कल मैंने पहली बार किसी मूवी का फर्स्ट डे/फर्स्ट शो देखा. यह भी है कि यह किसी भी सिनेमा हाल में Dhobi Ghat के बाद पहली फिल्म थी. इस फिल्म को देखने की भूमिका मेरे साथ Vivek Mishra ने बनायीं और उनका साथ दिया Sonu Sadhwani ने, जो कि बेहद मस्ती भरा और रोमांचक था.
कल भाई Varun Singh जहाँ तक डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी अपना मत देना होगा तो मैं इसे बहुत अच्छी फिल्म नहीं कहूँगा. फिल्म में सस्पेंस काफी है जो बहुत हद तक दूर नहीं हुआ. तत्कालीन परिवेश के अनुसार संवाद में जल्दबाजी फिल्म के संवाद को समझने नही देते है और कब क्या हो जाता है आप पिछली बात समझने की कोशिश करते है तब तक वर्तमान संवाद आगे बढ़ चूका होता है.
फिल्म के सीन काफी डार्क है जो आख फाड़ने पर मजबूर करती है और एकाएक इतने पात्र भी प्रकट हुए है कि कौन किसका दोस्त और कौन किसका शत्रु है. फिल्म में एक चुंबन दृश्य है जो सर्वथा अप्रासंगिक और निरर्थक है क्योंकि 40 के दशक का एक डिटेक्टिव से ऐसे दृश्य की अपेक्षा करना कठिन है. फिल्मों को समझने के लिए अगर आप आराम की मुद्रा में बैठ आकर फिल्म देख रहे है तो आप गलत कर रहे है कही कही कमजोर संबाद यह कहने पर मजबूर कर देते है बायलूम तेज कर या चेयर से उठ कर आप मूवी को इंजॉय करे पर यह घर नहीं है थिएटर है जहाँ यह संभव नहीं है.
धारावाहिक ब्योमकेश बक्शी के समक्ष फिल्म डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी दूर दूर तक समकक्ष नहीं दिखती है. सुशांत अपनी ऐतिहासिक भूमिका में बिलकुल भी सफल नहीं रहे है. उनमे एक डिटेक्टिव की अपेक्षा लवर बॉय की झलक ज्यादा नज़र आ रही थी. जहाँ तक मुझे लगता है कि डिटेक्टिव की भूमिका में नसीरुद्दीन शाह या के के मेनन ज्यादा अच्छा परफॉर्म कर पाते.
जहाँ तक आपको फिल्म देखने लिए कहूँ कि नहीं तो मैं कहूँगा कि यदि आप थिलर और सस्पेंसियल मूवीज देखने के शौक़ीन है तो आपको यह देखनी चाहिए क्योकि भारत में ऐसी मूवीज कम ही बनती है. अगर आप धारावाहिक ब्योमकेश बख्शी की छवि लेकर मूवी देखने जा रहे है तो आपको यह फिल्म बेहद निराशा देगी.
फिल्म का अंत यह इंगित करता है कि डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी की कई सीरीज आ सकती है, आगे के पार्ट यदि ऐसे ही रहे तो निर्मता के लिए यह घाटा का सौदा तो होगा ही साथ ही साथ ब्योमकेश बख्शी के मुरीद दर्शकों के साथ अन्याय होगा.
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