सिद्धार्थनगर जनपद में मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर डुमरियागंज तहसील में ग्राम-भारत-भारी में स्थित शिव
मन्दिर और उसके सामने स्थित तालाब, जो लगभग 16 बीघे क्षेत्रफल में है और यह सागर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भगवान शिव के नाम से घोषित हो चुका है। तालाब के किनारे हनुमान, रामजानकी और दुर्गा जी के मन्दिर स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां बहुत बडा मेला लगता है, जो लगभग एक सप्ताह चलता है, जिसमें लाखों दर्शनार्थी भाग लेते है। इसके अतिरिक्त चैतराम नवमी और शिवरात्रि के पर्व पर भी यहां मेला लगता है। यूनाइटेड प्राविसेंज आफ अवध एण्ड आगरा के वाल्यूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ठ-96 और 97 में इस स्थल का उल्लेख है कि वर्ष 1875 में भारत भारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व भी है। महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने भारत भारी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय भारत भारी का नाम भरत भारी था। यह कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास में आर्द्रवन से गुजर रहे थे तो उनसे मिलने भग्वान श्रीकृष्ण भारत-भारी गांव से ही गुजरे थे। यहां उन्होंने शिव मन्दिर देखा तो रूक गये और पास के सागर में स्नान करने के बाद मन्दिर में जाकर पूजा अर्चना की।
मन्दिर और उसके सामने स्थित तालाब, जो लगभग 16 बीघे क्षेत्रफल में है और यह सागर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भगवान शिव के नाम से घोषित हो चुका है। तालाब के किनारे हनुमान, रामजानकी और दुर्गा जी के मन्दिर स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां बहुत बडा मेला लगता है, जो लगभग एक सप्ताह चलता है, जिसमें लाखों दर्शनार्थी भाग लेते है। इसके अतिरिक्त चैतराम नवमी और शिवरात्रि के पर्व पर भी यहां मेला लगता है। यूनाइटेड प्राविसेंज आफ अवध एण्ड आगरा के वाल्यूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ठ-96 और 97 में इस स्थल का उल्लेख है कि वर्ष 1875 में भारत भारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व भी है। महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने भारत भारी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय भारत भारी का नाम भरत भारी था। यह कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास में आर्द्रवन से गुजर रहे थे तो उनसे मिलने भग्वान श्रीकृष्ण भारत-भारी गांव से ही गुजरे थे। यहां उन्होंने शिव मन्दिर देखा तो रूक गये और पास के सागर में स्नान करने के बाद मन्दिर में जाकर पूजा अर्चना की।
यह भी किवदन्ती है कि जब राम और रावण के बीच युद्ध हुआ तो राम के भाई लक्ष्मण जब मुर्छित हो गये थे तो हनुमान जी संजीवनी बूटी भारत-भारी होकर ले जा रहे थे, जिन्हें देखकर भरत ने उन्हें राम का कोई शत्रु समझकर तीर मारा और हनुमान पर्वत लेकर वहीं गिर पडे, वहां गड्ढा हो गया जो तालाब के रूप में परिवर्तित हो गया। हनुमान को देखकर भरत को पछतावा हुआ है उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थपना करायी।
यह भी जनश्रुति है कि महाराज दुष्यन्त के पुत्र भरत ने इसे अपनी राजधानी बनाया था जिससे इसका नाम भारत भारी पडा, जो एक बहुत बडे नगर के रूप में स्थापित हुआ था।
बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के प्राचीन इतिहास पुरातत्वविद श्री सतीश चन्द्र ने भारत भारी का स्थलीय निरीक्षण करके मूर्तियों, धातुओं, पुरा अवशेषों के अवलोकन के बाद इसके ऐतिहासिक स्थल होने की पुष्टि की
है। प्राचीन टीले और कूंए के नीचे दीवालों के बीच में कहीं-कहीं लगभग 8 फीट लम्बे नरकंकाल मिलते हैं, जो इतने पुराने होने के कारण इस स्थिति में हो गये हैं कि छूने पर राख जैसे विखर जा रहे है। भूमिगत पुरावशेषों से इसके आलीशान नगर होने की पुष्टि इससे भी होती है कि किले के नीचे तमाम ऐसी नालियां हैं, जो आपस में जुडकर अन्त में जलाशय से जुड़ गयी है।
है। प्राचीन टीले और कूंए के नीचे दीवालों के बीच में कहीं-कहीं लगभग 8 फीट लम्बे नरकंकाल मिलते हैं, जो इतने पुराने होने के कारण इस स्थिति में हो गये हैं कि छूने पर राख जैसे विखर जा रहे है। भूमिगत पुरावशेषों से इसके आलीशान नगर होने की पुष्टि इससे भी होती है कि किले के नीचे तमाम ऐसी नालियां हैं, जो आपस में जुडकर अन्त में जलाशय से जुड़ गयी है।
पुरातत्व विभाग ने कुषाण काल के ऐतिहासिक स्थल के रूप में 10 वर्ष पहले इसे सूचीबद्ध किया है। भारत-भारी एक ऐतिहासिक पौराणिक स्थल है, जिसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कारगिल विजय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएं