जामुन (वैज्ञानिक नाम : Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है और यह भारतवर्ष में प्रायः सब जगह पैदा होते हैं। वनों में उगने वाली जामुन छोटी और खट्टी होती है और बगीचों में उगने वाली बड़ी और मीठी होती है। एक जामुन की जाति नदी किनारे लगती है जिसकी पत्ती कनेर के पत्तों जैसी होती है, इसे जल-जामुन कहते हैं। इस की दूसरी जाति के पत्ते आम के पत्तों के बराबर होते हैं और फल मध्यम होते हैं। इसकी तीसरी जाति के पत्ते पीपल के पत्तों के बराबर होते हैं और चिकने तथा चमकदार होते हैं। इसका फल बड़े जामुन के रूप में होता है। जामुन की कई किस्में हैं। कुछ जामुन के पत्ते मौलसिरी के पत्तों जैसे भी होते हैं। वैशाख और ज्येष्ठ मास में इनमें फल आते हैं, इसके फलों को जामुन कहते हैं। जामुन का रंग ऊपर से काला और अन्दर से लाल होता है। अन्दर इसमें गुठली होती है। गुणों में सभी जामुन फल एक जैसे गुणकारी होते हैं और बडे़ स्वादिष्ट व मीठे होते हैं। जामुन के वृक्ष बहुत बड़े-बड़े होते हैं। इसकी लकड़ी चिकनी, सुंदर तथा कमजोर होती है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त और वर्षा ऋतु के प्रारंभ में इसके फल झड़ते हैं, जिन्हें लोग इसकी गुठलियों के लिए संग्रह करते हैं। गुठली औषधियों में प्रयोग होती है।
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जामुन को संस्कृत में जम्बू, सुरभीपला, महांस्कन्द्दवा, मेघमोदिनी, राजफला और शुकप्रिया कहते हैं। हिन्दी में जामुन, जामन, काला जामन, फलांदा और फलिंद कहते हैं। गुजराती में जांबू, बंगला में जाम, मराठी में जांभूल, तमिल में जंबुनावल, कर्नाटकी में नीरल या केंपुजं बीनेरलु, तेलिंगी में नेरेदु, मलयालम में नेतुजांबल या नावल, लैटिन में जांबोलेमन या सिजि़जीयम् और अंग्रेजी में जांबुल ट्री या जेम्बोल कहते हैं। जामुन का छत्र काफी घना होने के कारण इसे सड़कों के किनारे, खेतों में और खाली भूमि पर लगाया जाता है। पत्तियां गहरे हरे रंग की और चमकदार होती हैं। छाल स्लेटी-कत्थई होती है। यह नदी तट के पास बाढ़ से प्रभावित भूमि पर अधिक पैदा होता है व नदी, तालों के किनारे और दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है। सुन्दर छायादार छत्र और सदापर्णी वृक्ष होने के कारण जामुन सड़कों के किनारे बहुतायत से रोपा जाता है।
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जामुन एक मध्यम आकार का वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 32 मी. तक और व्यास 100 से.मी. या इससे अट्टिाक तक होता है। अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेड एवम् 875 से 5,000 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्र जामुन के लिए अनुकूल होते हैं। यह प्रजाति जलवायु की दृष्टि से बहुत सहनशील है। यह कंकरीली, क्षारीय और नमकयुक्त मृदा के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार की पृदा में पनप सकता है। जामुन छाया सहन कर सकता है। यह तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है। जामुन के बीज अंकुरण क्यारियों में एक से.मी. के अन्तराल पर पतली नालियों में बोए जाते हैं। 6-7 से.मी., ऊँचे हो जाने पर बिजौलों को अंकुरण क्यारियों से निकाल कर प्रतिरोपण क्यारियों में प्रतिरोपित कर देते हैं। पॉलीथीन थैलों में सीट्टो बीज बोकर भी इसकी पौध तैयार की जाती है इसकी समय-समय पर सिंचाई, गुड़ाई व निराई करते रहना चाहिए। एक वर्ष की पौध रोपण हेतु उपयुक्त होती है। पौट्टाशालाओं में शाखा अट्टिाक होने की स्थिति में नीचे से 1/3 ऊँचाई तक शाखाओं को तेज धार चाकू से काट देना चाहिए।
जामुन की लकड़ी भारी और मजबूत होने के कारण इमारती लकड़ी के रूप में भी उपयोगी है। बैलगाड़ी के पहिए और नावें भी जामुन की लकड़ी से बनती है। खेती के औजारों के दस्ते बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे ईंधन के रूप में भी काम में लाया जाता है। जामुन की छाल, चमड़ा पकाने और रंगने के काम आती है। इसके पके हुए फल बहुत स्वादिष्ट होते है। इसका सिरका भी बनाया जाता है। पेट के विकारो के लिए जामुन के फल और इनका सिरका अचूक दवा माना गया है।
उपयोगिता और मान्यता
आयुर्वेद के अनुसार, जामुन की छाल कसैली, मल रोधक, मधुर, पाचक, रुक्ष, रूचिकारक तथा पित्त और दाह को दूर करने वाली होती है। इसके फल मधुर, कसैले, रूचिकारक, रूखे, मलरोधक, वातवर्धक और कफ, पित्त जीवपनोपयोगी फल: जामुन तथा अफरे को दूर करने वाले होते हैं। जामुन की गुठली मधुर, मलरोधक और मधुमेह (शक्कर की बीमारी) को नष्ट करती है।
