पूजनीय अशोक सिंघल जी कोई व्यक्ति नहीं थे, वह अपने में स्वयं एक विचारधारा थे। मैं प्रयाग की धरती से जुड़ा हूँ और उनका प्रयाग वासियों से विशेष स्नेह रहा है। अक्सर विभिन्न माध्यमों से माध्यम से उनको सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में उनके जैसा विचारधारा का विचारक वह स्वयं ही थे। ऐसे अपने सिंघल जी सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 को आगरा के एक कारोबारी परिवार में हुआ था और 1942 में प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ते वक्त संघ के वरिष्ठ प्रचारक रज्जू भैया उन्हें आरएसएस लेकर आए। वे भी उन दिनों वहीं पढ़ते थे। रज्जू भैया सिंघल जी की मां को आरएसएस के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनाई। इससे वे प्रभावित हुईं और उन्होंने सिंघल को शाखा जाने की इजाजत दे दी।
1947 में देश के बंटवारे के बाद वे पूरी तरह संघ के स्वयंसेवक बन गए और 1948 में संघ पर बैन लगा तो उन्हें भी जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने अच्छे मेरिट नंबरों से बीई किया। सिंघल सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से बहुत प्रभावित थे। प्रचारक के तौर पर वे लंबे समय तक कानपुर रहे। मेरे पिता जी श्री भूपेन्द्र नाथ सिंह जी कानपुर में बाल स्वयंसेवक से लेकर परिपक्व स्वयंसेवक होने तक सिंघल जी के बहुत करीब रहे।
कुर्सी परपूज्य अशोक जी और मेरे पिताजी |
मेरे घर की पूर्व स्थिति जब मेरे पिताजी विद्यार्थी थे तो बहुत अच्छी नही थी। एक बार उन्होंने पिताजी को कानपुर में नरेन्द्र मोहनजी से कहकर दैनिक जागरण में उपसंपादक के तौर पर रखवाया किंतु बाद में पिताजी ने सिंहल जी से कहा सिंघल जी ये काम मेरे हिसाब से ठीक नहीं है मुझे लगता है वकालत करना ठीक रहेगा। तो सिंघल जी ने कहा की जो स्वेच्छा करे वो करो वही उचित होता है। आज पिताजी प्रतिष्ठित वकील है।
सिंघल जी 1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर बैन रहा। इस दौरान वे इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ चले अभियान में शामिल रहे। आपातकाल खत्म होने के बाद वे दिल्ली के प्रांत प्रचारक बनाए गए। दलितोत्थान के लिये काम करने वाले सिंघल ने दलितों के लिये सैकड़ों मंदिरों का निर्माण कराया। 1981 में दिल्ली में एक हिन्दू सम्मेलन हुआ। इसमें बड़ी तादाद में लोग जुटे। इसके बाद सिंघल को विश्व हिंदू परिषद की जिम्मेदारी सौंप दी गई। नब्बे के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन में विश्व हिंदू परिषद के सबसे आगे रहने की वजह से सिंघल देशभर में सुर्खियों में आ गए। देश में विश्व हिंदू परिषद की पहचान कायम करने का श्रेय सिंघल को ही जाता है।
ऐसे सबसे घुलमिल जाने वाले सिंघल जी भले ही आज हमारे बीच में नहीं है किंतु उनकी कर्मठता और सिंद्धांत हमारा मार्गदर्शन करते रहेगे।
ऐसे सबसे घुलमिल जाने वाले सिंघल जी भले ही आज हमारे बीच में नहीं है किंतु उनकी कर्मठता और सिंद्धांत हमारा मार्गदर्शन करते रहेगे।
Share:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें