प्रथम सूचना रिपोर्ट/देहाती नालसी, गिरफ्तारी और जमानत के सम्बन्ध में नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य



 
1. अपराध तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट/देहाती नालसी:- जब कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो कानून द्वारा दंडनीय हो तो यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति ने ‘‘अपराध’’ किया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता में अपराधों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ‘‘संज्ञेय अपराध’’ और ‘‘असंज्ञेय अपराध’’। असंज्ञेय अपराध से तात्पर्य ऐसे अपराधों से हैं जिसमें पुलिस किसी भी अपराधी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं रखती। किसी संज्ञेय अपराध में मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस को विवेचना करने के आदेश देने का ऐसा अपराध भी संज्ञेय अपराध की परिधि में आ जाता है किन्तु पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तारी पर प्रतिबंध बना रहता है। सामान्यतः पुलिस द्वारा विवेचना के पहले अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध की जाती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट देहाती नालसी का आशय उस सूचना से है जो किसी पुलिस थाने पर या थाने के अलावा मौके पर किसी पुलिस अधिकारी या लोक सेवक के माध्यम से अपराध कारित होने के संबंध में सबसे पहले प्राप्त होती है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में संज्ञेय तथा धारा 155 में असंज्ञेय अपराध के विषय में प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध करने का प्रावधान है। संज्ञेय अपराध के संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा संबंधित थाने के भार साधक अधिकारी को मौखिक या लिखित सूचना दी जाती है। मौखिक सूचना प्राप्त होने पर थाने के भार साधक अधिकारी द्वारा स्वयं या अपने निर्देशाधीन किसी भी अधिकारी द्वारा सूचना को निर्धारित प्रपत्र पर लेखबद्ध करना अनिवार्य है। लिखित सूचना प्राप्त होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट का आधार लिखित सूचना होती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध करने के बाद सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाया जाना चाहिए तथा उस पर सूचना देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर या निशान अंगूठा लिया जाना चाहिए। प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रतिलिपि सूचना देने वाले व्यक्ति को तत्काल निःशुल्क दिया जाना आवश्यक है। किसी मामले में भारसाधक अधिकारी द्वारा सूचना लिखने से इन्कार करने की दशा में व्यथित व्यक्ति द्वारा सूचना का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा सम्बद्ध पुलिस अधीक्षक को भेजा जा सकता है। संज्ञेय अपराध होने का समाधान होने पर पुलिस अधिकारी द्वारा स्वयं विवेचना की जा सकती है या अपने किसी अधीनस्थ पुलिस अधिकारी के माध्यम से विवेचना कराई जा सकती है तथा इस प्रकार अधिकृत विवेचना करने वाले पुलिस अधिकारी को भी पुलिस थाने में भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां प्राप्त हो जाती है।

असंज्ञेय अपराध के विषय में भी सूचना प्राप्त होने पर थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा प्राप्त सूचना के सार को प्रथम सूचना रिपोर्ट के निर्धारित फार्म पर लेखबद्ध किया जाता है तथा सूचना देने वाले को मजिस्ट्रेट के न्यायालय में कार्यवाही करने को निर्देशित किया जाता है। असंज्ञेय अपराध में पुलिस को विवेचना का अधिकार नहीं होता किन्तु मजिस्ट्रेट द्वारा विवेचना का आदेश दिये जाने पर पुलिस का विवेचना करने का अधिकार (वारंट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति के सिवाय) हो जाता है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट से दो या अधिक अपराध बनने की दशा में, जिसमें कम से कम एक अपराध संज्ञेय हो, पुलिस को असंज्ञेय अपराधों में भी विवेचना का अधिकार हो जाता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 190(1)(क) में मजिस्ट्रेट को परिवार के आधार पर प्रसंज्ञान लेने का प्रावधान है किन्तु मजिस्ट्रेट द्वारा प्रसंज्ञान न लेकर, पुलिस को विवेचना के लिए आदेशित करने की दशा में पुलिस को विवेचना का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

यदि अपराध दर्ज होने के उपरान्त विवेचना अधिकारी द्वारा मामले में विवेचना उचित ढंग से नहीं किये जाने पर फरियादी या दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3), 159, 190 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष विवेचना अधिकारी का उचित रूप से विवेचना करने हेतु निर्देश देने के लिए आवेदन दे सकेगा।

आपराधिक मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दोष सिद्ध करने के लिए साक्ष्य का आधार होती है अतः प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाते समय ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें घटना का सही समय, स्थान तथा घटना के सही तथ्य लिखाएं जाएं अन्यथा विवेचना तथा विचारण के साक्ष्य में विरोधाभास हो जाता है जिसका लाभ अपराध करने वालों को मिलता है तथा सही अपराधी भी दोष मुक्त हो जाते हैं। अपराध होने के बाद जितना शीघ्र ही पुलिस को सूचना दी जानी चाहिए। विलम्ब से सूचना देने पर अभियुक्त द्वारा प्रायः तर्क दिया जाता है कि सूचना सोच विचार करके तथा तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर लिखायी गयी है।

2. आम जनता का पुलिस को अपराध की सूचना देना एवं सहायता करने का कर्तव्य :- जहां कानून में अपराधियों को पकड़ने तथा दण्ड दिलवाने का कर्तव्य पुलिस का है वहां कुछ परिस्थितियों में जनता भी पुलिस की सहायता करने को बाध्य है। जनता द्वारा पुलिस को सहायता से इंकार करने पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। निम्न परिस्थितियों में प्रत्येक नागरिक पुलिस की सहायता करने को बाध्य है:-

(क) उस व्यक्ति को पकड़कर ले जाने या पकड़ने में भगाने से रोकने में जिस पुलिस अधिकारी गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत है।

(ख) शान्ति भंग को दबाने या रोकने में, रेलवे, नहर, टेलीग्राफ या अन्य सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान को रोकने में।

अपराधियों की सूचना पुलिस को सही समय पर न मिलने पर संबंधित महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट हो जाता है तथा अपराधी कानूनी दायित्वों से बच जाते हैं अतः जनता से यह अपेक्षा की गई है कि कुछ विशेष अपराध जो गंभीर प्रकृति के होते हैं उनकी जानकारी होने पर अविलम्ब निकटतम पुलिस स्टेशन को सूचित करें।

3. पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार -कानून में पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को निम्नलिखित स्थितियों में बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार है.

(क) यदि वह व्यक्ति किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित है, या उसके विरुद्ध संज्ञेय अपराध करने के विश्वसनीय संदेह, परिवाद या सूचना प्राप्त हो या किए जाने की शिकायत है।
(ख) यदि उसके आधिपत्य में गृह भेदन के औजार पाए जाते हैं।
(ग) यदि उसके कब्जे से चोरी की संपत्ति पाई जाती है।
(घ) यदि वह उद्घोषित अपराधी है।
(ड.) यदि वह किसी पुलिस अधिकारी को उसके कत्र्तव्य पालन में अवरोध उत्पन्न करता है।
(च) यदि वह वैधानिक हिरासत से भागता है।
(छ) यदि वह जल, थल या वायु सेना का भगोड़ा हे।
(ज) यदि वह भारत के बाहर है और कोई ऐसा अपराध करता है जो यदि भारत में किया गया होता तो अपराध के रूप में दंडनीय होता या किसी प्रत्यावर्तित कानून या कानून के अंतर्गत दंडनीय होता।
(झ) यदि उसके द्वारा संज्ञेय अपराध की तैयारी करने का संदेह है।
(य) यदि वह सजा पाने के उपरान्त न्यायालय द्वारा लगाए गए किसी प्रतिबंध को तोड़ता है।
(र) यदि वह आदतन अपराधी हो।
(ल) यदि वह असंज्ञेय अपराध करने के बाद पुलिस को अपना नाम पता न बताता हो या गलत बताता है।

जहां पर अपराध उपरोक्त प्रकृति के नहीं है अर्थात असंज्ञेय अपराध है तो पुलिस को अपराधी को गिरफ्तार करने से पहले मजिस्ट्रेट से गिरफ्तारी वारण्ट प्राप्त करना आवश्यक है। जब तक उस अपराधी को गिरफ्तारी वारंट नहीं दिखाया जाता पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह असंज्ञेय अपराध करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सके। किसी-किसी कानून में पुलिस के अलावा अन्य अधिकारियों को भी गिरफ्तार करने की शक्ति दी हुई है। यदि ऐसे अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके थाने पर लाया जाता है तो ऐसे व्यक्ति को पुलिस द्वारा पुनः गिरफ्तार करके मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है।

