शिक्षाप्रद बाल कहानी - तीन सवाल-अकबर बीरबल



बादशाहा अकबर, बीरबल की हाजि़रजवाबी के बडे कायल थे। उनकी इस बात से दरबार के अन्य मंत्री मन ही मन बहुत जलते थे। उनमें से एक मंत्री, जो महामंत्री का पद पाने का लोभी था, ने मन ही मन एक योजना बनाई। उसे मालूम था कि जब तक बीरबल दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में है उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती।

एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की हाजि़रजवाबी की बहुत प्रशंसा की। यह सब सुनकर उस मंत्री को बहुत गुस्सा आया। उसने बादशाह से कहा कि यदि बीरबल मेरे तीन सवालों का उत्तर सही-सही दे देता है तो मैं उसकी बुद्धिमता को स्वीकार कर लूँगा और यदि नहीं तो इससे यह सिद्ध होता है कि वह बादशाह का चापलूस है। अकबर को मालूम था कि बीरबल उसके सवालों का जवाब ज़रूर दे देंगे इसलिए उन्होंने उस मंत्री की बात स्वीकार कर ली। उस मंत्री के तीन सवाल थे -
आकाश में कितने तारे हैं?
धरती का केन्द्र कहाँ है?
सारे संसार में कितने स्त्री और कितने पुरुष हैं?
अकबर ने फौरन बीरबल से इन सवालों के जवाब देने के लिए कहा। और शर्त रखी कि यदि वह इनका उत्तर नहीं जानता है तो मुख्य सलाहकार का पद छोड़ने के लिए तैयार रहें।

बीरबल ने कहा, तो सुनिये बादशाह।

पहला सवाल - बीरबल ने एक भेड़ मँगवाई और कहा जितने बाल इस भेड़ के शरीर पर हैं आकाश में उतने ही तारे हैं। मेरे दोस्त, गिनकर तस्सली कर लो, बीरबल ने मंत्री की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

दूसरा सवाल - बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लकीरें खींची और] कुछ हिसाब लगाया। फिर एक लोहे की छड़ मँगवाई गई और उसे एक जगह गाड़ दिया और बीरबल ने बादशाह से कहा, बादशाह बिल्कुल इसी जगह धरती का केन्द्र है, चाहे तो आप स्व्यं जाँच लें। बादशाह बोले ठीक है अब तीसरे सवाल के बारे में कहो।

अब बादशाह तीसरे सवाल का जवाब बड़ा मुश्किल है। क्योकि इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो ना तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं और ना ही पुरुषों की श्रेणी में। उनमें से कुछ लोग तो हमारे दरबार में भी उपस्थित हैं जैसे कि ये मंत्री जी। बादशाह यदि आप इनको मौत के घाट उतरवा दें तो मैं स्त्री-पुरूष की सही सही संख्या बता सकता हूँ. अब मंत्री जी सवालों का जवाब छोडकर थर-थर काँपने लगे और बादशाह से बोले, बादशाह बस-बस मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया। मैं बीरबल की बुद्धिमानी को मान गया हूँ।

बादशाह हमेशा की तरह बीरबल की तरफ पीठ करके हँसने लगे और इसी बीच वह मंत्री दरबार से दबे पाँव चला गया।

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