स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर परसों मैंने समाचार पढ़ा कि भारत के महान्यायवादी मुकुल रोहतगी कहते है कि शराब कंपनियों की वकालत इसलिए कर रहे है कि शराब कंपनियां उनकी पुरानी क्लाइंट है और सरकार से अनुमति लेकर वह केरल सरकार के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में पैरवी है।
निश्चित रूप से अगर सरकार से अनुमति लेकर भी अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी शराब कम्पनियों की पैरवी कर रहे है तो भी उनका कृत्य सर्वथा अनुचित एवं निंदनीय है। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी भारत सरकार के वकील होकर शराब कंपनियों की ओर से भारत सरकार के आधीन के केरल राज्य की सरकार के विरुद्ध वकालत कर रहे हैं। अगर उनके यही क्लाइंट भारत सरकार के विरुद्ध भी उन्हें वकील चुनते तो क्या वो भारत सरकार के विरूद्ध भी प्राइवेट शराब कम्पनियों की करते? उन्हें अपनी निष्ठां जाहिर करनी चाहिए कि वे 16 हजार की फीस के साथ भोकाल देने वाली भारत सरकार के वकील है या करोडो की फीस देने वाले अपने पुराने क्लाइंट के वकील है।
सरकारी वकालत में रूतबा तो होता है किन्तु प्राइवेट प्रेक्टिस जैसी इनकम नहीं होती है। मुकुल रोहतगी जैसे वकील प्राइवेट क्लाइंट से प्रतिदिन की बहस पर 1 करोड़ रूपये लेते है किन्तु सरकार उन्हें मात्र 16000 रूपये देती है किन्तु करोडो रूपये की फीस में "महान्यायवादी" का जलवा नहीं होता है। महान्यायवादी रोहतगी साहब न पद का मोह छोड़ पा रहे है और न ही प्राइवेट प्रेक्टिस का, जिस कारण करोड़ो की फीस के चक्कर में सरकार के विरूद्ध ही सुप्रीम कोर्ट में जिरह कर रहे है।
स्वतंत्रता दिवस पर जैसी स्वतंत्रता अटार्नी जनरल रोहतगी साहब को मिली है ऐसी ही स्वतंत्रता भारत सरकार के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को भी मिलेगी कि सरकारी जॉब साथ एक दो साइड बिजीनेस इस मंहगाई के दौर में वो भी कर ले। :)
शराब लॉबी की पैरवी करने पर घिरे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी By एबीपी न्यूज़
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