गिरफ्तारी वारण्ट मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है जिसमें पुलिस अधिकारी को यह आदेश दिया जाता है कि वह अपराधी जिसका नाम तािा पूर्ण पता और अपराध का विवरण लिखा होता है, को गिरफ्तार करके न्यायालय में पेश करें। पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को वारंट के विषय में बताएं तथा यदि वह वारंट की मांग करता है तो उसको वारंट दिखाएं।

4. पुलिस द्वारा गिरफ्तारी किस प्रकार की जाएगी :जब किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाएगा तो उसके प्रति बल प्रयोग नहीं किया जा सकता परन्तु यदि कोई व्यक्ति गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का प्रतिरोध करता है अथवा गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसी दशा में पुलिस अधिकारी उसे आवश्यक बल प्रयोग करके गिरफ्तार कर सकता है। किन्तु किसी भी दशा में बल प्रयोग करके उसकी मृत्यु कारित नहीं कर सकता जब तक कि व्यक्ति ने आजीवन केद या मृत्यु दण्ड से दण्डित होने वाला अपराध नहीं किया है दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 46 में गिरफ्तारी किस प्रकार की जाएगी, का उल्लेख किया गया है। गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करके या उसे परिरुद्ध करके गिरफ्तारी की जाएगी जब तक वह स्वतः अपने व्यवहार या शब्दों से अपने को अभिरक्षा में समर्पित न कर दे। यह आवश्यक नहीं है कि उसको पकड़कर हथकड़ी या रस्सी बंाधी जाए तभी उसकी गिरफ्तारी समझी जायेगी। न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई कि यदि गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति शतिर किस्म का अपराधी है या उसका हिरासत से भाग जाने का डर नहीं है तो उसको हथकड़ी नहीं लगानी चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी दशा में गिरफ्तार व्यक्ति को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाए। यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति अपने करीबी या हितैषी या वकील से सम्पर्क करना चाहता है तो उसको अवसर भी दिया जाना चाहिए। गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को अपराधी के छिपने वाले स्थान की तलाशी का भी अधिकार है।

5. जनता द्वारा अपराधी को गिरफ्तार करने का अधिकार:- पुलिस का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह चैकसी बरतें और अपराधियों को पकड़कर उनको दण्ड दिलवाए। परन्तु यह बात सच है कि पुलिस प्रत्येक स्थान पर हमेशा उपलब्ध नहीं रह सकती। अपराधी भी पुलिस की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर अपराध करने का मौका ढूंढ़ते हैं इसलिए जनता का भी यह कर्तव्य है कि किसी अपराधी को पकड़ने में सक्रिय सहयोग दे और केवल मूक दर्शक न रहें। कानून में आम जनता से भी यह अपेक्षा की गई है कि वह अपराध की रोकथाम करने के लिए अपराधियों को पकड़वाने में पुलिस की मदद करें। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कानून में आम जनता को भी अपराधियों को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है। धारा 43 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत जनता का कोई भी व्यक्ति, कुछ विशेष परिस्थितियों में, जिसका विवरण नीचे दिया गया है किसी भी अपराध करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।

यदि अपराध करने वाले व्यक्ति ने उसकी उपस्थिति में ऐसा अपराध किया है जिसकी प्रकृति अजमानतीय है अर्थात् जिस अपराध में जमानत अधिकार के रूप में प्राप्त नहीं की जा सकती, तथा जो अपराध किया गया है वह संज्ञेय अपराध है जिसका अर्थ यह है कि पुलिस की उपस्थिति में यदि वह अपराध किया जाता तो पुलिस अधिकारी भी उस व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती, इसके अतिरिक्त अपराध करने वाला व्यक्ति यदि घोषित अपराधी है तो ऐसे अपराधी को भी जनता द्वारा गिरफ्तार किये जाने का अधिकार है। उपरोक्त परिस्थितियों में आम जनता द्वारा किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के बाद बिना अनुचित विलम्ब में पुलिस अधिकारी को सौंप देना अनिवार्य है और यदि कोई पुलिस अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो गिरफ्तार शुदा व्यक्ति को अविलंब निकटतम थाने में ले जाकर सुपुर्द करने का विधान हे।

6. गिरफ्तारी वारण्ट कैसा होना चाहिए : गिरफ्तारी के वारण्ट के संबंध में यह प्रावधान है कि वारण्ट लिखित रूप में न्यायालय द्वारा जारी किया जाए जिसमें कि मजिस्ट्रेट/पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर हों और न्यायालय की मुहर भी हो। गिरफ्तारी का वारंट भारत के किसी भी स्थान पर निष्पादित किया जा सकता है। इस प्रकार का वारण्ट तब तक प्रभावी रहता है जब तक कि उसका निष्पादन न हो जाए अथवा न्यायालय द्वारा उसको निरस्त न कर दिया जाए। गिरफ्तारी के वारण्ट में मुख्यतः 3 बातों पर ध्यान देना जरूरी है।

1. वारण्ट लिखित हो।
2. न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित हो।
3. न्यायालय मोहर अंकित हो।

जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है उसका नाम तथा पता और उस अपराध का भी विवरण होना चाहिए जिसमें वह आरोपित है। यदि इनमें से कोई भी तत्व नहीं है तो ऐसा वारंट वैध नहीं है और निष्पादन में की गई गिरफ्तारी अवैधानिक मानी जा सकती है।

गिरफ्तारी वारण्ट दो प्रकार के होते हैं:-

(क) जमानतीय वारण्ट।

(ख) बिना जमानतीय वारण्ट।

जमानतीय वारण्ट से तात्पर्य ऐसे वारण्ट से है जिसमें न्यायालय द्वारा यह निर्देश होता है कि यदि वह व्यक्ति गिरफ्तार होता है और न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए समुचित बंधनामा प्रस्तुत करता है तो उससे निर्धारित धनराशि का जमानतनामा लेकर हिरासत से मुक्त किया जाए। जमानती वारंट में यह भी उल्लेख किया जाता है कि गिरफ्तार शुदा व्यक्ति को कितनी धनराशि की जमानत देने पर मुक्त किया जाना है और ऐसे व्यक्ति को न्यायालय में किस तिथि को तथा स्थान पर उपस्थित होना है। बिना जमानती वारंट से तात्पर्य ऐसे वारंट से है जिसमें गिरफ्तार किए जाने पर पुलिस अधिकारी को ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को बिना किसी विलम्ब के न्यायालय के समक्ष पेश करना अनिवार्य होता है तथा गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति जमानत अधिकार के रूप में प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की जमानत मजिस्ट्रेट/न्यायालय द्वारा ही की जाती है। यदि किसी दूसरे जिले के गैर जमानती वारण्ट पर कोई गिरफ्तार होता है तो ऐसे व्यक्ति की जमानत गिरफ्तारी वाले जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।

7. तलाशी वारंट तथा तामीली का तरीका :किसी व्यक्ति की, घर या शरीर की, यदि तलाशी देना हो तो उसके लिये तलाशी वारंट का प्रयोग किया जाता है। तलाशी वारण्ट मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया जाता है। मजिस्ट्रेट द्वारा तलाशी वारण्ट जारी करने संबंधी प्रावधान इस प्रकार है:-

