राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग - सर्वोच्च न्यायलय या संसद



Suprme Court of India
 
न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता की बात करती है और कहती है कि उसके आलावा अगर जजों की नियुक्ति कोई और संस्था करेगी तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कुठाराघात होगा. आखिर लोकतंत्र में सर्वोच्च कौन है? जनता द्वारा चुनी गयी संसद अथवा संसद द्वारा बनाए गए संविधान से न्यायपालिका. न्यायपालिका स्वयं अपने हितों के लिए "उत्कृष्ट और निष्पक्ष जज" कैसे साबित हो सकती है? जब न्यायपालिका में बैठे लोगों के हित स्वयं इस मामले में निहित है तो न्यायपालिका कैसे स्वतंत्र हो कर फैसला दे सकती है?

किसी भी संविधान संशोधन को तब तक असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता जबकि वह संशोधन संविधान की प्रस्तावना या जनता को प्राप्त मूल अधिकार का अतिक्रमण न करता हो. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग किसी भी प्रकार से जनता के मूलअधिकार को छेड़ नहीं रहा था और न ही संविधान की प्रस्तावना के. सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान फैसला सिर्फ न्यायपालिका के अपने हितों के संरक्षण करने का उपबंध मात्र है..

हर व्यक्ति अपने मामले में सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीश होता है उसी प्रकार न्यायपालिका ने साबित कर दिया कि वह अपने मामले में सर्वश्रेष्ठ जज है. न्यायपालिका को अब न लोकतंत्र की चिंता है और न ही संविधान की और न ही संसद की, सर्वविदित है कि अपने हितों की रक्षा में आदमी अंधा हो कर काम करता है उससे इन्साफ की उम्मीद नहीं कर सकते है..


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