चरक के शास्त्र में जामुन की छाल को मूत्रसंग्रह और पुरीष रंजनीय बतलाया है। सुश्रुत के शास्त्र में रक्त पित्त नाशक, दाहनाशक, योनिदोषनाशक, वृष्य और संग्रही माना है। वैद्य लोग जामुन के सिरके को पेट की पीड़ा का नाश करने वाला और मूत्र अधिक लानेवाला मानते हैं। जामुन कृमि नाशक, रक्तप्रदर और रक्तातिसार का शामक है। जामुन का रस पीने से दस्त बंद हो जाती है। जामुन खून को साफ करता है और इसमें विजातीय तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने की अद्भुत क्षमता होती है।
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जामुन के 100 ग्राम गूदे में लगभग 94 ग्राम पानी होता है। 14 ग्राम कार्बोहाईड्रेट (शर्करा), 14 मि ग्रा कैल्शियम, 14 मिग्रा फास्फोरस और अल्पमात्रा में लोहा पाया जाता है। प्रोटीन की मात्रा 0.7 ग्राम, वसा की मात्रा 0.3 ग्राम होती है। कुछ महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्वों के साथ 0.9 ग्राम रेशे भी पाए जाते हैं। जामुन के रस में विटामिन ‘सी’ 10 मिलीग्राम तथा कैरोटीन, थायमिन, रिबोफ्लेविन और नियासिन जैसे विटामिन भी मिलते हैं। इन सब तत्त्वों के कारण-जामुन के 100 ग्राम गूदे से 62 कैलोरी उर्जा मिल जाती है।कुछ औषधीय प्रयोग
- मधुमेह (डायबिटीज) पर- जामुन की गुठली और गुड़मार बूंटी, दोनो समभाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण गर्म पानी के साथ प्रातः सायं सेवन करने से मधुमेह रोग मिट जाता है।
- स्वप्नदोष पर- जामुन की गुठली पीसकर चूर्ण बना लें, प्रातः सायं दो चम्मच (छः ग्राम) चूर्ण पानी से लें तथा रात्रि में दूध के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है, वीर्य के रोग दूर होते हैं तथा शीघ्रपतन व स्वप्नदोष मिट जाता है। जामुन की गुठली पंसारी या हकीमी अत्तार की दुकान से जितनी चाहें उतनी प्राप्त की जा सकती हंै।
- शैया मूत्र पर- निद्रावस्था में बालक-बालिका, बहुत से बड़े हो जाने के बाद भी बिस्तर में पेशाब कर देते हैं। कोई बड़ी उम्र के भी पेशाब कर देते हैं, इसे शय्यामूत्र रोग कहते हैं, इसके उपचार में जामुन की गुठली को कूटपीस कर चूर्ण बनालें, इस चूर्ण को प्रातः सायं एक चम्मच फांककर पानी पीलें, ऐसा करने से एक हफ्ते में बिस्तर में पेशाब करना मिट जायेगा।
- पुरानी बैठी हुई गले की आवाज पर- जामुन की गुठली का चूर्ण आधा चम्मच शहद में मिलाकर प्रातः सायं लेने से पुरानी बैठी हुई आवाज साफ हो जाती है। गायकों, वक्ताओं के लिए यह उपचार लाभकारी है।
- मधुमेह में- जामुन की गुठली सूखी तथा सूखे आंवले दोनों को कूटपीस कर चूर्ण बना लें। दोनों समभाग (बराबर-बराबर) ले लें। प्रातः निराहार (खाली पेट) गाय के दूध के साथ 6 ग्राम (दो चम्मच) चूर्ण फांककर दूध पी लें। ऐसा कुछ दिन करने से मधुमेह रोग समाप्त हो जाता है।
- चर्मरोगों पर- जामुन की गुठली बारीक पीस कर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है।
- कान से पानी बहने पर- जामुन की गुठली को पीसकर सरसों के तेल में डालकर गरम करें। ठण्डा होने पर सूती कपडे़ से छानकर शीशी भर लें। ड्रापर से कान में डालने से कुछ ही दिनों में कान बहना बन्द हो जाता है।
- मुंह के छाले- जामुन के नरम और ताजे पत्तों को पानी में पीसकर, और पानी बढ़ाकर कपड़े से छान लें, उस पानी से कुल्ले करने से मुंह के खराब से खराब छाले ठीक हो जाते हैं।
- बवासीर में- दस ग्राम जामुन के पत्तों को गाय के दूध में घोंटकर दस दिन तक प्रातः पीने से बवासीर में गिरने वाला खून बन्द हो जाता है।
- अफीम का नशा- दस ग्राम जामुन के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से अफीम का नशा उतर जाता है।
- जूते से काटने पर- अगर किसी के पाँव में चमड़े के जूते से काटने पर जख्म हो जाता है तो जामुन की गुठली पानी में पीसकर लगाने से जख्म ठीक हो जाता है।
- दस्त में- जामुन की गुठली व आम की गुठली से उसकी गिरी फोड़कर निकाल लें, दोनो समभाग लेकर चूर्ण बनालें, दूध के साथ इसकी फंकी लेने से लगातार आ रही दस्तें बन्द हो जाती है।
- पेट में बाल या लोहे का अंश चला जाने पर पक्के जामुन खाना चाहिए, जामुन इन्हें पेट में गला देता है। जामुन खाना स्वास्थ्य वर्द्धक है।
- पेट के रोगों में- पन्द्रह दिन तक लगातार दिन में जामुन फल खाने से पेट के रोगों का शमन हो जाता है और मधमेह की शिकायत हो तो वह भी मिट जाती हैं।
- यदि गर्भवती स्त्री को अतिसार ( दस्तों) की शिकायत हो तो जामुन फल (पके हुए) खिलाने से राहत मिलती है। शांति मिलती है।
- बिच्छु के दंश पर- जामुन के पत्तों का रस लगाना चाहिए।
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