ताजमहल या तेजोमहालय इसकी गुत्थी सुलझने में तो न जाने कितना वक्त लगे। हां, इतिहास कुछ तथ्यों की धुंधली ही सही पर तस्वीर पेश कर रहा है। वर्ष 1888 में मिले एक शिलालेख में ताज को राजा परमार्दिदेव का शिव मंदिर बताया गया है।
इतिहास की बेशकीमती जानकारी देने वाला शिलालेख बटेश्वर में कराए गए उत्खनन में मिला था। दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल को लेकर सिविल अदालत में लखनऊ के हरीशंकर जैन और अन्य द्वारा अग्रेश्वर नाथ महादेव का मंदिर बताते हुए वाद दायर किया गया। इसमें तर्क दिया गया कि मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा परमार्दिदेव द्वारा कराया गया। जागरण की छानबीन में सामने आया है कि बटेश्वर में हुए उत्खनन में मिले राजा परमार्दिदेव से जुड़ा एक शिलालेख भी यही कहता है। यह शिलालेख बटेश्वर में एक टीले पर वर्ष 1888 में कराए गए उत्खनन में मिला था।
यह राजा परमार्दिदेव के शासन विक्रमी संवत् 1252 (1195 ईस्वी) से जुड़ा है। शिलालेख पर दो फुट चौड़ाई और करीब एक फुट आठ इंच ऊंचाई में नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में 24 श्लोक उत्कीर्ण हैं। इनमें राजा परमार्दिदेव के मंत्री सलक्षणा द्वारा दो भव्य मंदिर बनवाने का उल्लेख है, जिनमें एक वैष्णव और दूसरा शैव मंदिर था। इनमें से शैव मंदिर के निर्माण का काम सलक्षणा के पुत्र पुरुषोत्तमा द्वारा पूर्ण कराया गया था। शिलालेख में यह स्पष्ट नहीं होता कि परमार्दिदेव ने मंदिरों का निर्माण कहां कराया? मगर यह स्पष्ट है कि विष्णु भगवान का एक मंदिर बनवाया और उसमें प्रतिमा स्थापित की, जिसकी ऊंचाई आकाश को चूमती थी। वहीं भगवान शिव का चंद्रमा की तरह चमकने वाला बर्फ की तरह चमकने वाला मंदिर बनवाया, जिससे कि आराध्य देव अपने निवास स्थान कैलास पर जाने के बारे में न सोचें। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एपिग्राफिका इंडिका वोल्यूम-फस्र्ट और कार्पस इंस्क्रिप्शंस इंडीकेरम वोल्यूम सात-भाग 3 में शिलालेख के उत्खनन और उस पर उत्कीर्ण लेख के साथ उसका अनुवाद भी दिया गया है। उत्खनन में मिला शिलालेख इस समय लखनऊ के संग्रहालय में रखा हुआ है। ताज भी चंद्रमा के समान ही चमकता है, इसी के चलते सिविल अदालत में दायर वाद में उसे राजा परमार्दिदेव द्वारा बनवाया गया शिव मंदिर बताया गया है। इस मामले में छह मई को गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और एएसआइ को जवाब दाखिल करना है। 13 मई को वाद बिंदु तय किए जाएंगे।
इतिहास की बेशकीमती जानकारी देने वाला शिलालेख बटेश्वर में कराए गए उत्खनन में मिला था। दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल को लेकर सिविल अदालत में लखनऊ के हरीशंकर जैन और अन्य द्वारा अग्रेश्वर नाथ महादेव का मंदिर बताते हुए वाद दायर किया गया। इसमें तर्क दिया गया कि मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा परमार्दिदेव द्वारा कराया गया। जागरण की छानबीन में सामने आया है कि बटेश्वर में हुए उत्खनन में मिले राजा परमार्दिदेव से जुड़ा एक शिलालेख भी यही कहता है। यह शिलालेख बटेश्वर में एक टीले पर वर्ष 1888 में कराए गए उत्खनन में मिला था।
यह राजा परमार्दिदेव के शासन विक्रमी संवत् 1252 (1195 ईस्वी) से जुड़ा है। शिलालेख पर दो फुट चौड़ाई और करीब एक फुट आठ इंच ऊंचाई में नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में 24 श्लोक उत्कीर्ण हैं। इनमें राजा परमार्दिदेव के मंत्री सलक्षणा द्वारा दो भव्य मंदिर बनवाने का उल्लेख है, जिनमें एक वैष्णव और दूसरा शैव मंदिर था। इनमें से शैव मंदिर के निर्माण का काम सलक्षणा के पुत्र पुरुषोत्तमा द्वारा पूर्ण कराया गया था। शिलालेख में यह स्पष्ट नहीं होता कि परमार्दिदेव ने मंदिरों का निर्माण कहां कराया? मगर यह स्पष्ट है कि विष्णु भगवान का एक मंदिर बनवाया और उसमें प्रतिमा स्थापित की, जिसकी ऊंचाई आकाश को चूमती थी। वहीं भगवान शिव का चंद्रमा की तरह चमकने वाला बर्फ की तरह चमकने वाला मंदिर बनवाया, जिससे कि आराध्य देव अपने निवास स्थान कैलास पर जाने के बारे में न सोचें। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एपिग्राफिका इंडिका वोल्यूम-फस्र्ट और कार्पस इंस्क्रिप्शंस इंडीकेरम वोल्यूम सात-भाग 3 में शिलालेख के उत्खनन और उस पर उत्कीर्ण लेख के साथ उसका अनुवाद भी दिया गया है। उत्खनन में मिला शिलालेख इस समय लखनऊ के संग्रहालय में रखा हुआ है। ताज भी चंद्रमा के समान ही चमकता है, इसी के चलते सिविल अदालत में दायर वाद में उसे राजा परमार्दिदेव द्वारा बनवाया गया शिव मंदिर बताया गया है। इस मामले में छह मई को गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और एएसआइ को जवाब दाखिल करना है। 13 मई को वाद बिंदु तय किए जाएंगे।
कौन थे राजा परमार्दिदेव- राजा परमार्दिदेव कालिंजर व महोबा के शासक थे। 1165 ईस्वी में सिंहासन पर बैठे। उन्हें चंदेल वंश का अंतिम प्रभावशाली शासक माना जाता है। चंदेलों का साम्राज्य यमुना-नर्मदा नदी के बीच फैला था, जिसमें वर्तमान बुंदेलखंड और दक्षिणी पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा आता था। परमार्दिदेव के सेनापति आल्हा और ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान से टक्कर ली। वह कन्नौज के राजा जयचंद्र के मित्र थे, इसलिए अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान उनके प्रतिद्वंद्वी थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1202 ईस्वी में कालिंजर पर आक्रमण किया। कुछ दिन तक लडऩे के बाद परमार्दिदेव ने हार मान ली। जिसके कुछ दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। (दैनिक जागरण की रपट)
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