अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद



सऱफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।।
अदालत में आजाद से पूछा गया-तुम्हारा क्या नाम है?
आजाद ने उत्तर दिया-‘आजाद’।
मजिस्ट्रेट ने फिर पूछा-‘तुम्हारे पिता का क्या नाम है?
आजााद ने उत्तर दिया- ‘स्वतन्त्रता’।
मजिस्ट्रेट ने फिर पूछा-‘तुम्हारा निवास- स्थान कहाँ है?’
आजाद ने फिर उत्तर दिया- ‘कारागार में’। 
मजिस्ट्रेट आजााद के उत्तरों से क्रुद्ध हो उठा। उसने आजाद को पन्द्रह बेतों की सजा दी। जेल में आजाद पर बेत पड़ने लगे। उन पर बेंत पड़ते जाते थे, और वे बेंत पड़ने के साथ ही ‘वन्दे मातरम्’ और महात्मा गाँधीजी की जय बोलते जाते थे। बेतों की मार से आजाद के शरीर की चमड़ी उधड़ गई, वे बेहोश होकर गिर पड़े। पर जब तक वे होश में रहे, बराबर वन्दे मातरम् और ‘भारत माता की जय’ के नारों से आकाश गुंजाते रहा।
 
इस घटना से सारी काशी में आजाद की यश-गाथा फैल गई। वे एक वीर बालक के रूप में माने जाने लगे। 1928 ई. में भारत में ‘साइमन कमीशन’ का आगमन हुआ। कांग्रेस के निश्चयानुसार सारे भारत में कमीशन का बहिष्कार किया जाने लगा। लाहौर में भी लाखों लोग लाला लाजपत राय के नेतृतव में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने के लिए स्टेशन के अहाते में एकत्र हुए।
एकत्रित भीड़ पर डण्डे पड़ने लगे। हजारों लोग पुलिस के डण्डों से आहत हो गए। स्वयं लाला लाजपतराय जी की छाती में भी पुलिस के डण्डे से चोटें लगीं। उसी चोट से उनका प्राणान्त हो गया। सारे भारत में पुलिस के इस अत्याचार के प्रति विक्षोभ की लहर दौर पड़ी। भगतसिंह, राजगुरु और आजाद उत्तेजित हो उठे। उन्होंने लाला जी की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक साहसिक योजना बनाई। परिणाम स्वरूप 1928 ई. की 17 दिसम्बर को, लाहौर के पुलिस सुपरिटेंडेंट सण्डर्स को गोली से उड़ा दिया गया। सण्डर्स की हत्या के बाद ही वायसराय की ट्रेन को तार के बम से उड़ा देने का प्रयत्न किया गया। यद्यपि ट्रेन केा उड़ाने में सफलता न मिली, पर सरकारी क्षेत्र में सनसनी फैल गई। इस साहसिक कार्य में भी आजाद का प्रमुख हाथ था।
 
1931 ई. की 23 फरवरी का दिन था। इलाहाबाद में साथीक्रान्तिकारियों की एक गुप्त बैठक होने वाली थी। आजााद कम्पनीबाग में एक वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति की प्रतीक्षा करने लगे। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति से उन्हें कई हजार रुपये लेने थे, उस व्यक्ति ने विश्वासघात किया। उसने पुलिस सुपरिटेडेंट नाटबाबर को, आजाद की उपस्थितिकी सूचना दे दी। नाटबाबर शीघ्र ही पुलिस-दल के साथ उस पेड़ के पास जा पहुंचा। उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया। नाटबाबर जब आजाद को बन्दी बनाने के लिए उनकी ओर चला, तो आजाद ने उस पर गोली चला दी। गोली नाटबाबर के हाथ में लगी। उसके हाथ का रिवाल्वर छूटकर गिर पड़ा। वह एक पेड़ के ओट में छिप गया। आजाद उस पर दनादन गोलियां चलाने लगे। आजाद की गोलियां पेड़ में धंस जाती थी, नाटबाबर बच जाता था। इसी समय एक पुलिस इन्सपेक्टर बिशेश्वर सिंह ने आजाद पर गोली चलाई। आजाद गिर गये और अपनी ही गोली से जीवन लीला समाप्त करअमर हो गये।
 
Chandrashekhar Azad Photo





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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

गांधी ने क्यों इन्हें अकेला छोड़ा? क्यों इन महावीरी का साथ नहीं दिया?