ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित - क्षत्रियों की वंशावली
Based on Historical Evidence - Genealogy of Kshatriyas
भारत के चार क्षत्रिय वंशों को उनकी उत्पत्ति के अनुसार निम्न वंशों में विभाजित किया गया है। जो निम्न है - 1. सूर्य वंश, 2. चंद्र वंश, 3. नाग वंश और 4. अग्नि वंश
सूर्यवंशी क्षत्रिय
प्राचीन पुस्तकों के अवलोकन से ऐसा ज्ञात होता है कि भारत में आर्य दो समूहों में आये। प्रथम लम्बे सिर वाले और द्वितीय चैडे़ सिर वाले। प्रथम समूह उत्तर-पश्चिम (ऋग्वेद के अनुसार) खैबरर्दरे से आये, जो पंजाब, राजस्थान, और अयोध्या में सरयू नदी तक फैल गये। इन्हें सूर्यवंशी क्षत्रिय कहा गया है। प्रथम समूह के प्रसद्धि राजा भरत हुए। भरत की संताने और उनके परिवार को सूर्यवंशी क्षत्रिय का नाम दिया गया। यह 11 वें स्कन्ध पुराण अध्याय 1 में श्लोक 15, 16 और 17 में वर्णित है। रोमिला थापर ने पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर लिखा है कि महाप्रलय के समय केवल मनु जीवित बचे थे। भगवान विष्णु ने इस बाढ़ के संबंध में पहले ही चेतावनी दे दी थी, इसलिये मनु ने अपने परिवार और सप्तऋषियों को बचा ले जाने के लिये एक नाव बना ली थी। भगवान विष्णु ने एक बड़ी मछली का रूप धारण किया, जिससे वह नौका बाँध दी गयी। मछली जल-प्रवाह में तैरती हुई नौका को एक पर्वत शिखर तक ले गयी। यहाँ मनु उनका परिवार और सप्तऋषि प्रलय की समाप्ति तक रहे और पानी कम होने पर सुरक्षित रूप से पृथ्वी के रूप में मनु का उल्लेख है। पुराणों में 14 मनु वर्णित है जिसमें से स्वयंभुव मनु संसार के सर्वप्रथम मनु है। विवस्वान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु सातवें मनु थे। इनके पहले के छः मनु स्वंयभुव वंश के थे।
वैवस्वत मनु से त्रेता युग प्रारम्भ हुआ। श्रीमद् भागवत पुराण में वर्णित है कि महाप्रलय के समय केवल परम् पुरूष ही बचे, उनसे ब्राह्या जी उत्पन्न हुये। ब्रह्मा से मरीच, मरीच की पत्नी अदिति से विवस्वान (सूर्य) का जन्म हुआ तथा विवस्वान की पत्नी संज्ञा से मनु पैदा हुए। वसतुत वैवस्वत मनु भारत के प्रथम राजा थे, जो सूर्य से उत्पन्न हुये और अयोध्या नगरी बसाई। सबसे पहले मनु जिनको स्वयंभू कहते हुए इनके पुत्र प्रियावर्त और उनके पुत्र का नाम अग्निध्रा था, अग्निध्रा के पौत्र का नाम नाभि था और नाभि के पुत्र का नाम ऋषभ था। ऋषभ के 100 पुत्र हुए। जिसका वर्णन वेदों में मिलता है। इनमें से सबसे बड़ा पुत्र भरत था। जिसके नाम पर भरत हर्ष का नाम पड़ा और यह सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। इसका वर्णन स्कन्ध पुराण 5 और अध्याय 7 में मिलता है। भरत का परिवार तेजी से बढ़ा और उन्हें भारत जन कहा जाने लगा। जिसका वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। इस परिवार में भगवान मैत्रावरूण और अप्सरा उर्वशी के पेट से वशिष्ठ का जन्म हुआ। जो आगे चलकर भरत के पुरोहित हुए। वशिष्ठ ने इनको बलशाली औरवीरत्व प्रदान किया। इसी बीच विश्वामित्र जो जन्म से क्षत्रिय थे। अपने कठिन तपस्या से ऋषि का स्थान प्राप्त किया और क्षत्रियों के गुरू बन गए। इससे वशिष्ठ व विश्वामित्र दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गए। इस प्रकार वशिष्ठ एवं विश्वामित्र दोनों ने पुरोहित का पद पा लिया और इस वंश को सूर्यवंशी कहा जाने लगा। आर्यों की वर्ण व्यवस्था के पश्चात् ऋषियों ने मिलकर सूर्य नामक आर्य क्षत्रिय की पत्नी सरण्यू से उत्पन्न मनु को पहला राजा बनाया। वायु नामक ऋषि ने मनु का राज्याभिषेक किया। मनु ने अयोध्या नगरी का निर्माण किया और उसे अपनी राजधानी बनाई। मनु से उत्पन्न पुत्र सूर्यवंशी कहलाये। उस युग में सूर्यवंशियों के अयोध्या, विदेह, वैशाली आदि राज्य थे।
मनु के 9 पुत्र तथा एक पुत्री इला थी। मनु ने अपने राज को 10 भाग में बांट कर सबको दे दिया। अयोध्या का राज्य उनके बाद उनके 1. बडे़ पुत्र इक्ष्वाकु को मिला। उसके वंशज इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय कहलाये। राजा मनु का 2. दूसरा पुत्र नाभानेदिस्त था। जिसे बिहार का राज्य मिला और आजकल इस इलाके को तिरहुत कहते है। इनके 3. तीसरा पुत्र विशाल हुए। जिन्होंने वैशाली नगरी बसा कर अपनी राजधानी बनाई। मनु के 4. चौथा पुत्र करूष के वंशज करूष कहलाये। इनका राज्य बघेलखंड था। उस युग में यह प्रदेश करूष कहलाने लगा। 5. पाँचवा शर्याति नामक मनु के पुत्र को गुजरात राज्य मिला और उसका 6. छटा पुत्र आनर्त था। जिससे वह प्रदेश आनर्त कहलाया। आनर्त देश की राजधानी कुशस्थली वर्तमान में द्वारका थी। आनर्त के रोचवान, रेव और रैवत तीन पुत्र थे। रैवत के नाम पर वर्तमान गिरनार रैवत पर्वत राक्षसों ने समाप्त कर दिया। मनु के 7. सावतें पुत्र का राज्य यमुना के पश्चिमी तट तथा 8. आठवाँ पुत्र धृष्ट का राज्य पंजाब में था। जिसके वंशज धृष्ट क्षत्रिय कहलाये।
इक्ष्वाकु के कई पुत्र थे, परन्तु मुख्य दो थे, राजा की ज्येष्ठ संतान 1. विकुक्षी था, जिसे शशाद भी कहा जाता था। वह पिता के बाद अयोध्या का राजा बना। शशाद के पुत्र का नाम काकुत्स्थ था, जिसके वंशज काकुत्स्थी कहलाए। इक्ष्वाकु का 2. दूसरा पुत्र निर्मा था, उसका राज्य अयोध्या और विदेह के बीच स्थापित हुआ। इस वंश के एक राजा मिथि हुए, जिन्होनें मिथिला नगरी बसाई। इस वंश में राजा जनक हुए। इस राज्य और अयोध्या राज्य के बीच की रेखा सदानीरा (राप्ती) नदी थी।
इस वंश की आगे चलकर अनेक शाखा-उपशाखा हुई और वे सब सूर्यवंशी कहलाए। इस वंश के महत्वपूर्ण नरेशों के नाम पर अनेक वंशों के नाम हुए, जैसे-इक्ष्वाकु काकुत्स्थ से काकुत्स्थ वंश कहलाया। रघु के वंशज रघुवंशी कहलाए। अयोध्या के महाराजा काकुत्स्थ का पौत्र पृथु हुआ। इसने शुरू में जमीन को नपवा कर हदबन्दी करवाई। उसके समय में कृषि की बड़ी उननति हुई थी। उसी वंश में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता, सगर, भगीरथ, दिलीप, रघु, दशरथ और राम हुए।
सूर्यवंशी राजाओं की नामावली
क्षत्रियों की गणना करते हुए, सर्वप्रथम सूर्यवंश का नाम लिया जाता है। इसकी उत्पत्ति महापुरुष विवस्वान् (सूर्य) से मानी जाती है। ब्रह्मा के पुत्र मरिज के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप की रानी अदिती से "सूर्य" की उत्पत्ति हुई। जिसे विवस्वान् भी कहा जाता है। विवस्वान् के पुत्र "मनु" हुए। मनु के नव पुत्र एवं एक पुत्री ईला थी। जिनमें सबसे बडे़ इक्ष्वाकु थे। इसलिए सूर्य वंश को इक्ष्वाकु वंश भी कहा जाता है। मनु ने ही अयोध्या को बसाया था। भिन्न-भिन्न पुराणों में दी गई सूर्यवंशी राजाओं की वंशावली इस प्रकार है:- 1.मनु 2. इक्ष्वाकु 3. विकुक्षि 4. परंजय 5. अनेना 6. पृथु 7. वृषदश्व 8. अन्ध्र 9. युवनाश्व 10. श्रावस्त 11. वृहदश्व 12. कुवलायाश्व 13. दृढाश्व 14. प्रमोढ 15. हर्रूश्व 16. निंकुभ 17. संहताश्व 18. कुशाश्व 19. प्रसेनजित 20. युवनाश्व (द्वितीय) 21. मान्धाता 22. पुरूकुतस 23. त्रसदस्यु 24. सम्भूल 25. अनरण्य 26. त्रसदश्व 27. हर्यस्व 28. वसुमान् 29. त्रिधन्वा 30. त्ररूयारूणि 31. सत्यव्रत 32. हरिश्चन्द्र 33. रोहिताश्व 34. हरित 35. चंचु 36. विजय 37. रूरूक 38. वृक 39. बाहु 40. सगर 41. असमंजस 42. अंशुमान 43. दिलीप 44. भागीरथ 45. श्रुत 46. नाभाग 47. अम्बरीष 48. सिन्धुद्वीप 49. अयुतायु 50. ऋतुपर्ण 51. सर्वकाम 52. सुदास 53. सोदास 54. अश्मक 55. मूलक 56. दशरथ 57. एडविड 58. विश्वसह 59. दिलीप (खटवाँग) 60. रघु 61. अज 62. दशरथ 63. रामचन्द्र 64. कुश 65. अतिथि 66. निषध 67. नल 68. नभ 69. पुण्डरीक 70. क्षेमधन्ध 71. देवानीक 72. पारियाग 73. दल 74. बल 75. दत्क 76. वृजनाभ 77. शंखण 78. ध्युपिताश्न 79. विश्वसह 80. हिरण्नाभ 81. पुष्य 82. धु्रवसन्धि 83. सुदर्शन 84. अग्निवर्ण 85. शीध्र्र 86. मरू 87. प्रसुश्रुत 88. सुसन्धि 89. अमर्ष 90. सहस्वान् 91. विश्वभन 92. वृहद्बल 93. वृहद्रर्थ 94. उरूक्षय 95. वत्सव्यूह 96. प्रतिव्योम 97. दिवाकर 98. सहदेव 99. वृहदश्व 100. भानुरथ 101. प्रतीतोश्व 102. सुप्रतीक 103. मरूदेव 104. सुनक्षत्र 105. किन्नर 106. अंतरिक्ष 107. सुपर्ण 108. अमित्रजित् 109. बहद्राज 110. धर्मी 111. कृतंजय 112. रणंजय 113. संजय 114. शाक्य 115. शुद्धोधन 116. सिद्धार्थ 117. राहुल 118. प्रसेनणित 119. क्षुद्रक 120. कुण्डक 121. सुरथ 122. सुमित्र
उपरोक्त नाम सूर्यवंशी मुख्य-मुख्य राजाओं के हैं, क्योंकि मनु से राम के पुत्र कुश तक केवल चैसठ राजाओं के नाम मिलते हैं। जबकि यह अवधि लगभग कई करोड़ वर्षों की है। अतः पुराणों में सभी राजाओं के नाम आना अंसभव भी हैं।
सूर्यवंश से निकली शाखाएँ