1) अगर किसी व्यक्ति के बारे में संदेह हो जाता है कि वह अपने शरीर पर कोई ऐसी चीज छिपाए है जिसके लिए तलाशी ली जानी है तो उस व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है और यदि वह व्यक्ति स्त्री है तो स्त्री की शिष्टता का पूर्ण ध्यान रखते हुए तलाशी ली जाएगी।
2) जब किसी न्यायालय को ऐसा विश्वास हो जाता है कि अन्वेषण, जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन के लिए किसी दस्तावेज का या किसी अन्य चीज का पेश किया जाना आवश्यक हे या वांछनीय है और जिस व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में ऐसा दस्तावेज या चीज होने का विश्वास है, वह व्यक्ति सम्मन द्वारा अपेक्षित दस्तावेज या चीज पेश नहीं करता है या ऐसे दस्तावेज या चीज के विषय में न्यायालय का यह समाधान हो जाए कि वह किसी व्यक्ति के कब्जे में या अमुक स्थान पर है तो न्यायालय द्वारा तलाशी वारण्ट जारी किया जा सकता है। न्यायालय को यह सामान्य अधिकार भी प्राप्त है कि अगर वह यह समझती है कि किसी जांच या विचारण या अन्य प्रयोजन की पूर्ति तलाशी द्वारा होगी तो उस स्थिति में भी न्यायालय द्वारा तलाशी हेतु वारण्ट जारी किया जा सकता है। न्यायालय को यह सामान्य अधिकार भी प्राप्त हे कि अगर वह यह समझी है कि किसी जांच या विचारण या अन्य प्रयोजन की पूर्ति तलाशी द्वारा होगी तो उस स्थिति में भी न्यायालय द्वारा तलाशी हेतु वारण्ट जारी किया जा सकता है।
3) अगर राज्य सरकार द्वारा किसी समाचार पत्र या पुस्तक या अन्य दस्तावेज को सरकार के पक्ष में समपहरण या जब्त किए जाने की घोषणा कर दी गई हो तो कोई मजिस्ट्रेट किसी पुलिस अधिकारी को, जो उप निरीक्षक स्तर से कम का न होगा, इस प्रकार के अंकों को प्राप्त करने हेतु तलाशी लेने के लिए वारण्ट द्वारा प्राधिकृत कर सकता है।
4. अगर किसी व्यक्ति को ऐसी परिस्थिति में बंद कर रखा गया हो जो कि अवैध परिरोध की श्रेणी मंे आता है तो मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी रिहाई के लिए तलाशी वारण्ट जारी किया जा सकता है और उस व्यक्ति के प्रस्तुत किये जाने पर उसके बार में उचित आदेश मजिस्ट्रेट दे सकता है।
5. तलाशी लेने के लिए पुलिस अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि तलाशी लेने के पूर्व वह आसपास के दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलाए और उनके सामने तलाशी ले। अगर ऐसे व्यक्ति जिन्हें तलाशी लेने वाले अधिकारी ने बुलाया है या लिखित आदेश इस संबंध में उन्हें दिया है और वह उसके बावजूद भी उपस्थित नहीं होते तो उन व्यक्तियों के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 187 के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा सकता है।
6. तलाशी लेने वाले अधिकारी का दायित्व है कि तलाशी में जितनी चीजें पाई जाएं उनकी सही सूचना तैयार करें और उस पर साक्षियों के हस्ताक्षर कराए तथा उसकी एक नकल उस व्यक्ति को दे जिसके पास या स्थान से वह चीजें प्राप्त हुई है। तैयार की गई सूची तथा वस्तु भी शीघ्र न्यायालय में भेजें।
7. तलाशी वारण्ट में घर का पता, उसकी चैहद्दी का वर्णन होना आवश्यक है और जब पुलिस अधिकारी उस वारण्ट के अनुपालन में तलाशी लेने के लिए उस स्थान पर पहुंचता है तो उस स्थान के स्वामी को यह अधिकार होगा कि उस वारण्ट को देख सके। अगर वारण्ट में स्थान का वर्णन अपूर्ण है या वह वर्णन उसके स्थान से नहीं मिलता तो उस व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह पुलिस अधिकारी को इस तथ्य की जानकारी दे।
8. बिना वारण्ट के भी कतिपय विशेष परिस्थितियों में पुलिस अधिकारियों द्वारा तलाशी लेने की व्यवस्था है। अगर पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या विवेचना अधिकारी को अपराध के अन्वेषण के संबंध में यह विश्वास हो जाए कि कोई चीज किसी स्थान पर पाई जा सकती है तो उसके जांच के लिए आवश्यक है, और वारण्ट प्राप्त करने में विलम्ब होगा उस विलम्ब के कारण यह चीज न मिल सकेगी तो फिर वह अधिकारी अपने विश्वास के आधार पर लिखकर उस चीज को प्राप्त करने हेतु बिना वारण्ट के तलाशी ले सकता है। इस प्रकार की तलाशी थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण अधिकारी द्वारा ही ली जाएगी। किन्तु यदि वह ऐसी तलाशी स्वयं लेने में असमर्थ हो तो असमर्थता का कारण लिखने के पश्चात अपने अधीनस्थ अधिकारी को भी तलाशी लेने हेतु प्राधिकृत कर सकता है। इन सभी अभिलेखों की प्रतियां तत्काल उसके द्वारा निकटतम ऐसे मजिस्ट्रेट के सामने जिन्हें अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार हो, प्रस्तुत कर दी जाएगी। जिस व्यक्ति के स्थान की तलाशी ली गई हो उसको यह अधिकार होगा कि वह तलाशी संबंधी सभी अभिलेखों की नकलें निःशुल्क मजिस्ट्रेट से प्राप्त कर लें। अगर किसी पुलिस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि वह व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया जाना है किसी स्थान में छिपा हुआ है तो उस स्थान के स्वामी से पुलिस अधिकारी द्वारा अपेक्षा की जाएगी कि वह उस स्थान की तलाशी लेने दे। इस प्रकार की अपेक्षा किये जाने पर उस स्थान के स्वामी का दायित्व है कि उस स्थान की तलाशी लेने के लिए सब उचित सुविधाएं उपलब्ध कराए। इसके पश्चात पुलिस अधिकारी को उस स्थान की तलाशी लेने का अधिकार है। यदि कोई पर्दा करने वाली महिला ऐसे स्थान के भीतर हो जिसे स्वयं को गिरफ्तार नहीं किया जाना है तो पुलिस अधिकारी उस महिला को वहां से हट जाने के लिए उचित सुविधा प्रदान करने के बाद उस स्थान में प्रवेश करेगा।

8. गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार और कर्तव्य :भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 में यह व्यवस्था है कि प्रत्येक व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है, गिरफ्तारी से 24 घण्टे के भीतर (गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा में व्यतीत हुए समय को छोड़कर) निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 व धारा 167 में इसी प्रकार के प्रावधान किए गए हैं। ऐसे व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह निःशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर सके और यह मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि विधिक सहायता, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से या अन्य माध्यम से उसे उपलब्ध कराए।

ऐसा व्यक्ति यदि जमानतीय अपराध में गिरफ्तार किया गया है तो वह आधिकारिक रूप से जमानत पाने का अधिकारी है। यदि वह पुलिस या मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुरूप जमानतनामा दाखिल करता है तो उसे अभिरक्षण में नहीं रखा जा सकता।

गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को वह कारण व आधार बताए कि उसको क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है और उस व्यक्ति को यह भी अधिकार है कि पुलिस अधिकारी से कहे कि उसकी गिरफ्तारी का वारण्ट उसे दिखाया जाए (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50, 57 तथा 75)।

अभियुक्त को यह भी अधिकार है मजिस्ट्रेट के सामने यह प्रार्थना करे कि उसने कोई अपराध नहीं किया है, इस आशय से उसका डाक्टरी परीक्षण करा लिया जाए या जेल में पहचान करा लिया जाए जो कुछ मामलों में इस बात का साक्ष्य हो सकता है कि उसने जुर्म नहीं किया है या इस बात का साक्ष्य हो सकता है कि उसके प्रति किसी दूसरे द्वारा जुर्म किया गया है। अभियुक्त को यह सावधानी रखनी चाहिए कि यदि उसके विरूद्ध नामजद रिपोर्ट न हो या गवाह उसे न पहचानते हो तो अपने को बेपर्दा रखे। पुलिस को भी ऐसे व्यक्ति को बापर्दा रखना चाहिए।

यदि किसी महिला की डॉक्टरी परीक्षा कराई जाती हो तो महिला डॉक्टर द्वारा ही परीक्षा करानी चाहिए। अगर किसी अभियुक्त को यह शिकायत है कि पुलिस ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है और मारा-पीटा है तो वह मजिस्ट्रेट से कहकर अपना डॉक्टरी मुआयना करा सकता है। (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 53-54)। मजिस्ट्रेट द्वारा भी स्वयमेव डॉक्टरी परीक्षण के आदेश दिए जा सकते हैं।

गिरफ्तार व्यक्ति को यह अधिकार है कि गिरफ्तारी की दशा में वह अपने मित्र, रिश्तेदार अथवा किसी व्यक्ति के माध्यम से अपने वकील से संपर्क कर सके और विधिक, राय प्राप्त कर सकें। अगर पुलिस ऑफिसर जमानत नहीं लेता है तो वह मजिस्ट्रेट से जमानत का प्रार्थना कर सकता है उसे जमानत पर छोड़ दिया जाए।

