आज के इस वैज्ञानिक युग में रत्नों के धारण के प्रभाव को सभी विद्वानों ने सर्वसहमति से मान लिया है। रत्न शब्द का अर्थ है अनुपम वस्तु। अर्थात् किसी विषय वस्तु या व्यक्ति को उनके गुणों के आधार पर हम रत्न शब्द से संबोधित करते है।
हाथ में अॅंगूठी जड़कर जो रत्न पहना जाता है वह पांचो तत्वों को प्रभावित करता है। हमारे हाथ की पाॅच अंगुलियां पांच तत्वों की प्रतीक ही नहीं बल्कि इनका प्रत्यक्षतः संबंध है। अंगूठा आकाश तत्व , तर्जनी वायु तत्व , मध्यमा तैजस तत्व , अनामिका जल तत्व , कनिष्ठका पृथ्वी तत्व से संबंधित है। हाथ की दूसरी विशेषता यह है कि यह सारे शरीर से सम्पर्क में रहते है।अतः यह निष्कर्ष निकालना कि बुध ग्रह (जो पृथ्वी प्रधान है) का रत्न पन्ना कनिष्ठा में धारण करना युक्तियुक्त है। अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याओं को दूर करने हेतु हम ज्योतिष शास्त्र का सहारा भी लेते है। इस शास्त्र में पूजा पाठ व विभ्न्नि प्रकार के टोने टोटके के अलावा रत्नों के माध्यम से भी हम समस्याओं का निराकरण कर सकते है। रत्नों का महत्व हमारे जन्मपत्री में स्थित ग्रहों की स्थिति के आधार पर देखा जाता है। अर्थात् व्यक्ति को कौन सा रत्न पहनना चाहिये यह जानना बहुत आवष्यक है। जन्मपत्री में कमजोर ग्रहों को बल देने के लिये विभिन्न राशियों के व्यक्तियों के लिये अलग - अलग रत्न महत्व रखते है।
1. सही रत्न का चुनाव
2 रत्नों की शुद्धता
3. सही वार व सही विधि द्वारा उचित अंगली में पहनने हेतु ज्ञान का होना।
मुख्य रुप से संस्थान की जिम्मेदारी होती है कि वो अपने ग्राहक को उचित सलाह व विस्तृत विधि का वर्णन करे व उचित रत्न दे। यदि आप दोषपूर्ण रत्न धारण करते है। व उचित विधि का पालन नहीं करते है तो रत्न का प्रभाव गलत पड सकता है। इसके अलावा यह जानना बहुत जरुरी है कि किसी भी प्रकार की पूजा या रत्नों के द्वारा समस्याओं के निराकरण का महत्व व सही प्रभाव तभी सामने आता है जब आप पूर्ण विश्वास व श्रद्धा रखते है।पूजा , रत्न , रुद्राक्ष , तन्त्र , मंत्र आदि सभी अपने-अपने क्षेत्र में उचित सफलता देने में सक्षम होते है बशर्ते कि आपने श्रद्धा व विश्वास के साथ उचित विधि विधान का ध्यान रखा है। यहा हम यह सलाह देना चाहेंगे कि अपनी समस्याओं के निराकरण के लिये तंत्र शास्त्र का प्रयोग जहा तक संभव हो न करे या बहुत सोच - समझकर किसी ज्ञानी तांत्रिक के मार्गदर्शन में ही करे।
रत्नों की उत्पति दो प्रकार से मानी गयी है, 1. खनिज रत्न व 2. जैविक रत्न
खनिज रत्न पृथ्वी के गर्भ में होने वाली रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरुप उत्पन्न तत्वों से होते है। उदाहरण के लिये हीरा , माणिक , पन्ना , नीलम , पुखराज , गोमेद व लसुनिया। जैविक रत्न समुद्र मे स्थित जीवों के द्वारा उत्पन्न होते है। जैसे -मूंगा व मोती उपरोक्त 9 रत्नों के अलावा इन रत्नों के उपरत्न भी पाये जाते है। जिनका प्रभाव उनसे संबंधित राशियों के अनुसार पडता है। रत्नों को उनकी पारदर्शिता , चमक , रंग कठोरता के मापदण्ड के द्वारा परखा जाता है। कुछ रत्न या उपरत्न अपारदर्शी भी होते है।
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