1. सूर्यवंशी 2. निमि वंश 3.निकुम्भ वंश 4. नाग वंश 5. गोहिल वंश, 6. गहलोत वंश 7. राठौड़ वंश 8. गौतम वंश 9. मौर्य वंश 10. परमार वंश, 11. चावड़ा वंश 12. डोड वंश 13. कुशवाहा वंश 14. परिहार वंश 15. बड़गूजर वंश, 16. सिकरवार 17. गौड़ वंश 18. चैहान वंश 19. बैस वंश 20. दाहिमा वंश, 21. दाहिया वंश 22. दीक्षित वंश
चन्द्रवंशी क्षत्रिय
द्वितीय आर्यों का समूह चंद्रवंशी क्षत्रियों के नाम से जाना जाता है। ऋग्वेद के अनुसार यह समूह चंद्रवंशी क्षत्रिय के नाम से जाना जाता और यह हिमालय को गिलगिट के रास्ते से पार किया और मनासा झील के पास से होते हुए भारत आए। इनका सर सूर्यवंशीय के मुकाबले चौड़ा होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम यायात्री था। यह आयु के पुत्र और पूर्वा के पौत्र थे, इनको चंद्रवंशीय कहा जाता है तथा इनके 5 पुत्र थे। यह गिलगिट होते हुए सरस्वती नदी के क्षेत्र में आए ओर सरहिन्द होते हुए दक्षिण पूर्व में बस गए। यह क्षेत्र सूर्यवंशियों के अधिकार में नहीं था। प्रारंभिक युग में चन्द्र क्षत्रिय का पुत्र बुद्ध था, जो सोम भी कहलाता था। बुद्ध का विवाह मनु की पुत्री इला से हुआ। उनसे उत्पन्न हुए पुत्र का नाम पुरूरवा था। इसकी राजधानी प्रयाग के पास प्रतिष्ठानपुर थी। पुरूरवा के वंशज चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाए। पुरूरवा के दो पुत्र आयु और अमावसु थे। आयु ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते राज्य का स्वमाी बना तथा अमावसु को कान्यंकुब्ज (कन्नौज) का राज्य मिला।
आयु के नहुष नामक पुत्र हुआ। नहुष के दो पुत्र हुए ययाति और क्षत्रबुद्ध। ययाति इस वंश में सर्वप्रथम चक्रवर्ती सम्राट बना और उसके भाई क्षत्रबुद्ध को काशी प्रदेश का राज्य मिला। उसकी छठी पीढ़ी में काश नामक राजा हुआ, जिसने काशी नगरी बसाई थी तथा काशी को अपनी राजधानी बनाई। सम्राट ययाति के यदु, द्रुह्य, तुर्वसु, अनु और पुरू पाँच पुत्र हुए। सम्राट ययाति ने अपने सबसे छोटे पुत्र पुरू को प्रतिष्ठानपुर का राज्य दिया, जिसके वंशज पौरव कहलाए। यदु को पश्चिमी क्षेत्र केन, बेतवा और चम्बल नदियों के काठों का राज्य मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठानपुर का दक्षिणी पूर्वी प्रदेश मिला, जहाँ पर तुर्वसु ने विजय हासिल कर अधिकार जमा लिया। वहाँ पहले सूर्यवंशियों का राज्य था। दुह्य को चम्बल के उत्तर और यमुना के पश्चिम का प्रदेश मिले और अनु को गंगा-यमुना के पूर्व का दोआब का उत्तरी भाग, यानी अयोध्या राज्य के पश्चिम का प्रदेश मिला। ये यादव आगे चलकर बडे़ प्रसिद्ध हुए। इनसे निकली हैहयवंशी शाखा काफी बलशाली साबित हुई। हैहयंवशजों ने आगे बढ़कर दक्षिण में अपना राज्य कायम कर लिया था। यादव वंश में अंधक और वृष्णि बडे़ प्रसिद्ध राजा हुए हैं।
जिनसे यादवों की दो शाखाएं निकली। प्रथम शाखा अंधक वंश में आगे चलकर उग्रसेन और कंस हुए, जिनका मथुरा पर शासन था। दूसरी शाखा वृष्णिवंश में कृष्ण हुए, जिसने कंस को मारकर उसके पिता उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। आगे चलकर वृष्णिवंश सौराष्ट्र प्रदेेश स्थित द्वारका में चला गया।
दुह्य वंश में गांधार नामक राजा हुआ, उसने वर्तमान रावलपिंडी के उत्तर पश्चिम में जो राज्य कायम किया, वहीं गांधार देश कहलाया। अनु के वंशज आनय कहलाते है।
इस वंश में उशीनर नामक राजा बड़ा प्रसिद्ध हुआ है। उसके वंशज समूचे पंजाब में फैले हुए थे। उशीनर का पुत्र शिवि अपने पिता से अधिक प्रतापी शासक हुआ और चक्रवर्ती सम्राट कहलाया। दक्षिणी पश्चिमी पंजाब में शिवि के नाम पर एक शिविपुर नगर था, जिसे आजकल शेरकोट कहा जाता है। चन्द्रवंशियों में यौधेय नाम के बडे़ प्रसिद्ध क्षत्रिय हुए थे।
कन्नौज के चन्द्रवंशी राजा गाधी का पुत्र विश्वरथ था, जिसने राजपाट छोड़कर तपस्या की थी। वहीं प्रसिद्ध "ऋषि विश्वामित्र" हुआ। इन्हीं ऋषि विश्वामित्र ने "गायत्री मंत्र" की रचना की थी। यादवों की हैहय शाखा में कार्तवीर्य अर्जुन बड़ा शक्तिशाली शासक था, जो बाद में चक्रवर्ती सम्राट बन गया था, परन्तु अन्त में परशुराम और अयोध्या के शासक से युद्ध में परास्त होकर मारा गया।
पौरव वंश का एक बार पतन हो गया था। इस वंश में पैदा हुए दुष्यन्त ने बड़ी भारी शक्ति अर्जित कर अपने वंश को गौरवान्वित किया। दुष्यनत के बडे़ भाई एवं शकुन्तला का पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट बना। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जिसके नाम पर यह देश भारत कहलाया। इसके वंशज हस्ती ने ही हस्तिनापुर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। इसी वंश के शासकों ने पांचाल राज्य की स्थापना की, जो बाद में दो भागों में बंट गया। एक उत्तरी पांचाल ओर दूसरा दक्षिणी पांचाल। उत्तरी पांचाल की राजधानी का नाम अहिच्छत्रपुर था, जो वर्तमान में बरेली जिले में रामनगर नामक स्थान है। दक्षिण पांचाल में कान्यकुब्ज का राज्य विलीन हो गया था जिसकी राजधानी काम्पिल्य थी। पौरव वंश में ही आगे चलकर भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र, पांडु, युधिष्ठिर, परीक्षित और अन्य राजा हुए।
चन्द्र-वंश से निकली शाखाएँ
1. सोमवंशी 2. यादव 3. भाटी 4. जाडे़दार 5. तोमर 6. हैहय, 7. करचुलिसया 8. कौशिक 9. सेंगर 10. चेन्दल 11. गहरवार 12. बेरूआर, 13. सिरमौर 14. सिरमुरिया 15. जनवार 16. झाला 17. पलवार 18. गंगावंशी 19. विलादरिया 20. पुरूवंशी 21. खातिक्षत्रिय 22. इनदौरिया 23. बुन्देला 24.कान्हवंशी, 25. रकसेल 26. कुरूवंशी 27. कटोच 28. तिलोता 29. बनाकर 30. भारद्वाज 31. सरनिहा 32. द्रह्युवंशी 33. हरद्वार 34. चैपटखम्भ 35. क्रमवार 36. मौखरी 37. भृगुवंशी 38. टाक
नागवंश क्षत्रिय
आर्यों में एक क्षत्रिय राजा शेषनाग था। उसका जो वंश चला, वह नागवंश कहलाया। प्रारम्भ में इनका राज्य कश्मीर में था। वाल्मीकि रामायण में शेषनाग और वासुकी नामक नाग राजाओं का वर्णन मिलता है। महाभारत काल में ये दिल्ली के पास खांडव वन में रहते थे, जिन्हें अर्जुन ने परास्त किया था। इनके इतिहास का वर्णन राजतरंगिणी में मिलता है।
विदिशा से लेकर मथुरा के अंचल तक का मध्यप्रदेश नागवंशियों की शक्ति का केंद्र होने से उन्होनें विदेशियों से जमकर लोहा लिया। ये लोग शिवोपासक थे, जो शिवलिंगों को कंधों और पगडि़यों में धारण किया करते थे। कुषाण साम्राज्य के अंतिम शासक वासुदेव के काल में भारशिवों (नागों) ने काशी में गंगा तक पर दस अश्वमेध यज्ञ किए जो दशाश्वमेध घाट के रूप में स्मृति स्वरूप आज भी विद्यमान हैं। पुराणों में भारशिवों का नवनागों के नाम से वर्णन है। धर्म विषयक आचार-विचार को समाज में स्थापित करने का श्रेय गुप्तों को न जाकर भारशिवों को जाता है। क्योंकि इसकी शुरूआत उनके शासन काल में ही हो चुकी थी। इतिहास के विद्वानों का मत है कि पंजाब पर राज्य करने वाले नाग 'तक' अथवा 'तक्षक' शाखा के नाग थे।
डॉ. जायसवाल मानते है कि पद्मावती वाले नाग भी तक्षक अथवा टाक शाखा के थे। इन नागों की शाखा कच्छप मध्यप्रदेश में थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर पश्चिमी भारत के गणतांत्रिक राज्यों का इन नागों को सहयोग रहा होगा। इस पारस्परिक सार्वभौमिकता को इन्होनें स्वीकारा। राजस्थान स्थित नागों के राज्यों को परमारों ने समाप्त कर दिया था। इनका गोत्र काश्यप, प्रवर तीन काश्यप, वत्सास, नैधुव वेद सामवेद, शाखा कौथुमी, निशान हरे झण्डे पर नाग चिन्ह तथा शस्त्र तलवार है।
अग्निवंश क्षत्रिय
भारत के राजकुलों में चार कुल चैहान, सोलंकी, परमार तथा प्रतिहार थे, जो अपने को अग्निवंशी मानते हैं। आधुनिक भारतीय व विदेशी विद्वान इस धारणा को मिथ्या मानते हैं। किन्तु इनमें से दो-तीन विद्वानों को छोड़कर सभी सभी अग्निकुल की धारणा को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार भी करते हैं, इसलिए यहाँ अग्निकुल की उत्पत्ति के प्रश्न पर विचार करना आवश्यक हैं। इन कुलों की मान्यता है कि अग्निकुंड से इन कुलों के आदि पुरूष, मुनि वशिष्ठ द्वारा आबू पर्तत पर उत्पन्न किए गए थे। डॉ. दशरथ शर्मा लिखते है कि असुरों का संहार करने के लिए वशिष्ठ ने चालुक्य, चैहान, परमार और प्रतिहार चार क्षत्रिय कुल उत्पन्न किए।
सोलंकियों के बारे मे पूर्व सोलंकी राजा, राजराज प्रथम के समय में वि.1079 (ई. 1022) के एक ताम्रपत्र के अनुसार भगवान पुरूषोत्तम की नाभि कमल से ब्रह्या उत्पन्न हुए, जिनेस क्रमशः सोम, बुद्ध व अन्य वंशजों में विचित्रवीर्य, पाण्ड, अर्जुन, अभिमन्यु, परीक्षित, जन्मेजय आदि हुए। इसी वंश के राजाओं ने अयोध्या पर राज किया था। विजयादित्य ने दक्षिण में जाकर राज्य स्थापित किया। इसी वंश में राजराज हुआ था।
सोलंकियों के शिलालेखों तथा कश्मीरी पंडित विल्हण द्वारा वि. 1142 में रचित 'विक्रमाक्ड़ चरित्र' में चालुक्यों की उत्पत्ति ब्रह्या की चुल्लु से उत्पन्न वीर क्षत्रिय से होना लिखा गया है जो चालुक्य कहलाया। पश्चिमी सोलंकी राजा विक्रमादित्य छठे के समय के शिलालेख वि. 1133 (ई.1076) में लिखा गया है कि चालुक्य वंश भगवान ब्रह्या के पुत्र अत्रि के नेत्र से उत्पन्न होने वाले चन्द्रवंश के अंतर्गत आते हैं।
अग्निकुल के दूसरे कुल चैहानों के विषय में वि. 1225 (ई.1168) के पृथ्वीराज द्वितीय के समय के शिलालेख में चैहानों को चंद्रवंशी लिखा है। 'पृथ्वीराज विजय' काव्य में चैहानों को सूर्यवंशी लिखा है तथा बीसलदेव चतुर्थ के समय के अजमेर के लेख में भी चैहानों को सूर्यवंशी लिखा है।
आबू पर्वत पर स्थित अचलेश्वर महादेव के मन्दिर में वि. 1377 (ई. 1320) के देवड़ा लुंभा के समय के लेख में चौहानों के बारे में लिखा है कि सूर्य और चंद्र वंश के अस्त हो जाने पर जब संसार में दानवों का उत्पात शुरू हुआ तब वत्स ऋषि के ध्यान और चंद्रमा के योग से एक पुरूष उत्पन्न हुआ।
ग्वालियर के वंतर शासक वीरम के कृपापात्र नयनचन्द्र सूरी ने 'हम्मर महाकाव्य' की रचना वि. 1460 (ई. 1403) के लगभग की, जिसमें उसने लिखा है कि पुष्कर क्षेत्र में यज्ञ प्रारम्भ करते समय राक्षसों द्वारा होने वाले विघ्रनों की आशंका से ब्रह्या ने सूर्य का ध्यान किया, इस पर यज्ञ के रक्षार्थ सूर्य मंडल से उतर कर एक वीर आ पहुँचा। जब उपरोक्त यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो गया, तब ब्रह्मा की कृपा से वह वीर चाहुमान कहलाया।
अग्निकुल के तीसरे वंश प्रतिहारों के लेखों में मंडोर के शासक बाउक प्रतिहार के वि. 894 (ई. 837 ) के लेख में 'लक्ष्मण को राम का प्रतिहार लिखा है जैसा प्रतिहार वंश का उससे संबंध दिखाया है' इसी प्रकार प्रतिहार कक्कूक के वि. 918 (ई. 861) के घटियाला के लेख में भी लक्ष्मण से ही संबंध दिखाया है। कन्नौज के प्रतिहार सम्राट भोज की ग्वालियर की प्रशस्ति में प्रतिहार वंश को लक्ष्मण के वंश में लिखा है। चैहान विक्रहराज के हर्ष के वि. 1030 (ई. 973) के शिलालेख में भी कन्नौज के प्रतिहार सम्राट को रघुवंश मुकुटमणि लिखा है। इस प्रकार इन तमाम शिलालेखों तथा बालभारत से प्रतिहारों का सूर्यवंशी होना माना जाता है।
परमारों के वशिष्ठ के द्वारा अग्निकुण्ड से उत्पन्न होने की कथा परमारों के प्राचीन से प्राचीन शिलालेखों और काव्यों में विद्यमान है। डॉ. दशरथ शर्मा लिखते हैं कि हम किसी अन्य राजपूत जाति को अग्निवंशी मानें या न मानें, परमारों को अग्निवंशी मानने में हमें विशेष दुविधा नहीं हो सकती। इनका सबसे प्राचीन वर्णन मालवा के परमार शासक सिन्धुराज वि. 1052-1067 के दरबारी कवि पदमगुप्त ने अग्निवंशी होने का तथा आबू पर वशिष्ठ के कुण्ड से उत्पन्न होने का लिखा है। इसी प्रकार परमारों के असनतगढ़, उदयपुर, नागपुर, अथुंणा, हाथल, देलवाड़ा, पाटनारायण, अचलेश्वर आदि के तमाम लेखों में इनकी उत्पत्ति के बारे में इसी प्रकार का वर्णन हैं परमार अपने को चन्द्रवंशी मानते है।
इस प्रकार इन तमाम साक्ष्यों द्वारा किसी न किसी रूप में इन वंशों को विशेष शक्तियों द्वारा उत्पन्न करने की मान्यता की पुष्टि 10 वीं सदी तक तो लिखित प्रमाण हैं। विद्वानों ने अग्निवंशी होने के मान्यता 16 वीं सदी से प्रारम्भ होती है तथा इसे प्रारम्भ करने वाला ग्रन्थ "पृथ्वीराज रासो" हैं। दूसरी ओर भ्ण्डारनक वाट्सन, फारबस, कैम्पबेल, जैक्सन, स्मिथ आदि विद्वानों ने अग्निवंशियों को गूर्जर और हूर्णों के साथ बाहर से आये हुए मानते है। दूसरा विचार इनकी उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। जिसमें यह सोचा गया है कि क्या किसी कारणवश इन वंशों को शुद्ध किया गया है और इस अग्निवंशियों द्वारा अग्नि से शुद्व करने की मान्यता को स्वीकार करते है। भारत में बुद्ध धर्म के प्रचार से बहुत से लोगों ने बुद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया।
शनैः शनैः सारा ही क्षत्रिय वर्ग वैदिक धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म को अंगीकार करता चला गया। भारत में चारों तरफ बौद्ध धर्म का प्रचार हो गया। क्षत्रियों के बौद्ध धर्म में चले जाने के कारण उनकी वैदिक क्रियाएँ, परम्पराएँ समाप्त हो गई। जिससे इनके सामा्रज्य छोटे और कमजोर हो गए। तथा इनका वीरत्व जाता रहा। और तब क्षत्रियों को वापस वैदिक धर्म में पुनः लाने की प्रक्रिया शुरू हुई। और क्षत्रिय कुलों को बौद्ध धर्म से वापस वैदिक धर्म में दीक्षित किया गया और आबू पर्वत पर यह यज्ञ करके बौद्ध धर्म से वैदिक धर्म में उनका समावेश किया गया तथा इन्हें अग्नि कुल का स्वरूप दिया गया।
अब्दुल फजल के समय तक प्राचीन ग्रन्थों से या प्राचीन मान्यताओं से यह तो विदित ही था कि यह चारों वंश बौद्ध धर्म से वापस वैदिक धर्म में आये। जिसका वर्णन अब्दुल फजल ने "आइने अकबरी" में किया है। कुमारिल भट्ट ने विक्रमी संवत् 756 (ई. 700 में) बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म को वापस वैदिक धर्म में लाने का कार्य प्रारम्भ किया। जिसे आदि शंकराचार्य ने आगे चलकर पूर्ण किया।
आबू पर्वत पर यज्ञ करके चार क्षत्रिय कुलों को वापस वैदिक धम्र में दीक्षा देने का यह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम था, जो करीब छठी या 7 वीं सदीं में हुआ। यह कोई कपोल कल्पना नहीं थी, न कोई मिथ्या बात थी, अपितु वैदिक धर्म को पुनः सशक्त करने का प्रथम कदम था, जिसकी याद के रूप में बाद में ये वंश अपने को अग्नि वंशी कहने लगे।
क्षत्रिय व वैश्यों के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद वैदिक संस्कार तो लुप्त हो गए थे। यहाँ तक कि वे शनैः शनैः अपने गोत्र तक भी भूल चुके थे। जब वे वापस वैदिक धर्म में आए, तक क्षत्रियों तथा वैश्यों द्वारा नए सिरे से पुरोहित बनाए गए, उन्हीं के गोत्र, उनके यजमानों के भी गोत्र मान लिए गए। इसलिए समय-समय पर नए स्थान पर जाने पर जब पुरोहित बदले तो उनके साथ अनेक बार गोत्र भी बदलते चले गए। वैद्य और ओझा की भी यही मान्यता है।
अग्नि-वंश से निकली शाखाएँ
1. परमार 2. सोलंकी 3. परिहार 4. चैहान 5. हाड़ा 6. सोनगिरा 7. भदौरिया 8. बछगोती 9. खीची 10. उज्जैनीय 11. बघेल 12. गन्धवरिया 13. डोड 14. वरगया 15. गाई 16. दोगाई 17. मड़वार 18. चावड़ा 19. गजकेसर 20. बड़केसर 21. मालवा 22. रायजादा 23. स्वर्णमान 24. बागड़ी 25. अहबन 26. तालिया 27. ढेकहा 28. कलहंस 29. भरसुरिय 30. भुवाल 31. भुतहा 32. राजपूत माती
क्षत्रियों के 36 राजवंश (रॉयल मार्शल क्लेन ऑफ़ क्षत्रिय)
सभी लेखकों की यह मान्यता है कि क्षत्रियों के शाही कुलों (राजवंश) की संख्या 36 है। परन्तु कुछ इतिहासकारों ने इन की संख्या कम और कुछ ने ज्यादा लिखी है। कुछ इतिहासकारों ने शाही कुलों की शाखाओं को भी शाही कुल मान लिया। जिससे इनकी संख्या बढ़ गई है। प्रथम सूची चंद्रवर्दायी ने पृथ्वीराज राजसों में 12 वीं शताब्दी में वर्णित किया है।
क्षत्रियों की 36 रॉयल मार्शल क्लेन आफॅ क्षत्रिय (क्षत्रियों के 36 शाही कुल)
इन 36 शाही कुलों (रॉयल मार्शल क्लेन) में 10 सूर्यवंशी, 10 चंद्रवंशी, 4 अग्निवंशी, 12 दूसरे वंश । सभी लेखकों जैसे कर्नल जेम्स टॉड, श्री गौरीशंकर ओझा, श्री जगदीश सिंह परिहार, रोमिला थापर, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सत्यार्थ प्रकाश, राजवी अमर सिंह, बीकानेर शैलेन्द्र प्रताप सिंह-बैसवाड़े का वैभव, प्रो. लाल अमरेन्द्र-बैसवाड़ा एक ऐतिहासिक अनुशीलन भाग-1, रावदंगलसिंह-बैस क्षत्रियों का उद्भव एवं विकास, ठा. ईश्वरसिंह मडाढ़ - राजपूत वंशाली, ठा. देवीसिंह मंडावा इत्यादि ने यह माना है कि क्षत्रियों के शाही कुल 36 है लेकिन किसी ने सूची में इनकी संख्या बढ़ा दी है और किसी ने कम कर दी है।
- पहली सूची चंद्रवर्दायी जिन्होंने पृथ्वीराजरासो लिखा है बाद इन्होंने पृथ्वीराज रासो के छन्द 32 में छन्द के रूप में कुछ क्षत्रियों के कुल को लिखा है जो इस प्रकार है।
- पृथ्वीराज रासो में चंद्रवर्दायी ने कुछ कुलों को एक छन्द (दोहा) के रूप में लिखा है। जो द्वितीय सूची के रूप में प्रकाशित हुई
- तृतीय सूची में 36 क्षत्रिय कुल कर्नल टॉड ने नाडोल सिटी (मारवाड़) के जैन मंदिर के पुजारी से प्राप्त कर प्रकाशित किया
- चतुर्थ सूची में हेमचंद्र जैन ने "कुमार पालचरित्र" में 36 क्षत्रियों की सूची प्रकाशित की।
- पंचम सूची में मोगंजी खींचियों के भाट ने प्रकाशित की
- छठी सूची में नैनसी ने 36 शाही कुलों तथा उनके राजधानियों का वर्णन किया गया है
- सातवीं सूची में जो पद्मनाभ ने जारी की में प्रकाशित हुई
- आठवीं सूची में हमीरयाना जो भन्दुआ में प्रकाशित की।
इसमें 30 कुल का वर्णन है। इस प्रकार से कुल क्षत्रियों की 8 सूचियाँ प्रकाशित हुई। और करीब करीब सभी ने गणना में 36 शाही कुल माने है। प्रारम्भिक 36 कुलों की सूची में मौर्यवंशी तथा नाग वंश का स्थान न मिलना यही सिद्ध करता है कि ये प्रारम्भ में वैदिक धर्म में नहीं आये तथा बौद्ध बने रहे। तथा इतिहासकारों जैसे राजवी अमर सिंह, बीकानेर, प्रो. अमरेन्द्र सिंह, जगदीश सिंह परिहार, राव दंगल सिंह, शैलेन्द्र प्रतापसिंह, ठा. ईश्वरसिंह, ठा. देवी सिंह मंडावा, बीकानेर क्षत्रिय वंश का इतिहास आदि ने भी 36 कुल का वर्णन किया है।
प्रसिद्ध इतिहासकार श्री चिंतामणि विनायक वैद्य ने पृथ्वीराज रासो वर्णित पद्य को अपनी पुस्तक 'मिडाइवल हिन्दू इंडिया' में 36 शाखाओं का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि रवि, राशि और यादव वंश तो पुराणों में वर्णित वंश है, इनकी 36 शाखाएं हैं। एक ही शाखा वाले का उसी शाखा में विवाह नहीं हो सकता। इसे नीचे से ऊपर की ओर पढ़ने से क्रमशः निम्न शाखाएँ हैः 1. काल छरक्के 'कलचुरि' यह हैहय वंश की शाखा है। 2. कविनीश 3. राजपाल 4. निकुम्भवर धान्य पालक 6. मट 7. कैमाश 'कैलाश' 8. गोड़ 9. हरीतट्ट 10. हुल-कर्नल टॉड ने इसी शाखा को हुन लिख दिया है जिससे इसे हूणों की भा्रंति होती है। जबकि हुल गहलोत वंश की खांप है। 11. कोटपाल 12. कारट्टपाल 13. दधिपट-कर्नल टॉड साहब ने इसे डिडियोट लिखा है। 14. प्रतिहार 15. योतिका टॉड साहब ने इसे पाटका लिखा है। 16. अनिग-टॉड साहब ने इसे अनन्ग लिखा है। 17. सैन्धव 18. टांक 19. देवड़ा 20. रोसजुत 21. राठौड़ 22. परिहार 23. चापोत्कट 'चावड़ा' 24. गुहीलौत 25. गोहिल 26. गरूआ 27. मकवाना 28. दोयमत 29. अमीयर 30. सिलार 31. छदंक 32. चालुक्य 'चालुक्य' 33. चहुवान 34. सदावर 35. परमार 36. ककुत्स्थ ।
श्री मोहनलाला पांड्या ने इस सूची का विश्लेषण करते हुए ककुत्स्थ को कछवाहा, सदावर को तंवर, छंद को चंद या चंदेल, दोयमत को दाहिमा लिखा है। इसी सूची में वर्णित रोसजुत, अनंग, योतिका, दधिपट, कारट्टपाल, कोटपाल, हरीतट, कैमाश, धान्यपाल, राजपाल आदि वंश आजकल नहीं मिलते। जबकि आजकल के प्रसिद्ध वंश वैस, भाटी, झाला, सेंगर आदि वंशों की इस सूची में चर्चा ही नहीं हुई।
मतिराम के अनुसार छत्तीस कुल की सूची इस प्रकार है:-
1. सूर्यवंश 2. पेलवार 3. राठौड़ 4. लोहथम्भ 5. रघुवंशी 6. कछवाहा 7. सिरमौर 8. गहलोत 9. बघेल 10. काबा 11. श्रीनेत 12. निकुम्भ 13. कौशिक 14. चन्देल 15. यदुवंश 16. भाटी 17. तोमर 18. बनाफर 19. काकन 20.रहिहो वंश 21. गहरवार 22. करमवार 23. रैकवार 24. चंद्रवंशी 25. शकरवार 26. गौर 27. दीक्षित 28. बड़वालिया 29. विश्वेन 30. गौतम 31. सेंगर 32. उदय वालिया 33. चौहान 34. पड़िहार 35. सोलंकी 36. परमार। इन्होनें भी कुछ प्रसिद्ध वंशों को छोड़कर कुछ नये वंश लिख दिये है। इन्होंने भी प्रसिद्ध बैस वंश को छोड़ दिया है।
कर्नल टॉड के पास छत्तीस कुलों की पाँच सूचियाँ थी जो उन्होंने इस प्रकार प्राप्त की थी:-
- यह सूची उन्होंने मारवाड़ के अंतर्गत नाडौल नगर के एक जैन मंदिर के यती से ली थी। यह सूची यती जी ने किसी प्राचीन ग्रंथ से प्राप्त की थी।
- यह सूची उन्होंने अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदबरदाई के महाकाव्य पृथ्वीराज रासो से ग्रहण की थी।
- यह सूची उन्होंने कुमारपाल चरित्र से ली थी। यह ग्रंथ महाकवि चंदबरदाई के समकालीन जिन मण्डोपाध्याय कृत हैं। इसमें अन्हिलवाड़ा पट्टन राज्य का इतिहास है।
- यह सूची खींचियों के भाट से मिली थीं
- पांचवीं सूची उन्हें भाटियों के भाट से मिली थी।
इन सभी सूचियों से सामग्री निकालकर उन्होंने यह सूची प्रकाशित की थी:-
1. ग्रहलोत या गहलोत 2. यादु (यादव) 3. तुआर 4. राठौर 5. कुशवाहा 6. परमार 7. चाहुवान या चौहान 8. चालुक या सोलंकी 9. प्रतिहार या परिहार 10. चावड़ा या चैरा 11. टाक या तक्षक 12. जिट 13. हुन या हूण 14. कट्टी 15. बल्ला 16. झाला 17. जैटवा, जैहवा या कमरी 18. गोहिल 19. सर्वया या सरिअस्प 20. सिलार या सुलार 21. डाबी 22. गौर 23. डोर या डोडा 24. गेहरवाल 25. चन्देला 26. वीरगूजर 27. सेंगर 28. सिकरवाल 29. बैंस 30. दहिया 31. जोहिया 32. मोहिल 33. निकुम्भ 34. राजपाली 35. दाहरिया 36. दाहिमा।किसी कवि ने राजपूतों के वंशों का विवरण निम्न दोहे में किया है:-
दस रवि स दस चंद्र से, द्वादस ऋषि प्रमान।
चारी हुताशन यज्ञ से, यह छत्तीस कुल जान।।
इस प्रकार इस दोहे में छः वंशों और छत्तीस कुलों की चर्चा की गयी है: राय कल्याणजी बड़वा जी का वास जिला जयपुर ने इसकी व्याख्या इस प्रकार से की है:
1. सूर्यवंश से ये है: 1. सूर्यवंशी (मौरी) 2. निकुम्भ (श्रीनेत) 3. रघुवंशी 4. कछवाहे 5. बड़गूजर (सिकरवार) 6. गहलोत (सिसोदिया) 7. गहरवार(राठौर) 8. रैकवार 9. गौड़ या गौर 10. निमि वंश (कटहरिया) इत्यादि हैं।
2. चंद्रवंश से ये है: 1. यदुवंशी (जादौन, भाटी, जाडे़चा) 2. सोमवंशी 3. तंवर (जंधारे, कटियार) 4. चन्देल 5. करचुल (हैहय) 6. बैस (पायड, भाले सुल्तान) 7. पोलच 8. वाच्छिल 9. बनाफर 10. झाला (मकवाना)
3. अग्निवंश से ये हैः 1. परिहार 2. परमार (उज्जेने, डोडे, चावड़ा) 3. सोलंकी (जनवार, बघेले, सुरखी) 4. चौहान (हाड़ा, खींची, भदौरिया)
4. ऋषिवंश से ये है: 1. सेंगर 2. कनपुरिया 3. बिसैन 4. गौतम 5. दीक्षित 6. पुंडीर 7. धाकरे भृगुवंशी 8. गर्गवंशी 9. पडि़पारिण देवल 10. दाहिमा
5. नागवंश से ये है: 1. टांक या तक्षक
6. भूमि वंश से ये है: 1. कटोच या कटोक्ष
उपरलिखित वंशों के संदर्भ में स्पष्ट किया है। राजपूतों में कोई भी अग्निवंशी नहीं है और न ही नागों या भूमि से उत्पन्न वंश ही हैं। ये सभी अलंकारिक नाम हैं। राजपूतों के सभी वंश ऋषियों की संतान हैं। इन्होंने सूर्यवंशी, बैस क्षत्रियों को चन्द्रवंश में लिखा है जो सही नहीं है, ये सूर्यवंशी है। भाले सुल्तान बैस वंश की एक शाखा है। जिसके नाम से सुल्तानपुर बसा है।
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127 टिप्पणियां:
जय माताजी।।।।।।में झाला ऐश्वरीराजसिंह लिम्बडी राजघराने के ठिकाणे अड़वाल का जागीरदार हु।।।।।आपने यहाँ पे झालाओ को चंद्रवंशी बताया है जब की ये सरासर तथ्य हिन् बात है।।।।।। झाला पहले ब्रह्मा से शूरु होकर मुज तक 516 पढिया हुई है।।।।।ये सब आदिनारायण जी के वंशज है।।।।।हमारे जन्मदात्री माँ शक्ति के धाम गुजरात के पटड़ी गांव में झालाओ का पूरा इतिहास मिल जायेगा।।।।।।
Jhala/Zala is the name of a clan of Rajputs belonging to the Suryavanshi lineage, found mainly in the states of Rajasthan and Gujarat in India. And their collaterals the Rana sub-branch of Jhala.
The Jhala claim descent from Harpaldev and Shaktidevi. Harpaldev had nineteen sons, one of whom was Manguji (Limbdi) and his son is Karansinhji (Samla).
HISTORY
A whole region of Gujarat, once ruled by them and named for them, was known as Jhalawar. There are many princely state rule by Jhala like Dhrangadhra was a 13-gun salute state in the 1920s, when it was ruled by members of the Jhala dynasty. At that time, Jhalas also governed in the 11-gun state of Wankaner and in the 9-gun states of Limbdi and Wadhwan, as well as in the non-salute states of Lakhtar, Sayla and Chuda.
During the 12th century, there was a war between Maharaja of Kirtigarh, Shri Kesar dev Makwana and emporer of sindh, Hamir Sumra. Only prince Harpal devji and two brothes are survived that war. Eventually makawanas lost the war. Prince Harpal dev decided to hid him self in the woods. During his stay in jungle, he learned different arts and black magic from the rishi munies who were living there. He decided to get his kingdom back. He moved to ‘Anhilpur patan’ (Gujarat). He decided to stay at the place of his relative Karnadev solanki. Due to his mastery in archery and sword fitting, he got the place in Raj Darbar of Anhilpur Patan. King of the state was concerned about the rebellious leader name ‘Babaro Bhut’. To test his bravery, Karna Dev(the king) sent Harpal dev to defeat Babaro.
Harpal dev won the battle against Babaro and with his great intellectuals skill, he got successful to make friendship with Babro. Babaro and his men, then rebuilt the fort of Patan. As a reward of Harpaldev's work, Karna dev gave him some villages near Patadi. Harpal dev got married to Shakti, the daughter of pratapsinh solanki who helped him at initial stage. Shakti is the mother goddess of Jhalas today.
