उठाकर धर्म का झंडा, करेंगे उत्थान संस्कृति का ।। धृ ||
गले में शील की माला, पहनकर ज्ञान की कफनी
पक डकर त्याग का झंडा, रखेंगे मान संस्कृति का ||१||
जलकर कष्ट की होली, ऊठा कर ईष्ट की झोली
जमाकर संत की टोली, करें ऊत्थान संस्कृति का ||२||
हमारे जन्म का सार्थक, हमारे मोक्ष का साधन
हमारे स्वर्ग का साधन, करें ऊत्थान संस्कृति का ||3||
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3 टिप्पणियां:
पढ़कर उत्साह मिलता है। ओजमयी आनंद आता है। साधुवाद!
बहुत अच्छा लगा...
ओजमयी कविता..
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