9. जमानत का अधिकार :अपराध दो प्रकार के होते हैं-

1. जमानतीय अपराध
2. बिना जमानतीय अपराध

जमानतीय अपराध में अभियुक्त को जमानत पाने का विधिक अधिकार है ऐसी जमानत पुलिस थाने या न्यायालय से करायी जा सकती है। बिना जमानतीय अपराध में मजिस्ट्रेट/न्यायालय को यह अधिकार है कि वह जमानत स्वीकार करें अथवा अस्वीकार करें। जमानतीय तथा बिना जमानतीय अपराधों के विषय में जमानत के अधिकार दण्ड प्रक्रिया संहिता की धरा 436, 437, 439 के अंतर्गत वर्णित है। जो अपराध मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास द्वारा दंडनीय है उसमें मजिस्ट्रेट द्वारा तभी जमानत दिया जा सकता है जबकि यह सिद्ध होने के कारण हो कि व्यक्ति दोषी नहीं है। किन्तु 16 वर्ष से कम आयु के बालक, औरत तथा अपंग अथवा बीमार अभियुक्त की जमानत बिना जमानतीय अपराध में भी मजिस्ट्रेट से मिल सकती है।

परीक्षण के मध्य यदि न्यायालय को ऐसा प्रतीत हो कि कदाचित अभियुक्त किसी गैर जमानतीय अपराध का दोषी नहीं है तो ऐसी दशा में बिना जमानतीय अपराध में भी वह जमानत ले सकता है। बिना जमानतीय अपराधों में जमानत के साथ कुछ शर्तें भी लगायी जा सकती हैं।

धारा-167 द.प्र.सं. के प्रावधान के अनुसार कि यदि 90/60 दिनों के अन्दर विवेचना पूरी करके न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल नहीं होता है तो निरुद्ध व्यक्ति को जमानत का अधिकार हो जाता है तथा न्यायालय द्वारा शर्तों के साथ जमानत ली जा सकती है। किन्तु ऐसी जमानत के मामलों में आरोप पत्र प्रेषित होने तथा न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के बाद अपराधी को पुनः हिरासत में लेकर अपराध के गुण-दोष के आधार पर जमानत मांगने के लिए आदेश दिया जा सकता है।

10. अग्रिम जमानत का अधिकार : किसी व्यक्ति को गैर जमानती अपराध में अग्रिम जमानत पर रिहा होने का अधिकार प्राप्त है, इस संबंध में धारा 438 दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार निम्न प्रावधान है:-

धारा 438 द.प्र.सं. गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के निर्देश

(1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन निर्देश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निर्देश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए।
(2) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निर्देश देता है तब वह विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठीक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित भी है-
(क) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले पर प्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और अब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
(ख) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
(ग) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोड़ेगा;
(ड.) ऐसी अन्य शर्तें जो धारा 437 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती है मानों उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गई हो।
(3) यदि तत्पश्चात ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के भारसाधक, अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरूद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप जमानतीय वारंट जारी करेगा।

11. पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना :दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-71 के अंतर्गत जारी किए गए जमानतीय वारण्ट में जमानत की शर्तें लिखी जानी चाहिए कि कितनी धनराशि की जमानतों पर छोड़ा जाना है तथा जमानतदारों की संख्या कितनी होगा तथा किस तिथि को उसे न्यायालय में उपस्थित होना है। जमानतीय अपराधों में थानाध्यक्ष से लिखित रूप से भी जमानत की मांग की जा सकती है।संज्ञेय अपराधों में पुलिस द्वारा सामान्यतः निम्न आधार पर जमानत का विरोध किया जाता है कि:-

(1) जमानत पर छूटने पर अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं होगा।
(2) जमानत हो जाने के बाद अभियुक्त गवाहान को प्रभावित करेगा।
(3) जमानत होने के बाद दूसरे जघन्य अपराध करेगा या पूर्व में सजायाफ्ता अपराधी है।
(4) जमानत होन के पश्चात चोरी या लूटा हुआ माल बरामद न हो सकेगा तथा
(5) अपराध बहुत गम्भीर प्रकृति का है तथा अपराधी शातिर है।

12. न्यायालय में जमानत के लिए प्रार्थना-पत्र देने का तरीका : अभियुक्त स्वयं या जेल से या अपने वकील के माध्यम से जमानत का प्रार्थना पत्र दे सकता है, जिसमें पूर्व जमानत के प्रार्थना पत्र के संबंध में पूर्ण या सतय जानकारी देना आवश्यक है अन्यथा प्रार्थना पत्र निरस्त ही नहीं हो सकता बल्कि हर्जाना भी अधिरोपित किया जा सकता है।