Gotra:
Markandey
Sakha:
Madhyadini
Vansh:
Suryavansh
Kuldevi:
Shree Marmara Devi
Janmadatri Devi:
Shree Adhya Shakti Devi
Ishtdev:
Chaturbhuj Vishnu
Mahadev:
Triambakeshwar Jyotirlinga (Dwarka)
Ved:
Yajurved
Aradhya Devi:
Shree Hinglaj Mata
Aradhya Dev:
Suryanarayan Dev
Sahayak Devi:
Bhairavi Devi
Mulpurush:
Kundamalji
JHALA DYNASTY PROVINCES
Name Type
Bari Sadri Thikana
Chuda Princely State
Dedhrota Princely State
Delwara Thikana
Dhrangadhra Princely State
Gogunda Thikana
Hampur Jagir
Ilol Thikana
Jhadol Thikana
Jhalawar Princely State
Kunadi Thikana
Labhowa Zamindari
Lakhtar Princely State
Limbdi Princely State
Punadra Princely State
Rajpur Taluk
Sayla Princely State
Talawada Thikana
Tana Thikana
Wadhwan Princely State
Wankaner Princely State
Jhalas Are suryavanshi
चन्द्रवंश में भी गहरवार और सूर्यवंश में भी गहरवार।। सम्राट भरत सूर्यवंशी भी और चंद्रवंशी भी।।। कृपया त्रुटियों को ठीक कर सही जानकारी देने का कष्ट करें।
गहरवार क्षत्रिय
गोत्र- - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - अन्नपूर्णा।
गहरवार शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं और अयोध्या के प्राचीन सूर्यवंशी क्षत्रियों से तालुक्क रखते हैं, कुछ इतिहासकार राठौर और गहरवार को अलग बताने के अपने दावों को सिद्ध करने के लिए गहरवार राजपूतों को चन्द्रवंशी राजपूत लिख दिया है जबकि बहुत से इतिहासकार इन्हें शुद्ध और महान सूर्यवंशी राजपूत बताते हैं, हजारों वर्षों की परम्पराओं में भी गहरवार श्रेष्ठ कुल के सूर्यवंशी राजपूत हैं।
इस इश्वर सिंह मधाड की वन्शावलि को ध्यान ना दें आप, बिना सर पैर का कुछ भी लिख दिया है इसने,
गहरवार राजपूतों की कुलदेवी हजारों वर्षों से विन्ध्यावसिनि देवी या माता चामुंडा रहीं हैं,
कश्यप,भारद्वाज,गौतम गोत्र भी मिलते हैं इनमें।
गहरवार
शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं और अयोध्या के प्राचीन सूर्यवंशी क्षत्रियों से तालुक्क रखते हैं, कुछ इतिहासकार राठौर और गहरवार को अलग बताने के अपने दावों को सिद्ध करने के लिए गहरवार राजपूतों को चन्द्रवंशी राजपूत लिख दिया है जबकि बहुत से इतिहासकार इन्हें शुद्ध और महान सूर्यवंशी राजपूत बताते हैं, हजारों वर्षों की परम्पराओं में भी गहरवार श्रेष्ठ कुल के सूर्यवंशी राजपूत हैं।
काशी के गहरवार सदैव सूर्यवंशी क्षत्रिय रहें हैं।
इस इश्वर सिंह मधाड की वन्शावलि को ध्यान ना दें आप, बिना सर पैर का कुछ भी लिख दिया है इसने,
गहरवार राजपूतों की कुलदेवी हजारों वर्षों से विन्ध्यावसिनि देवी या माता चामुंडा रहीं हैं,
कश्यप,भारद्वाज,गौतम गोत्र भी मिलते हैं इनमें।
गहरवार
शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं और अयोध्या के प्राचीन सूर्यवंशी क्षत्रियों से तालुक्क रखते हैं, कुछ इतिहासकार राठौर और गहरवार को अलग बताने के अपने दावों को सिद्ध करने के लिए गहरवार राजपूतों को चन्द्रवंशी राजपूत लिख दिया है जबकि बहुत से इतिहासकार इन्हें शुद्ध और महान सूर्यवंशी राजपूत बताते हैं, हजारों वर्षों की परम्पराओं में भी गहरवार श्रेष्ठ कुल के सूर्यवंशी राजपूत हैं।
काशी के गहरवार सदैव सूर्यवंशी क्षत्रिय रहें हैं।
गहरवार शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं और अयोध्या के प्राचीन सूर्यवंशी क्षत्रियों से तालुक्क रखते हैं, कुछ इतिहासकार राठौर और गहरवार को अलग बताने के अपने दावों को सिद्ध करने के लिए गहरवार राजपूतों को चन्द्रवंशी राजपूत लिख दिया है जबकि बहुत से इतिहासकार इन्हें शुद्ध और महान सूर्यवंशी राजपूत बताते हैं, हजारों वर्षों की परम्पराओं में भी गहरवार श्रेष्ठ कुल के सूर्यवंशी राजपूत हैं।
धन्यवाद सा
Is desh ke itihasaro ne hi sab chaupat kar rakha hai, chahe baat kshatriyo ki ho, ya hinduo ki, ya fir desh k sapoot veero aur sahido ki. sahi ko galat aur galat ko sahi kiya hai, in logo ne apni aur apne aakao ki suvidha ke anusar...............
Sani Singh Chandel
@SaniAlld (Twitter)
Main bhi gaharwar hoon aur mera gotta gautam hai
गहरवार शुद्ध चंद्रवंशी क्षत्रिय है ,,,
विस्तृत लेखन ! बहुत-बहुत धन्यवाद।।।
- विक्रम सिंह रघुवंशी
श्रीनेत वंश के बारे में बताए
ये पहले किस नाम से थे और अब किस नाम से जाने जाते है
श्रीनेत वंश का पूरा इतिहास
में आपका आभारी रहूँगा
Gaharwar chandravanshi rajput hain iske kai praman hai rathore suryavanshi hain jinhe hamari shakha bataya gaya hai jo galat hai ye vivad god lene ke karan hua maharaj jaychand ne rathore ke putro ko god liya tha bad mein gaharwar vansh kamzor hua rathore majboot huye to unhone kahna shuru kiya gaharwar hamari shakha hain aur adhunik itihaskaro ne bhi wahi likha
बला सूर्यवंशी राजपूत है जिन्होंने 2200 वर्षौ तक राज किया जो आज भी बलूचिस्तान में कायम हैं
यह वंश भगवान राम की 9वी पीढी मे राजा बल के वंशज है इस वंश में राजा सिहंड ने मुसलिम शासक महमूद गजनबी से चितौड को जीता जब महमूद हार रहा था तब उसने यह कहा था कि या अल्ला इस बल्ला से बचा तभी से यह बलवंश बल्लावंश कहलाने लगा इस वंश ने हमेशा मेवाड कि रक्षा कि है जिसके कई उदाहरण हैं
Kushwaha wansh ko suryawansh ka bataya gaya hai.jabki hamare desh main kushwaha backward class main aate hain.ye kshatriya kaise ho gaye
Sendhav/sindhav both r same just the difference is Sendhav are in malwa n sindhav in Gujrat
Beruwar rajput jiska gotra bharadwaj ho wo kis vansh ke maane jayenge aur inka itihas kya hai kripya kisi ko jaankari ho to batane ka kasht karen ???
khangar kshatriyo ka jinka atrai gotra yaduvans shakha se hai mai janna chahta hu ki inka kya itihass hai
Geherwar ko football ki trh kbhi idhar kbhi udhar fenk dete hain
Geherwar suryavnshi hain
Gargvanshi rajput hrishivansh me nahi aate ..surywans me aate hain...raghuvanshi aur gargvanshi me shadi bhi nahi hoti
Aap GARGVANSHI rajput k baare me Piura galat jaankari diye ho
Kshatriya garib nai ho skte kya?cast system aaj ka h.itihas me obc me bare me PDA h kbhi??
Laohtamiya राजपूत के बारे में बताव ज़रा
Lohtamia / lohtham rajput ka information de please. .
बहुत कुछ उल्टा - 2 लिखा है कई गोत्र को खोला हि नहीं, चौहान में अनेकों गोत्र आते हैं विशुध्द वंशावली प्रस्तुत कि है
Dekaha Rajput ke kuldevta narsingh bhagwan hain.
Dhekaha Rajput ke kul devta
Dhekaha Rajput ke kuldevta narsingh bhagwan hain.
Gaharwar sudhh aur unchya koti ke suryavanshi rajput hai....
Itihas me sabhi Rajputs ko kahi suryavanshi kahi chandravanshi kahi angnivanshi likha hua hai....mana wahi jata hai jiski manyata hoti hai us vansh ki apni
Kisne ye fizool jankari de dia bhai???
Gaharwar aur rathore dono suryavanshi hai.....itiha itih ki kitab ke upar jayenge to sare rajputs vansha har agni kitab me vansha badal jata hai...
Ye sab manyataon ka ha...gaharwar ko suryavanshi hi mana jata hai..
Dhekaha Rajput ke bare me puri jankari chahiye mujhe
Kushwaha koiri ek jati hai aur kachhwaha alag hota hai kachhwaha Rajput hote hain
कुशवाहा जो अयोध्या, गोरखपुर,देवरिया में बसते है उनके बारे में जानकारी दें, मेरा गोत्र कश्यप है।
ढेकहा को अंग्नि वंश में नहीं सूर्य वंश में लिखिए, पंवार शाखा से है कुलदेवी जिन्माता है भाटों कि बही व सम्राट प्रसेंजीत का इतिहास भी यही कहता है.
धन्यवाद
Can any body through some light on SURKHI Rajput...
कांशी कोशल नरेश का नाम Prasenajit था उसके पुत्र का नाम Virudhaka था Google पर भी उपलब्ध है संस्कृत में क्षुद्रक है आखिरी राजा सोमित्र था लेकिन वही सोमित्र सोढादेव के पिता व दूल्हादेव के दादा जी थे जिससे कच्छवाहा वंश आगे बढ़ा इसी वंश के ढेकहा (बिहार,पूर्वी उत्तर प्रदेश) व ढाका (सतना, रीवा व सिद्दी मध्य प्रदेश) के राजपूत, महाराजा सोमित्र के नंद वंश से हारने के बाद अन्यत्र बिखर गए थे और वो सदा सूर्य वंशी लिखते हैं लेकिन बहुत जगह उन्हें पंवार कि शाखा में दर्शाया जाता है पृथ्वीराज रासो का आपने उदाहरण दिया है जिसमें एक छंद है "ढाका लाकड़ा सायर से, नरवारे नल वंश" मतलब ढाका को नरवर के नल वंश से बताया गया है दक्षिण कोशल में सूर्य वंशी राजा नल का साम्राज्य था जो ताम्र पत्रों व प्राप्त मुद्राओं पर अंकित है ओर छतीसगढ़ के इतिहास में है.
धन्यवाद,
राकेश ढाका
Kirpa mujhe batay ki kutwaria or kuthwaria gotra kis rajput bansh ka hai (hum rajput shatriya likhte hai) kirpa margdarshan kare..
