नेहरु की विखंडनकारी महत्वाकांक्षा यही बताती है कि १९४९ में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत रामलला की मूर्ति जन्मभूमि पर रखवाने के पक्ष में थे वही नेहरु उस स्थान से मूर्तियों को हटवाने की बात कह रहे थे। देश के दो दिग्गजों के मध्य दोहरी कशमकश का परिणाम यह हुआ कि फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी के. के. नायर को इस्तीफा देना पड़ा, वास्तव में नेहरु कभी चाहते ही नहीं थे, कि राम जन्मभूमि पर रामलला विराजमान हो। जैसा कि राजेंद्र प्रसाद और सरदार पटेल के प्रयास से गुजरात के सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार कि तर्ज पर अयोध्या के विवाद को भी समाप्त किया जा सकता था। इतिहास गवाह रहा है कि अयोध्या, कश्मीर, पाकिस्तान और तिब्बत जैसे मुद्दों पर जहां कही भी नेहरु ने अपने दूषित हाथ डाले वे मुद्दे आज भी आज भी एक ज्वलंत समस्याएं बनी हुई है।
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1 टिप्पणी:
भारत की हर दुखती राग पर हाथ रखेगे तो नेहरू को ही पायेगे इनकी यही विशेषता थी.
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