तुलसी रचित श्री राम चरित् मानस के चुनिंदा अंश
- "बचन परम हित सुनत कठोरे। सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे।।"
सुनने में कठोर परन्तु हितकारी वचन कहने व सुनने वाले मनुष्य बहुत थोडे हैं।
- "नारि सुभाउ सत्य सब कहहिं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।।
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।।"
नारी के हृदय में आठ अवगुण सदा रहते हैं-साहस, झूठ, चंचलता, छल, भय, अविवेक,अपवित्रता व निर्दयता।
- "प्रीति विरोध समान सन करिअ नीति असि आहि।
जौं मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कहई कोउ ताहि।।"
प्रीति और वैर बराबरी वालों से ही करना चाहिए, नीति ऐसी ही है; सिंह यदि मेंढकों के मारे तो क्या उसे कोई भला कहेगा।
- "काल दंड गहि काहु न मारा हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा।"काल दंड(लाठी) लेकर किसी को नहीं मारता; वह तो धर्म,बल बुद्धि व विचार को हर लेता है।
- "सुत, बित, नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।"
पुत्र,धन,स्त्री,घर और परिवार; ये जगत में बार-बार होते हैं और जाते हैं,परन्तु जगत में सहोदर भाई बार बार नहीं मिलता।
- "पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।’
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपवाद।ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद।।"
जो दूसरों से द्रोह करते हैं, परायी स्त्री, पराया धन, परायी निन्दा में आसक्त रहते हैं वे पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं।
- "श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि।
मृग लोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि।।"
लक्ष्मी के मद् ने किसको टेढा और प्रभुता ने किसको बहरा न कर दिया? ऐसा कौन है जिसे मृगनयनी के नेत्र बाण न लगे हों।
- "नारि बिबस नर सकल गौसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं।।"
सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और (कलियुग में) बाजीगर के बंदर की तरह नाचते हैं।
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