Katosan state
History about dod rajput's
गहरवार बंश चंद्र बंश की एक शाखा है जो चंद्र बंश के पुरुरुवा के आयुष्मान के नहुष तथा क्षत्र वृद्धि क्षत्र वॄद्धि के सुनोत्र के कश्यप इन्हें कास्य भी कहते है कास्य राजा ने काशी वसाया इनके पूत्र असी के बंश में राजा दिवोदास और उसके कुल में राजा यशो विग्रह प्रसीद्ध राजा हुए इसने काशी से गाहर जाकर एक राज्य स्थापीत किया गाहर में वसने के कारण गहरवार कहलवाने लगे इस बंश का प्रसिद्ध राजा मही चंद था इसके दो पौत्रो मदन पाल और चंद्र देव् थे दो राजपुत शाखाए चली मदन पाल के बंशध कन्नोज जाकर गहरवार बंश की स्थापना की मदन पाल के बंश मे राजा गोविन्द चंद प्रसिद्ध राजा हुए गोविन्द चंद के बंश मे जय चंद राजा हुए जय चंद का एक कुटुम्बी भाई मानिक चंद था जो गोविन्द चंद बंश की एक शाखा था मानिक चंद बंश में राजा भोजराज हुए जिन्होंने अपनी राज धानी माँडा में स्थापित कर राज्य करने लगे जो गहरवार बंश चन्द्र बंश की शाखा है
K
Madiyar Rajput के बारे कुछ बता सकते हैं
कुशवाहा रवा राजपूत क्षेणी में आते हैं न कि राजपूत, कुशवाहा में 6 शाखा है जिनमें राजपूत व जाटों के गोत्र शामिल हैं कुशवाहा सैनिक थे राजा नहीं.
Dodiya chauhan
गढ़ कुंडेर हारने के बाद khangar को राजपूत से निकाला गया था लेकिन अब राजस्थान में बैठक हुई थी जिसमें शामिल किया गया है
बल ओर कोक को परिहार में शामिल किया गया था
Ha sahi kaha aapne
Gaharwar is the chandravanshi rajput
Beruar rajput ka detail chahiyae mujhae
Beruar ka gotra kashyap hota hai .
Kripya Belkhariya vans k bare me btaiye ki inka gotra kon sa hai ur inki kuldevi kon si hai
Abe chup gaharwar suryawanshi rajpoot. Hai aur mai Manda ka hu
Gaharwar rajpoot is great and suryavanshi
Gaharwar vansh suryavanshi rsjpoot hai jo ki shree ram ke bete lav ke vanshaj hai samajh gae ki aur samjhau
Gugal par ra khangar chudasma junagad deko
आजकल जिसे देखो वो इतिहास को तोडमरोड के लिख देता है कौरव राजपूत की ज्यादा तर शाखा है
राजपूतों में कष्टेहरिया ठाकुर के वंश को बताने की कृपा करें। धन्यवाद आपका
जय भवानी !! जय माँ दुर्गे !! सभी क्षत्रिय भाइयों को सादर प्रणाम, यह बहुत ही सराहनीय एवं अच्छी पहल है जिससे आज के नव युवा पीढी के क्षत्रिय स्वयं एवं अपने सजातीय एवं सगोत्रीय बंधुओं के बारे में जान सकें, किन्तु बन्धुवर मैं एक ऐसे उच्च एवं विशुद्ध पौराणिक क्षत्रिय कुल को इस सूची में सम्मलित कराना चाहता हूं, जो कि संभवतः जानकारी नहीं मिलने के कारण इस सूची में नहीं है, बन्धुवर आप सभी ने पौराणिक कथाओं में सूर्यवंशी महाराज उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की कहानी सुनी होगी, इन्हीं महाराज ध्रुव के पुत्र वत्सर हुए तथा वत्सर के पुत्र अंग हुए और अंग के पुत्र थे "राजा वेन" श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्द के चौदहवें अध्याय के अनुसार राजयासन पाने पर आठों लोकपालों की ऐश्वर्य में मदमत्त एवं ऋषि मुनियों की उपेक्षा करने वाले "राजा वेन" ने राज्यसिंहासन पर बैठते ही घोषणा की कि आज से सभी यग्य,दान हवन तत्काल आदि तत्काल पूर्णतया बंद कर दिए जाएँ कोई वर्ण व्यवस्था नहीं रहेगी. संसार में मात्र एक ही स्यम्भू ईश्वर राजा वेन है जिसकी सभी विधि विधान से पूजा अर्चना, यग्य अनुष्ठान एवं अग्रपूजा किया करें एवं उनके द्वारा महापुरुषों के लगातार अपमान, एवं सभी मांगलिक कार्यों की समाप्ति तथा पशुबलि दिए जाने से ऋषिकुल त्रस्त था एवं राजा वेन के अत्याचारों के प्रभाव से संसार के पुण्यकार्य सहित सभी प्राणियों एवं वनस्पतियों की जातियां लुप्त होने लगीं अंततः एक दिन सभी ऋषियों ने तेज बल एवं शाप की हुंकार से "राजा वेन" को समाप्त कर दिया किन्तु राजा वेन के उत्तराधिकारी नहीं होने से सभी ऋषियों ने उनकी दाहिनी भुजा को मथा जिससे विष्णु के समान तेजस्वी पराक्रमी पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पृथु रखा गया, पृथु विष्णु के अवतार होने के कारण अति पराक्रमी थे,जिन्होंने संसार की सभी लुप्त प्रजातियों,वनस्पतियों को पुनः जीवित कराते हुए मेदिनी (पृथ्वी) को गाय एवं चन्द्रमा को बछड़ा बनाते हुए देवगुरु बृहस्पति से दोहन कराने के उपरांत प्राणिमात्र की जीविका की व्यवस्था की, राजा पृथु के द्वारा मेदिनी (पृथ्वी) को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किये जाने के उपरांत ही राजा पृथु के नाम पर मेदिनी का नाम पृथ्वी पड़ा, यद्यपि राजा पृथु उच्च कोटि के मर्यादित एवं विष्णु के अवतार थे अतः उन्होंने भी भगवान राम की ही भांति अपने नाम का वंश नहीं चलाते हुए अपने प्रतापी पिता वेन के नाम से वंश को बढाया जिसे "वेणुवंश" के नाम से जाना जाता है (पूरी कथा श्रीमद्भागवत, स्कन्द पुराण एवं नेट पर भी देखी जा सकती है) , क्षत्रियों का यह वंश सन 1960 तक उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र सिंगरौली में राज्य एवं वैभवशाली राजधानी में निवास करता था किन्तु 1960 में उस स्थान पर गोविन्द वल्लभ पन्त सागर नामक जलाशय बन जाने के कारण आज अपने विशुद्ध कुल के गौरवशाली अतीत को खोकर यत्र-तत्र हीन स्थिति में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर,सोनभद्र,मध्यप्रदेश के सिंगरौली, त्योंथर आदि जिलों में निवास कर रहा है जिनके वैवाहिक सम्बन्ध - चंदेल, गहरवार, बघेल, चौहान आदि वंशों में संपन्न कराये जाते हैं, को भी इस सूची में सम्मलित करने का कष्ट करें ताकि सभी क्षत्रिय कुल इस पौराणिक क्षत्रिय वंशावली के बारे में भी जान सके. वंश-वेनुवंश,
(राजा वेन के पश्चात राजा पृथु के द्वारा उनके पिता वेन के नाम पर प्रारम्भ की गयी सुर्यवंश की शाखा )
गोत्र-कश्यप,
कुलदेवी- माँ अष्टभुजी दुर्गा
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार
क्षत्रिय शक्ति - महाशक्ति
जय भवानी- जय माँ दुर्गे !!!
Bhai lodhi Rajpoot ke bare me koi prakrar kyon nahi hai
KULDEVTA-MAHAKAL VED-SAMVED GOTRA-KASHYAP VANSH-SURYAVANSH DYNASTY-KACHHWAHA RAJPUT .
Jay mataji.akdm right
Internet search engine optimisation, and this is frequently
referred to as SEO, is the practice of increasing the amount and
quality of visitors created to your site or
other Web based real estate from search engines' natural/organic ranking results for specific words referred to
key words.
कटियार को तंवर वंश की एक शाखा बताते हैं क्या कटियार तंवर क्षत्रिय होते हैं अगर होते हैं तो उनके बारे में विस्तार से जानकारी दो इनके कानपुर क्षेत्र में 80से 90 गांव हैं
बंधलगोती किस वंश से थे प्लीज रिप्लाई....
Morya gotra surya vanshi hai fir ye banfar vansh me kase
Ha bhai hamari sakha me likha hai zala Suryavanshi hai
Ha bhai zala Suryavanshi hai hamari sakha me likha hai
इतिहास की जानकारी नहीं है तो मत दिया करो फालतू में
में कर्मवार हु जो गहवार की शाखा से आता हूँ
और हा मेरा वंश जब सूर्यवंशी हैं
तो मैं तो गहवार की शाखा हु वो चंद्रवंशी कैसे हुआ
Sir koli vansh ke bare me koch information mil sakti hai kya
Kalhans Thakur kr bare me mujhe aur jyada jankari de. Apne Kalhans Thakur ko Agni vansh ka batya hai me nai njanta pr me janta chahta hu ke Kalhans Thakur kis vansh ki utpatti hai. plz ap mujhe jankari de.
