वरिष्ठ अधिवक्ता और कनिष्ठ अधिवक्ता के मध्य वर्तमान सम्बन्ध



उच्च न्यायलय में जूनियर द्वारा सीनियरों को सम्मान दिए जाने की परम्परा बहुत पुरानी है. मैंने अपने सीनियरों से सुना था कि जब कभी कोई जूनियर अधिवक्ता किसी सीनियर अधिवक्ता की तौहीनी करता था तो सीनियर अधिवक्ता रौब के साथ उसे बुलाता था और पूछता था कि किसके चम्बर से हो? वहां सीनियरों के साथ कैसे पेश होना है तमीज़ नही सिखाई जाती ?

आज परिस्थितियां काफ़ी बदल गयी है बहुत बार देखने में आया है कि जूनियर्स सीनियर्स के लिए बैठने के लिए अपना स्थान भी नही छोड़ते है. इसके लिए जितने जिम्मेदार जूनियर्स है उतने ही आज के तथाकथित सीनियर्स भी है.

करीब दो साल पहले कोर्ट नंबर 10 में मा. न्यायमूर्ति अरुण टंडन और  मा. न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी की कोर्ट का एक वाक्या याद आता है कि स्टेट का 35-40 वर्षीय स्टैंडिंग काउंसिल कोर्ट में गलत बयानी में फंस गया था. माननीय न्यायमूर्ति इस बात से काफ़ी खफा थे. यहाँ तक कि स्टैंडिंग काउंसिल के खिलाफ़ आर्डर में काफ़ी कुछ लिखवा चुके थे और चीफ़ स्टैंडिंग काउंसिल को कोर्ट में अगली डेट में तलब कर लिए थे. कोर्ट के रूख से स्टैंडिंग काउंसिल हैरान परेशान खड़ा माफ़ी मांग रहा था.

किसी का नाम नही लूँगा सबको अच्छी तरह से जनता हूँ कोर्ट रूम में करीब 7-8 Designated Senior Advocate मौजूद थे, किसी ने भी उस जूनियर अधिवाक्ता के बचाव में कोई प्रयास नही किया, जबकि उच्च न्यायालय की परम्परा रही है कि जूनियर अधिक्वाताओं द्वारा बेंच के समक्ष भूल-चूक के संबध में सीनियर्स हमेशा बचाव में आते थे और किसी भी एडवर्स आर्डर से उनको बचाते थे.

तत्कालीन परिस्थितियों में सीनियर्स द्वारा यह मौन निश्चित रूप से जूनियर्स और सीनियर्स के मध्य सम्मान के आदानप्रदान के सम्बन्ध को कमजोर कर रहा है. जब सीनियर्स ही अपना कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे है तो जुनिअर्स से कैसे सम्मान की अपेक्षा कर सकते है.

कोर्ट का एक भी एडवर्स आर्डर उस जूनियर अधिवक्ता का कैरियर चौपट कर सकता था. इसी बीच एक अनुभवी किन्तु Non-designated Senior Advocate उठे और कोर्ट के समझ उस अधिवक्ता को माफ़ करने और एक और मौका देने की बात की. काफ़ी चिक-चिक के बाद कोर्ट उन अधिवक्ता महोदय के अनुरोध को स्वीकार करते हुए स्टैंडिंग काउंसिल के खिलाफ लिखाये गए आदेश को कटवा दिया.

निश्चित रूप से उन अधिवक्ता महोदय ने उन सभी Designated Senior Advocates को आइना दिखाने का काम किया और जूनियर अधिवक्ता को कोर्ट के आक्रामक रूख से बचाया और उसके भविष्य को भी.

ऐसे चुनाव सहित बहुत से मौके आते है जब सीनियर्स जूनियर्स के हितों की बात करते नज़र आते है किन्तु बेंच के समक्ष जूनियर्स के प्रति उनका मौन अनेको प्रश्न खड़े कर देता है.


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नेत्र रोग-व्याधि निवारण एवं उपचार



  • नेत्र-स्नान- आँखों को स्वच्छ, शीतल और निरोगी रखने के लिए प्रातः बिस्तर से उठकर, भोजन के बाद, दिन में कई बार और सोते समय मुँह में पानी भरकर आँखों पर स्वच्छ, शीतल जल के छींटे मारें। इससे आँखों की ज्योति बढ़ती है। ध्यान रहे कि मुँह का पानी गर्म न होने पाये। गर्म होने पर पानी बदल लें। मुँह में से पानी निकालते समय भी पूरे जोर से मुँह फुलाते हुए वेग से पानी को छोड़ें। इससे ज्यादा लाभ होता है। आँखों के आस-पास झुर्रियाँ नहीं पड़तीं। इसके अलावा अगर पढ़ते समय अथवा आँखों का अन्य कोई बारीक कार्य करते समय आँखों में जरा भी थकान महसूस हो तो इसी विधि से ठंडे पानी से आँखों को धोयें। आँखों के लिए यह रामबाण औषध है।
  • पानी में आँखें खोलें - स्नान करते समय किसी चौड़े मुँहवाले बर्तन में साफ, ताजा पानी लेकर, उसमें आँखों को डुबोकर बार-बार खोलें और बंद करें। यह प्रयोग अगर किसी नदी या सरोवर के शुद्ध जल में डुबकी लगाकर किया जाय तो अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद होता है। इस विधि से नेत्र-स्नान करने से कई प्रकार के नेत्ररोग दूर हो जाते हैं।
  • विश्राम - हम दिन भर आँखों का प्रयोग करते हैं लेकिन उनको आराम देने की ओर कभी ध्यान नहीं देते। आँखों को आराम देने के लिए थोड़े-थोड़े समय के अंतराल के बाद आँखों को बंद करके, मन को शांत करके, अपनी दोनों हथेलियों से आँखों को इस प्रकार ढँक लो कि तनिक भी प्रकाश और हथेलियों का दबाव आपकी पलकों पर न पड़े। साथ ही आप अंधकार का ऐसा ध्यान करो, मानों आप अँधेरे कमरे में बैठे हुए हैं। इससे आँखों को विश्राम मिलता है और मन भी शांत होता है। रोगी-निरोगी, बच्चे, युवान, वृद्ध – सभी को यह विधि दिन में कई बार करना चाहिए।
  • आँखों को गतिशील रखो - 'गति ही जीवन है' इस सिद्धान्त के अनुसार हर अंग को स्वस्थ और क्रियाशील बनाये रखने के लिए उसमें हरकत होते रहना अत्यंत आवश्यक है। पलके झपकाना आँखों की सामान्य गति है। बच्चों की आँखों में सहज रूप से ही निरंतर यह गति होती रहती है। पलकें झपकाकर देखने से आँखों की क्रिया और सफाई सहज में ही हो जाती है। आँखे फाड़-फाड़कर देखने की आदत आँखों का गलत प्रयोग है। इससे आँखों में थकान और जड़ता आ जाती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमें अच्छी तरह देखने के लिए नकली आँखें अर्थात चश्मा लगाने की नौबत आ जाती है। चश्मे से बचने के लिए हमें बार-बार पलकों को झपकाने की आदत को अपनाना चाहिए। पलकें झपकाते रहना आँखों की रक्षा का प्राकृतिक उपाय है।
  • सूर्य की किरणों का सेवन - प्रातः सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्योदय के कुछ समय बाद की सफेद किरणें बंद पलकों पर लेनी चाहिए। प्रतिदिन प्रातः और अगर समय मिले तो शाम को भी सूर्य के सामने आँखें बंद करके आराम से इस तरह बैठो कि सूर्य की किरणें बंद पलकों पर सीधी पड़ें। बैठे-बैठे, धीरे-धीरे गर्दन को क्रमशः दायीं तथा बायीं ओर कंधों की सीध में और आगे पीछे तथा दायीं ओर से बायीं ओर व बायीं ओर से दायीं ओर चक्राकार गोलाई में घुमाओ। दस मिनट तक ऐसा करके आंखों को बंद कर दोनों हथेलियों से ढक दो जिससे ऐसा प्रतीत हो, मानों अंधेरा छा गया है। अंत में, धीरे-धीरे आँखों को खोलकर उन पर ठंडे पानी के छींटे मारो। यह प्रयोग आँखों के लिए अत्यंत लाभदायक है और चश्मा छुड़ाने का सामर्थ्य रखता है।
आँखों की सामान्य कसरतें
  • हर रोज प्रातः सायं एक-एक मिनट तक पलकों को तेजी से खोलने तथा बंद करने का अभ्यास करो।
  • आँखों को जोर से बंद करो और दस सेकंड बाद तुरंत खोल दो। यह विधि चार-पाँच बार करो।
  • आँखों को खोलने बंद करने की कसरत जोर देकर क्रमशः करो अर्थात् जब एक आँख खुली हो, उस समय दूसरी आँख बंद रखो। आधा मिनट तक ऐसा करना उपयुक्त है।
  • नेत्रों की पलकों पर हाथ की उंगलियों को नाक से कान की दिशा में ले जाते हुए हलकी-हलकी मालिश करो। पलकों से उँगलियाँ हटाते ही पलकें खोल दो और फिर पलकों पर उंगलियों लाते समय पलकों को बंद कर दो। यह प्रक्रिया आँखों की नस-नाड़ियों का तनाव दूर करने में सक्षम है।
  • विद्यार्थियों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि वे आँखों को चौंधिया देने वाले अत्यधिक तीव्र प्रकाश में न देखें। सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय सूर्य और चन्द्रमा को न देखें। कम प्रकाश में अथवा लेटे-लेटे पढ़ना भी आँखों के लिए बहुत हानिकारक है। आजकल के विद्यार्थी आमतौर पर इसी पद्धति को अपनाते हैं। बहुत कम रोशनी में अथवा अत्यधिक रोशनी में पढ़ने-लिखने अथवा नेत्रों के अन्य कार्य करने से नेत्रों पर जोर पड़ता है। इससे आँखें कमजोर हो जाती हैं और कम आयु में ही चश्मा लग जाता है। पढ़ते समय आँखों और किताब के बीच 12 इंच अथवा थोड़ी अधिक दूर रखनी चाहिए।
  • उचित आहार-विहार - आपकी आँखों का स्वास्थ्य आपके आहार पर भी निर्भर करता है। कब्ज नेत्ररोगों के अलावा शरीर के कई प्रकार के रोगों की जड़ है। इसलिए पेट हमेशा साफ रखो और कब्ज न होने दो। इससे भी आप अपनी आँखों की रक्षा कर सकते हैं। इसके लिए हमेशा सात्त्विक और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। अधिक नमक, मिर्च, मसाले, खटाई और तले हुए पदार्थों से जहाँ तक हो सके बचने का प्रयत्न करना चाहिए। आँखों को निरोगी रखने के लिए सलाद, हरी सब्जियाँ अधिक मात्रा में खानी चाहिए।
  • योग से रोग मुक्ति - योगासन भी नेत्ररोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। सर्वांगासन नेत्र-विकारों को दूर करने का और नेत्र-ज्योति बढ़ाने का सर्वोत्तम आसन है।
नेत्र-रक्षा के उपाय
  • गर्मी और धूप में से आने के बाद गर्म शरीर पर एकदम से ठंडा पानी न डालो। पहले पसीना सुखाकर शरीर को ठंडा कर लो। सिर पर गर्म पानी न डालो और न ज्यादा गर्म पानी से चेहरा धोया करो।
  • बहुत दूर के और बहुत चमकीले पदार्थों को घूरकर न देखा करो।
  • नींद का समय हो जाए और आंखें भारी होने लगे, तब जागना उचित नहीं।
  • सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँखों पर तनाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखें बेनूर, रूखी और तीखी होने लगती हैं।
  • धूल, धुआँ और तेज रोशनी से आँखों को बचाना चाहिए।
  • अधिक खट्टे, नमकीन और लाल मिर्च वाले पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। मल-मूत्र और अधोवायु के वेग को रोकने, ज्यादा देर तक रोने और तेज रफ्तार की सवारी करने से आँखों पर सीधी हवा लगने के कारण आंखें कमजोर होती हैं। इन सभी कारणों से बचना चाहिए।
  • मस्तिष्क को चोट से बचाओ। शोक-संताप व चिंता से बचो। ऋतुचर्या के विपरीत आचरण न करो और आँखों के प्रति लापरवाह न रहो। आँखों से देर तक काम लेने पर सिर में भारीपन का अनुभव हो या दर्द होने लगे तो तुरंत अपनी आँखों की जाँच कराओ।
  • घर पर तैयार किया गया काजल सोते समय आँखों में लगाना चाहिए। सुबह उठकर गीले कपड़े से काजल पोंछकर साफ कर दो।


