्य के समान चमकने वाली देवी... मैं आपकी शरण में हूँ आपकी ही शक्ति से बिल्व वृक्ष जैसे पेड़ पौधों का प्राकट्य हुआ , इसके फलों से सब अशुभता समाप्त हो , जो बाहरी इन्द्रियों और अंदरी इन्द्रियों के कारण हुए है ]

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् किर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥

[हे देवी मैं इस समृद्ध देश में जन्मा हूँ... भगवन शिव के मित्र (कुबेर... धन के देवता) मेरे पास आयें और मुझे यश और संपत्ति प्रदान करें ]

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥८॥

[हे देवी मैं आपकी बड़ी बहन अलक्ष्मी , जो भूख ,प्यास जैसी अशुभता को देने वाली हैं , उनको दूर करूँ... हे देवी मेरे घर से सारे अशुभता और दरिद्रता को दूर कीजिये ]

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीगं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥

[मैं श्री (लक्ष्मी) का आवाहन करता हूँ , जो अजेय हैं , सदैव स्वस्थ हैं ,सभी जीवों से श्रेष्ठ हैं ]

मनसः काममाकूतिं वाचस्सत्यमशीमहि ।
पशूनां रुपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥

[ देवी लक्ष्मी आपकी कृपा से हमारी इच्छाएं पूर्ण हों , हम वाणी की सत्यता को प्राप्त करें ,और हम आनंद को प्राप्त करें , हम पशुधन को प्राप्त करें , तरह तरह के भोजन को प्राप्त करें , हममें यश और धन धन्य सदैव बना रहे... ]


कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्
॥१


आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले
॥१


आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह
॥१


आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह
॥१


तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्
॥१


यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्
॥१


पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥ 

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने । 
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥ 

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् । 
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥ 

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः । 
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नु ते ॥ 

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा । 
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥ 

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः 
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥ 

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः । 
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥ 

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि । 
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥ 

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी । 
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया । 

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगण खचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः । 
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥ 

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् । 
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् । 

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधरां । 
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥ 

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती । 
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥ 

वराङ्कुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् । 
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं ताम् ॥ 

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । 
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ 

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे । 
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरिप्रसीद मह्यम् ॥ 

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् । 
विष्णोः प्रियसखींम् देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥ 
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमही । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥ 
(आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः । ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः (स्वयम् श्रीरेव देवता ॥ ) variation) (चन्द्रभां लक्ष्मीमीशानाम् सुर्यभां श्रियमीश्वरीम् । चन्द्र सूर्यग्नि सर्वाभाम् श्रीमहालक्ष्मीमुपास्महे ॥ variation) 

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महीयते । 
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥ 

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः । 
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ 

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु । 
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सविता विदध्यून् ॥ 

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति । 
सन्ततमृचा वषट्‍कृत्यं सन्धत्तं सन्धीयते प्रजया पशुभिः । 

य एवं वेद । 
महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥

॥१०॥
ॐ महादेव्यै विद्मही विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात ||



कबीर दास जी कहते है कि

चिन्ता से चतुराई घटे दुख से घटे शरीर,
पाप से लक्ष्मी घटे कहि गये दास कबीर


दूसरे के लिये भला सोचने वाले की लक्ष्मी कभी घटती नही है और पाप करने वाले की एक बार लक्ष्मी बढती दिखाई देती है वह केवल उसकी आगे की पीढियों के लिये जो स्थिर लक्ष्मी होती है वह अक्समात सामने आकर धीरे-धीरे विलुप्त होने लगती है, श्री सूक्त का पाठ और लोगों के प्रति दया तथा भला करने की भावना लक्ष्मी की व्रुद्धि करता है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. It is amazing that Hindus who do read these still do not understand what our unparalleled Dharma tried to teach us!
    Renu

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  2. Our Sanaatan Dharma is amazing it should be taught in schools from the very beginning- then we will not mis- understand and feel inferior to the aggressive religions that have brought on untold tragedy to the World!
    Renu

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  3. i want 1 to 16 stotram in sanskrit ( TEXT ) NOT PDF ......
    PLEASE HELP ME ANYONE HERE .......
    my e mail id is [email protected]

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