Ooho,sayad apko pata nahi, categry jati ke aadhar par nahi varshik aaye ke hishab se rakha gaya hai. Kshatriya kushwaha(kachhi,kachhwah,koiree,murav) vansh ke kachhwaho ne rajput kaal me raj kiya isliye inhe kachhwaha-rajput kaha jata hai. Kushwanshi/kushwaha bagwan ram ke putra kush ke vanshaj hai. Lav-kush ke batware ke baad kush ne apni rajdhani kushinagar banai. Kshatriya kushwaha ki kuldevi- jamuaye mata/durga mata , gotra- kashyap/manav hai. Arthik sthiti kamjor hone ke karan gernal/obc dono me rakha gaya hai. //Jai sri ram /jai kush /jai kushwanshi /jai kushwaha//
भरतवंशी (भरवंशी) भरद्वाज की उत्पत्ती जिसे आज हम भर राजभर कहतेहै दोस्तो यह हमारी जाती जाती नही है यह एक वंशावली है
अब मै आप को Kshatriya की आरम्भीक कहानी बताता हु ब्रह्मा जी के नेत्र् से पैदा हुए अत्री ऋषी जीससे अत्री गोत्र है अत्री से
चंद्रदेव हुए चंद्रदेव से वुध से परूरवा हुए पुरूरवा ने अपने दादा के नाम पर चंद्र्वंश की स्थापना की इसी वंशावली मे हैहैयवंशी हुए
जिसका पर्शुराम ने 21बार नास कीया दोस्तो आगे चलकर इसी चंद्रवंश मे यदु और पूरू और तर्वश दुहायु भाइयो का जन्म हुआ राजा यदु से यदुवंशी हुए जिसमे आगे चलकर कृष्ण का जन्म हुआ जो कृष्ण के पैदा होते ही कृष्ण को बचाने के लिए वशुदेव ने ग्वालवंशी अहिर जाती के अपने मीत्र के यहा पर देदिया महाभारत के युध्द के बाद कुन्ती के श्राप के कारन यदुवंशीयो का समुल नास होगया यादवो का समुल नास होनेके बाद ग्वालवंशी अहिर ढढोढ अपनेआपको यादव कहलाने लगे
जो की अहिर लोग यदुवंशी अथवा यादव बिलकुल नही है दोस्तो
यह तोरही चंद्रवंश के यदुवंशीयो की कहानी अब आइए चंद्रवंश के राजा पुरू की वंशावली अर्थात पुरूवंश की कहानी बताता हु जिसमे बडे बडे प्रतापी राजा महर्षी हुए राजा नहूष महाराजा हष्ति हुए जिन्होने अपने राज्य का नाम हष्तिनापुर रखा इसी चंद्रवंशी पुरूवंशी राजा हष्ति के कुल मे महाराज दुष्यंत और शकुन्तला सेचक्रवर्ती सम्राठ महाराज भरत का जन्म हुआ महाराज भरत के तिन रानिया थी तिनो रानीयो को पुत्र न पैदा होने के कारन महाराज भरत ने एक पुत्र प्राप्ती का यग्य कीए उस यग्य होने से खुस होकर देवताओ ने महाराज भरत को एक पुत्र दिया उस पत्र को पाकर महाराज भरत अती प्रसन्न हूए उस बालक को अपना दद्तक पुत्र मानकर अपने नाम से अपना नाम दिया भरद्वाज जो बहोत बडे महर्षी हुए राजा भरत भरद्वाज ऋषी
को पुत्र रूप मे प्राप्त कर्ते ही राजा भरत तीनो पत्नीयो से धीरे धीरे नौ पुत्रो की प्राप्ती हुई सबसे बडे पुत्र भरद्वाज ऋषी को मीलाकर दस पुत्र हुए यहा से चंद्रवंश से भरतवंश (भरवंश) नागवंश की उत्पती होता है जो महर्षी अत्री गोत्र मे महर्षी भरद्वाज गोत्र है यही भरत kshatriya लोग कालन्तर मे (भर) राजभर कहलाते है जिनका गोत्र भरद्वाज है इसी मे कुरूवंशी पाण्डव हुए स्वजाति भाईयो चंद्रवंशी (सोमवंशी) हैहैयवंशी यदुवंशी पुरूवंशी भरतवंशी नागवंशी कुरूवंशी पाण्डव एक ही कुल खान्दान से है kshatriya है दोस्तो इसे जीतना हो सके उतना share करे और समाज मे जागरुग्ता लाए अपने आपको पहचानो महाभारत का युद्ध यही भर भरद्वाज (भरतवंशी भरद्वाज) लोग लडे थे जो की यह एक धन सम्पत्ती केलिए पारिवारिक लडाई था
भरतवंशी (भरवंशी) भरद्वाज की उत्पत्ती जिसे आज हम भर राजभर कहतेहै दोस्तो यह हमारी जाती जाती नही है यह एक वंशावली है
अब मै आप को Kshatriya की आरम्भीक कहानी बताता हु ब्रह्मा जी के नेत्र् से पैदा हुए अत्री ऋषी जीससे अत्री गोत्र है अत्री से
चंद्रदेव हुए चंद्रदेव से वुध से परूरवा हुए पुरूरवा ने अपने दादा के नाम पर चंद्र्वंश की स्थापना की इसी वंशावली मे हैहैयवंशी हुए
जिसका पर्शुराम ने 21बार नास कीया दोस्तो आगे चलकर इसी चंद्रवंश मे यदु और पूरू और तर्वश दुहायु भाइयो का जन्म हुआ राजा यदु से यदुवंशी हुए जिसमे आगे चलकर कृष्ण का जन्म हुआ जो कृष्ण के पैदा होते ही कृष्ण को बचाने के लिए वशुदेव ने ग्वालवंशी अहिर जाती के अपने मीत्र के यहा पर देदिया महाभारत के युध्द के बाद कुन्ती के श्राप के कारन यदुवंशीयो का समुल नास होगया यादवो का समुल नास होनेके बाद ग्वालवंशी अहिर ढढोढ अपनेआपको यादव कहलाने लगे
जो की अहिर लोग यदुवंशी अथवा यादव बिलकुल नही है दोस्तो
यह तोरही चंद्रवंश के यदुवंशीयो की कहानी अब आइए चंद्रवंश के राजा पुरू की वंशावली अर्थात पुरूवंश की कहानी बताता हु जिसमे बडे बडे प्रतापी राजा महर्षी हुए राजा नहूष महाराजा हष्ति हुए जिन्होने अपने राज्य का नाम हष्तिनापुर रखा इसी चंद्रवंशी पुरूवंशी राजा हष्ति के कुल मे महाराज दुष्यंत और शकुन्तला सेचक्रवर्ती सम्राठ महाराज भरत का जन्म हुआ महाराज भरत के तिन रानिया थी तिनो रानीयो को पुत्र न पैदा होने के कारन महाराज भरत ने एक पुत्र प्राप्ती का यग्य कीए उस यग्य होने से खुस होकर देवताओ ने महाराज भरत को एक पुत्र दिया उस पत्र को पाकर महाराज भरत अती प्रसन्न हूए उस बालक को अपना दद्तक पुत्र मानकर अपने नाम से अपना नाम दिया भरद्वाज जो बहोत बडे महर्षी हुए राजा भरत भरद्वाज ऋषी
को पुत्र रूप मे प्राप्त कर्ते ही राजा भरत तीनो पत्नीयो से धीरे धीरे नौ पुत्रो की प्राप्ती हुई सबसे बडे पुत्र भरद्वाज ऋषी को मीलाकर दस पुत्र हुए यहा से चंद्रवंश से भरतवंश (भरवंश) नागवंश की उत्पती होता है जो महर्षी अत्री गोत्र मे महर्षी भरद्वाज गोत्र है यही भरत kshatriya लोग कालन्तर मे (भर) राजभर कहलाते है जिनका गोत्र भरद्वाज है इसी मे कुरूवंशी पाण्डव हुए स्वजाति भाईयो चंद्रवंशी (सोमवंशी) हैहैयवंशी यदुवंशी पुरूवंशी भरतवंशी नागवंशी कुरूवंशी पाण्डव एक ही कुल खान्दान से है kshatriya है दोस्तो इसे जीतना हो सके उतना share करे और समाज मे जागरुग्ता लाए अपने आपको पहचानो महाभारत का युद्ध यही भर भरद्वाज (भरतवंशी भरद्वाज) लोग लडे थे जो की यह एक धन सम्पत्ती केलिए पारिवारिक लडाई था
भरतवंशी (भरवंशी) भरद्वाज की उत्पत्ती जिसे आज हम भर राजभर कहतेहै दोस्तो यह हमारी जाती जाती नही है यह एक वंशावली है
अब मै आप को Kshatriya की आरम्भीक कहानी बताता हु ब्रह्मा जी के नेत्र् से पैदा हुए अत्री ऋषी जीससे अत्री गोत्र है अत्री से
चंद्रदेव हुए चंद्रदेव से वुध से परूरवा हुए पुरूरवा ने अपने दादा के नाम पर चंद्र्वंश की स्थापना की इसी वंशावली मे हैहैयवंशी हुए
जिसका पर्शुराम ने 21बार नास कीया दोस्तो आगे चलकर इसी चंद्रवंश मे यदु और पूरू और तर्वश दुहायु भाइयो का जन्म हुआ राजा यदु से यदुवंशी हुए जिसमे आगे चलकर कृष्ण का जन्म हुआ जो कृष्ण के पैदा होते ही कृष्ण को बचाने के लिए वशुदेव ने ग्वालवंशी अहिर जाती के अपने मीत्र के यहा पर देदिया महाभारत के युध्द के बाद कुन्ती के श्राप के कारन यदुवंशीयो का समुल नास होगया यादवो का समुल नास होनेके बाद ग्वालवंशी अहिर ढढोढ अपनेआपको यादव कहलाने लगे
जो की अहिर लोग यदुवंशी अथवा यादव बिलकुल नही है दोस्तो
यह तोरही चंद्रवंश के यदुवंशीयो की कहानी अब आइए चंद्रवंश के राजा पुरू की वंशावली अर्थात पुरूवंश की कहानी बताता हु जिसमे बडे बडे प्रतापी राजा महर्षी हुए राजा नहूष महाराजा हष्ति हुए जिन्होने अपने राज्य का नाम हष्तिनापुर रखा इसी चंद्रवंशी पुरूवंशी राजा हष्ति के कुल मे महाराज दुष्यंत और शकुन्तला सेचक्रवर्ती सम्राठ महाराज भरत का जन्म हुआ महाराज भरत के तिन रानिया थी तिनो रानीयो को पुत्र न पैदा होने के कारन महाराज भरत ने एक पुत्र प्राप्ती का यग्य कीए उस यग्य होने से खुस होकर देवताओ ने महाराज भरत को एक पुत्र दिया उस पत्र को पाकर महाराज भरत अती प्रसन्न हूए उस बालक को अपना दद्तक पुत्र मानकर अपने नाम से अपना नाम दिया भरद्वाज जो बहोत बडे महर्षी हुए राजा भरत भरद्वाज ऋषी
को पुत्र रूप मे प्राप्त कर्ते ही राजा भरत तीनो पत्नीयो से धीरे धीरे नौ पुत्रो की प्राप्ती हुई सबसे बडे पुत्र भरद्वाज ऋषी को मीलाकर दस पुत्र हुए यहा से चंद्रवंश से भरतवंश (भरवंश) नागवंश की उत्पती होता है जो महर्षी अत्री गोत्र मे महर्षी भरद्वाज गोत्र है यही भरत kshatriya लोग कालन्तर मे (भर) राजभर कहलाते है जिनका गोत्र भरद्वाज है इसी मे कुरूवंशी पाण्डव हुए स्वजाति भाईयो चंद्रवंशी (सोमवंशी) हैहैयवंशी यदुवंशी पुरूवंशी भरतवंशी नागवंशी कुरूवंशी पाण्डव एक ही कुल खान्दान से है kshatriya है दोस्तो इसे जीतना हो सके उतना share करे और समाज मे जागरुग्ता लाए अपने आपको पहचानो महाभारत का युद्ध यही भर भरद्वाज (भरतवंशी भरद्वाज) लोग लडे थे जो की यह एक धन सम्पत्ती केलिए पारिवारिक लडाई था
गहरवार चंद्र वंशी है
चंद्रवंशी है गहरवार
Bahut khoob
Kirpa mujhe batay ki kutwaria or kuthwaria gotra kis rajput bansh ka hai (hum rajput shatriya likhte hai) kirpa margdarshan kare. Hum Gawlior, Madhya Pradesh, ke rehne wale hai.
जी, बिलकुल सही कहा अड़वाल झाला हुकूम, इस वंशावली में कई सारी त्रुटियों हैं, असल में झाला सूर्यवंशी राजपूत हैं,
खमा घणी, हुकूम, जय राजपूताना🙏🙏
"श्री कोली क्षत्रिय कुल का संक्षिप्त इतिहास"
क्षत्रिय कोलिय कुल की उत्तपत्ति के प्रथम प्रमाण "पृथ्वी विजयते श्री मान्धाता" के समय/सतयुग से मिलते हैं। श्री मान्धाता कोलिय कुल के मूल पुरुष है।
श्री मान्धाता का जन्म सतयुग मै सूर्यवंश के इक्ष्वाकु कुल मै हुआ था। त्रेतायुग में इसी कुल की शाखा रघुकुल मै भगवान श्री राम और कलयुग में इसी कुल की शाखा कोलिय/शाक्य कुल मै भगवान श्री गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। श्री मान्धाता, भगवान श्री राम और भगवान श्री गौतम बुद्ध के पूर्वज थे। भगवान श्री राम का जन्म श्री मान्धाता के बाद 25वी पीढ़ी त्रेतायुग मे हुआ था। भगवान श्री गौतम बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व छटी शताब्दी कलयुग में हुआ था।
धर्म ग्रन्थों और वेद पुराणो मै श्री मान्धाता का विस्तृत वर्णन है। इतिहास की पुस्तकों और स्थानीय साहित्यों में श्री मान्धाता का वर्णन किया गया है। दंत कथाओं में श्री मान्धाता की कई कथाएं प्रचलित है।
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श्री मांधाता महाराज
Dahima nai nadahiya
गहरवार क्षत्रिय की कुलदेवी कौन है
पडरौना क्षेत्र में भी है लोग गहरवार ?
गहरवार क्षत्रिय की कुलदेवी कौन है
पडरौना क्षेत्र में भी है लोग गहरवार ?
गहरवार क्षत्रिय की कुलदेवी कौन है
पडरौना क्षेत्र में भी है लोग गहरवार ?