जमानत खारिज होने पर आदेश की निःशुल्क प्रति प्राप्ति करने का अधिकार अभियुक्त को होता है जो न्यायालय से प्रार्थना करके प्राप्त किया जा सकता है। अगर जमानत हो जाती हो तो जमानत के समय जमानतदारों को न्यायालय में उपस्थित होना आवश्यक है जिससे मजिस्ट्रेट अपने को संतुष्ट कर सके कि प्रतिभूतियों द्वारा जो जमानतनामा दिए गए हैं वे पर्याप्त हैं और जमानतदार की हैसियत कितनी है। जमानतदार 18 वर्ष से अधिक आयु का होना चाहिए। जमानतदार यदि हैसियत वाले हैं और पेशेवर नहीं है और यदि उनके आचरण के विरूद्ध कोई रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है तो जमानतनामा सामान्यतः स्वीकृत नहीं किए जाते।

13. जमानतदारों के दायित्व : जो जमानतदार किसी व्यक्ति की जमानत लेता है उसका यह दायित्व है कि न्यायालय के आदेशानुसार या प्रत्येक निश्चित तिथि पर अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष पेश करे, ऐसा न करने पर न्यायालय द्वारा जमानत जब्त की जा सकती है तथा जब्त करने के पहले जमानतदार को नोटिस देना आवश्यक नहीं है किन्तु वसूली की कार्रवाई के पूर्व नोटिस आवश्यक है। न्यायालय द्वारा वसूल की जाने वाली धनराशि में कभी भी की जा सकती है अगर यह संतुष्टि हो जाए कि जमानतदार ने जानबूझ कर न्यायालय के आदेश की अवज्ञा नहीं की है।

14. तलाशी, गिरफ्तारी व जमानत के मामलों में महिलाओं के विशेष अधिकार :यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी के घर में तलाशी लेने के लिए आता है तो उसको दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 47 (2) में यह सावधानी बरतनी होगी कि वह प्रवेश से पूर्व उस घर की पर्दानशीन स्त्री को कमरे से हटने के लिए पहले ही सूचित कर दे और वह स्त्री जब कमरे से जब अपनी सुविधानुसार बाहर निकल जाय तो पुलिस अधिकारी उसकी पूरी शिष्टता को ध्यान में रखते हुए प्रवेश करे। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 51 (2) में यह प्रावधान है कि किसी महिला की तलाशी लेते समय महिला की पूरी शिष्टता को ध्यान में रखते हुए केवल महिला पुलिस अथवा स्त्री द्वारा ही तलाशी ली जाय। यदि किसी महिला को चिकित्सा परीक्षा कराना आवश्यक हो तो भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 53 (2) के अंतर्गत वह किसी महिला चिकित्सक द्वारा जो रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी है या किसी महिला रजिस्ट्रीकृत चिकित्सक के पर्यवेक्षण में ही की जा सकती है। पुलिस अधिकारी धारा 160 द.प्र.सं. किसी अपराध के अन्वेषण के लिए किसी भी महिला को गवाह व 15 वर्ष से कम उम्र के बालक को ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा पुरुष या स्त्री निवास करती है भिन्न किसी स्थान पर हाजिर होने की अपेक्षा नहीं की जाएगी। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 के अंतर्गत किसी स्त्री, कोई रोगी या शिथिल व्यक्ति मृत्यु दण्ड अथवा आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध में लिप्त है को मजिस्ट्रेट परिस्थितियों का मननकर तथा समुचित कारण पाये जाने पर जमानत दे सकता है।

15. साक्षीगण का दायित्व :दण्ड प्रक्रिया संहिता की उपधारा (2) धारा 161 के अंतर्गत साक्षीगण विवेचना के अधिकारी को घटना के संबंध में सत्य कथन देने के लिये बाध्य है। अन्यथा पुलिस तथा न्यायालय द्वारा विवेचना के दौरान किए गए कथन असत्य पाए जाने पर दांडिक कार्यवाही की जा सकती है।

16. न्यायालयीन निर्णय :न्यायालय निर्णय के बाद अभियुक्त को दण्डित किये जाने की स्थिति में न्यायालय द्वारा प्रत्येक अभियुक्त को निर्णय की प्रतिलिपि निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार है।

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