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सूचना का अधिकार के सम्‍बन्‍ध में सामान्‍य जानकारी



 
भारत शासन,विधि एवं न्‍याय मंत्रालय, ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत के राजपत्र असाधारण भाग-2 खण्‍ड 1 के प़ष्‍ठ 9 से 22 में दिनाँक 21 जून, 2005 को प्रकाशित किया है।

इस अधिनियम का मूल मंतव्‍य यह है कि लोकतांत्रिक शासन में सरकार और सरकारी मशीनरी जनता के प्रति जवाबदेह हो तथा सरकारी मशीनरी के क्रियाकलाप में पारदर्शिता हो। अधिनियम के माध्‍यम से भारत के प्रत्‍येक नागरिक को लोक प्राधिकारियों के नियंत्रण में जो काई भी सूचनाएं उनके कार्य-कलापों के संबंध में उपलब्‍ध होती है, उन्‍हें देने की व्‍यवस्‍था की गई है। इसका उददेश्‍य लोक प्राधिकारियों के कार्यकलापों में पारदर्शिता लाना है और जवाबदेह बनाना है। प्रत्‍येक कार्यलय को सूचना देने के लिए जन सूचना अधिकारी का नामांकन किया जाना आवश्‍यक है। उनका दायित्‍व है कि वह सभी विषयों में किसी भी नागरिक के द्वारा आवेदन पर मांगी गई सूचना प्रदान करें, यदि सूचना अधिनियम की धारा 8 (1) के अंतर्गत नहीं आती है तो अधिनियम में यह व्‍यवस्‍था भी की गयी है कि सूचना चाहे जाने पर यदि जन सूचना अधिकारी समय पर संबंधित को जानकारी उपलब्‍ध नहीं करायी जाती है तो ऐसे अधिकारियों को केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सरकार द्वारा गठित राज्‍य सूचना आयोग द्वारा दंडित किया जा सकता है। उम्‍मीद यह है कि इस अधिनियम के माध्‍यम से नागरिकों को जो जानकारी कार्यालयों से प्राप्‍त नहीं होती थी, उन्‍हें प्राप्‍त करने में उनको सुलभता होगी । यह अधिनियम जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य को छोड़कर सम्‍पूर्ण भारत में दिनाँक 12 अक्‍टूबर,2005 से लागू हो चुका है।

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 15 के अंर्तगत उत्‍तर प्रदेश में राज्‍य सूचना आयोग का गठन राज्‍य करकार की अधिसूचना संख्या 856/43-2-2005-15/2 (2)/ 2003 टी सी-4 दिनांक 14-09-2005 द्वारा किया गया है | उत्‍तर प्रदेश में आयेग का गठन होने के उपरान्‍त शासन ने राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त के पद पर माननीय न्‍यायमूर्ति श्री एम0 ए0 खान को नियुक्‍त किया जिन्‍होंने शपथ ग्रहण कर कार्यभार दिनांक 22-03-2006 को ग्रहण कर कार्य प्रारम्‍भ किया | मुख्‍य सूचना आयुक्‍त तथा राज्‍य सूचना आयुक्‍त नियुक्ति के लिए वही व्‍यक्ति पात्र है जो सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित/उत्‍कृष्‍ठ है तथा जिन्‍हे जानकारी / ज्ञान विधि विज्ञान तथा सामाजिक सेवा प्रबन्‍धन, पत्रकारिता, मासमीडिया, प्रशासन और शासन के क्षेत्र का व्‍यापक ज्ञान हो अधिनियम की धारा 15(7) के अनुसार राज्‍य सूचना आयोग का मुख्‍यालय ऐसी जगह होगा जिसे सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्‍ट किया जाए। राज्‍य सरकार की राय से राज्‍य सूचना आयेग राज्‍य के अन्‍य स्‍थानों में अपने कार्यलय स्‍थापित कर सकेगा। राज्‍य सूचना आयोग का मुख्‍यालय एवं कार्यालय इन्दिरा भवन अशोक मार्ग के छठे तल पर स्थित है। आयोग से निम्‍नांकित नंबरों पर टेलिफोन एवं फैक्‍स के माध्‍यम से सम्‍पर्क किया जा सकता है ।

1 दूरभाष , राज्‍य सूचना आयेग (0522) 2288599
2 फैक्‍स, राज्‍य सूचना आयोग (0522) 2288600


अधिनियम की धारा 16 के अनुसार राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त पांच वर्षो की पदा‍वधि के लिए पद धारण करेंगे। उन्‍हें पुनर्नियुक्ति की पात्रता नही होगी। यदि राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त अपने कार्यकाल के दौरान 65 वर्ष की आयु प्राप्‍त कर लेते है, उसके पश्‍चात पद धारण नहीं कर सकेंगे। राज्‍य सूचना आयुक्‍त का कार्यकाल में भी 5 वष्र से अधिक नहीं होगा। राज्‍य सूचना आयुक्‍त मुख्‍य सूचना आयुक्‍त पद पर नियुक्ति की पात्रता रखेंगे, परन्‍तु उनका कार्यकाल दोंनो पदों को मिलाकर केवल पांच वर्ष ही रहेगा। राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुकत का दर्जा केन्‍द्रीय निर्वाचन आयोग के निर्वाचन आयुक्‍त के समकक्ष रखा गया है, उन्‍हें देय वेतन एवं भत्‍ते तथा सेवा की अन्‍य निबंधन और शर्ते निर्वाचन आयुक्‍त के समान प्राप्‍त होगी, जहॉ तक राज्‍य सूचना आयुक्‍त का सवाल हे, उन्‍हे राज्‍य सरकार के मुख्‍य सचिव के समकक्ष वेतन, भत्‍ते एवं अन्‍य सेवा शर्ते प्राप्‍त होंगी। यहॉ यह भी उल्‍लेखनीय है कि राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त का पद माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश के समकक्ष है। मुख्‍य सूचना आयुक्‍त तथा अन्‍य आयुक्‍त किसी भी समय त्‍याग- पत्र देकर अपना पद छोड़ सकते है विशेष परिस्थितियों में धारा 17 के अन्‍तर्गत राज्‍यपाल द्वारा माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय को किये गये रिफरेंस पर जांच के बाद राज्‍यपाल के आदेश द्वारा राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त या राज्‍य सूचना आयुक्‍त को प्रमाणित/सिद्ध. दुर्व्‍यवहार तथा असमर्थता (अक्षमता) के आधार पर हटाया जा सकता है।

राज्‍य सूचना आयोग के कर्तव्‍यों और दायित्‍वों का उल्‍लेख सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 18 से 20 में किया गया है। वस्‍तुत: राज्‍य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील एवं शिकायतें ही की जा सकती है। राज्‍य सूचना आयोग दोषी अधिकारियों पर शास्ति भी आरोपित कर सकता है और राज्‍य शासन को अनुशासनात्‍मक कार्यवाही करने के लिए अनुशंसा भी कर सकता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 6 के अन्‍तर्गत सूचना प्राप्‍त करने के लिए सर्वप्रथम जन सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्‍तुत किया जाना चाहिये। प्रत्‍येक लोक प्राधिकारी का दायित्‍व है कि वह अपने प्रत्‍येक कार्यालय में अधिनियम की धारा 5 के अनुसार जन सूचना अधिकारी नामांकित करें। उप जिला या उप संभाग स्‍तरीय कार्यालयों में सहायक जन सूचना अधिकारी नामांकित किये जाने का प्रावधान है। सहायक जन सूचना अधिकारी को सूचना प्राप्‍त करने संबंधी आवेदन / ज्ञापन प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत किया गया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम को प्रभावशाली करने की दृष्टि से अधिनियम की धारा 20 में राज्‍य सूचना आयोग को यह अधिकार दिया गया है कि यदि कोई जन सूचना अधिकारी बिना किसी यथोचित कारण के किसी सूचना के लिए प्रस्‍तुत किए गये सूचना के आवेदन को लेने से इन्‍कार करता है अथवा निर्धारित समयावधि में सूचना नहीं देता है या किसी दुराग्रह से मांगी गई सूचना नहीं देता है या जान बूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना प्रदान करता है या जो सूचना उसे प्रदान करनी है उसे प्रदान नहीं करता है तो उस पर 350 रूपये प्रतिदिन की दर से दण्‍ड लगाया जा सकता है। यह दण्‍ड अधिकतम रूपये 25,000/- तक हो सकता है। राज्‍य सूचना आयोग को यह भी अधिकार दिया गया है कि वह इस प्रकार के व्‍यक्ति पर अनुशासनात्‍मक कार्यवाही करने के लिए अनुशंसा कर सकता है। यह कार्यवाही राज्‍य सूचना आयोग तभी कर सकता है जबकि उसे किसी शिकायत या अपील में सुनवाई के दौरान यह बात सामने आती है कि उसमें कार्यवाही की जानी आवश्‍यक है।

यहां यह उल्‍लेख करना आवश्‍यक है कि इस संबंध में कार्यवाही राज्‍य सूचना आयोग को स्‍वयं अपील अथवा शिकायत की सुनवाई के दौरान जो तथ्‍य या आचरण सामने आता है उसके आधार पर दण्‍ड लगाने का अधिकार है। राज्‍य सूचना आयोग को किसी प्रकार का दण्‍ड अधिरोपित करने के पूर्व संबंधित जन सूचना अधिकारी को अपना पक्ष प्रस्‍तुत करने के लिए अलग से अवसर प्रदान करना आवश्‍यक है।

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