भाई हम महाराष्ट्र मे जो क्षत्रिय है उनके बारे मे कुछ जानकारी दिजिये, तथा मेरा आखरी नाम ' शिंदे ' है ... ग्वालियार का सिंधिया घराणे का नाम भी असल मे शिंदे ही है , जैसे परमार महाराष्ट्र मे पवार बन गये ... कृपया हमारे कुल की , वंश की जानकारी के लिये मदत करे 🙏 हमारा गोत्र कौण्डिण्य है तथा मैने कही सुना है की हम नागवंशी है , और केवल हम शिंदे कुल के ही देव घर मे आज तक मैने भी नागदेवता का स्थान देखा है , फिर भी कृपया थोडी सहायता करे
Dabhi
बढ़िया जानकारी
Find out Virudhaka S/O King Prasenjit of Kanshi, Koshal and told to writer to correct the Virudhaka in stade of Shudrak etc. Written above.
Google it or find out the same from Old history books.
Dhekaha or Dhaka are one/same.Suryavanshi, Kashyap Gotra. We are ascendant of Kachwaha Rajput's.
इसके ऊपर के ऊपर वाले कमेंट का उत्तर: मौर्य कोई गोत्र नहीं होता भाई । बात करते है चन्द्रगुप्त मौर्य की : तो उससे पहले कोई मौर्य नहीं हुआ , उसे मौर्य कि उपाधि उसकी माता का नाम मोरा होने के कारण मिला था। जैसे भगवान राम का कौशिल्या नन्दन, अर्जुन का कुन्ती पुत्र इत्यादि।
चन्द्रगुप्त मौर्य में गुप्त शब्द एक पाली भाषा का शब्द है जिसका संस्कृत अर्थ गोप ( यादव ) होता है । चन्द्रगुप्त मौर्य एक चंद्रवंशी यादव ही था ।
ये बात केवल मै नहीं कह रहा हूं, ये बात ASI archeological survey of India ने भी माना है।
और आपको ये मोर्य गोत्र की शिक्षा किसने दी?
गोत्र केवल सात ही होते हैं जो कि कश्यप, अत्री, वैशिष्ट, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज से उत्पन्न हुए हैं।
इस में लिखा गया अधिकतर बात सत्य है, कुछ ऐसे बाते हैं जो बहुत ही controversial है, क्योंकि अलग अलग ग्रंथो में अलग अलग वर्णन है।
ये भी बात सत्य है कि जिन क्षत्रियों का भगवान परशुराम ने संहार किया था वह सहस्र बाहु भी हैहय वंशी ,यादव ही था। जिसने लंका के राजा रावण को बन्दी बना लिया था। मुझे लगता है ये बाते जानकर यादवों को गर्व होना चाहिए।
इतिहास के कुछ महतत्वपूर्ण यादव:
यशोधरा- बुद्ध की पत्नी व राहुल की मां
राजा POROUS
सम्राट अशोक
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य
नंदा राजवंश
गुप्ता राजवंश
पाल राजवंश
बर्मन राजवंश
शिवाजी महान मराठा राजा
शिवाजी की मां Jijabai-
राजमाता अहिल्या बाई होल्कर
धनगर महाराजा मल्हार राव होल्कर
महाराजा Yashawant राव होल्कर
रावल Jaisal- राजा और जैसलमेर के संस्थापक
कालिदास-महान लेखक।
Kanakadasa (1508-1606) ग्रेट संत
वीरन Azhagu मुतु Kone - स्वतंत्रता सेनानी, अंग्रेजों के खिलाफ उनके विद्रोह के लिए जाना जाता है
वीरा पंड्या Kattabomman (1857 स्वतंत्रता सेनानी आदर्श राजा)
राव तुलाराम , (1857 स्वतंत्रता सेनानी)
प्राण सुख यादव , (Nasibpur पर राव तुलाराम यादव के साथ मिलकर लड़ा)
राव बलबीर सिंह , (हरियाणा के राजा)
आनंदा कोनार , (तमिलनाडु 1200AD में यादव शासक वह Chengi किले का निर्माण)।
कृष्णा कोनार , (तमिलनाडु में Krishnakiri में यादव शासक)।
RamaKone (राजा, Chengi, तमिलनाडु)
कृष्णा Kone (राजा, Chengi, तमिलनाडु)
हरिहर (विजयनगर वंश के संस्थापक)
बुक्काराया (विजयनगर वंश के संस्थापक)
मैसूर राज्य की Woodiyar वंश-शासक
होयसाल कर्नाटक के किंगडम
विजयनगर के राजाओं
राजा कृष्णदेवराय (FamousVijayanagar साम्राज्य-तेनाली राम के राजा ने अपने दरबारी था)
श्री राजे Ratnasing Jadhavrao, श्री राजे Krushnasing
श्रीमंत namdar सरदार राजे Shambhusing अमर सिंह Jadhavrao
श्रीमंत साव Khashibaisaheb Jadhavrao मालेगांव की रानी
Saluva Narashima यादव (चंद्रगिरी कोटा के राजा, तिरुपति, एपी)
Katamaraju (आंध्र प्रदेश) एक यादव राजा जो तेरहवीं शताब्दी में, नाला सिद्दी, नेल्लोर के राजा के साथ एक महान महाकाव्य लड़ाई लड़ी पलार नदी के तट पर।
यादव वंश अब देवगिरि के दौलताबाद।
महाराजा रणजीत सिंह जी - पंजाब के पहले महाराजा ने अपने शासन के दौरान स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया।
जडेजा जामनगर गुजरात के।
Bhattis जैसलमेर राज की।
Jadam यूपी की।
Jadon सांसद और राजस्थान के
Banaphar सांसद के।
Palnati Brahmanaidu, गुंटूर {} एपी
गोवा के कदंब यादव किंग्स
भाई सम्राट भरत चंद्रवंशी थे जो चक्रवर्ती सम्राट महाराज दुष्यंत के पुत्र थे। महाराज ययाति के पांच पुत्र थे जिनमें सबसे बड़े यदु तथा सबसे छोटे पुरु थे । यदु ने यादव वंश की स्थापना की थी। दुष्यंत का जन्म पुरु के वंश में हुआ था । बाद में इसी वंश में ही महाभारत का युद्ध हुआ था। अर्थात महाभारत पूरी चंद्रवंशियों कि कहानी है ।
Dhakrey vansh unke gotre or kuldevi btaye koi
Kripya koli rajput ko Shakya Rajput vansh ko ek hee vansh bata kar sabhi rajput bhaiyo ko confuse mat karo .koli rajput alag he aur Shakya rajput alag he ,haan aur inn dono hee rajput vansh mein roti beti ke sambandh rahe he jaise ki Siddarth Shakya jo ki gautam buddha kehlaay ,Siddarth Shakya ki Mata koli Rajput vansh ki thi....aur Siddarth Shakya ke pitah Shakya rajput thhe....🙏🏻
राजा पोरस से पौरुस एवं बाँगर दो भाई हुए जो कि सूर्य वंशी हैं उनके बारे आपके द्वारा कहीं चर्चा नही की गयी है जबकि इतिहास में भी पोरस एक महान राजवंश रहा है
राजा पोरस से पौरुस एवं बाँगर दो भाई हुए जो कि सूर्य वंशी हैं उनके बारे आपके द्वारा कहीं चर्चा नही की गयी है जबकि इतिहास में भी पोरस एक महान राजवंश रहा है
राजा पोरस से पौरुस एवं बाँगर दो भाई हुए जो कि सूर्य वंशी हैं उनके बारे आपके द्वारा कहीं चर्चा नही की गयी है जबकि इतिहास में भी पोरस एक महान राजवंश रहा है
बिल्कुल सत्य जय मां भवानी जय राजपुताना जय बघेल खण्ड 🚩🙏
बघेल खण्ड के इतिहास में परिहार क्षत्रियों का योगदान पर जानकारी दे बग्राही उपाधि से विभूषित नायक धावाई पंचम सिंह परिहार के बारे में भी जानकारी साझा करें ।।
Gahwar rajput ki all detels gotr kul devta our bhi dane ki kirpya kre please
हुकुम गहरवार की शाखा कर्मवार के बारे बताये जैसे कुल देवी,कुल देवता , वेद , गोत्र
Ji Baruwar Rajput suryavsnshi Rajput Jo ki trilokchand ke wansaj hai ek raja ke name se Chala is vansh ka name jinka name Baruwar shah tha Jo raja chatarsen ke putra Thai adhik jankari ke leyai Google Wikipedia ya fir Anya aap ki madat lai aur nahi Tau hamse sampark karai Baruwar Rajput ke barai Mai jankari Laine ke leyai dhanyawad Bhai Baruwar Rajput Suryavsnshi Rajput Hai
चौहान,सूर्यवंश की शाखा है या अग्नि वंश की शाखा हे ???
Annapurna devi
Annapurna devi
Agni vanah ki shakha hy
Aapke pass vanshavali book hoto plz reply kare
ढेकहा राजपूत के बारे में जानकारी दें ,
गोत्र – कश्यप
ढेकहा राजपूत के बारे में जानकारी दें ,
गोत्र – कश्यप
यदुवंश अलग है जो अब नही है किसी पाप के कारण उनका वंश समाप्त हो गया है और जो आज खुद को यादव कहते है बो अहीर है और हा कृष्णा यदुवंश मैं पैदा हुए थे राजा यदु के वंश मैं अहीर के घर पले बढे हैं
चौके यह किस शाखा हे आता हैं?
बुंदेलखंड के "दांगी ठाकुर कच्छवाहा राजपूत" का इतिहास भी बताओ जय श्री राम 🙏
Khangar rajput kaun h
Agar jvaab na hua to tippni manjur mat karna
Ji hum azamgarh ke dhanchula gaaw se hain humare purwaj angrejo se sangharsh Karte huye azamgarh ke hi narphora gaaw ko basaya aur faasi ki saza se jail se apni kul devi ki madad se raat me palayan Kar gaye the humara gotra bharadwaj hai aur vansh beruwar hai aur humare aas paas ke sabhi kshatriya paaliwal hai unka gotra byaghrapad hai.
libadi stets
Mur detya narkasur ka senapati tha wah mor jati ka tha mura mor jati ke mukhiya ki putri thi. Wah nand raja ki dasi thi. Chandra gupt nand ka putra tha apni mata ke gotra ke nam se pahichana gaya. Mewad me rule tha ki dasi putra apni mata ke gotra se jana jayega aur baayen hath me kada pahinega.
नंद जी और वसुदेव जी जब आपमें भाई भाई है तों यादव(अहीर) अलग कैसे हो गये। सच को बिना जाने ऐसी बातें नही लिखी जाती।हम चंद्रवंश में ही आते है। ऐसा मत कहिये।
बहुत अच्छा सूर्यवंशी
कुशवाहा राजपूत हूँ
कृपा मुझे बता की कुटवारिया या कुठवारिया गोत्र किस राजपूत बंश का है (हम राजपूत क्षत्रिय लिखते हैं) कृपा मार्गदर्शन करे..
कृपा मुझे बता की कुटवारिया या कुठवारिया गोत्र किस राजपूत बंश का है (हम राजपूत क्षत्रिय लिखते हैं) कृपा मार्गदर्शन करे..
Yas shi bat
महाराज ध्रुव के वंश में राजा वेणु हुए और राजा वेणु के नाम से वेणुवंशी क्षत्रिय हुए! वेणुवंशी क्षत्रियों की मुख्य राजधानी बिठूर कानपुर उ. प्र.है! बिठूर से झूंसी प्रयागराज आए और झूंसी राजा हुए!
वेणुवंशी क्षत्रिय
गोत्र कश्यप
कुलदेवी लक्ष्मी
Naglakhshya gotra ke bare me jankari de
Khangar Yaduvanshi kshatriya hai | khet singh khangar nam ke yauddha k Janm junagadh gujrat ke chudasma rajput parivar me hua Tha vh Prithviraj chauhan ke Sath delhi aye aur khi yuddh lde | iske bd bundelkhand me gadkundar kill k raja bnaya gya
Jo bhi bhai iss lekh ko likhe Hain unko koti koti dhanyawad. Mai bhi Raja Venu ka vanshaj Venuvanshi kshatriya hun.
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