उत्तर प्रदेश सरकार के किसी भी विभाग के दफ्तर में, अधिकारी और बाबू के दस्तखत करने के रेट निर्धारित है, बिजली विभाग में बहुत जगह अपने प्रभाव से बिना "अधिकारी निधि" का भुगतान किये काम करवा लिए, अन्तोगत्वा चालान जमा करने एक 500 रु. का फॉर्म भरने के को कहा गया और यह पूछने पर कि फॉर्म कहाँ मिलेगा अमुक ठेकेदार के पास की सूचना मिली।
ठेकेदार के पास पहुंचने पर फॉर्म का मूल्य 1000 रु. हो चूका था जिसकी कोई रसीद मांगे जाने पर भी उपलब्ध नहीं थी, घूस देना और लेना दोनों कानूनन जुर्म है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से लिए जाने वाले घूस का क्या इलाज़ है? वास्तव में प्रदेश में किसी भी विभाग में बिना घूस के कोई काम संभव ही नहीं है।
एक सुझाव है कि प्रदेश में घूस प्रथा को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए. "मुख्यमंत्री घूस निधि" नाम से विभाग बने जहाँ पर निधारित कम के लिए घूस देकर रसीद जनता रसीद कटवा ले ताकि जनता को प्रत्येक पटल पर फुटकर में घूस देने बचना पड़े और घूस देना और लेना दोनों कानूनन जुर्म है के अपराध और अपराधी दोनों बचे रहे। एक माह में मुख्यमंत्री घूस निधि विभाग द्वारा एकत्र राशि को मंत्री, विधायक, अधिकारी और कर्मचारियों में औकातानुसार वितरित कर दिया जायेा।
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